लिकिंग, क्या यह गलत है

आज चर्चा का विषय है, लिकिंग, क्या होती है, क्या यह यह गलत है, क्या आप किसी को लिंक करने से मना कर सकते हैं? इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं।

ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। इसकी पिछली कड़ी 'वेब क्या होता है' सुनने के लिये यहां चटका लगायें।

वेब तकनीक की खासियत है कि इसमें एक वेबसाइट दूसरे से जुड़ी रहती है। इसके द्वारा कोई भी प्रयोगकर्ता एक वेब-पन्ने से दूसरे वेब-पन्ने पर आसानी से जा सकता है। किसी भी वेबसाइट का पहला पन्ना, मुख्य पृष्ठ (Home page) कहलाता है। जब लिकिंग मुख्य पृष्ठ से की जाती है तो उसे केवल लिकिंग (Linking) कहा जाता है। अक्सर किसी भी वेबसाइट पर सूचनायें, मुख्य पृष्ठ के अन्दर, अलग वेब-पन्ने पर होती हैं। जब मुख्य पृष्ठ के अतिरिक्त, उसके किसी दूसरे पृष्ठ से लिंक दी जाती है तो उसे Deep Linking कहा जाता है।

वेब तकनीक का अर्थ है एक दूसरे से जुड़े रहना। इसलिये इसे, वेब (Web) या जाल कहा जाता है। यदि आप कोई सूचना, वेब पर प्रकाशित करते हैं तो इसका अर्थ है कि आपने हर किसी को इस बात का लाइसेंस दे दिया है कि वह आपकी सूचना से जुड़ सकता है। सच बात तो यह है कि यह फायदेमंद भी होता है। वेबसाइटों की आमदनी का मुख्य जरिया विज्ञापन है और विज्ञापन देने वाले इस बात का ध्यान रखते हैं कि उस वेबसाइट पर कितनी बार लोग आते है। जितनी ज्यादा लिंक होंगी, न केवल उस वेबसाइट पर उतने ही ज्यादा लोग आयेंगे पर सर्च इंजिन के लिये वह वेबसाइट उतनी ही ज्यादा महत्वपूर्ण होगी। ज्यादा लिंक वाली वेबसाइट, सर्च करते समय ऊपर आयेगी।

लिंक करना, उसी तरह का संदर्भ है जैसे कि आप किसी पुस्तक या लेख को संदर्भित करते हैं। जिस तरह से इस तरह के संदर्भ को मना नहीं किया जा सकता, उसी तरह से किसी को वेब साइट से लिंक करने से भी मना नहीं किया जा सकता है। यदि आप लिंक नहीं देना चाहते हैं तो वेब पर लिखते ही क्यों हैं।

कुछ समय पहले कुछ चिट्ठाकार बन्धुवों ने दूसरे को अपने चिट्ठे की लिंक देने से मना कर दिया था। मेरी राय में यह गलत है - वे ऐसा नहीं कर सकते। यदि वे यही चाहते हों तो अपने चिट्ठे को सार्वजनिक न करें - केवल निमत्रंण के द्वारा ही रखें।

एक बार किसी ने टिम बरनस् ली (वेब के आविष्कारक) से उनके वेब-पन्ने को लिंक करने की अनुमति चाही। टिम का जवाब था,
'मैं इसके बारे में कुछ नहीं कह सकता क्योंकि मुझे यह मना करने का अधिकार नहीं है।'
मैं तो टिम की बात मानता हूं - कोई मेरे चिट्ठे की लिंक देना चाहे तो मुझे भी बिलकुल आपत्ति नहीं है, उसका स्वागत है :-)

लिंक देने से, कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं होता है पर यह बात शायद न केवल इमेज लिकिंग और फ्रेमिंग के लिये सच नहीं है - इसकी चर्चा आगे करेंगे।

अंतरजाल की मायानगरी में
टिम बरनर्स् ली।। इंटरनेट क्या होता है।। वेब क्या होता है।। लिकिंग, क्या यह गलत है।। चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं।। फ्रेमिंग भी ठीक नहीं।।

