२.१ पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम – भूमिका

भाग-१: पेटेंट
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: ट्रिप्स (TRIPS)
तीसरी पोस्ट: इतिहास की दृष्टि में
चौथी पोस्ट: पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण
पांचवीं पोस्ट: आविष्कार
छटी पोस्ट: पेटेंटी के अधिकार एवं दायित्व

भाग-२: पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम
यह पोस्ट: भूमिका
अगली पोस्ट: अमेरिका में पेटेंट का कानून

यदि आप, इस चिट्ठी को पढ़ने के बजाय, सुनना पसन्द करें तो इसे मेरी 'बकबक' पर यहां क्लिक करके सुन सकते हैं।

यह विवादास्पद विषय है कि कंप्यूटर प्रोग्राम पेटेंट कराया जा सकता है कि नहीं। इस बारे में अलग-अलग देशों के नियम भी भिन्न हैं। इसमें कराये जाने के तरीके पर भी विवाद है इसको समझने के लिये इस विषय को तीन भागों में बांटना उचित होगा,
  • अलग-अलग देशों में क्या नियम हैं?
  • यदि कं‍प्यूटर प्रोग्राम पेटेंट हो सकते हैं तो उसकी क्या कालावधि होनी चाहिये?
  • कं‍प्यूटर प्रोग्राम को पेटेंट कराने का क्या तरीका होना चाहिये ?

पहला भाग भी अपने में बहुत बड़ा है इसे भी कुछ कड़ियों में करना होगा।
  • अमेरिका में पेटेंट का कानून
  • अमेरिका में पेटेंट का कानून यदि कं‍प्यूटर प्रोग्राम औद्योगिक प्रक्रिया के साथ हो
  • अमेरिका में पेटेंट का कानून यदि कं‍प्यूटर प्रोग्राम व्यापार के तरीके के साथ हो
  • अमेरिका में कं‍प्यूटर प्रोग्राम से जुड़े पेटेंट के कुछ उदाहरण
  • यूरोप में पेटेंट का कानून
  • भारतवर्ष में पेटेंट का कानून


मेरा प्रयत्न रहेगा कि इस सिरीस की चिट्ठियां और इनकी ऑडियो क्लिपें, भारतीय समय के अनुसार हर बृहस्पतिवार की रात्रि को पोस्ट होंं। तो फिर मिलेंगे अगले बृहस्पतिवार ७ सितम्बर को।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

हरिवंश राय बच्चन - क्या भूलूं क्या याद करूं

पिछली पोस्ट: हरिवंश राय बच्चन – विवाद यहां देखें
यह पोस्ट: बच्चन जी की आत्मकथा का पहला भाग -क्या भूलूं क्या याद करूं

बच्चन जी अपनी आत्मकथा के पहले भाग 'क्या भूलूं क्या याद करूं' की शुरुवात अपने पुरखों के इलाहाबाद में बसने आने की कथा से शुरू करते हैं। इसमें उनके प्रारम्भिक संघर्ष की कहानी, उनकी श्यामा के साथ पहली शादी, और श्यामा की मृत्यु तक का वर्णन है। वे इसमें वे अन्य महिलाओं के साथ अपने उन सम्बन्धों का भी इशारा भी करते हैं जो हमारे समाज में अनुचित माने जाते हैं। इन सम्बन्धों की चर्चा का उनका ढंग भी अनूठा है। वे इसे न कहते हुऐ भी, सारी बात कह जाते हैं। वे कायस्थ थे और कायस्थों के बारे में कहते हैं कि,
'कायस्थ के वाक-चातुर्य और बुद्धि-कौशल के भी किस्से कहे जाते हैं। हमारे एक अध्यापक पंडित जी कहा करते थे कि कायस्थ की मुई खोपड़ी भी बोलती है। उन्हीं से मैंने सुना था कि एक बार किसी ने देवी की बड़ी आराधना की। देवी ने प्रसन्न होकर एक वरदान देने को कहा। इधर मां अं‍धी, पत्नी की कोख सूनी, घर में गरीबी। बडे असमंजस में पड़ा-मां के लिए आंख मांगे, कि पत्नी के लिए पुत्र, कि परिवार के लिए धन। जब सोच-सोचकर हार गया तो एक कायस्थ महोदय के पास पहूंचा। उन्होंने कहा,“इसमें परेशान होने की क्या बात है, तुम कहो कि मैं यह मॉगता हूं कि मेरी मां अपने पोते को रोज सोने की कटोरी में दूध-भात खाते देखें !'

