भूमिका - ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके

कुछ समय पहले नितिन जी ने 'क्या हम सुधरेंगे?' नाम की एक चिट्ठी पोस्ट की। इस पर रतना बहन ने भविष्यवाणी की, कि
'बहुत जल्दी मंज़िल की ओर बड़ रहे हैं।'
मनीष जी ने भी टिप्पणी की। संजय जी ने टिप्पणी तो नहीं की पर इसका जवाब क्यों न पीए चमत्कारी पानी? चिट्ठी पोस्ट कर के दिया। प्रतीक जी ने भी टिप्पणी कर के कहा कि,
'आपके प्रश्न का उत्तर नारद खोलते ही मिल गया। जब यह नया हिन्दी चिट्ठा देखा।'
इस चिट्ठे का नाम था - टोने टुटके।

मेरा भी मन था कि कुछ टिप्पणी करूं पर यह सोच कर कि मैं स्वतंत्र चिट्ठी पोस्ट करूंगा कुछ नहीं लिखा। मुन्ने की मां ने भी इस बारे में कुछ इशारा भी यहां पर किया था। टोने टुटके चिट्ठे पर बहुतों को आपत्ति रही और अन्त में यह बन्द हो गया। इसकी आखरी चिट्ठी सारे चिठ्ठाकार लोग नाराज थी। इस चिट्ठी पर सबने अपनी बात टिप्पणी करके कही। मैंने अपनी बात इस पर टिप्पणी कर के यह कही थी कि,

'सबको अपने विचार रखने कि स्वतंत्रता है, आपको भी। आपको यदि इन पर विशवास हो तो जरूर लिखें। यदि कोई नराज होता है तो गलत होता है।
हम सब (मेरा मतलब सब से है) बहुत सी बातों पर विशवास करते हैं जो कि टोने-टोटके जैसी है। ज्योतिष या हस्त रेखांये सब उसी श्रेणी मे हैं पर कोई अखबार नहीं है या पत्रिका नहीं है जो उसके कालम नहीं रखती हो। टीवी मे कभी न कभी हर चैनल इनका प्रयोग करते हैं। सारे शुभ कार्य सब इसी पर होते हैं।
हां कुछ खिलाफ लेख लिखने वालों को तो झेलना पड़ेगा। उनमे से मै भी एक हूं। एक लेख ज्योतिष और टोने टोटके पर लिखूंगा।'


मैं इस चिट्ठी का लिखना टालता रहा। इसके कई कारण रहे,

  • मुझे ज्योतिष या हस्तरेखाओं की विद्या का अच्छा ज्ञान नहीं है;
  • मैं ज्योतिष या हस्तरेखा विद्या पर विश्वास तो नहीं करता, पर कोई मेरे भविष्य के बारे में अच्छी बात बताये तो बहुत प्रेम से सुनता हूं, आखबारों में लिखी भविष्यवाणी भी पढ़ लेता हूं;
  • विद्यार्थी जीवन में मैने कई खास लोगों कि हस्त रेखायें पढ़ने का प्रयत्न किया, पर उनसे पूछने की हिम्मत नहीं पड़ी :-)
  • कई लोगों को मेरा लेख बिलकुल पसंद नहीं आयेगा और शायद वे उसी तरह से मुझसे क्रोधित हो जायें जैसे कि वे टोने टुटके के लेखक से हो गये।
मैंने इन सब के बावजूद भी इस लेख को लिखने की सोची। इसका एक खास कारण भी है। मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर मिश्रा जी ने यहां यह बताया था कि टोने टुटके वाले का चिट्ठा इतना सुन्दर क्यों है। उन्होने इस तरह से मेरे चिट्ठे पर टोने टुटके का शब्द प्रयोग किया। मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर अधिकतर लोग सर्च करके ही आते हैं और वे अक्सर टोने टुटके शब्द को सर्च कर रहे होते हैं। समीर जी ने 'टोने टुटके: नया ब्लौग: बाप रे बाप' नाम के चिट्ठे पर एक चिट्ठी पोस्ट कर कहा था कि
'मैं चक्कर मे था कि टोने ऎसे मिलें जिससे मालूम चले कि कैसे कुछ भी लिखो उसे अच्छा ही माना जाये, कैसे खुब टिप्पणियाँ बटोरो। कुछ नही मिला।'
मुझे लगा कि यदि टोने टुटके पर लिखूं तो यह लोगों को चिट्ठे पर लाने का एक कारगार तरीका हो सकता है, इसलिये हिम्मत करके यह सीरिस शुरु की है। यह कुछ लम्बी भी है इस लिये इसे निम्न क्रम में करेंगे।

  1. भूमिका (यह चिट्ठी)
  2. तारे और ग्रह
  3. प्राचीन भारत में खगोल शास्त्र
  4. प्राचीन युरोप में खगोल शास्त्र
  5. Hair Musical हेर संगीत नाटक
  6. पृथ्वी की गतियां
  7. राशियां (Signs of Zodiac)
  8. विषुव और विषुव-अयन (Equinox and Precession of Equinoxes)
  9. ज्योतिष
  10. कुम्भ राशि का समय
  11. अंक विद्या (Numerology)
  12. हस्तरेखा विद्या (Palmistry)
तो अगली बार हम लोग बात करेंगे - तारे और ग्रहों के बारे में।

ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: तारे और ग्रह
तीसरी पोस्ट: प्राचीन भारत में खगोल शास्त्र
चौथी पोस्ट: यूरोप में खगोल शास्त्र
पांचवीं पोस्ट: Hair Musical हेर संगीत नाटक
छटी पोस्ट: पृथ्वी की गतियां
सातवीं पोस्ट: राशियां Signs of Zodiac
आठवीं पोस्ट: विषुव अयन (precession of equinoxes): हेयर संगीत नाटक के शीर्ष गीत का अर्थ
नवीं पोस्ट: ज्योतिष या अन्धविश्वास
दसवीं पोस्ट: अंक विद्या, डैमियन - शैतान का बच्चा
ग्यारवीं पोस्ट: अंक लिखने का इतिहास
बारवीं तथा अन्तिम पोस्ट: हस्तरेखा विद्या

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कछुवा, खरगोश और ओपेन सोर्स

क्या, कछुआ, खरगोश और ओपेन सोर्स में कोई सम्बन्ध है ? हां कुछ तो है।

बचपन में एक कहावत पढ़ी थी Slow but steady wins the race धीरे पर निरन्तर चलने वाले की जीत होती है। इसको समझने के लिये एक कहानी कुछ प्रकार से बतायी जाती थी।

एक बार कछुवा और खरगोश में एक रेस होती है खरगोश आगे निकल जाता है पर सोचता है कि थोड़ी देर आराम कर लूं जब चाहूंगा तब कछुवे को हरा दूंगा। वह आराम करने लगता है और सो जाता है। थोड़ी देर में, कछुवा घीरे-धीरे चल कर उसको पार कर रेस जीत लेता है। खरगोश अपने आत्मविश्वास के कारण हार जाता है। इस कहानी में अब कुछ और जुड़ गया है।

