प्यार किया तो डरना क्या

अपने पैसे से तो पांच सितारा होटेल में ठहरना तो बहुत मंहगा है, कम से कम मेरे मेरे जेब के बाहर। सम्मेलन हमेशा पांच सितारा होटलों में होते हैं। उनमें जाने का यही फायदा है कि कम से कम उसी के बहाने वहां का भी नजारा देख लिया। हांलाकि जैसा फाइनमेन की पुत्री मिशेल Do you have time to think में बताती हैं कि फाइनमेन सम्मेलनो में होटलों से बोर होकर कर जंगलों में कैम्पिंग करना पसंद करते थे पर यह अपने देश में तो सम्भव नहीं लगता है।

मुझे, दो साल पहले कलकत्ता जाना पड़ा था। हयात ग्रुप का नया होटल बना है, वहीं पर हमारा
सम्मेलन था। कमरे बढ़िया इंटरनेट का कनेक्शन, पर वह मेरे लिनेक्स लैपटॉप पर चल कर नहीं दिया। मैंने होटल वालों से कहा। उन्होने एक व्यक्ति को भेजा। वह कोई विशेष्ज्ञय तो नहीं लगता था पर थोड़ा बहुत कंप्यूटर के बारे में जानता था। उसने मेरे लैपटौप को देखा और कहा कि,
'बहुत सुन्दर स्क्रीन है। लगता है विंडोस़ की कोई नयी थीम डाली है।'
मैंने कहा,
'यह विंडोस़ नहीं है, लिनेक्स है।'
'लिन्क्स? यह क्या होता है।'
उसने आश्चर्य से पूछा।

मैंने,कंप्यूटर के औपरेटिंग सिस्टम के बारे में उसकी क्लास ही ले ली। बताया कि यह कितनी तरह के होते हैं, इनमेम क्या अन्तर होता है, जैसा कि कुछ मैंने अपनी ओपेन सोर्स सॉफ्टवेर की चिट्ठी पर बताया है। उसने मुझसे पूछा कि मैं अगली बार कब आ रहा हूं। मैंने कहा,
'यह क्यों पूंछ रहे हो।'
उसका जवाब था,
'मैं लिनेक्स के बारे मैं सब सीख कर रखूंगा ताकि आपको मुश्किल न हो।'
बहुत खूब।

पिछले साल कोची में हयात ग्रुप में हुऐ एक सम्मेलन में रहने का मौका मिला। यहां पर भी अनुभव कलकत्ता
की तरह ही रहा।

इस साल मुझे गोवा जाना पड़ा। यहां सिडाडे डी गोवा के नाम के होटल में टहरने का मौका मिला। यह एक पांच सितारा होटेल है और बहुत अच्छा है। मुझे लगा कि लिनेक्स काफी लोकप्रिय हो चुका है इसलिये यहां बेहतर अनुभव रहेगा। पर यहां भी, मेरे लैपटॉप के साथ वही हुआ को कि मेरे साथ हयात कलकत्ता में हुआ था।

चलिये, प्यार किया तो डरना क्या। कम से कम तीन लोगों को तो मैंने लिनेक्स के बारे में बताया। वे अगली बार इसके लिये तैयार रहेंगे।

ऐसे आखिरकर, मैंने यहां पर लिनेक्स लैपटॉप की मुश्किल का हल निकाल ही लिया। बस जालक्रम विन्यास में जा कर यदि कोई लैन का कनेक्शन बना है तो इसका आईपी पता स्वचलित कर दे या नया इसी तरह का लैन कनेक्शन बना लें - बस काम फिट।

गोवा और यह होटेल दोनो बहुत अच्छे लगे। इसके बारे में आपको बताउंगा, कुछ चित्र भी लिये थे, वह भी पोस्ट करूंगा। यहां होटेल में दो खास बातें देखने को मिलीः
  • महिलाओं की तो नेकरे छोटी होती जा रहीं हैं और पुरषों की बड़ी;
  • गोरे चिट्टे (विदेशी) महिला बदन पर जितने कम कपड़े (बस चले तो सब उतार दें पर यह कानूनी तौर पर मना है), और गेहुवें तथा श्याम (मुन्ने की मां जैसी देसी) महिला बदन पर उतने ही ज्यादा।

तो मिलते हैं अगली बार परशुराम की शानती से - अरे बाबा, वही शान्ति, जिसकी हम सब को तलाश है।

मुगले आज़म फिल्म का गीत 'प्यार किया तो डरना क्या' सुनिये।



गोवा
प्यार किया तो डरना क्या।। परशुराम की शानती।। रात नशीले है।। सुहाना सफर और यह मौसम हसीं।। डैनियल और मैक कंप्यूटर।। चर्च में राधा कृष्ण।। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।। न मांगू सोना, चांदी।। यह तो बताना भूल ही गया।। अंकल तो बच्चे हैं

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