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक की कक्षा में बच्चन जी के पास हिन्दी अंग्रेजी और फिलॉसफी के विषय थे। फिलॉसफी विषय के अध्यापकों के बारे में बताते हैं कि,
'मेटाफिजिक्स हमें मिस्टर ए. सी. मुकर्जी और माडर्ल एथिक्स मिस्टर एन. सी. मुकर्जी ने पढ़ाया था। ए. सी. मुकर्जी अपनी फ़िलॉसफ़री ख़ब्तुलहवासी के लिए प्रसिद्ध थे। हम लोग क्लास में पहुंचे हैं और उन्होंने धाराप्रवाह बोलना आरम्भ कर दिया है। हमारी समझ में कुछ नहीं आता, सब सिर के ऊपर से तेज हवा-सा गुजरा जा रहा है। किसी को उठकर उनसे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं होती; बीच में कोई सवाल वे ही पूछते हैं। कोई उत्तर नहीं दे पाता। अरे, फलां कहां है, क्लास का सबसे तेज लड़का। वह तो नहीं है - इस नाम का कोई लड़का इस क्लास में नहीं है। कुछ घबराकर पूछते हैं-व्हाट क्लास इज दिस? - यह कौन क्लास है? कोई उत्तर देता है, बी. ए. फर्स्ट इयर। प्रोफेसर साहब अपने दोनों हाथ अपने माथे से लगाते हैं-माई गॉड, आई थॉट इट वाज़ एम. ए. फाइनल! - मैंने समझा एम. ए. फाइनल का दर्जा है। और वे बी. ए. फर्स्ट इयर वाला लेक्चर शुरू कर देते हैं।'

बच्चन जी कभी मेरे घर नहीं आते क्योंकि मेरे घर का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य टौमी है जिसके बारे में मुन्ने की मां यहां बता रहीं हैं। टौमी का काम, सबसे पहले पूंछ हिला कर मेहमान का स्वागत करना है फिर उनको सूंघना है यदि यह न करने दिया तो फिर शामत ही समझिये - बैठना मुश्किल। यह न करने देने पर वह इतनी जोर से भौंकना शुरू कर देता है कि बात करना असम्भव है। पर कुत्तों के बारे में बच्चन जी के विचार यह हैं,
'देसी कुत्ते गांव भर में घूमते थे जो किसी अजनबी के गांव में घुसने पर भूकना शुरू कर देते थे। मुझे कुत्तों का घर भर में जगह-जगह लेटे-बैठे रहना बहुत बुरा लगता और मैं रहठे की सोंठी से उन्हें मार-मार कर भगाता रहता। मेरे बहनोई कहते, जब से मेरे साले साहब आए हैं घर में कहीं कुत्ते नहीं दिखलाई देते।'

यह किताब इलाहाबाद की यादों से भरपूर है इसमें इलाहाबाद के मुहल्लों, शहर और विशवविद्यालय का वर्णन है। यदि आपका इलाहाबाद से कुछ भी सम्बन्ध है तो आपको बहुत कुछ अपना लगेगा। किताब अच्छी है पर बच्चन जी अपने पूर्वजों का वर्णन इतने विस्तार से न करते तो अच्छा रहता।

इस किताब में उनके और सुमित्रा नन्दन पन्त के उस विवाद का जिक्र नहीं है जिसको जानने के लिये मैंने इसे पढ़ना शुरू किया। चलिये देखते हैं कि उनकी आत्मकथा के दूसरे भाग 'नीड़ का निर्माण फिर' में क्या उसका वर्णन है अथवा नहीं। यह अगली बार।

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१.६ पेटेंटी के अधिकार एवं दायित्व