रेस के बाद, रात को खरगोश को खुद पर शर्म आती है और वह कछुवे से रेस को एक बार फिर से करवाने के लिये कहता है। कछुवा सहमत हो जाता है। इस बार खरगोश आराम नहीं करता और आसानी से रेस जीत लेता है। कछुवे को शर्मिन्दगी महसूस नहीं होती क्योंकि वह अपने मजबूत और कमजोर पक्षों के बारे में जानता है। वह खरगोश से एक और रेस के लिए कहता है लेकिन शर्त यह है कि रेस का मार्ग कछुवा ही तय करेगा। खरगोश सहमत हो जाता है। वे दौड़ना शुरू करते हैं। खरगोश तेजी से दौड़ता है, लेकिन कुछ देर बाद अटक जाता है क्योंकि रास्ते में एक नदी है और खरगोश तैर नहीं सकता। कछुआ कुछ देर बाद पहुंचता है पर तैर कर नदी पार कर लेता है और मंजिल तक पहुंच जाता है।

पराजित खरगोश उसी रास्ते पर एक बार फिर रेस लगाने की प्रार्थना करता है, लेकिन एक नई रूपरेखा के साथ। वह सुझाव देता है कि जमीन पर रहते समय कछुवा खरगोश की पीठ पर बैठे, जबकि पानी में होने पर खरगोश कछुवे की पीठ पर बैठे। वे बिल्‍कुल ऐसा ही करते हैं और पहले से बहुत कम समय में रेस समाप्त कर लेते हैं और जल्दी ही प्रतिस्पर्धियों की जगह एक दूसरे का सहयोग करने वाले अच्छे दोस्त बन जाते हैं।

इस कहानी का सबक है - यदि लोग मिल कर चलेंगें और सहयोग से रहेगें तो न केवल सफर जल्दी कटेगा पर सुहाना भी होगा।

अब आप ओपेन सोर्स का साथ कछुवे और खरगोश के साथ का सम्बन्ध समझ गये होंगे। ओपेन सोर्स का पहला और सिद्धान्त है एक दूसरे का सहयोग करना - आप मेरी सहायता करें और मैं आपकी। हम मिलकर न केवल अच्छे सॉफ्टवेयर बना पायेंगें पर उसमें साथ का आनन्द भी पायेंगें।

मैं इसी के साथ यह चिट्ठी समाप्त करता हूं और आप पढ़िये फोर्बस् पत्रिका का यह लेख - क्या आने वाला कल लिनेक्स डेस्कटौप का होगा?


यदि आप ओपेन सोर्स सॉफ्टवेर या लिनेक्स के बारे में पढ़ना चाहें तो मेरे लेख चिट्ठे पर यहां और यहां पढ सकते हैं।

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ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर श्रंखला की पुरानी कड़ियां
ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर एवं हिन्दी ब्लौगिंग।। ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर।। चर्चा के विषय चर्चा के विषय।। गलतफ़हमी।। सौफ्टवेयर क्या होता है।। बौधिक सम्पदा अधिकार।। कॉपीराइट एवं ट्रेड सीक्रेट।। सॉफ्टवेयर कैसे सुरक्षित होता है।। कॉपीलेफ्ट।। फ्री सॉफ्टवेयर: इतिहास।। फ्री तथा जीपीएल्ड (GPLed) सौफ्टवेर की शर्तें।। ओपेन सोर्स सौफ्टवेर - क्या है।। सावधान, खबरदार - ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर में भी कॉपीराइट होता है।। उलटा चोर कोतवाल को डांटे।। लोकप्रिय ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर।। ओपेन सोर्स की पाती - बिटिया के नाम।। वेलेंटाइन दिवस, ओपेन सोर्स के साथ मनायें।। परिवर्णी शब्द (acronym)।। इसका महत्व।। लिनूस टोरवाल्डस एवं बिल गेट्स के विचार।। कछुवा, खरगोश और ओपेन सोर्स।।

हरिवंश राय बच्चन - इन्दिरा जी से मित्रता

पहली पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन – विवाद
दूसरी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - क्या भूलूं क्या याद करूं
तीसरी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन – तेजी जी से मिलन
चौथी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के अध्यापक
पांचवीं पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - आइरिस, और अंग्रेजी
यह पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - इन्दिरा जी से मित्रता,

बच्चन परिवार एवं नेहरू परिवार के सम्बन्ध आजकल वैसे नहीं है जैसे के पहले थे। इसका क्या कारण है यह तो वह ही लोग जानते हैं पर कुछ दिन पहले अमिताभ बच्चन ने राहुल गांधी के कथन पर टिप्पणी करते हुये कहा था कि बच्चन परिवार और नेहरू परिवार के सम्बन्ध बहुत पुराने हैं और शायद राहुल गांधी को इसका अन्दाजा नहीं है। इन सम्बन्धों की शुरूवात कैसे हुई, कैसे थे वे सम्बन्ध, इसके बारे में बच्चन जी ‘नीड़ का निर्माण फिर’ में कहते हैं कि,
‘उस फरवरी में सरोजिनी नायडू प्रयाग आई थीं ; आनन्द-भवन में ठहरी थीं। झा साहब ने एक रात को उनके सम्मान में भोज दिया था और उसमें सम्मिलित होने को तेजी को और मुझे निमन्त्रित किया था। तेजी के सौन्दर्य, सुरूचिपूर्ण पहनाव, शिष्टतापूर्ण बौद्धिक वार्तालाप से मिसेज नायडू इतनी प्रभावित हुई कि दूसरे दिन उन्‍होंने हमें आनन्द-भवन में चाय पर निमन्त्रित कर दिया। जब मैं तेजी के साथ वहाँ पहुँचा तो उन्होंने बड़े नाटकीय ढंग से हमारा परिचय नेहरू-परिवार से कराया। हमारी ओर हाथ करके बोलीं, "The Poet and the poem"- "आप कवि, आप कविता"। इस परिचय के फलस्वरूप तेजी सबसे अधिक निकट इंदिरा जी के आई - उस समय तक उनका विवाह नहीं हुआ था - और तब से आज तक उनकी मैत्री बनी हुई है। मिसेज नायडू ने जिस प्रकार तेजी का परिचय कराया था, वह इन्दिरा जी को आज तक याद है, और अब भी जब वे तेजी का परिचय किसी विदेशी महिला से कराना चाहती हैं, उसका संकेत करती हैं। पंडित नेहरू ने जो वाक्य मुझसे कहा था, वह भी याद है, "अरे, तुम्‍हारे फैन (प्रशंसक) तो हमारे घर में भी हैं"। उस समय तक ‘मधुशाला’ उनकी भांजियों के हाथों पहुँच चुकी थी। मार्च में जब इंदिरा जी का विवाह हुआ तो हमें निमन्त्रित किया गया और उस अवसर पर मिसेज, नायडू के आग्रह पर देश के बड़े-बड़े नेता-मेहमानों के सामने हमने मिलकर ‘वर्ष नव हर्ष नव’ का गीत सुनाया था। हमारा यह ‘डूएट’ उन दिनों प्रयाग में प्रसिद्ध हो गया था। वही ‘डूएट’ हमने छब्बीस वर्ष बाद इंदिरा जी के बड़े लड़के राजीव के विवाह पर सुनाया। पर हमारे कंठों में अब वह बात कहाँ ! समय का प्रभाव मानना ही पड़ता है। खैरियत है कि स्मृतियों पर अभी उसने हाथ साफ नहीं किया।‘