सांकेतिक चिन्ह
linking, deep linking, legal, law, links, कानून
information technology, Internet, Internet, Podcast, software, Web, Technology, technology, technology, आईटी, अन्तर्जाल, इंटरनेट, इंटरनेट, टेक्नॉलोजी, टैक्नोलोजी, तकनीक, तकनीक, तकनीकी, पॉडकास्ट, पॉडकास्ट, पोडकास्ट, पॊडकास्टिंग, फ़ाइल ट्रांसफ़र सॉफ्टवेयर, ब्राउज़र्स सॉफ्टवेयर, सूचना प्रद्योगिकी, सॉफ्टवेयर, सॉफ्टवेर, सॉफ्टवेर, सौफ्टवेर,

बीएसएनएल अन्तरराष्ट्रीय सेवा - मुश्कलें: बर्लिन-वियाना यात्रा

मैं भारत से वियाना सुबह पहुंच गया था। वहां से बर्लिन के लिये फ्लाइट तीन घन्टे बाद थी। वियाना और बर्लिन का समय एक ही है और भारत के समय से ४:३० घन्टे पीछे है। मैंने अपनी पत्नी को फोन करने के लिये मोबाइल निकाला। यह बी.एस.एन.एल. का है। मैं इसे अन्तर्राष्ट्रीय घूमने के लिये करवा कर ले गया था पर यह काम न कर, केवल सीमित सेवाओं को दिखा रहा था।

वियाना हवाई अड्डे पर मुझे एक भारतीय सज्जन मिले। उनके फोन में भी यही मुश्किल थी। बहुत झुंझलाहट आयी।

सामान ज्यादा होने के कारण , मैं अपना लैपटॉप नहीं ले गया था। मेरा प्रस्तुतीकरण पहले ही भेज दिया था।

घूमते-घूमते, मेरी नजर एक भारतीय युवक पर पड़ी। उसके पास लैपटॉप था। वह कम्प्यूटर इंजीनियर था और
अपनी कंपनी की तरफ से पोलैण्ड जा रहा था। उसे, वहां पर, बैंक की क्रेडिट कार्ड सर्विस का कंप्यूटरीकरण करना था। उसके फोन के साथ भी यही मुश्किल थी। मैंने उससे पूछा कि क्या उसका लैपटॉप काम कर रहा है। उसने कहा हां। मैंने उससे पूछा कि क्या मैं उसके लैपटॉप से अपनी पत्नी को ई-मेल भेज सकता हूं। उसने मना कर दिया। उसका कहना था,
'यह कम्पनी का है। इससे प्राइवेट ई-मेल नहीं जा सकती है। आप पब्लिक बूथ से फोन कर लीजिये।'
मैं नहीं जानता था कि वह बहाना कर रहा था या सच में ऎसा था। यदि यह सच था तो वह कंपनी, मैनेजमेंट के साधारण सिद्घान्त को नहीं समझती। क्या मालुम वह यह सोचता हो कि मैं ई-मेल से बम ब्लास्ट करने की बात सोचता हूं और इसके लिये वह पकड़ जायगा :-)

मेरे पास यूरो थे पर सिक्के नहीं। मैंने कभी पब्लिक बूथ से फोन नहीं किया था। भाषा की मुश्किल अपनी जगह थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। जीवन में
मैंने, अपने आप को इतना असहाय, कभी नहीं पाया।

बर्लिन पहुंच कर मैंने अपनी पत्नी को ई-मेल से मोबाइल फोन की मुश्किल के बारे में बताया। उसने टेलीफोन वालों से पूछकर निदान भी बताया पर काम नहीं बना। हार कर वहां पर प्रीपेड कार्ड खरीदा। मुझे इसका निदान वियाना में पता चला। इसके लिये Application में जाना पड़ता है। वहां से Network, फिर cell one में जाकर, International चुनना होता है। मैं Setting में जा कर, Network Service में,
इसका हल ढूढ़ रहा था। वापस भारत आकर, यह प्रक्रिया पुन: अपनानी पड़ती है। इस बार National चुनकर उचित Network, जो कि Dolphin है, चुनना होता है।

बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन।। बीएसएनएल अन्तरराष्ट्रीय सेवा - मुश्कलें।।

सांकेतिक शब्द
bsnl, bharat sanchar nigam ltd, international roaming, भारत संचार निगम, बीएसएनएल, Travel, Travel, travel and places, travelogue, सैर सपाटा, सैर-सपाटा, यात्रा वृत्तांत, यात्रा-विवरण, यात्रा विवरण, यात्रा संस्मरण

किताबी कोना

क्या आप जानते हैं कि आपका सबसे अच्छा मित्र, मेरा भी सबसे अच्छा मित्र है।
'उन्मुक्त जी आप क्या मजाक कर रहें हैं। सबके मित्र अलग अलग हैं फिर वह सबके लिये एक कैसे हो सकता है।'
लेकिन ऐसा ही है क्योंकि सबसे अच्छी मित्र होती हैं - पुस्तकें।

कुछ समय पहले हिन्दी चिट्ठाजगत में, एक विचार आया कि चिट्ठाकार बन्धु अपनी पढ़ी पुस्तकों की समीक्षा लिखें। यह बात आगे नहीं चल पायी। अच्छी पुस्तकों का नाम लिखना तो आसान है पर उसकी समीक्षा लिखने के लिये समय चाहिये। मैं कुछ समय से पुस्तकों के बारे में लिखता चल रहा हूं और आगे भी लिखने की सोचता हूं। मुझे लगा कि क्यों न मैं जब पुस्तक समीक्षा लिखूं तो उसको एक श्रंखला का रूप दे दूं। सवाल उठा कि इस श्रंखला का क्या नाम दूं।

कुछ सोचने के बात याद आया कि इस श्रंखला के लिये प्रत्यक्षा जी ने एक नाम सुझाया था क्यों न वही नाम दे दूं। मैं वह नाम भूल गया। मैंने उनसे नाम के बारे में पूछा तो उन्होने 'किताबी कोना' बताया। मैं, इस श्रंखला का यही नाम रखता हूं। प्रत्यक्षा जी को इसके प्रयोग की अनुमति देने के लिये धन्यवाद।

क्या ऐसा कोई तरीका हो सकता है कि हम कोई कोड हो या टैग हो जो हम पुस्तक समीक्षा की चिट्ठी पर डालें ताकि यदि कभी उस शब्द से खोजे तो सारी चिट्ठियां तिथि से खोजने में मिल जांय – जैसे शायद अनुगूंज में होता है। यह एक तरह का असीमित अनुगूंज। इस तरह की बात जीवनी के बारे में भी हो सके तो और भी अच्छा है।

मैं कंप्यूटर तकनीक से वाकिफ नहीं जानता हूं। शायद कोई और इसे बेहतर रूप दे सके पर मैं जब ही किसी प्रिय पुस्तक की समीक्षा करूंगा तब उसे इसी श्रंखला के अन्दर करूंगा।

मैंने कुछ चिट्ठियों में अपनी प्रिय पुस्तकों के बारे में बताया है हालांकि वे चिट्ठियां किसी और संदर्भ में लिखी गयी थीं। मैंने जिन चिट्ठियों में पुस्तकों के बारे में लिखा है उनका लिंक यह रहा है और यह पुराने से नये की तरफ है।

किताबी कोना

मेरा नया पॉडकास्ट 'लिंकिंग - क्या यह गलत है' सुने। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप, Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में; Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।



सांकेतित शब्द
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ऑस्ट्रियन एयरलाइनः बर्लिन-वियाना यात्रा

