मनोरंजात्मक गणित के जनक - मार्टिन गार्डनर को सलाम

मनोरंजात्मक गणित?
कहीं गणित जैसा नीरस विषय भी मनोरंजन का साधन हो सकता है? यह तो विरोधाभास है।
लेकिन यह सच है।
गणित में रोचक बनाने, उसमें मनोरंजन पाने की दिशा में, शायद मार्टिन गार्डनर ने सबसे अधिक काम किया है। यह चिट्ठी उनको श्रद्धांजलि है।

हम भाई बहन का बचपन, आज के बच्चों के बचपन जैसा नहीं था। न ही पढ़ने का इतना दबाव, न ही इतनी प्रतिस्पर्धा, और न ही इतने भारी भरकम बस्ते। यही कारण था कि शायद अधिकतर समय हमने खेलने में या इधर उधर की मस्ती में बिताया।

मैंने अधिकतर समय, रैकेट खेलों में यानि टेनिस, बेडमिंटन, टेबल टेनिस स्कवैश जैसे खेल खेलने में , या फिर आइज़ेक एसीमोव, आर्थर सी कलार्क, फ्रेड हॉयल की विज्ञान कहानियों को पढ़ते बिताया। इन्हीं के साथ एक और लेखक भी मुझे बेहद प्रिय था। मैंने उसकी सारी किताबें चाट डाली थीं वह था - मार्टिन गार्डनर।

मार्टिन गार्डनर अपनी लिखीं पुस्तकों के सामने। उनका यह चित्र मैथमैटिकल एसोसिएशन ऑफ अमेरिका के वेबसाइट के इस पेज से लिया गया है।

मार्टिन का जन्म  २१ अक्टूबर १९१४ को हुआ था। मार्टिन ने हाई स्कूल के बाद गणित नहीं पढ़ी थी। वे शिकागो विश्विद्यालय से दर्शन शास्त्र में स्नातक थे और अपने को गणित में कमजोर मानते थे।

मैंने १९६० के दशक साईंटिफिक अमेरिकन नामक पत्रिका पढ़नी शुरु की। साईंटिफिक अमेरिकन में,  मार्टिन मनोरंजनात्मक गणित पर एक स्तम्भ लिखा करते थे। मार्टिन गार्डनर से मेरी मित्रता उसी समय शुरू हूई, जो अभी तक कायम है। 

उनके लेख, पुस्तकें मनोरंजनात्मक गणित के अतिरिक्त, पहेलियों, विरोधाभास, और जादू के बारे  में रहते थे। यह न केवल ज्ञानवर्धक पर मनोरंजक  भी रहते थे।  इस युग में गणित को लोकप्रिय बनाने में जितना काम मार्टिन गार्डनर ने किया शायद उतना किसी और ने नही किया। 

न्यू यॉर्क से,  हम्टी डम्टी (Humpty Dumpty) नामक बच्चों की पत्रिका निकलती थी। मार्टिन उसी में सम्पादक की सहायता करते थे और  उसमें बच्चों के लिये सदाचरण की कवितायें लिखा करते थे। १९५६ में साईंटिफिक अमेरिकन पत्रिका ने, उनसे मनोरंजनात्मक गणित के ऊपर  प्रति माह एक लेख लिखने की बात की। उन्होंने, इस चुनौती को  स्वीकार किया और साईंटिफिक अमेरिकन में प्रति माह एक लेख लिखना शुरू किया। 

१९८१ में, उन्होंने साइंटिफिक अमेरिकन में स्तंभ लिखना छोड़ दिया  और स्वतंत्र लेखन करने लगे। पहेलियों के बारे में लिखीं पुस्तकों में मेरी प्रिय पुस्तकें हैं
  • Mathematical puzzles and diversions;
  • More mathematical puzzles and diversions;
  • Further mathematical diversions;
  • Mathematical carnival;
  • Mathematics magic and mystery;
  • Entertaining mathematical rules;
  • Science fiction, puzzle tales;
  • Aha! gotcha, paradoxes to puzzle and delight

उन्हें, छद्म विज्ञान से  बेहद चिढ़ थी। इस बारे में उनकी बेहतरीन पुस्तक है Science: Good, Bad, and Bogus है। बाद में यह Fads and Fallacies in the Name of Science के नाम से पुनः प्रकाशित हुई। इसमें ये ESP और UFO के अन्धविश्वास को दूर करने का प्रयत्न करते हैं।

उनकी पहेलियों की पुस्तक से, एक पहेली।
वोदका में खून ज्यादा या खून में वोदका ज्यादा।