भाग-१: पेटेंट
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: ट्रिप्स (TRIPS)
तीसरी पोस्ट: इतिहास की दृष्टि में
चौथी पोस्ट: पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण
पांचवीं पोस्ट: आविष्कार
यह पोस्ट: पेटेंटी के अधिकार एवं दायित्व
यदि आप, इस चिट्ठी को पढ़ने के बजाय, सुनना पसन्द करें तो इसे मेरी 'बकबक' पर यहां क्लिक करके सुन सकते हैं। यह ऑडियो क्लिप, ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
Linux पर लगभग सभी प्रोग्रामो में; और
Mac-OX पर कम से कम Audacity में,
सुन सकते हैं।

मैने इसे ogg फॉरमैट क्यों रखा है यह जानने के लिये आप मेरी शून्य, जीरो, और बूरबाकी की चिट्ठी पर पढ़ सकते हैं। अब चलते हैं इस चिट्ठी पर।

पेटेंट एक सम्पत्ति है जो कि, विरासत में प्राप्त की जा सकती है । पेटेंटी उसे किसी और को दे (assign) सकता है या बन्धक रख सकता है। यदि दूसरे लोगों ने यदि पेटें‍टी से लाइसेंस न लिया हो तो, पेटेंटी उन्हें अपने पेटेंट का प्रयोग करने से या उसका विक्रय करने से रोक सकता है। उसे अधिकार है कि वह लाइसेंस के द्वारा दूसरे लोगों को यह कार्य करने के लिये अनुमति दे और इसके लिये वह रायल्टी भी ले सकता है। यदि कोई व्यक्ति, पेटेंटी से बिना लाइसेंस लिए या उसके पेटेंट का अनाधिकृत प्रयोग करता है तो पेटेंटी उस पर हर्जाने का मुकदमा या injunction का मुकदमा दायर कर उचित अनुतोष प्राप्त कर सकता है। ट्रिप्स, ट्रेड मार्क या कॉपीराईट के उल्लंघन के मामलों में दाण्डिक प्रक्रियाओं एवं शास्तियों का प्रावधान बनाने के लिए सदस्यों को कहता है लेकिन पेटेंट के उल्लंघन के लिए नहीं। हमने भी पेटेंट का उल्लंघन करने वाले के लिये दाण्डिक अभियोजन का उपबन्ध नहीं किया है। हां झूठ बोलकर पेटेंट प्राप्त करने पर दाण्डिक अभियोजन की बात अवश्य है।

मेरा प्रयत्न रहेगा कि इस सिरीस की चिट्ठियां और इनकी ऑडियो क्लिपें, भारतीय समय के अनुसार हर बृहस्पतिवार की रात्रि को पोस्ट होंं। इस पोस्ट के साथ पेटेंट सिरीस का भाग-१ समाप्त होता है अब हम एक बृहस्पतिवार को छोड़ कर फिर मिलेंगे ३१ अगस्त को तब चर्चा शुरु करेंगे इस सिरीस के भाग-२ की। इस भाग का शीर्षक है - पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

हरिवंश राय बच्चन - विवाद

कुछ समय पहले हिन्दी चिट्ठे जगत में इस बात की चर्चा रही कि किसी को लिखी गयी व्यक्तिगत ईमेल बिना लिखने वाले की अनुमति के सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करना उचित है कि नहीं - इसके लिये यहां, यहां, और यहां देखें। इस विषय पर अनूप शुक्ला जी की चिट्ठी पर मैंने टिप्पणी की थी कि
'किसी कि private ई-मेल या पत्र, लेखक का कौपी-राईट है और बिना लिखने वाले की अनुमति के प्रकाशित करना अनुचित है। जहां तक मुझे याद पड़ता है कि हरिवंश राय बच्चन और एक अन्य साहित्यकार के बीच इस बारे मे काफी विवाद हो चुका है।'