भारत से वियाना तक की फ्लाइट ऑस्ट्रियन एयर लाइन की थी। प्लेन सही समय पर उड़ा। मुझे आगे की सीट मिली थी। एक महिला अपने छोटे से बच्चे के साथ आयी। उसने कहा कि मैं उसे यह सीट दे दूं। आगे की सीट में बैठने का यह फायदा है कि बच्चों के लिये वह क्रैडल लग जाती है। जिस पर उन्हे लिटाया जा सकता है। मैंने मान लिया पर परिचायिका ने यह नहीं करने दिया क्योंकि आगे पहले से ही एक महिला बच्चे के साथ बैठी थी और ऊपर केवल एक ही अतिरिक्त ऑक्सीजन मॉस्क था दो नहीं। उस महिला को पुनः अपनी जगह वापस जाना पड़ा। किसी भी अन्य यात्री ने जिसकी सीट के सामने बच्चे के लिये क्रैडल लग सकता था, उस महिला के साथ सीट बदलने से मना कर दिया। वह कुछ मायूस हो गयी। इससे उसे रास्ते में कुछ तकलीफ तो जरूर हुई होगी पर मैं कुछ कर नहीं सकता था।

परिचारिकायें लाल परिधान पहने थीं। युवतियां लाल स्कर्ट, लाल बेल्ट, लाल या सफेद ब्लाउज, लाल जैकेट, लाल कोट, लाल स्टॉकिंग, यहां तक की लाल जूते पहने थीं पर गले में स्कार्फ आसमानी रंग का था। यही हाल युवकों का भी था। वे हमसे तो अंग्रेजी में बात करते थे पर आपस में किसी और भाषा में बात करते थे। मैंने एक परिचारिका से पूछा कि क्या वह जर्मन में बात कर रही है। उसने कहा
'हां। पर हमारा उच्चारण जर्मन के कुछ भिन्न है पर वर्तनी, व्याकरण बाकी सब वही है।'
मैंने जवाब दिया डांके शॉन (आपको बहुत धन्यवाद)। वह मुस्कराकर बोली,
'लगता है आपको जर्मन आती है।'
मैंने कहा, मैं जर्मनी जा रहा हूं इसलिये कुछ शब्द सीख लिये हैं।

मेरे बगल की महिला इटली जा रही थी और जो महिला मुझसे सीट बदलना चाहती थी वह स्पेन जा रही थी। वे हरियाणा के किसी गांव की लग रही थी। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। वे घबरा रही थी। मैंने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है मैं मदद करूंगा। मैंने वियना में उन्हें उस जगह तक पहुंचाया जहां से उन्हें अपनी, अगली फ्लाइट पकड़नी थी। हांलाकि बाहर निकलते समय एक व्यक्ति खड़ा था जो टिकट देखकर लोगों की सहायता कर रहा था।

मैं बर्लिन जाने के लियें, हाथ का सामान चेक करने के लिये देने लगा। एक व्यक्ति ने मुस्कराकर पूछा कि क्या लैपटॉप हैं? मैंने कहा नहीं। उसने कहा कि क्या नोटबुक है ? मैंने कहा
'नहीं, इसमें मेरे कपड़े हैं।'
उसे बहुत आश्चर्य हुआ, मानो कह रहा हो कि क्या कोई भारतीय बिना लैपटॉप के यात्रा कर सकता है। शायद सूचना प्रौद्योगिकी, भारतीयों की पहचान बन गयी है।

वियाना हवाई अड्डे और बर्लिन में मुझे एक परेशानी हुई पर उसका कारण मैं खुद था न कि वियाना हवाई अड्डा या बर्लिन शहर - यह अगली बार।

बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन

वेब क्या होता है

आज चर्चा का विषय है 'वेब क्या होता है'। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में, सुन सकते हैं।
ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। इसकी पिछली कड़ी 'इंटरनेट क्या होता है' सुनने के लिये यहां चटका लगायें।