एक सुबह ड्रैकुला  और श्रीमती ड्रैकुल ने सोने जाने से पहले रात के जश्न मनाने की बात सोची।

ड्रैकुला ने अलमारी से वोदका और आदमी के खून की, एक एक लीटर की बोतलें निकाली। वोदका की बोटल आधी और खून की बोतल तीन-चौथायी भरी थी। कुछ खून की बोतल से खून वोदका की बोतल में डाला। उसे अच्छी तरह से हिलाया फिर वोदका की बोतल से उतने मिश्रण को वापस खून की बोटल में डाल दिया कि वोदका और खून की बोतल में उतनी भरी रहें जितने की पहले थी।

श्रीमती ड्रैकुला सोने के कपड़े पहन शीशे में बाल संवार रहीं थी।  उन्होंने, यह सब शीशे में देखा।

 श्रीमती ड्रैकुला से पूछा जाय कि वोदका की बोतल में ज्यादा खून है कि खून की बोतल में ज्यादा वोदका तो उनका क्या जवाब होना चाहिये।

यह मान कर चलिये कि वोदका और खून को मिलाने में उनके आयतन में कोई अन्तर नहीं होता है और खून का घनत्व वोदाका से ज्यादा होता है। 

इस पहेली को सुलझाने में कोई विज्ञान जानने की आवश्यक्ता नहीं है।

मार्टिन गार्डनर पर,  'द नेचर ऑफ थिंगस्'  नाम से यह विडियो विम्को वेबसाइट से है। यह भागों में, युट्यूब में भी उपलब्ध है। यह एक बेहतरीन विडियो है। इस देख कर आप बहुत कुछ उनकी शख्सियत के बारे में जान पायेंगे।


मैंने पहले भी इनके बारे में दो चिट्ठियां  यहां और यहां लिखीं। फिर इन्हें संकलित कर, मार्टिन गार्डनर के बारे में एक चिट्ठी अपने लेख चिट्ठे पर यहां प्रकाशित की है।

क्या अच्छा हो कि कोई विश्वविद्यालय उनके नाम से, उनके सम्मान में कोई कॉंफरेन्स या सेमीनार का आयोजन करे।  

मार्टिन गार्डनर की मृत्यु २२ मई २०१० को हो गयी। गणित जैसे नीरस विषय को रोचक बनाने वाले इस व्यक्ति को, उन्मुक्त का सलाम।  





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yeh chitthi  martin gardner ko shrandhanjali hai. ganit ko lokppriya bnaane unka yogdaan sabse adhik hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padhne ke  liye, daahine taraf, oopar ka widget dekhen.

This post is tribute to Martin Gardner, who popularised Mathematics more than any one else. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

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क्या काली मां की कृपा से यह चमत्कार हो गया

इस चिट्ठी में प्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी रमेश कृष्णन से मुलाकात की चर्चा है।

मुझे सारे रैकेट के खेल पसन्द हैं। टेनिस सबसे पहले खेलना शुरू किया। शायद ४थी-५वीं कक्षा से। मैंने इसकी कोचिंग भी ली है। बचपन में दुनिया के बेहतरीन टेनिस खिलाड़ियों को भी देखने का मौका भी मिला - रॉय एमरसन, फ्रेड स्टोले, मार्टिन मुलिगन, बॉब हेटिट, आयन टिरियाक, नास्तासे, रामानथन और रमेश कृष्णन, जयदीप मुकर्जी, प्रेमजीत लाल, अमृतराज बन्धु, निरुपमा वसंत, किरण बेदी आदि। 



मुझे आज भी, १९६६ में, कलकत्ता के साउथ कल्ब में भारत बनाम ब्राज़ील के डेविस कप इंटर ज़ोन फाईनल मैच  की याद है। उस समय, मैं स्कूल का विद्यार्थी था। मेरे कान में आज भी, रेडियो में आ रही कमेन्टरी की आवाज गूंजती है।

उस समय जयदीप मुकर्जी, प्रेमजीत लाल के साथ के साथ डबलस् खेलते थे। जयदीप उस बार कृष्णन के साथ खेले और डबलस् का मुकाबला जीत लिया। कृष्णन ने अपना एकल मुकाबला जीत लिया था लेकिन भारत अपने दोनो अन्य एकल मुकाबले हार चुका था। मैच स्कोर दो बराबर। पांचवां मैच रामानाथन कृष्णन बनाम थॉमस कॉख। कृष्णन १-२ सेट, चौथे सेट में २-५ गेम, और आठवें गेम में १५-३० से पीछे।

