यौन शिक्षा और सांख्यिकी

कुछ दिन पहले शास्त्री जी ने यौन शिक्षा पर एक लेख 'यौन शिक्षा — पाश्चात्य राज्यों का अनुभव क्या कहता है ?' लिखा। मैंने इस पर टिप्पणी की,
'शास्त्री जी आप गलत नहीं कहते पर फिर भी मैं कहना चाहूंगा कि सांख्यिकी का पहला सिद्धान्त है There are lies, damned lies and statistics. इसका कारण है।
आप सांख्यिकी को जिस तरह से चाहें, प्रयोग कर सकते हैं और वह विश्वसनीय लगता है। सांख्यिकी का प्रयोग सही है या गलत - केवल विशेषज्ञ ही बता सकते हैं। मान लीजिये मैं कहूं कि 'क' टूथपेस्ट अच्छा है क्योंकि इससे मंजन करने वालों में ९०% लोगों के दांत अच्छे रहते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि यह अच्छा टूथपेस्ट है क्योंकि हो सकता है इससे न मंजन करने वालों में से ९५% के दांत अच्छे रहते हों। यदि ऐसा है तो यह खराब टूथपेस्ट हो जायगा।
सोचिये यदि पाश्चात्य देशों में यौन शिक्षा न हुई होती तो क्या हाल होता। यदि तब हाल अच्छे होते तब ही आपकी बात ठीक लगती है अन्यथा नहीं।
अपने देश में जिस तरह के टीवी प्रोग्राम आते हैं जिस तरह की खबरे आती हैं, जिस तरह अंतरजाल पर सब उपलब्ध है - उसे देख कर तो मुझे लगता है कि यौन शिक्षा होनी चाहिये।
इस बारे में मैंने अपने तथा अपने परिवार के व्यक्तिगत अनुभव भी 'यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है' और 'यौन शिक्षा' नाम से लिखे हैं। मैं चाहूंगा इनको भी आप देखें फिर राय कायम करें।
ऐसे यौन शिक्षा पर व्यापक बहस जरूरी है।'

यह टिप्पणी किसी कारणवश उस समय प्रकाशित नहीं हो पायी। उसके बाद नीरज जी ने शास्त्री जी असहमत हो कर 'यौन शिक्षा: दो टूक बातें !' नाम की चिट्ठी लिखी। जिस पर उनकी अनुमति से, मैंने यह टिप्पणी कर दी। शास्त्री जी से असहमत हो कर, पंकज जी ने भी एक चिट्ठी 'मेंढक बहरा हो गया' नाम से लिखी। शास्त्री जी इनका जवाब पांच चिट्ठियों यहां, यहां, यहां, यहां, और यहां दिया है। उनके जवाब को एकदम से नहीं नकारा जा सकता।

इस विषय पर इसके पहली लिखी चिट्ठियों की लिंक मेरी दोनो चिट्ठियों में है। यह सब इस विषय पर रोचक और ज्ञानवर्धक बहस है। यह बहस, कम से कम इन चिट्ठियों कि उन टिप्पणियों से बेहतर है जिन टिप्पणियों के द्वारा, यह कहा गया कि लोग इस विषय पर नहीं पढ़ना चाहते चाहे जितना अच्छा
लिखा हो। मेरे विचार से बहस इस तरह से होनी चाहिये न की उस तरह से जैसे अक्सर हो जाती है।

यौन शिक्षा के संदर्भ में, मैं ११-१२वीं कक्षा के विद्यार्थियों को 'फिर मिलेंगे' फिल्म देखने के लिये भी सलाह दूंगा। यदि आपने इसे नहीं देखी हो तो देखें। आप इसे अपने मुन्ने, मुन्नी के साथ देखें या अलग - यह आपके उनके रिश्तों के ऊपर है। मैंने तो यह फिल्म अपने बच्चों के साथ देखी, हांलाकि जब यह फिल्म आयी तब तक वे अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुके थे।

मेरा अब भी, यह मत है,
'यौन शिक्षा - कम से कम प्रारम्भिक स्तर की - होनी चाहियेः शायद घर में सबसे अच्छी हो।'
हांलाकि न तो सब इसे ठीक प्रकार से बताने में सक्षम हैं, न ही इस पर लिखी सब पुस्तकें ठीक हैं।


यह तो बात हूई, यौन शिक्षा पर - अब चलते हैं सांख्यिकी पर।

सांख्यिकी के बारे अक्सर कहा जाता है - पहले झूट, फिर बिलकुल झूट, उसके बाद सांख्यिकी। यही बात मैंने अपनी टिप्पणी पर भी लिखी थी। इसका एक उदाहरण, टिप्पणी पर बताया था। इसको समझाने के लिये, यह भी
कहा जाता है,
'यदि आपका सर रैफ्रीजरेटर में हो और पैर जलते स्टोव पर तो सांख्यिकी के अनुसार, औसतन, आप ठीक ठाक हैं।'

यह कार्टून मैथली जी ने, इसी कहावत को उजागर करने के लिये बनाया है। मैथली जी, कौन? अरे वही कैफे हिन्दी और ब्लॉगवाणी वाले - मेरा धन्यवाद और आभार।

किसी और संदर्भ में, मैथली जी के बारे में, मैंने दो चिट्ठियां - 'डकैती, चोरी या जोश या केवल नादानी' और 'हिन्दी चिट्ठाकारिता, मोक्ष, और कैफे हिन्दी' नाम से लिखी हैं।


मैंने, सांख्यिकी, ४० वर्ष पहले अपने विद्यार्थी जीवन में पढ़ी थी। उसके बाद कभी जरूरत नहीं पड़ी। यह टिप्पणी लिखते समय मैंने अपने विद्यार्थी जीवन को याद किया और याद किया उस समय सांख्यिकी पर पढ़ी कई बेहतरीन पुस्तकों को, जो आज भी सांख्यिकी की लाजवाब पुस्तकें मानी जाती हैं। अगली बार, उन्हीं के बारे में बात करेंगे।

यौन शिक्षा और सांख्यिकी

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