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मां तुझे सलाम - विवाद और कानूनी मुद्दे

पिछली पोस्ट पर वन्दे मातरम् के इतिहास के बारे में चर्चा की थी, इस बार इस पर उठे विवाद और जुड़े कानूनी मुद्दे।

विवाद
आनन्द मठ उपन्यास पर कुछ विवाद है कुछ लोग इसे मुसलमान विरोधी मानते हैं। उनका कहना है कि इसमें मुसलमानो को विदेशी और देशद्रोही बताया गया है। वन्दे मातरम् गाने पर भी विवाद किया जा रहा है। इस गीत के पहले दो पैराग्राफ, जो कि प्रसांगिग हैं, में कोई भी मुसलमान विरोधी बात नहीं है और न ही किसी देवी या दुर्गा की अराधना है। पर इन लोगों का कहना है कि,
  • मुस्लिम धर्म किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने को मना करता है और इस गीत में वस्तु की वन्दना की गयी है;
  • यह ऐसे उपन्यास से लिया गया है जो कि मुस्लिम विरोधी है;
  • दो पैराग्राफ के बाद का गीत – जिसे कोई महत्व नहीं दिया गया, जो कि प्रसांगिग भी नहीं है - में दुर्गा की अराधना है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत के सभी मुसलमानों को इस पर आपत्ति है या सब हिन्दू इसे गाने पर जोर देते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले संगीतकार ए.आर. रहमान ने, जो ख़ुद एक मुसलमान हैं, 'वंदेमातरम्' को लेकर एक एलबम तैयार किया था जो बहुत लोकप्रिय हुआ है। बीबीसी ने इस गाने को दूसरा लोकप्रिय (यहां देखें) गाना माना है। ज्यादतर लोगों का मानना है कि यह विवाद राजनीतिक विवाद है। यहां पर गौर तलब है कि ईसाई लोग भी मूर्त पूजन नहीं करते हैं पर इस समुदाय से इस बारे में कोई विवाद नहीं है, शायद इनकी संख्या कम है।

कानून
जहां तक कानून की बात है, उच्चतम न्यायालय ने Bijoe Emmanuel Vs. State of Kerala AIR 1987 SC 748 में राष्ट्रगान 'जन गण मन' के बारे में फैसला दिया है। यह फैसला तीन विद्यार्थियों के बारे में है। ये विद्यार्थी Jehovah's Witness नामक ईसाइयों का एक पंथ के सदस्य थे। ये विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्रगान 'जन गण मन' के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे; इसका हमेशा सम्मान करते थे, पर गाते नहीं थे। यह इसलिये कि यह इनके धर्म के खिलाफ था। उनका न गाना आपत्तिजनक और देशप्रेम की कमी मानी गयी और उनहें इसलिये स्कूल से निकाल दिया गया। केरल उच्च न्यायालय ने इनकी याचिका खारिज कर दी पर उच्चत्तम न्यायालय ने स्वीकार कर इन्हे स्कूल को वापस लेने को कहा। इस फैसले का आधार यही है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान करता है पर उसे गाता नहीं है तो न गाने के लिये दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। यदि कोई राष्ट्रगान नहीं गाता है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। वंदेमातरम् को जबरदस्ती गाने के लिये कहना शायद कानूनन ठीक नहीं था।

इस बारे में कुछ दिन पहले कि उस घटना को भी नजर में रखें जिसमें एक मिनिस्टर के खिलाफ यह कहा गया कि वे राष्ट्रगान 'जन गण मन' के बजने के समय खड़े नहीं हुऐ। इस बारे में एक मुकदमा चलाया गया जो कि इन्दौर की आदालत ने यह कह कर खारिज कर दिया है कि यह जुर्म नहीं है। हांलाकि इस फैसले के खिलाफ निगरानी दाखिल (यहां देखें) की गयी है।


७ सितम्बर को मुसलमानो ने क्या किया यह आप यहां, यहां, और यहां पढ़ सकते हैं। अधिकतर अखबारों में भी इसकी पुष्टि की गयी है। मुसलमानो ने इसे उतने ही उत्साह से गाया जितना कि हिन्दुवों या इसाइयों ने। यह विवाद बेकार मे शुरू हुआ। विवाद का कारण तो हमेशा कुछ और होता है - वह नहीं जो कि नहीं दिखायी देता है। हमारे देश में अवसरवादियों कि कमी नहीं जो हर मौके का फायदा उठाना चाहते हैं चाहे वह कितना गलत क्यों न हो।

चलिये इस विवाद को छोड़ें और इस गाने का आनन्द लें। यह सुनने में मधुर है, कर्ण प्रिय है।
यदि आप इस गाने को लता मंगेशकर या ऐ.आर. रहमान या कभी खुशी कभी गम के विडियो पर देखना और सुनना चाहें तो यहां, यहां, और यहां सुन सकते हैं। ऐसा हो सकता है कि यह विडियो पर पहली बार देखने पर यह रुक रुक कर दिखायी पड़े पर एक बार चल जाने के बाद आप इसे फिर से देखें तब तक यह आपके कंप्यूटर में कैश में आ जायगा और अच्छी तरह से दिखायी पड़ेगा।


अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

इस फैसले के बारे में लोगों की आम राय है कि इसकी अन्तिम आज्ञा तो सही है पर इसमें बहुत कुछ ऐसा कह दिया गया जिसकी कोई जरूरत नहीं थी और जो शायद सही नहीं है। वे लोग यह, इस फैसले के तथ्य के आधार पर कहते हैं। इसके तथ्य यह थे कि,
  • ये विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्रीय गीत 'जन गण मन' के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे
  • राष्ट्रीय गीत का हमेशा सम्मान करते थे;
  • इस तरह का न तो उस समय कोई कानून था न इस केस में न्यायालय को दिखाया गया कि यदि राष्ट्रीय गीत नहीं गाया जायगा तो जुर्म होगा या स्कूल से निकाल दिया जायागा;
  • केरल सरकार द्वारा इस बारे में जो भी सरकारी पत्र दिखाये गये उनका कोई भी विधिक आधार नहीं था।
इसी लिये यह लोग कहते हैं कि अन्तिम आज्ञा तो सही है पर उनका कहना है कि,
  • इसमें अमेरिकी कानून का सहारा लिया गया है जो कि अनुचित है;
  • अमेरिका का संविधान हमारे देश के संविधान से अलग है ;
  • अमेरिका में मौलिक अधिकार निर्बाध रूप से हैं और हमारे संविधान में इन अधिकारों पर युक्तिपूर्ण प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं
इस अन्तर का ख्याल इस फैसले में नहीं रखा गया है। यह सब तो हम कानूनी विशेष्ज्ञों के लिये छोड़े, हमारे लिये तो उच्चतम न्यायालय का फैसला अन्तिम है यह अन्तर तो न्यायालय ही समझे।