ब्राज़ील से मैच जीतने के बाद,  ऑस्ट्रेलिया के टोनी रॉश् और जॉन न्यूकॉम्ब विरुद्ध जयदीप मुकर्जी और रामानाथन कृष्णन डबल्स् का मैच खेलते हुऐ। यह मैच भारत ने जीता पर मुकाबला १-४ से हार गया। चित्र हिन्दू अखबार के सौजन्य से।  

आप उस समय के तनाव को तब तक नहीं समझ सकते जब तक आपने स्वयं वह आखों देखा हाल न सुना हो या आपने वह मैच न देखा हो। वहां से लगातार कृष्णन ने लगातार ९ गेम जीत लिऐ और मैच भी। भारत को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चैलेंज राउंड में खेलने का मौका मिला। क्या काली मां की कृपा थी कि यह चमत्कार हो गया। कृष्णन तो यही कहते हैं। वे मैच के तुरन्त बाद काली मां के मन्दिर गये। 



कुछ इसी तरह का कारनामा रमेश कृष्णन ने १९९३ में फ्रांस के विरुद्ध कर दिखाया था।


कुछ समय पहले, मुझे रमेश से एक कल्ब में मिलने का मौका मिला और यह मौका में नहीं छोड़ना चाहता था। हमने साथ साथ डबलस् का एक सेट भी खेला। वे मेरे साथी थे। बीच, बीच में, वे मेरी गलतियों को सुधारते जाते थे। इस उम्र में, अब क्या मैं टेनिस सीखू पांऊगा पर उनके प्यार से समझाने में मजा ही कुछ और था। वे कहने लगे चाहे दूसरी तरफ गेंद कोर्ट के बाहर चली जाय पर नेट नहीं अटकनी चाहिये। एक बार जब वे स्वयं यह गलती कर गये तो अपने आप से कहा। दूसरों को सलाह दे रहा हूं पर इसे तो मुझ भी मानना चाहिये।


खेलने के बाद, हमने कुछ समय साथ बिताया। मेरे पास उनकी वा उनके पिता की निर्मल शेकर के साथ लिखी पुस्तक 'अ टच ऑफ टेनिस - द स्टोरी ऑफ टेनिस फैमिली' थी। इस पर मैंने उनसे हस्ताक्षर लिये। पूछने लगे, 
'मैं अपने पिता के भी दस्खत कर सकता हूं। क्या उनके लिये भी कर दूं।'
मैंने कहा नहीं मैं अगली बार चेन्नेई आउंगा तब खुद मिल कर करवाऊंगा।

सरल हृदय के व्यक्ति, उम्र में मुझसे बहुत छोटे, पर कद में कहीं ऊंचे। मैंने विश्वविद्यालय स्तर तक का टेनिस खेला है। आजकल कभी, कभी कल्ब में ही खेलता हूं। लेकिन उनके मुकाबले नगण्य। उन्हें मेरे साथ, मेरे पार्टनर बन कर खेलने में कोई हिचक नहीं थी। बात करने में कोई घमन्ड नहीं। यह उनका बड़प्पन था। रमेश ने कुछ अपने बारे में भी बताया।

रॉय एमरसन टेनिस के बेहतरीन खिलाड़ी रहें हैं। वे ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी थे पर अब कैलीफोर्निया में बस गये हैं। वे हर साल दो महीने के लिये स्विटज़रलैण्ड में टेनिस का कैम्प करते हैं। रमेश गर्मियों में वही उस कैंप में रहते हैं।  


रमेश को दो बेटियां हैं। उनके बारे में भी बात की। वे  अमेरिका में पढ़ रही हैं। प्रतियोगिता स्तर का टेनिस तो नहीं, पर अपने विश्वविद्यालय स्तर का खेल खेलती हैं। वे अपने पिता रामानाथन कृष्णन के साथ चेन्नई टेनिस ऐकादमी तो नहीं पर टेनिस कल्ब चला रहें हैं।

उनके साथ समय बिताना सुखद अनुभव रहा। अगली बार चेन्नई में मिलने का वायदा कर, मैंने उनसे विदा ली। देखिये कब चेन्नई में उनके पिता रामानाथन कृष्णन से मिल पाता हूं। 

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This post is about my meeting with Ramesh Krishnan and is about autobiography  'A Touch of Tennis - A Story of Tennis Family'.  It is in Hindi (Devnagri script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

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हमने भगवान शिव को याद किया और आप मिल गये

मनाली के एक साइबर कैफे में, हिन्दी को लेकर एक रोचक हादसा हो गया था। इसी की चर्चा इस चिट्ठी में है।