मैंने अपनी चिट्ठी टिम बरनस् ली पर बताया था कि १९८० के दशक में, टिम ने यूरोपियन नाभकीय लेब्रोटरी जो सर्न (CERN) के नाम से जानी जाती है, में काम करना शुरू किया। । वहां हर तरह के कंप्यूटर थे जिन पर अलग अलग के फॉरमैट पर सूचना रखी जाती थी। टिम का मुख्य काम था कि सूचनाये एक कंप्यूटर से दूसरे पर आसानी से ले जायीं जा सकें। यह करते हुऐ उन्हे लगा कि क्या सारी सूचनाओं को इस तरह से पिरोया जा सकता है कि वे एक जगह ही लगें। बस इसी का हल सोचते, सोचते उन्होने वेब को अविष्कार कर दिया और दुनिया का पहला वेब पेज ६अगस्त १९९१ को सर्न में बना।

इस तकनीक में उन्होंने हाईपर टेकस्ट मार्कअप भाषा (एच.टी.एम.एल.) {Hyper Text Markup Language (HTML)} और हाईपर टेकस्ट ट्रान्सफर प्रोटोकोल (एच.टी..टी.पी.) {Hyper Text Transfer Protocol HTTP} का प्रयोग किया।
  • एच.टी.एम.एल. कम्प्यूटर की एक भाषा है जिसके द्वारा सूचना प्रदर्शित की जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि किसी अन्य सूचना को उससे लिंक किया जा सकता है। सारी सूचनायें किसी न किसी वेब-साइट या कम्प्यूटर पर होती हैं जिसका अपना पता होता है जिसे यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर (यू.आर.एल.) {Uniform Resource Locator (URL)} कहते हैं। एच.टी.एम.एल. में लिखे किसी पेज को दूसरे पेज में संदर्भित करने के लिये उसके यू.आर.एल. उस पेज में डालना (embed करना) होता है। यह लिंक किसी भी वेब पेज में एक खास तरह से, अक्सर नीले रंग से या फिर नीचे लाईन खिंची तरह से दिखायी पड़ती है। माऊस को किसी भी लिंक पर ले जाने पर करसर का स्वरूप बदल जाता है।
  • आप लिंक पर चटका लगा कर संदर्भित पेज पर पहुंच सकते हैं। सूचना का इस तरह से प्राप्त करना या भेजना जिस तकनीक या प्रोटोकॉल के अन्तरगत होता है उसे हाईपर टेक्सट ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (एच.टी..टी.पी.) {Hyper Text Transfer Protocol HTTP} हाइपरटेक्ट ट्रान्सफर प्रोटोकाल (H.T.T.P.) कहा जाता है।

सारे वेब पेज, एक तरह से जुड़े हैं। दुनिया भर में वेब पेजों का जाल बिछा है। इसीलिये इस तकनीक का नाम विश्व व्यापी वेब {World Wide Web (www)} या केवल वेब (web) कहा जाता है। वेब पेज के पहले अक्सर http या फिर www लिखा होता है जो यह दर्शाता है। हांलाकि यह अब इतना सामान्य हो गया है कि इसके लिखने की जरूरत नहीं है।

टिम ने एच.टी.एम.एल. भाषा या फिर एच.टी..टी.पी. का आविष्कार नहीं किया। उसने इन सब तकनीकों को जोड़कर सूचना भेजने और प्राप्त करने का तरीका निकाला। यह तब हुआ जब टिम सर्न में काम कर रहे थे। यह सर्न की बौद्घिक संपदा थी। सर्न ने टिम के कहने पर ,३० अप्रैल १९९३ को इस तकनीक को मुक्त कर दिया। अब यह न केवल मुफ्त में बल्कि मुक्त रूप से उपलब्ध है। इसके लिए किसी को भी फीस न तो सर्न को न ही किसी और को देनी पड़ती है।

इण्टरनेट और वेब में कुछ अंतर है, इण्टरनेट दुनिया भर के कम्प्यूटरों का जाल है जो एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। वेब संवाद करने का खास तरीका है।

सर्न के द्वारा वेब तकनीक को मुफ्त और मुक्त तरीके से उपलब्ध कराने का सबसे बड़ा फायदा हुआ कि यह सूचना भेजने तथा सूचना प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका हो गया। यह इतना महत्वपूर्ण है कि अक्सर लोग इंटरनेट और वेब को एक दूसरे का पर्यायवाची समझते हैं। यह बात किसी सटैंडर्ड या फॉरमैट को मुक्त रूप से उपलब्ध कराने के महत्व को समझाती है।

