यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है: हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू

यहां पर ही क्यों, सेक्स पर बात करना हर जगह वर्जित है। हांलाकि कि बीबीसी के मुताबिक बहुत कुछ बदल रहा है। हिन्दी चिट्ठा-जगत में कुछ दिन पहले 'सेक्स क्या' नामक चिट्ठे को नारद पर रखने या नहीं रखने के लिये बहस चली जिसकी आखरी कड़ी रजनीश जी ने लिखी है। सी.बी.एस.ई. में यौन शिक्षा को पाठ्य-क्रम में रखा गया है। इसे कई राज्य सरकारों ने मना कर दिया। इस संबन्ध पर कईयों ने यहां (यह चिट्ठा अब सबके पढ़ने के लिये नहीं रहा), यहां, यहां, यहां, और यहां लिखकर अपनी राय दी है। मैं यौन शिक्षा का पक्षधर हूं। मेरे विचार से यौन शिक्षा को पढ़ाया जाना ठीक है।

यौन शिक्षा - इस रिश्तों की श्रखंला में! आपको कुछ अजीब लग रहा है न। चलिये पहले मैं यह स्पष्ट कर दूं कि यह चिट्ठी इस श्रंखला के अन्दर क्यों लिख रहा हूंं?

महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा छेड़खानी भीड़-भाड़ की जगह होती है पर यौन उत्पीड़न सगे संबन्धी या जान पहचान व्यक्ति के द्वारा ही ज्यादा होता है। पारिवारिक रिश्तों के अन्दर, यौन शिक्षा किस तरह से हो, एक नाजुक पर महत्वपूर्ण विषय है। इसीलिये मैं, इसे, इस श्रंखला के साथ लिख रहा हूं।

मैं नहीं जानता कि इस विषय को बताने का क्या सबसे अच्छा तरीका है पर मैं वह तरीका अवश्य जानता हूं जैसा कि हमारे परिवार में हुआ। मैंने यह विषय कैसे अपनी आने वाली पीढ़ी को बताया।

मुझे अपने काम के कारण, अक्सर स्कूल, प्रोफेशनल विद्यालय, विश्व-विद्यालय में जाना पड़ता है। बच्चों से मुलाकात होती है। अक्सर मेरे पास बच्चे यह पूछने के लिये आते हैं कि वे क्या कैरियर चुने, कहां पढ़ने जायें। मैं कभी कभी उनसे यौन शिक्षा के विषय पर भी बात करता हूं। मैं क्या उनसे बताता हूं यहां कुछ उसी के बारे में।

मेरे बचपन का एक बहुत अच्छा मित्र, टोरंटो इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्यापक रहा। कुछ समय पहले उसकी मृत्यु हो गयी। बचपन में ही उसके पिता का देहान्त हो चुका था। भाई, बहनो की भी शादी के बाद, वह और उसकी मां हमारे ही कस्बे में रहते थे। अक्सर उसकी मां उसके भाई या बहनो के पास रहने चली जाती थी। उस समय उसका घर खाली रहता था। उस समय, उसके घर, काफी धमाचौकड़ी रहती थी।

यह १९६० का दशक था। हेर संगीत नाटक का मंचन हो चुका था। इसका जिक्र मैंने 'ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके' की श्रंखला में किया है। हिप्पी आंदोलन अपने चरम सीमा पर था। हमारी इस धमाचौकड़ी में, अक्सर लड़कियों भी शामिल रहती थीं। कभी कभी चरस और गांजा भी चलता था। मैं खेल में ज्यादा रुचि रखता था। मुझे जिला, विश्वविद्यालय एवं अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। इसी कारण इस तरीके की धमाचौकड़ी में शामिल नहीं रहता था।

एक बार मेरे मित्र को कुछ ब्लू फिल्में मिल गयीं। एक दूसरे मित्र ने प्रोजेक्टर का इंतजाम कर दिया। उन लोगों ने फिल्म को भी देख लिया। यह सोचा गया कि उसे फिर देखा जायगा पर सवाल था कि ब्लू फिल्म कहां रखी जाय। कोई भी उसे रखने को तैयार नहीं था। मैं ही ऐसा था जो कि इस धमाचौकड़ी मे शामिल नहीं था। इसलिये मेरे पास ही रखना सबसे सुरक्षित समझा गया या यह समझ लीजये कि मुझे उन ब्लू फिल्मों को रखने में कोई हिचक नहीं थी।

मैं ने यह ब्लू फिल्में अपने कपड़े की अलमारी में रख दी। एक दिन मेरे कपड़े लगाते समय अम्मां को ब्लू फिल्में मिल गयीं। उनके पूछने पर मैंने सारा किस्सा बताया और यह भी बताया कि मैंने कोई भी ब्लू फिल्म नहीं देखी है। अम्मां ने पूछा कि मुझे सेक्स के बारे में कितना ज्ञान है। मेरा जवाब था थोड़ा बहुत। उन्होने कहा कि,

'ब्लू फिल्मों मे बहुत कुछ नामुमकिन बात होती है और अधिकतर जो भी होता है वह ठीक नहीं। तुम्हें मालुम होना चाहिये कि क्या ठीक नहीं है। इसलिये इसे, तुम्हें देख लेना चाहिये पर उसके पहले सेक्स का अच्छा ज्ञान भी होना चाहिये।'

