हरिवंश राय बच्चन - विवाद

कुछ समय पहले हिन्दी चिट्ठे जगत में इस बात की चर्चा रही कि किसी को लिखी गयी व्यक्तिगत ईमेल बिना लिखने वाले की अनुमति के सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करना उचित है कि नहीं - इसके लिये यहां, यहां, और यहां देखें। इस विषय पर अनूप शुक्ला जी की चिट्ठी पर मैंने टिप्पणी की थी कि
'किसी कि private ई-मेल या पत्र, लेखक का कौपी-राईट है और बिना लिखने वाले की अनुमति के प्रकाशित करना अनुचित है। जहां तक मुझे याद पड़ता है कि हरिवंश राय बच्चन और एक अन्य साहित्यकार के बीच इस बारे मे काफी विवाद हो चुका है।'


मुझे उस समय दूसरे साहित्यकार का नाम याद नहीं आ रहा था इसलिये नहीं लिखा था। कुछ दिन पहले हवाई अड्डे पर अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी दिख गये। मैं भी उन कड़ोड़ो लोगों मे हूं जो कि उनके दिवाने हैं। मैं उनसे बात करने का यह सुनहरा मौका नहीं छोड़ने वाला था - बस लस लिया उनके साथ। अब यदि आप विख्यात हों तो मेरे जैसे कईयों को तो झेलना पड़ेगा ही - विख्यात होने का कुछ न कुछ तो मूल्य चुकाना होगा। जब मैनें उनसे पत्र लिखने के विवाद के बारे में पूछा तब उन्होने बताया कि यह सुमित्रा नन्दन पन्त के साथ हुआ था। उन्होने कहा,
'यह बाबूजी कि आत्मकथा में मिलेगा। उनकी चौथी किताब भी आ गयी है।'

मैंने इन लोगों से कोई ३-४ मिनट बात की होगी - बहुत अच्छी तरह से बात की
पर एक बात का दुख रहा उन दोनो का प्रयत्न था कि वे अंग्रेजी में बात करें। वहां स्टाफ से भी उन्होने अंग्रजी में बात की। मैने इस बारे मे अपनी शुरू की चिट्ठी में यहां लिखा था, आज देख भी लिया। ऐसी जगहों पर मेरा हमेशा प्रयत्न रहता है कि मैं हिन्दी में बात करूं - चलिये हर को अपना अन्दाज मुबारक।

बच्चन जी ने अपनी आत्मकथा चार खन्डो में लिखी है। यह हैं,
  • क्या भूलूं क्या याद करूं
  • नीड़ का निर्माण
  • बसेरे से दूर
  • दशद्वार से सोपान तक
मैने वापस आ कर चारो खन्ड खरीद लिये हैं। आने वाली चिट्ठियों में कुछ इन किताबों के बारे में और कुछ उस विवाद के बारे में।

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