हवाई जहाज में उड़ते समय विमान परिचारिका ने उद्घोषणा की, कि अन्तरराष्ट्रीय नियम के अनुसार, उड़ते तथा उतरते समय,
- खिड़की के शटर खुले रखें;
- हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी बन्द कर दी जायगी।
'May I help you, Sir'मैंने अखबार से नजर उठाते हुऐ कहा,
'मुझे अंग्रेजी कम समझ में आती है क्या हम हिन्दी में बात कर सकते हैं।'उसने The Economics Times की तरफ कड़ी नजर डाली, फिर मुस्करायी। इस बार मुझे उसकी मुसकराहट बनावटी नहीं लगी। मुझे तो वह बिलकुल अपने मुन्नी जैसी लगी। उसकी मुस्कराहट जैसे कह रही हो, कि पापा तुम्हें तो झूट बोलना भी नहीं आता पर उसने मुस्करा कहा कि,
'अंकल मुझे भी हिन्दी अच्छी लगती है पर क्या करूं यहां पर अंग्रेजी बोलने को कहा जाता है।'वह काफी देर तक बतियाती रही। बिलकुल वैसे ही जैसे कि मुन्नी अक्सर लड़ियाती है। उसने मुझे बताया कि परिचारिका की ट्रेनिंग में क्या क्या सिखाया जाता है और यह भी बताया कि,
'हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी इसलिये बन्द कर दी जाती है कि दुर्घटना हो और बहर जाना पड़े तो आंखे न चौधियाऐं।'मेरे उसे यह बताने पर कि मुझे न केवल उड़ान के बारे में पर शायद जीवन में उन सब बातों में रुचि है जो मुझे नहीं मालुम हैं पर वह मुन्ने की मां से बोली,
'दीदी, अंकल तो बच्चे हैं।'वह नये युग की थी। जानती थी कि, अब किसी भी महिला को आंटी नहीं कहा जाता है केवल दीदी या भाभी।
एयरपोर्ट में मेरे सहयोगी ने अपनी कार ड्राईवर के साथ भेजी थी। कार में बैठने और ट्रेन छूटने में केवल ३० मिनट शेष था। ड्राईवर बहुत कुशल था। उसने हमें केवल २९ मिनट में रेवले स्टेशन पंहुचाया। मैं लैपटॉप लेकर प्लेटफॉर्म पर डिब्बे के सामने पहुंचा तो ट्रेन ने चलना शुरू कर रही थी। मैं तो चढ़ गया। मुन्ने की मां एक हाथ में पर्स और दूसरे हाथ में एक हैण्ड बैग पकड़े थी। चढ़ते समय उसका पैर फिसला, पर उसका पैर वापस प्लेटफॉर्म पर। मैंने उससे बैग लिया और दूसरे हाथ से उसे ट्रेन में चढ़ने में सहायात की। समान भी और लोगों ने चलती ट्रेन में चढ़ाया।
कुछ देर बाद समान ठीक से रख कर मैंने उससे कहा कि वह हैण्ड बैग क्यों पकड़े थी कहीं वह वास्तव में ऊपर चली जाती तो। उसने कहा कि वह निश्चिंत थी कि वह चढ़ जायगी इसलिये उसने ट्रेन में चढ़ने का प्रयत्न किया। वह कुछ आगे और भी कह रही थी पर तब तक मेरा लैपटॉप खुल चुका था। मेरी उंगलियां गोवा की यात्रा का संस्मरण लिखने के लिये थिरकने लगी थीं। फिर भी मैंने उसे कहते हुऐ सुना,
'इतनी जल्दी मुझसे पल्ला झाड़ रहे थे। सुना नहीं था कि परिचारिका कह रही थी कि तुम बच्चे हो अभी तो तुम्हें २५ साल और देखना है जब तक बड़े न हो जाओ।'मैंने उसकी बात अनुसुनी कर दी। २५ साल तो बहुत समय होता है, मेरे पास शायद केवल १० या १२ साल का समय है। बहुत कुछ करना है, इसीलिये मैं काफी हड़बड़ी में रहता हूं।
इसी कड़ी के साथ गोवा की यात्रानामा समाप्त होती है। हो सका तो अगली बार, मैं आपको कशमीर ले चलूंगा।
गोवा
प्यार किया तो डरना क्या।। परशुराम की शानती।। रात नशीले है।। सुहाना सफर और यह मौसम हसीं।। डैनियल और मैक कंप्यूटर।। चर्च में राधा कृष्ण।। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।। न मांगू सोना, चांदी।। यह तो बताना भूल ही गया।। अंकल तो बच्चे हैं
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