ओपेन फॉरमैट, ओपेन सटैंडर्ड कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इसका एक और कारण की चर्चा मैंने अपनी चिट्ठी, पापा क्या आप उलझन में हैं, पर भी किया है।

अंतरजाल की मायानगरी में
टिम बरनर्स् ली।। इंटरनेट क्या होता है।। वेब क्या होता है।।

सांकेतिक चिन्ह
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जर्मन भाषाः बर्लिन-वियाना यात्रा

कुछ समय पहले, मुझे बर्लिन जाने का मौका मिला। भारत से बर्लिन के लिये, कोई भी सीधी हवाई जहाज की उड़ान नहीं है। मैंने बर्लिन जाने के लिये, वियाना होते हुए टिकट लिया। मैंने लौटते समय दो दिन वियना में रहने का प्रोग्राम बनाया। मुझे लगा कि इससे अच्छा मौका, इन दोनो जगहों को देखने का नहीं मिलेगा।

जर्मनी और ऑस्ट्रिया दोनो जगह जर्मन भाषा बोली जाती है। इसलिये मैंने जर्मन भाषा के सीखने की बात सोची। इसके लिये मैंने दो पुस्तकें लीः
  • पहली है Learn German in a Month (Readwell Publication New Delhi); और
  • दूसरी है German in your pocket (Aureole Publishing, Noida)।
पहली पुस्तक का फायदा यह है कि इसमें शब्द देवनागरी में भी हैं जिससे उच्चारण ठीक से समझ में आते हैं। दूसरी का फायदा यह है कि यह छोटी है और आपकी जेब में आ जाती है।

मैंने जर्मन भाषा सीखने की सीडी भी सुनी यह हारर एजूकेशन लिमिटेड के द्वारा बनायी गयी है और अच्छी है इसमे सुनने में शब्दों के उच्चारण समझ में आये। जर्मन भाषा सीखने के लिये अन्तरजाल पर यहां से भी सहायता मिली।

मैं जर्मन भाषा तो पूरी तरह नहीं सीख पाया। इसके लिये कुछ और समय चाहिये था पर कुछ सामान्य जर्मन शब्द इस प्रकार हैं। इन शब्दों की वहां जरूरत पड़ी और इसका फायदा हुआ।

अंग्रेजी में

जर्मन भाषा में

जर्मन शब्दों का उच्चारण

Bye! See you later. (casual)

Tschüs!

ट्यूस्

Can you help me?

Können Sie mir helfen?

कॉनेन सिआ हेलफ्न

Fine, thanks.

Danke, gut.

डांकॅ गुट

Gentleman

Herr

हेर

Good


गुट

Good Afternoon, Good day, Hello! - Hi!

Guten Tag! - Tag!

गुटन टाग

Good evening!

Guten Abend!

गुटेन आबेन्ड

Good morning! - Morning!

Guten Morgen! - Morgen!

गुटन मॉरनेन

Good night!

Gute Nacht!

गुट नाक्ट

Good-bye,

Auf Wiedersehen.

ऑउफ वीडरसेहन

Great, Very good

Sehr gut.

सेर गुट

How are you?

Wie geht es Ihnen?

वि गी इस इहनन

How are you? (familiar, informal)

Wie geht's?


I am sorry


एन्ट शुलडिगन

I don't understand German


एक फसते हे काइन डॉइच (जर्मन)

I would like...

Ich möchte...

इश मश्तय्

Lady

Dame

डामे

May I?

Darf ich?

डार्फ इश

No thanks!

Nein, danke!

नाइन डान्कॅ

Not so well.

Nicht so gut.

नित्स सो गुट

Please! - Yes, please!

Bitte! - Ja, bitte!

बिटॅ

Thank you!

Danke schön!