मुझे उस समय दूसरे साहित्यकार का नाम याद नहीं आ रहा था इसलिये नहीं लिखा था। कुछ दिन पहले हवाई अड्डे पर अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी दिख गये। मैं भी उन कड़ोड़ो लोगों मे हूं जो कि उनके दिवाने हैं। मैं उनसे बात करने का यह सुनहरा मौका नहीं छोड़ने वाला था - बस लस लिया उनके साथ। अब यदि आप विख्यात हों तो मेरे जैसे कईयों को तो झेलना पड़ेगा ही - विख्यात होने का कुछ न कुछ तो मूल्य चुकाना होगा। जब मैनें उनसे पत्र लिखने के विवाद के बारे में पूछा तब उन्होने बताया कि यह सुमित्रा नन्दन पन्त के साथ हुआ था। उन्होने कहा,
'यह बाबूजी कि आत्मकथा में मिलेगा। उनकी चौथी किताब भी आ गयी है।'

मैंने इन लोगों से कोई ३-४ मिनट बात की होगी - बहुत अच्छी तरह से बात की
पर एक बात का दुख रहा उन दोनो का प्रयत्न था कि वे अंग्रेजी में बात करें। वहां स्टाफ से भी उन्होने अंग्रजी में बात की। मैने इस बारे मे अपनी शुरू की चिट्ठी में यहां लिखा था, आज देख भी लिया। ऐसी जगहों पर मेरा हमेशा प्रयत्न रहता है कि मैं हिन्दी में बात करूं - चलिये हर को अपना अन्दाज मुबारक।

बच्चन जी ने अपनी आत्मकथा चार खन्डो में लिखी है। यह हैं,
  • क्या भूलूं क्या याद करूं
  • नीड़ का निर्माण
  • बसेरे से दूर
  • दशद्वार से सोपान तक
मैने वापस आ कर चारो खन्ड खरीद लिये हैं। आने वाली चिट्ठियों में कुछ इन किताबों के बारे में और कुछ उस विवाद के बारे में।

१.५ पेटेंट आविष्कार

भाग-१: पेटेंट
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: ट्रिप्स (TRIPS)
तीसरी पोस्ट: इतिहास की दृष्टि में
चौथी पोस्ट: पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण
यह पोस्ट: आविष्कार
अगली पोस्ट: पेटेंटी के अधिकार एवं दायित्व
यदि आप, इस चिट्ठी को पढ़ने के बजाय, सुनना पसन्द करें तो इसे मेरी 'बकबक' पर यहां क्लिक करके सुन सकते हैं। यह ऑडियो क्लिप, ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर लगभग सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में,
सुन सकते हैं। मैने इसे ogg फॉरमैट क्यों रखा है यह जानने के लिये आप मेरी शून्य, जीरो, और बूरबाकी की चिट्ठी पर पढ़ सकते हैं। अब चलते हैं इस चिट्ठी पर।

पेटेंट आविष्कारों के लिए दिया जाता है । ‘आविष्कार’ का अर्थ उस प्रक्रिया या उत्पाद से है जो कि औद्योगिक उपयोजन ( Industrial application) के योग्य है । अविष्कार नवीन एवं उपयोगी होना चाहिये तथा इसको उस समय की तकनीक की जानकारी में अगला कदम होना चाहिए। यह आविष्कार उस कला में कुशल व्यक्ति के लिए स्पष्ट (Obvious) भी नहीं होना चाहिये।

आविष्कार को पेटेंट अधिनियम की धारा 3 के प्रकाश में भी देखा जाना चाहिये । यह धारा परिभाषित करती है कि क्या आविष्कार नहीं होते हैं।

किसी बात को आविष्कार तब तक नहीं कहा जा सकता है जब तक वह नवीन न हो। यदि किसी बात का पूर्वानुमान किसी प्रकाशित दस्तावेज के द्वारा किया जा सकता था या पेटेंट आवेदन के प्रस्तुत करने के पूर्व विश्व में और कहीं प्रयोग किया जा सकता था तो इसे नवीन नहीं कहा जा सकता। यदि कोई बात सार्वजनिक क्षेत्र में है या पूर्व कला के भाग की तरह उपलब्ध है तो उसे भी आविष्कार नहीं कहा जा सकता। हमारे देश में परमाणु उर्जा से सम्बन्धित आविष्कारों का पेटें‍ट नहीं कराया जा सकता है।