हम लोग किताबों की दुकान पर गये और वहां से एक पुस्तक Everything you always wanted to know about sex but were afraid to ask by David Reuben खरीद कर लाये। यह पीले रंग की पुस्तक है इसलिये यह पीली पुस्तक के नाम से भी मशहूर हुई।

सेक्स के बारे में उत्तेजना चित्र देख कर होती है या इसके किये जाने के वर्णन से। यदि यह वर्णन साधारण रूप से है तो नहीं। इस पुस्तक में कोई भी चित्र नहीं हैं। इसमें सारा वर्णन प्रश्न और उत्तर के रूप में है। इसे पढ़ कर कोई उत्तेजना नहीं होती है। इस पुस्तक में कुछ सूचना समलैंगिक रिश्तों और सेक्स परिवर्तन के बारे में है। यह इस तरह के विषयों को नकारती है। इसी लिये कुछ लोग इस पुस्तक पर विवाद करते हैं। यह दोनो विषय विवादस्पद हैं। मैंने इनके बारे में 'Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री', 'आईने, आईने यह तो बता - दुनिया मे सबसे सुन्दर कौन', 'मां को दिल की बात कैसे बतायें', और 'मां को दिल की बात कैसे पता चली' नाम से लिखा है। मैं इसके बारे विस्तार से लिखने की हिम्मत जुटा रहा हूं। यदि आप इस पुस्तक में इस विषय की सूचना को छोड़ दें तो बाकी सूचना के बारे में कोई विवाद नहीं है और लगभग सही है। मेरे विचार से यह एक अच्छी पुस्तक है।

मैंने, इस पुस्तक को पढ़ने के बाद ब्लू फिल्म देखना जरूरी नहीं समझा। ब्लू फिल्म न देखने के निर्णय में, कई अन्य बातों ने भी महत्वपूर्ण रोल निभाया। अम्मां ने,

  • मुझे न तो उन फिल्मों को रखने के कारण डांटा, न ही देखने के लिये मना किया। जिसके बारे में मनाही हो, उसी के बारे में उत्सुकता ज्यादा रहती है;
  • हमेशा हमें ऑउटडोर खेल पर, पढ़ाई से भी ज्यादा, ध्यान देने के लिये प्रोत्साहित किया। उस समय पढ़ाई का वैसा बोझ नहीं था जैसा कि आजकल होता है।
अम्मां का प्रिय वाक्य थे
'पढ़ाई बन्द करो और बाहर जा कर खेलो।'
यदि हम रात को देर तक पढ़ते थे तो हमेशा कहती थीं
'चलो, सोने जाओ। बहुत रात तक पढ़ना ठीक नहीं।'
परीक्षा के दिनो में तो हमारे कमरे की बत्ती बहुत ज्लद ही बन्द कर दी जाती थी। वे कहती थीं,

'परीक्षा के समय दिमाग एकदम तरोताजा रहना चाहिये।'

हमार मुन्ना, जब स्कूल में ही था तब मैंंने उसे यह पुस्तक पढ़ने के लिये दी। वह बारवीं तक हमारे पास ही रहा, उसके बाद
आई.आई.टी. कानपुर पढ़ने चला गया। वहां सब होस्टल में ही रहते हैं। मैं समझता हूं कि उसे इस पुस्तक को पढ़ने के कारण मदद मिली।

देश के कुछ महाविद्यालयों में, पास-ऑउट करने वाले छात्रों की एक पत्रिका निकाली जाती है। आई.आई.टी. कानपुर में ऐसा होता है। यह पत्रिका विद्यार्थी ही निकालते हैं इसमें उनके साथी ही उन्हीं के बारे में लिखते हैं। मैं एक बार उनकी इस पत्रिका को पढ़ने लगा तो उन्होने मना किया,

'पापा, तुम मत पढ़ो। इसे पढ़ कर तुम्हे अच्छा नहीं लगेगा।'
मैंने कहा,
'मैं भी अपने विद्यार्थी जीवन में इन सब से गुजर चुका हूं इसलिये कोई बात नहीं।'
उनकी पत्रिका में बहुत सारी बातें स्पष्ट रूप से लिखी थीं। हमारे समय में भी उस तरह की बातें होती थी पर इतना स्पष्ट रूप से नहीं लिखा जाता था।

मैंने School Reunion चिट्ठी लिखते समय लिखा था कि मुन्ना आई.आई.टी. कानपुर की पत्रिका में दी गयी पहली दो सूची में नहीं है पर विद्यार्थियों की इस पत्रिका में, उसके बारे में, यह अवश्य लिखा है कि वह
वहां के साफ सुथरे बच्चों में से एक है। हो सकता है यह उसके संस्कारों के कारण हो पर मेरे विचार से यह उसके इस पुस्तक को पढ़ने और यौन शिक्षा को अच्छी तरह से समझने के कारण है।

मेरे विचार में, आने वाली पीढ़ी को अच्छी किताबें बताना, मुक्त पर स्वस्थ यौन चर्चा करना, एक अच्छी बात है। अन्यथा, नयी पीढ़ी को गलत सूचना मिल सकती है जिसकी संभावना अधिक है। इस कारण वे गलतफहमी के शिकार हो सकते हैं।


भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।


सांकेतिक शब्द
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