अमेरिका में पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम - व्यापार के तरीके के साथ

भाग-१: पेटेंट
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: ट्रिप्स (TRIPS)
तीसरी पोस्ट: इतिहास की दृष्टि में
चौथी पोस्ट: पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण
पांचवीं पोस्ट: आविष्कार
छटी पोस्ट: पेटेंटी के अधिकार एवं दायित्व

भाग-२: पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: अमेरिका में - पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम
तीसरी पोस्ट: अमेरिका में पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम - औद्योगिक प्रक्रिया के साथ
यह पोस्ट: अमेरिका में पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम - व्यापार के तरीके के साथ
अगली पोस्ट: यूरोप में पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम का कानून

यदि आप, इस चिट्ठी को पढ़ने के बजाय, सुनना पसन्द करें तो इसे मेरी 'बकबक' पर यहां क्लिक करके सुन सकते हैं। यह ऑडियो क्लिप, ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर लगभग सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में,
सुन सकते हैं। मैने इसे ogg फॉरमैट क्यों रखा है यह जानने के लिये आप मेरी शून्य, जीरो, और बूरबाकी की चिट्ठी पर पढ़ सकते हैं। अब चलते हैं इस चिट्ठी पर।

परम्परागत तौर पर, मात्र प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित प्रक्रियाओं को ही पेटेंट किया जा सकता था। अनेक दूसरे कार्यकलाप जिनके अन्तर्गत व्यापार के ढंग या आंकड़ा विश्लेषण जो कि प्रक्रियाएं कही जा सकती है, को पेटेंट नहीं किया जाता था। पर र्डाह केस के बनाय अमेरिका में पेटें‍ट देने की प्रक्रिया में बदलाव आया है। यू.एस. पेटेंट एन्ड ट्रेड आफिस (यू.एस.पी.टी.ओ.) ने पेटेंट करने के मार्गदर्शन की मैन्युवल में परिवर्तन किया है। इसकी कं‍प्यूटर प्रोग्राम के लिए व्यापार के तरीकों से सम्बन्धित पूर्वतर पॉलिसी जो {(पैराग्राफ ७०३।०३ (क)} निम्नलिखित थी।
‘ Though seemingly within the category of a process or method, a method of doing business can be rejected as not being within the statutory classes.’
इस पैराग्राफ को बदल कर निम्न कर दिया गया है।
'Office personnel have had difficulty in properly treating claims directed to methods of doing business. Claims should not be categorized as methods of doing business. Instead such claims should be treated like any other process claims’

उर्पयुक्त परिवर्तन को मद्देनजर रखते हुये स्टेट स्ट्रीट केस (State Stree Bank vs Signature Finencial Group 149 F3d ,1352) में अमेरिका के एक अपीली न्यायालय ने कहा कि कोई प्रक्रिया पेटेंट करने योग्य है या नहीं, यह इस पर नहीं तय होना चाहिए कि प्रक्रिया व्यापार करती है पर यह देखना चाहिये कि, पेटेंट की जाने वाली प्रक्रिया एक उपयोगी तरीके से प्रयोग की जा रही है अथवा नहीं। अमेरिका में व्यापार के तरीकों के के लिए दिये पेटेंट के कुछ उदाहरण निम्न है :
  • सामान खरीदने की स्वीकृत देने के लिये एक क्लिक का प्रयोग करना;
  • लेखा लिखने की एक आन-लाइन पद्धति;
  • आन-लाइन पारिश्रमिक प्रोत्साहन पद्धति;
  • आन-लाइन बारम्बार क्रेता कार्यक्रम; और
  • उपभोक्ता को अपने दिये गये दाम पर सर्विस की सूचना प्राप्त करने की सुविधा।

संक्षेप में, अमेरिका में विचार पेटें‍ट नहीं कराये जा सकते पर जब विचार व्यावहारिक तौर पर एक उपयोगी, कंक्रीट तथा मूर्त परिणाम देते हैं तो उन्हें पेटें‍ट कराया जा सकता है। आजकल अमेरिका में यू.एस.पी.टी.ओ. के मैन्युवल में व्यापार के तरीके के पेटें‍ट के ऊपर एक अध्याय है और उपयोगी व्यापार के तरीके तथा आंकड़ा विश्लेषण के लिए कंप्यूटर प्रोग्राम के पेटें‍ट मंजूर हो रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया और जापान ने भी अमेरिका का अनुसरण किया है।

अमेरिका में व्यापार करने के तरीको सुधार लाने के लिये Business Patent Improvement Act 2000 लाया गया था पर यह अभी तक पारित नहीं किया गया है और शायद यह कभी भी पारित नहीं हो।

मेरा प्रयत्न रहेगा कि इस सिरीस की चिट्ठियां और इनकी ऑडियो क्लिपें, भारतीय समय के अनुसार हर बृहस्पतिवार की रात्रि को पोस्ट होंं। पर अगले बृहस्पतिवार को मुलाकात न हो सके, तो फिर मिलेंगे उसके अगले बृहस्पतिवार यानि कि ५ अक्टूबर को।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

आर.एस.एस. फीड (RSS Feed) क्या बला है?