मेरा प्रयत्न रहेगा कि इस सिरीस की चिट्ठियां और इनकी ऑडियो क्लिपें, भारतीय समय के अनुसार हर बृहस्पतिवार की रात्रि को पोस्ट होंं। तो फिर मिलेंगे अगले बृहस्पतिवार १७ अगस्त को।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

१.४ पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण

भाग-१: पेटेंट
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: ट्रिप्स (TRIPS)
तीसरी पोस्ट: इतिहास की दृष्टि में
यह पोस्ट: पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण
अगली पोस्ट: आविष्कार

यदि आप, इस चिट्ठी को पढ़ने के बजाय, सुनना पसन्द करें तो इसे मेरी 'बकबक' पर यहां क्लिक करके सुन सकते हैं। यह ऑडियो क्लिप, ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर लगभग सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में,
सुन सकते हैं। मैने इसे ogg फॉरमैट क्यों रखा है यह जानने के लिये आप मेरी शून्य, जीरो, और बूरबाकी की चिट्ठी पर पढ़ सकते हैं। अब चलते हैं इस चिट्ठी पर।

प्रत्येक देश का अपना पेटेंट कानून है । साधारण तौर पर आविष्कारको को प्रत्येक देश में पेटैंट के लिए आवेदन देना आवश्यक है जहां वे अपने आविष्कारों का प्रयोग करना चाहते हैं। हर देश में अलग अलग आवेदन पत्र देना कठिन कार्य है। इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए निम्न अन्तर्राष्ट्रीय प्रयास किये गये हैं।
  1. देशों में पेटेंट संबंधी अन्तरों को कम करने का पहला प्रयास International Convention for the protection of Industrial Property था। इसे पेरिस में 1883 में अंगीकार किया गया है। इसे अनेक बार संशोधित किया गया। इसने आविष्कारकों को किसी एक सदस्य देश में आवेदन पत्र प्रस्तुत करने की प्रथम तारीख का लाभ अन्य सदस्य राज्यों में आवेदन पत्र दाखिल करने की तिथि के लिये दिया।
  2. Patent Cooperation Treaty 1970 (P.C.T. या पी. सी. टी.) पेटेंट के लिये आवेदन पत्र प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में सुविधा प्रदान करती है। यह पेटेंट के लिये आवेदन पत्र का मानकीकृत फारमेट बताती है और इसके साथ उन्हे दाखिल करने की केन्द्रीयकृत सुविधा देती है। हमने इसके अनुच्छेद 64 के उप अनुच्छेद 5 के अलावा‚ इसे7-12-98 को स्वीकार किया है।
  3. European patent Convention, 1977 में लागू हुआ। इसके द्वारा एक यूरोपियन पेटेंट कार्यालय की स्थापना हुई। इसके द्वारा दिया गया पेटेंट, आवेदक द्वारा नामित सदस्य देशों में पेटेंट का कार्य करता है।
  4. World Intellectual Property Organisation WIPO (वाईपो) ने Patent Law Treaty (PLT) ( पी.एल.टी. ) बनायी है। यह 1 जून 2000 को अंगीकार कर ली गयी है पर हमने इस पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किये हैं। पी.एल.टी., पी.सी.टी. के अधीन है और विभिन्न देशों में पेटेंटो को प्राप्त करने की प्रक्रिया को और सरल बनाती है । यह पेटेंट के Substantive Law को प्रभावित नहीं करती है।
  5. Substantive Patent Law को एक लय में लाने के लिए वाईपो, Substantive Patent Law Treaty (SPLT) (एस पी. एल. टी.) का आयोजन कर रही है । जहां तक मुझे मालुम है हम इसमें भाग नहीं ले रहे। हमें इसमें भाग लेकर अपनी बात कहनी चाहिये।
मेरा प्रयत्न रहेगा कि इस सिरीस की चिट्ठियां और इनकी ऑडियो क्लिपें, भारतीय समय के अनुसार हर बृहस्पतिवार की रात्रि को पोस्ट होंं। तो फिर मिलेंगे अगले बृहस्पतिवार १० अगस्त को।

अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।
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