मनाली में जॉन्सन होटल है। इसके रेस्ट्रॉं में बढ़िया स्मोक्ड ट्राउट फिश मिलती है। हम लोग एक दिन वही दोपहर का खाना खाने गये। वहीं पर वेटर ने, साइबर कैफे का पता बता दिया था।

मैं अपनी पत्नी को रेस्ट्रॉं में छोड़ कर, साइबर कैफ़े में आ गया। जब मैं अपनी ईमेल  देख रहा था तभी वहां एक विदेशी आया। उसने साइबर कैफ वाले से पूछा, 
'क्या स्काइप है?'
साइबर कैफे के मालिक के हामी भरने पर, विदेशी ने युरोप में किसी से स्काइप पर बात की, पैसा दिया, और चलते बना। मैं अपना काम समाप्त करके चलने को ही था तभी दो  व्यक्ति वहां पर आये और साईबर कैफे के मालिक से पूछा,
'मुझे अति आवश्यक संदेश हिन्दी में टाइप कराना है। क्या आप कर सकते है?'
साईबर कैफे के मालिक ने कहा,
'न तो मैं हिन्दी में टाइप करवा सकता हूं न ही मैं मनाली में किसी ऐसे व्यक्ति को जानता हूं जो हिन्दी में टाइप कर सके।'
मैं उनकी बात सुन रहा था। मैनें कहा,
'हिन्दी में टाइप करने में क्या मुश्किल है। यह तो बहुत ही आसान है।' 
मैंने उन्हें आफलाइन हिन्दी में टाइप करने कैफे हिन्दी, और आन लाइन हिन्दी में टाइप करने के लिये, गूगल ट्रास्टलिट्रेशन की सलाह दी।  कैफे हिन्दी डाउन लोड किया। उसे उनके कम्पूटर पर डाला। लेकिन वह चला नहीं। शायद मैथली जी कुछ प्रकाश डालना चाहें। 

शब्दों के हिन्दी में बदलते ही उनके चेहरे प्रसन्नता से भर गये
मैंने गूगल ट्रांसलिटरेशन का पेज निकाला। उसमें टाइप करके बताया। जैसे ही मैंने अंग्रेजी में टाइप किया और वह हिन्दी में बदल गया, उनके चेहरे पर प्रसन्नता से भर गये। वे उत्साहित हो उठे।  मैंने उनसे कहा,
'आप खुद टाइप करें। मैं लिनेक्स में काम करता हूं। इसलिए मुझे गूगल ट्रांसलिटरेशन में काम करने की जरूरत नहीं पड़ती है। यही कारण है कि मैं इस पर ठीक से टाइप नहीं कर पा रहा हूं। आप ट्रायल, ऎरर से टाइप कर लें।'
वे लोग  बहुत ही तेजी से टाइप करने लगे और उनका काम  हो गया। उनमें से एक व्यक्ति  नाम छोटे लाल था। वह  इंजीनियर है और दिल्ली के बिहार भवन में कार्यरत है। उन्होने मुझसे बताया,  
'हम शिव भक्त हैं और हमारे शिव शिष्य परिवार नामक संस्था से जुड़े हैं। हमारे गुरू देव भी आये हैं। उन्हीं का संदेश टाइप करवाना था। आप हमारे गुरूदेव से मिल लीजिए और शिव भक्त बन जांए।'
मैंने कहा,
'जैसे आप  शिव भक्त है उसी तरह मैं हिन्दी का भक्त हूं । आप हिन्दी में टाइप न होने के कारण परेशान लग रहे थे। इसलिए मैने हिन्दी में टाइप करना आपको सिखा दिया। मेरे पास समय की कमी है। इसलिए आपके गुरूदेव से न मिल सकूंगा। इसके लिए आप मुझे माफ़ करें।'
बाहर निकलते समय दूसरा व्यक्ति आया उसने कहा,
'आप क्यों नही शिव भक्त हो जाते हैं? यदि आप कहे तो मैं घोषणा कर दूं।'
मैं अज्ञेयवादी हूं। न ही इन बातों में विश्वास करता हूं और न ही किसी ऐसी संस्था का सदस्य हूं। मुझे कुछ हिचक लग रही थी। वे इतने उत्साहित और खुश लग रहे थे कि मुझे लगा कि यदि मैं मना कर दूंगा तो वह दुखी हो जायेंगे। मैं चुप रहा। उसने मेरे मौन को हांमी समझ, मेरे नाम से घोषणा की, कि मैं शिव भक्त हो गया और कहा, 
'आप जब कभी मुश्किल में पड़े तो शिव को याद करियेगा। आपकी सारी मुश्किल दूर हो जायेगी। हमें हिन्दी में टाइप करने की मुश्किल थी। हमने भगवान शिव को याद किया। जैसे, उन्होंने आपको हमारी सहायता के लिए भेज दिया वैसे वे आपकी मुश्किल दूर करने के लिये किसी को भेज देंगे, या स्वयं दूर कर देंगे।'

