'गोवा की याद करा कर, लेख लिखने के लिए उकसा दिया आपने। अब झेलिएगा लेख।'मैं उनके गोवा यात्रा के लेखों का इंतजार कर रहा हूं, देखना है कि उनका अनुभव मेरे अनुभव जैसा ही रहा या फिर अलग था।
जीतेन्द्र जी ने टिप्पणी करते समय यह की यह बात भी कही कि
'आप डिसाइड नही कर पाए कि होटल पर लिखे या लीनिक्स पर'।यह बात कुछ करोंच सी गयी। लगता है, मेरे दिमाग में ओपेन सोर्स और लिनेक्स कुछ ज्यादा ही घूमता रहता है। मुझे इससे बाहर आना चाहिये - गेयर बदलना चाहिये। महिला दिवस अभी ही गुजरा है, इसलिये सोचा कि मैं महिला अधिकारों के ऊपर नयी श्रृंखला की शुरुवात करूं। यह श्रृंखला लम्बी चलेगी और गेयर अपने आप बदल जायग। पहला प्यार तो भूलना मुश्किल होता है फिर भी, महिलाओं को दिमाग में रखूंगा तो शायद भूल पाऊं :-)
दुर्गा, शक्ति का रूप हैं। इतनी शक्तिमान कि भगवान राम ने भी लंका पर आक्रमण के समय, दुर्गा की आराधना की। उनकी कथा कुछ ऐसी है कि जब देवता, महिषासुर से संग्राम में हार गये और उनका ऐश्वर्य, श्री और स्वर्ग सब छिन गया तब वे दीन-हीन दशा में वे भगवान के पास पहुँचे। भगवान के सुझाव पर सबने अपनी सभी शक्तियॉं (शस्त्र) एक स्थान पर रखीं। शक्ति के सामूहिक एकीकरण से दुर्गा उत्पन्न हुई। पुराणों में उसका वर्णन है - उसके अनेक सिर हैं, अनेक हाथ हैं। प्रत्येक हाथ में वह अस्त्र-शस्त्र धारण किए हैं। सिंह, जो साहस का प्रतीक है, उसका वाहन है। ऐसी शक्ति की देवी ने महिषासुर का वध किया। वे महिषासुर मर्दनी कहलायीं।
मेरे विचार से यह कथा संघटन की एकता का महत्व बताने के लिये बतायी गयी है। शक्ति, संघटन की एकता में ही है। उनके सहस्त्र सिर और असंख्य हाथ, वास्तव में संघटक के सहस्त्रों सिर और असंख्य हाथ हैं। कथा की शिक्षा है - साथ चलोगे तो हमेशा जीत का सेहरा बंधेगा। देवताओं को जीत तभी मिली जब उन्होने अपनी ताकत एकजुट की। मैं अवधिया जी प्रार्थना करूंगा कि वे विस्तार से दुर्गा की कथा हम सबको बतायें।
दुर्गा, शक्तिमयी हैं, उनका सशक्तिकरण हो चुका है। लेकिन आज की महिला क्या शक्तिमयी है? क्या उसका सशक्तिकरण हो चुका है? क्या वह आज दुर्गा बन चुकी है? शायद नहीं, पर उसके पास कुछ अधिकार तो हैं, वह कुछ तो शक्तिमान हुई। यह अधिकार, यह शक्तियां उसे किसी ने दिये नहीं हैं। यह उसने खुद लड़ कर प्राप्त किये हैं। इस श्रृंखला में हम नजर डालेंगे उन किस्से कहानियों पर, उन कानून पर, उन फैसलों पर, जिन्होने महिला अधिकारों को सुदृढ़ किया और उसे कुछ हद्द तक दुर्गा का रूप दिया। पर सबसे पहले कुछ बातें इस महिला दिवस के बारे में।
महिला दिवस ८ मार्च को क्यों मनाया जाता है?
अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आवाहन, यह दिवस सबसे पहले सबसे पहले यह २८ फरवरी १९०९ में मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तरराष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।१९१७ में रुस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिये। उस समय रुस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का आखरी इतवार २३ फरवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८ मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये ८ मार्च, महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
समय की कहानी, कैलेंडरों में अन्तर यह भी बहुत मजेदार किस्सा है। यह कभी मैं विस्तार से आपको सुनाऊगां। पर मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप में से कोई इसकी कहानी लिखना शुरु करे।
महिलाओं के अधिकारों की बात करते समय एक शब्द Gender Justice प्रयोग होता है। इस शब्द के अर्थ अलग अलग समय पर, अलग अलग देश में अलग अलग रूप में जाने जाते हैं। चलिये अगली बार हम बात करेंगे इस शब्द के अर्थ की और जानेगे, कि हमारे देश इस समय यह किस अर्थ में लिया जाता है।
मैं नहीं जानता कि Gender Justice के लिये हिन्दी में क्या उपयुक्त शब्द है। शब्दार्थ के अनुसार से तो यह लिंग न्याय होता है पर क्या यह सही है? मुझे प्रसन्नता होगी यदी आपमें से कोई इसके लिये सही शब्द बताये।
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