हर वेबसाइट पर हमेशा कुछ न कुछ नयी सूचना आती रहती है और इसे देखने के लिये निम्न तरीके हैं,
  • वेबसाइट पर जाकर नयी सूचना देखना।
  • वेबसाइट से नयी सूचना के बारे में ई-मेल प्राप्त करना।
  • RSS/ ATOM फीड के द्वारा जानकारी करना।


वेबसाइट पर जाकर सूचना प्राप्त करना सबसे पुराना तरीका है। उसके बाद जैसे, जैसे तकनीक में सुधार होता गया, सूचना प्राप्त करने के तरीके भी सुलभ होते गये। पहले ई-मेल से सूचना प्राप्त करने की सुविधा आयी फिर RSS/ ATOM फीड की तकनीक आयी।


यदि कोई वेबसाइट उस पर आने वाली नयी सूचना के बारे में ई-मेल नहीं भेजती है या फिर RSS/ ATOM फीड नहीं देती है तो आप इन दोनों के द्वारा इस वेबसाइट से इस तरह से सूचना नहीं प्राप्त कर सकते हैं। उस सूरत में आपको इस वेबसाइट पर जाकर ही सूचना पता करनी होगी।


RSS/ ATOM फीड यह एकदम नयी तकनीक है। इन दोनों में फॉरमैट का अन्तर है लेकिन व्यवहार में कोई अन्तर नहीं है। वे एक तरह से प्राप्त की जा सकती हैं। RSS पुरानी तकनीक है, ज्यादा आसान है, और ज्यादा लोकप्रिय है। The Internet Engineering Task Force (IETF), इन्टरनेट के मानकीकरण वा उन्नतिकरण में कार्यरत है। Atom इसी के द्वारा दिया गया एक मानक फॉरमैट है। यह लिखने और पड़ने दोनो फॉरमैट एक फॉरमैट में लाने का प्रयत्न है।


RSS/ Atom फीड उस नयी सूचना हेडलाइन के रूप में आप तक पहुंचाती है और यदि आप उनकी हेडलाइन को क्लिक करें तो वह आपको पूरे लेख तक पहुंचा देती है। नयी सूचना जानने के लिये यह सबसे अच्छी सुविधा है। जिस वेबसाईट में निम्न तरह का कोई भी चिन्ह हो तो आप समझ लीजिये कि वह अपना RSS/ Atom फीड देती है।









RSS के फुलफार्म के बारे में कुछ विवाद है पर अधिकतर लोग यह मानते हैं कि इसका फुल फार्म Really Simple Syndication है। Atom अपने आप में पूरा शब्द है। RSS/Atom फीड पढ़ने के लिये एग्रेगेटर (Aggregator) या न्यूस़ रीडर (News reader) या फीड रीडर (Feed reader) प्रोग्राम का प्रयोग करना पड़ता है जो कि मुफ्त में इन्टरनेट में उपलब्ध हैं यह निम्न प्रकार से फीड पढ़ते हैं,
  • इन्टरनेट पर जा कर: इस तरह के प्रोग्रामों में Blogline, Newsgator और यदि आपके पास याहू अथवा गूगल की ई –मेल ID है तो आप My yahoo अथवा Personalised google में भी फीड जोड़ सकते हैं । कई वेब ब्राउसर जैसे कि फायर फॉक्स या ओपेरा वगैरह में न्यूस़ रीडर प्रोग्राम रहता है और इनमें भी फीड डाउनलोड की जा सकती है।
  • अपने कंप्यूटर पर न्यूस़ रीडर प्रोग्राम को इन्सटॉल (install) करके: इस तरह के प्रोग्रामों में Newsgator, feedreader (केवल विंडोस़ में) (http://www.feedreader.com/) Akregator (केवल लिनेक्स में) प्रमुख हैं।
  • ई-मेल भेजने एवं प्राप्त करने के सॉफ्टवेयर के साथ: थन्डर-बर्ड ई-मेल भेजने एवं प्राप्त करने का बहुत अच्छा सॉफ्टवेयर है यह ओपेन सोर्स है और मुफ्त है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह सब प्रकार के Operating system पर चलता है । इसमें भी New & Blog में जाकर आप किसी भी वेबसाइट की फीड डाउनलोड कर सकते हैं। यह उसी प्रकार से किया जाता है जैसे ई-मेल सेटअप की जाती हैं।


आर.एस.एस. फीड के बारे में देवाषीश जी ने और रवी जी ने यहां और यहां लिखा है। इसे भी देखें। इससे आपको और अधिक जानकारी मिलेगी। तो फिर देरी किस बात की है। अपने कंप्यूटर पर आर.एस.एस. फीड लें और चालू हों जायें अपनी मन पसंद वेबसाईट की सूचना देखना।

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मां तुझे सलाम - इतिहास

आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ। इसमें राजा राम मोहन राय, ईशवर चन्द्र विद्यासागर, परिचन्द्र मित्रा, माईकल मदसूदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्र नाथ टेगोर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैंठ बनाने वालों मे शायद बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे।

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म १८३८ में एक परंपरागत और समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था उनकी पहली प्रकाशित बांग्ला कृति 'दुर्गेशनंदिनी' मार्च १८६५ में छपी थी। उनकी शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। १८५७ में उन्होंने बीए पास किया और १८६९ में क़ानून की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होने सरकारी नौकरी कर ली और १८९१ में सरकारी सेवा से रिटायर हुए। उनका निधन अप्रैल १८९४ में हुआ।

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय सरकारी सेवा में थे और १८७० में जब अंग्रेजी हूकमत ने
God save the King/Queen गाना अनिवार्य कर दिया तो इसके विरोध में वन्दे मातरम् गीत के पहले दो पैराग्राफ १८७६ में संस्कृत में लिखे। इन दोनो पैराग्राफ में केवल मार्त-भूमि की वन्दना है। बंकिम चन्द्र ने १८८२ में आनन्द मठ नाम का उपन्यास बंगला में लिखा और इस गीत को उसका हिस्सा बनाया। उस समय इस उपन्यास की जरूरत समझते हुये इसके बाद के पैराग्राफ बंगला भाषा में जोड़े गये। इन बाद के पैराग्राफ में दुर्गा की स्तुति है।

कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन (१८९६) में, रवींद्र नाथ टैगौर ने इसे लय और संगीत के साथ गाया। श्री अरविन्दो ने इस गीत का अंग्रेजी में, और हाल में सांसद आरिफ मौहम्मद खान ने उर्दू में अनुवाद किया है। १९३७ में इस गीत के बारे में कांग्रेस में बहस हुई और जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता वाली समिति ने इसके पहले दो पैराग्राफ को ही मान्यता दी। इस समिति में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद भी थे। पहले दो पैराग्राफ को मान्याता देने का कारण यही था कि इन दो पैराग्राफ में किसी देवी देवता की स्तुति नहीं थी और यह देश के सम्मान में थे। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में एक बयान २४ जनवरी १९५० में दिया जो कि सवीकार कर लिया गया। इस ब्यान में वन्दे मातरम् के केवल पहले दो पैराग्राफ को मान्यता दी गयी है। यह ही दो पैराग्राफ प्रसांगिग हैं और इन्हीं को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया है। डा. राजेन्द्र प्रसाद का संविधान सभा को दिया गया ब्यान यह है,
The composition consisting of words and music known as Jana Gana Mana is the National Anthem of India, subject to such alterations as the Government may authorise as occasion arises, and the song Vande Mataram, which has played a historic part in the struggle for Indian freedom, shall be honored equally with Jana Gana Mana and shall have equal status with it. (Applause) I hope this will satisfy members. (Constituent Assembly of India, Vol. XII, 24-1-1950)