साइबर कैफे मालिक  भी प्रसन्न हो गये क्योंकि उसने भी कुछ नया  सीखा। मैं चलने लगा तो उसने अपनी दुकान का कार्ड दिया। यह लोग स्पेशल टूर इंडिया के नाम से पर्यटन की कम्पनी भी चलाते हैं।  मैं जब चलने लगा तो उसने मुझसे  केवल दस रुपया लिया। मुझे लगा कि यह  बहुत कम है।  उसने कहा, 

'आपने मेरी सहायता की है और हिन्दी टाइप करना सिखाया है पर इस लिए मैं केवल  दस रूपये ले रहा हूं। वैसे सही दाम ५० रुपया होता है।'
मुझे इस बात की प्रसन्नता हुई की मैं मनाली में भी हिन्दी की कुछ सेवा कर सका।

हम लोग, मनाली में स्टर्लिंग रिज़ॉर्ट में ठहरे थे। यह कुछ अलग तरह के होटेल हैं। इनके बारे में इस श्रंखला की अगली कड़ी में।

देव भूमि, हिमाचल की यात्रा

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लगता है कि विंडोज़ पर काम करना सीख ही लूं

इस चिट्ठी में मनाली के बारे में चर्चा है।

कहा जाता है कि मनाली में, महर्षि मनु ने तपस्या की। वहां पर उनका मन्दिर भी है। उन्हीं  के नाम पर इसे मनुआलय कहा गया। यह बाद में मनाली हो गया।


यहां बहुत से विदेशी यहां गांवो में बस गये है और यहीं पर शादी कर ली है। यहां पर रहने वाले स्थानीय लोगों ने, विदेशियों की सुविधानुसार उन्हीं से खाना बनाना सीख लिया है। यहां दुनिया का हर तरीके का खाना मिलता है। यह भी हो सकता है कि विदेशियों ने स्थानीय लोगों को अपने खाने के सुविधा के लिए लोगों को उनकी तरह का खाना बनाना सिखाया हो। यहां पर बहुत सारी दुकानें दिखीं जिसमें जर्मनी बेकरी, इंग्लिश बेकरी मिल रही थी। वहां हर किस्म के केक और मांस मिल रहा था।

मनाली  दो हिस्सों में बटा हुआ है।  पुराना और  नया। हम लोग नये मनाली में ठहरे थे। यहाँ पर अच्छे, पर महंगे होटल हैं। हिन्दुस्तानी  सैलानी कम दिनों के लिए मनाली जाते हैं वे नये मनाली में ठहरते हैं। पुरानी मनाली में भी ठहरने की सुविधा है। यह भी अच्छी है पर सस्ती है। विदेशी सैलानी अधिक समय के लिए रहने के लिये आते हैं। इसलिये वे पुरानी मनाली में ही ठहरते है। शायद इसलिये पुरानी मनाली में बहुत सारे साइबर कैफे है।

हो सकता है कि गर्मी में इन्हीं किसी भी घर पर रहूं, कुछ पढ़ूं, कुछ लिखूं

मनाली के साइबर कैफे में हर तरह की सुविधा है। अन्तरजाल भी तेज चलता है स्काईप की भी सुविधा है, विदेशी इसी के द्वारा बात करते हैं। इस बार मैं अपना लैपटॉप नहीं ले गया था। इसलिए अक्सर साईबर कैफ में जाना पड़ा। लेकिन सारे कंप्यूटरों में विंडोज़ है लिनेक्स नहीं। मुझे विंडोज़ में काम करने में मुश्किल होती है और इस पर हिन्दी में बिलकुल ही टाइप नहीं कर पाता। लगता है कि या तो मैं अपना कंप्यूटर ले जाया करूं या फिर विंडोज़ को समझ लूं। कम से कम उस पर हिन्दी में टाइप करना सीख लूं। मैं किताबें भी पढ़ना चाहता हूं इसलिये लैपटॉप नहीं ले जाना चाहता हूं। लगता है कि विंडोज़ पर काम करना सीख ही लूं।

मनाली के एक साइबर कैफे में, हिन्दी को लेकर एक रोचक हादसा हो गया। इसकी चर्चा, इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।


देव भूमि, हिमाचल की यात्रा

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