यह गीत सबसे पहले १८८२ में प्रकाशित हुआ था और तब से १२५ साल हो गये हैं। इस गीत को पहले पहल ७ सितम्बर १९०५ में कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया। २००५ में इसके सौ साल पूरे होने के उपलक्ष में १ साल के समारोह का आयोजन किया गया। यह ७ सितम्बर को समाप्त हुआ। इस समापन का अभिनन्दन करने के लिये मानव संसाधन मंत्रालय ने इस गीत को ७ सितम्बर २००६ में स्कूलों में गाने की बात की। हालांकि बाद में अर्जुन सिंह ने संसद में कह दिया कि गीत गाना किसी के लिए आवश्यक नहीं किया गया है, जिसे गाना हो गाए, न गाना हो, न गाए।


इस विषय की अगली पोस्ट 'मां तुझे सलाम - विवाद और कानून' पर वंदेमातरम् पर उठे विवाद और इससे जुड़े कानूनी मुद्दों के बारे में चर्चा करेंगे।

I bow to thee, Mother,
richly-waterred, richly-fruited,
cool with the winds of the south, dark with the crops of the harvests,
the Mother!
Her rughts rejoicing in the glory of moonlight,
her lands clothed beautifully with her trees in flowering bloom,
sweet of laughter, sweet of speech,
The Mother, giver of bones, giver of blissI

Terrible with the clamorous shouts of seventy million throats,
and the sharpness of swords raised in twice seventy million
hands,
who sayeth to thee, Mother, that thou are weak?
Holder of multitudinous strength,
I bow to her who saves,
to her who drives from her the armies of her foremen,
the Mother!


तसलीमात, माँ तसलीमात
तू भरी है मीठे पानी से
फल-फूलों की शादाबी से
दक्किन की ठंडी हवाओं से
फसलों की सुहानी, फिजाओं से

तसलीमात, माँ तसलीमात
तेरी रातें रोशन चांद से
तेरी रौनक सब्जे-फाम से
तेरी प्यार भरी मुस्कान है
तेरी मीठी बहुत जुबान है
तेरी बांहों में मेरी राहत है
तेरे कदमों में मेरी जन्नत है
तसलीमात, माँ तसलीमात

मानव संसाधन मंत्रालय के मन्त्री माननीय श्री अर्जुन सिंह का ८ अगस्त २००६ का पत्र यह है।
1. A National Committee under the Chairmanship of Hon'ble Prime Minister of India has been constituted for commemoration of events which, amongst others, include the centenary of adoption of 'Vande Mataram' as a National Song.

2. Vande Mataram was composed by Bankim Chandra Chatterjee in 1876 and Rabindranath Tagore recited it for the first time during the Congress session at Bombay in 1896. It was during the movement against the Partition of Bengal, Bang Bhang Andolan, in the year 1905 that Vande Mataram became the battle song in the fight against imperialism. It was adopted as a National Song at the Varanasi session of the AICC on September 7, 1905.

3. The year long commemoration of 100 years of adoption of Vande Mataram as a National Song started on September 7, 2005 and will be coming to a close on September 7, 2006. As a befitting finale to the commemoration year, it has been decided that the first two stanzas of the National Song, Vande Mataram should be sung simultaneously at 11.00 AM on 7th September, 2006 in all schools, colleges and other educational institutions throughout the country. This nationwide simultaneous singing should be widely covered in the print and electronic media appropriately.

4. I shall be grateful if you could kindly issue necessary instructions to all concerned in your State in this regard."

5. A line of confirmation of the action taken would be highly appreciated.

Arjun Singh

अमेरिका में पेटेंट और कं‍प्यूटर प्रोग्राम - औद्योगिक प्रक्रिया के साथ

भाग-१: पेटेंट
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: ट्रिप्स (TRIPS)
तीसरी पोस्ट: इतिहास की दृष्टि में
चौथी पोस्ट: पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण
पांचवीं पोस्ट: आविष्कार
छटी पोस्ट: पेटेंटी के अधिकार एवं दायित्व

भाग-२: पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: अमेरिका में - पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम
यह पोस्ट: अमेरिका में पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम - औद्योगिक प्रक्रिया के साथ
अगली पोस्ट: अमेरिका में पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम - व्यापार के तरीके के साथ
यदि आप, इस चिट्ठी को पढ़ने के बजाय, सुनना पसन्द करें तो इसे मेरी 'बकबक' पर यहां क्लिक करके सुन सकते हैं। यह ऑडियो क्लिप, ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर लगभग सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में,
सुन सकते हैं। मैने इसे ogg फॉरमैट क्यों रखा है यह जानने के लिये आप मेरी शून्य, जीरो, और बूरबाकी की चिट्ठी पर पढ़ सकते हैं। अब चलते हैं इस चिट्ठी पर।

कं‍प्यूटर प्रोग्राम, औद्योगिक प्रक्रिया के साथ हो तो उसे पेटेंट कराया जा सकता है कि नहीं, इस सम्बन्ध में सबसे चर्चित और शायद सबसे विवादित मुकदमा डार्ह केस (Diamond Vs. Diehr, (1981) 450 U.S.. 175: 67 L.E.D. 2d घ/55) है। इस मुकदमे में जिस आविष्कार को पेटंट कराया जा रहा था उसमें कं‍प्यूटर प्रोग्राम को रबर साफ करने की एक प्रक्रिया के साथ प्रयोग किया गया था। रबर को साफ करने के लिये उसे गर्म किया जाता है उसे कितनी देर गर्म किया जाय यह उसके तापमान पर निर्भर है तापमान ज्यादा तो कम समय के लिये गर्म किया जायेगा यदि तापमान कम तो ज्यादा समय के लिये गर्म किया जायेगा यह आर्हेनियस नियम के अनुसार निश्चित होता है। जिस ढांचे के अन्दर रबर को गर्म किया जाता था उसके अन्दर के तापमान को कंप्यूटर में डाला जाता था जो आर्हेनियस नियम के अनुसार समय की गणना करता था और ठीक समय ढांचे को खोल देता था ताकि रबर बाहर आ जाये। सवाल यह था कि क्या यह आविष्कार था जिसका पेटें‍ट कराया जा सकता है।

अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने चार के मुकाबले पांच से अपना फैसला सुनाया कि,
  • यह पेटेंट कराया जा सकता है; और
  • पेटेंट होने योग्य दावा मात्र केवल इस बात से पेटेंट करने के लिये अयोग्य नहीं हो जाता है कि उसमें गणितीय फार्मूला, या कं‍प्यूटर प्रोग्राम, या कं‍प्यूटर का प्रयोग हुआ है।

संक्षेप में, एक कं‍प्यूटर प्रोग्राम यदि किसी एक औद्योगिक प्रक्रिया का हिस्सा है तो उसके साथ में पेटें‍ट हो सकता है। यहीं से शुरु हुआ कं‍प्यूटर प्रोग्राम का, अमेरिकी पेटेंट कानून के साथ सफर। ऐसा सफर जो कि कईयों के मुताबिक एक खतरनाक मोड़ पर आ पहुंचा है। अगली बार चर्चा करेंगे उस स्थिति के बारे में जब कं‍प्यूटर प्रोग्राम, व्यापार तरीके का एक हिस्सा हो।

मेरा प्रयत्न रहेगा कि इस सिरीस की चिट्ठियां और इनकी ऑडियो क्लिपें, भारतीय समय के अनुसार हर बृहस्पतिवार की रात्रि को पोस्ट होंं। तो फिर मिलेंगे अगले बृहस्पतिवार २१ सितम्बर को।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

हरिवंश राय बच्चन - आइरिस, और अंग्रेजी

पहली पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन – विवाद
दूसरी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - क्या भूलूं क्या याद करूं
तीसरी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन – तेजी जी से मिलन
चौथी पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के अध्यापक
यह पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन - आइरिस, और अंग्रेजी

आज हिन्दी दिवस है। बच्चन जी हिन्दी प्रेमी थे, पर पढ़ाते अंग्रेजी थे। आज पढ़ते हैं उनके विचार अंग्रेजी भाषा के बारे में। यह विचार उन्होने अपनी जीवनी के दूसरे भाग 'नीड़ का निर्माण फिर' में आइरिस नामक लड़की के द्वारा, उनके प्रेम प्रणय को अस्वीकार करने के बाद लिखा।

बच्चन जी के जीवन में कई लड़कियां आयीं कुछ का नाम वह बताते हैं तो कुछ का नाम छिपा जाते हैं। इन सम‍बन्धों का जिक्र करने का उनका ढंग भी निराला है। विश्वविद्यालय में पढ़ाई करते समय आइरिस‍ नाम की इसाई लड़की उनके सम्पर्क में आयी और उसे वे दिल से चाहने लगे । वे कहते हैं कि,
'आइरिस ने प्रथम दृष्टि में ही मुझे आकर्षित किया। वैसे तो मुझमें कुछ विशेष आकर्षक नहीं था, पर मेरे बालों ने उसे आकर्षित किया हो तो कोई आश्चर्य नहीं। यदि पहले से मेरा परिचय उसे कवि के रूप में दे दिया गया होता तो बालों के सम्बन्ध में मेरी रोमानी लापरवाही उसे अप्रत्याशित और अस्वाभाविक न लगी होगी। कद से लम्बी, बदन से इकहरी, और रंग से विशेष गौर वर्ण की, उसमें कहीं ऐंग्‍लो-इंडियन रक्त का मिश्रण अवश्य था। गर्दन लम्बी, चेहरा आयताकार, आंखें नीली, गाल की हड्डियां उभरी, होठ भरे, बाल सुनहरे, कटे, फिर भी इतने बड़े कि दायेँ-बायेँ कन्धों पर और पीठ के उपरी भाग पर लहराते। शायद उसके शरीर में उसके बाल ही उसके मनोभावों के सबसे अधिक अभिव्यंजक थे। वह थोड़ी-थोड़ी देर पर उन्हें कभी दाहिने और कभी बायेँ झटकती और इससे उसके सौन्दर्य में एक गतिशीलता –सी आ जाती।‘

आयरिस ने बच्चन जी के प्रेम प्रणय को अस्वीकार कर दिया। उससे पत्र व्यवहार अंग्रेजी में होता था। अस्वीकार होने के बाद बच्चन जी ने अंग्रेजी के पत्रों को नष्ट कर दिया। ‘नीड़ का निर्माण फिर’ लिखते समय उन्हें लगा कि उन्होंने उन पत्रों का गलत अर्थ शायद इसलिये लगा लिया था कि पत्र अंग्रेजी भाषा में थे। उन पत्रों को याद कर अंग्रेजी के बारे में कहते हैं कि,
'अंग्रेजी बिना लेशमात्र कृतज्ञता अनुभव किए ‘थैंक यू’ कह सकती है। जब यह ‘सारी’ कहती है तब अफसोस इसे शायद ही कहीं छूता हो। ‘आई ऐम ऐफ्रेड’ से इसका तात्‍पर्य बिलकुल यह नहीं होता कि यह जरा भी डरी है; और इसकी उक्ति, ‘एक्‍सक्यूज मी’ (यानी मुझे क्षमा करें) आपके गालों पर थप्‍पड़ लगाने की भूमिका भी हो सकती है। मेरी ‘मधुशाला’ की अंग्रेजी अनुवादिका कुमारी मार्जरी बोल्टन की एक बात मुझे याद आ गई। जब मैं इंग्लैंड-प्रवास में एक छुट्टी में उनके घर गया तो एक शाम को वे अपने जीवन की दुखद अनुभूति मुझसे बताने लगीं। उनके एक प्रेमी ने कई वर्षो तक उनसे पत्र-व्यवहार किया। क्या भावना में भीगे पत्र थे वे ! और एक दिन सहसा उसने उन्हें भुला दिया! मैं मार्जरी का वाक्‍य नहीं भूला-Since that day I have lost faith in English language (उस दिन से अंग्रेजी भाषा पर से मेरा विश्वास उठ गया)। अंग्रेजी औपचारिक शिष्टता, पटुता, प्रदर्शन और डिसेप्शन यानी धोखा-धड़ी की इतनी परिपूर्ण माध्यम हो गई है कि आज अभिव्यक्ति से अधिक यह गोपन और डिसटार्शन यानी विरूपन की भाषा है। क्या भाषाएँ विकसित और परिष्कृत होकर अपनी सूक्ष्म अभिव्यंजन शक्ति, सच्चाई, सिधाई, गहराई और ईमानदारी खो देती हैं?‘

अगले सप्ताह बात करेंगे कि नहरू परिवार और बच्चन परिवार में मित्रता कैसे हुई।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

सारे चिट्ठों पर नयी प्रविष्टियां कैसे देखें

नारद की सुविधा न रहने के कारण हिन्दी के चिट्ठों पर नयी पोस्ट पता नहीं चल रही है इसको दूर करने के लिये मैने अस्थायी व्यवस्था की है। यह एकदम मुफ्त है इसका आन्नद लें। सबसे पहली मेरी पॉडकास्ट 'बकबक' है उसके बाद वर्णमाला के हिसाब से हिन्दी के सक्रिय चिट्ठे, जिनकी लिस्ट यहां है, वह हैं।



आपको सबकी नयी पोस्टें देखने के लिये इन चार चिट्ठों पर यहां , या यहां, या यहां, या यहां आना पड़ेगा कि नये चिट्टों पर क्या है। यहां आप देख सकते हैं कि किसी चिट्टे पर तीन नयी पोस्टें क्या हैं। कुछ चिट्टों की पोस्टें नहीं क्योंकि मुझे उनकी rss फीड नहीं मिल पायी। यदि वे लोग अपनी rss फीड मुझे भेज देंगे तो मै उसे भी जोड़ दूंगा। कृप्या अन्त पर मेरी पोस्ट भी देख लीजये उससे आपको सहायता मिलेगी। मेरे विचार से कुछ दिन का संकट तो टला। जब तक नारद ऐसी सुविधा नहीं मिलती तब तक इसी से काम चलायें।


इस सेवा का आनन्द लेने के लिये औरों को भी बतायें। हो सकता है कि लोड करने में समय ले।

सक्रिय हिन्दी चिट्ठे और पॉडकास्ट

मैं हिन्दी पॉडकास्ट और चिट्ठों के बारे में एक लेख लिखने के सम्बन्ध में कुछ सुचनाये एकत्रित कर रहा हूं। यह उन सब हिन्दी चिट्ठों की लिस्ट है जिन पर ३० जून के बाद पोस्ट हुई हैं चाहे वे नारद पर आते हों या नहीं। इनमे से कुछ नारद पर नहीं आते हैं। इस लिस्ट में निम्न तरह के चिट्ठे नहीं हैं:
  • जिनमें कम से कम एक पोस्ट ऐसी है जिस पर एक भी वाक्य हिन्दी में नहीं है; या
  • जो किसी और जगह चले गये हैं; या
  • सक्रिय नहीं हैं; या
  • अपने पूर्ण हैं जैसे कि कोई किताब वगैरह हो ओर उनमें अब कुछ नया नहीं आना है; या
  • वे किसी और वेब साईट के बारे में बताते हैं।
यदि इसमें किसी का नाम छूट गया हो तो टिप्पणी द्वारा बता दें। आप अपने चिट्ठे या अन्य चिट्टों की नविनतम पोस्टें यहां, यहां, यहां, और यहां देख सकते हैं। हांलाकि इन पर नविनतम पोस्ट आने के लिये एक से दो दिन लग सकता है।


हिन्दी पॉडकास्ट

क्रम संख्या

नाम


बकबक


हिन्दी चिट्ठे

क्रम संख्या

नाम


A Journey


An Inner Voice


archnaakhyan


arvind das


Bhaat baaji


CHANBAL KI AWAZ


Chayachitrakar - छायाचित्रकार


e.chhatisgarh


fully time pass


HIndi Blog


HIndi Blog: हिन्दी ब्लाग


Hindi Podcasts and Blogs-1


Hindi Poetry Collection


Hum Hindi Blog


Imagination World :: कल्पना कक्ष


INDIA GATE


Indian Humour


Jagjit Singh


JHAROKHA


kavyakala


Latest entries from ashoka.blog-city.com


Mahashkti


magic-I


merihindi


My Hindi Blog: मेरा हिन्दी चिट्ठा


My Images


My Poems


Rants / प्रवचन


RATNA'S RECIPES


Raviratlami Ka Hindi Blog


Reflection|अंखियों के झरोखों से


Timepass: समय नष्ट करने का एक श्रेष्ठ साधन


world from my eyes - दुनिया मेरी नज़र से!!


YogBlog


अभिव्यक्ति ♥


अक्षरग्राम


अंतर्मन


अनहद-नाद


अनुभव


अनुभूति कलश


अमिताभ बच्चन


अल्प विराम


आइए हाथ उठाएं हम भी


आईना


आज की बात


इधर उधर की


इन्द्रधनुष


-लेखा


-स्वामी


उडन तश्तरी ….


उत्तरांचल


उन्मुक्त


एक अकेला इस शहर मे


एक और नज़रिया ..::.. Anderer Standpunkt


एक शाम मेरे नाम


कचराघर Recycle Bin


कतरनें (snippets)


कल्पतरु


कल्पना कक्ष


काव्यगगन( kavyagagan)


की बोर्ड के सिपाही


कुछ बून्दें, कुछ बिन्दु


कुलबुलाहट


खबरिया : लेगा सबकी खबर


खाली-पीली


खुशी की बात


गजल की दुनिया में


गपशप इंडिया


गर्म चाय


गीत कलश


चिठ्ठा चर्चा


चिन्तन


चौपाल


छाया (shadow)


छुट-पुट


जमाना हिन्दी कंप‍यूटिन्ग का


जयप्रकाश मानस


जलते हुए मुद्दे


जुगलबन्दी..


जो देखा भूलने से पहले : मोहन राणा : Mohan Rana


जो न कह सके


जोगलिखी


झरोखा


ठेले पे हिमालय


डॉ॰ जगदीश व्योम


तत्वज्ञानी के हथौडे


तिरछी नजरिया


दर्पण।The Mirror


दस्तक


दिल के दरमियाँ


दिल मांगे मोर


दिल्ली ब्लॉग


देश-दुनिया


दैनन्दिनी


निठल्ला चिन्तन


निनाद गाथा


नुक्ताचीनी


नौ दो ग्यारह


पंखुड़ी


पलाश


पहला पन्ना


पाठशाला :: My Class


पिटारा भानुमती का


प्रियम


पूंजी बाजार


प्रतिभास


प्रतिमांजली


प्रत्यक्षा


प्रभाकरगोपालपुरिया


~ प्रेमपीयूष ~


फ़ुरसतिया


बसेरा


बिहारी बाबू कहिन


भारतीय सिनेमा


भावनायें …….


मटरगशती


मंतव्य


मन


मन की बात


मसिजीवी


महावीर


महाशक्ति कविता संग्रह


मानसी


माफ करना,लेकिन


मालव संदेश


मिर्ची सेठ


मीरां बाई के भजन


मुक्त जनपद


मुझे कुछ कहना है …..


मुझे भी कुछ कहना है…..


मुन्ने के बापू


मेरा चिट्ठा


मेरा पन्ना


मेरी कविताएँ


मेरी कृति


मेरे कवि मित्र


मेरी दुनिया


मेरे कैमरे से : Through My Lenses


यथार्थ


रचनाकार


रजनीगन्धा


रतीना


रत्ना की रसोई


राग- हिन्दी में


रोजनामचा


लखनवी


लाइवजर्नल हिन्दी में


लेख


लेखनी


वन्दे मातरम्


वाह मीडिया! हिंदी ब्लॉग by Balendu Sharma Dadhich


विज्ञान विश्व


वेदना


॥शत् शत् नमन॥


शंख सीपी रेत पानी


शब्दायन


शर्मा होम - Sharma Home


शुऐब


शेर शायरी


श्रीमद्भगवद्गीता


संगीत


समन्वय ….


समाजवादी जनपरिषद


समाजवादी जनपरिषद- उत्‍तर प्रदेश


सर्वे सुखिनः सन्तु।


सृजन शिल्पी


सृजन-गाथा


सेहर


हिंदिनी


हिंदू जागरण


हिन्दी


हिन्दी की बात


हिन्दी साहित्य


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हृदयगाथा


होम्योपैथी-नई सोच/नई दिशायें

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