डान्कॅ शॉन

Thanks a lot! - Many thanks!

Vielen Dank!

फिलेन डान्कॅ

Thanks! - No thanks!

Note: "Danke!" in response to an offer usually means "No thanks!" If you want to indicate a positive response to an offer, say "Bitte!"

Danke!

डान्कॅ

What would you like?

Was möchten Sie?

वस मश्त इज़ी

You're welcome! (in response to "Danke schön!")

Bitte schön!

बिटॅ शॉन

पापा, क्या आप उलझन में हैं

यह पोस्ट ओपन सोर्स और ओपेन फॉर्मैट के महत्व को बताती है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये प्ले करने वाले चिन्ह यहां पर चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,

  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में,
सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। डाउनलोड करने के लिये पेज पर पहुंच कर जहां Download फिर अंग्रेजी में फाइल का नाम लिखा है, वहां चटका लगायें।


पापा
मैंने आपके पॉडकास्ट सुने। क्या आप उलझन में हैं?

आप कभी mp3 मानक में तो कभी ogg मानक में पॉडकास्ट करते हैं। यह ठीक नहीं है इससे आपके सुनने वाले उलझन में पड़ सकते हैं और उन्हें सुनने में मुश्किल होती होगी। मेरी सलाह है कि आप एक ही मानक में पॉडकास्ट करें। अच्छा हो कि mp3 मानक में ही करें क्योंकि यह ही प्रारूप प्रचलित है। इसको सुनना आसान है। यह विंडोज पर आसानी से सुना जा सकता है।

मैं आपसे नाखुश हूं। आपने अपने पॉडकास्ट का नाम बकबक क्यों रखा? आप भी अच्छी तरह से जानते हैं कि यह बकबक नहीं है।

घर पर तो दीवाली की तैयारी चल रही होगी - शाम को एक दिया हमारे नाम से भी जलाइयेगा।
आपकी बेटी

बिटिया रानी
यह सच है कि मैं कुछ उलझन में था और कभी mps और कभी ogg प्रारूप में पॉडकास्ट करता था। लेकिन अब बिलकुल नहीं हूं। मैंने यह तय कर लिया है कि ogg प्रारूप में ही पॉडकास्ट करूंगा। मैं तुम्हें यह भी बताना चाहूंगा कि मैंने ऎसा क्यों तय किया है।

साधन, अन्त से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।


पिछली सदी के शुरूआत में, केवल धोती पहने, एक भारतीय अंग्रेजी सत्ता के विरूद्घ उठ खड़ा हुआ। विन्सटन चर्चिल उसे अर्घ-नग्न फकीर कहा करते थे। उसका दर्शन था,
'साधन, अन्त से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं (means are more important than the end)। यदि साधन उचित हैं तो ही इच्छित अंत प्राप्त हो सकता है।'
लोगों के यह कहने पर कि 'साधन अंतत: साधन ही हैं पर उसका जवाब होता था कि,
'वास्तव में, साधन ही सब कुछ हैं'।
उसका नाम था - मोहनदास करमचंद गांधी। वे दुनिया में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi), भारत के राष्ट्रपिता, के नाम से जाने गये।

मेरे विचार में, गांधी जी का दर्शन, जीवन के हर क्षेत्र में आज ज्यादा सुसंगत एवं महत्वपूर्ण है।

गांधी जी की न्यू यॉर्क में लगी मूर्ति का चित्र विकिपीडिया से है। यह ग्नू मुक्त प्रलेखन अनुमति पत्र की शर्तों के अन्दर प्रकाशित है।

सूचना एवं समपर्क प्रौद्योगिकी (Information and communication Technology - ICT) के संदर्भ में,
  • अंत है, सब तक सूचना पहुंचाना है; और
  • साधन हैं, कि यह किस प्रकार से किया जाय, किस प्रकार के मानक प्रयोग करें, किस प्रकार के प्रारूपों को अपनाया जाय, किस प्रकार के साफ्टवेयर का इस्तेमाल हो।

इस सदी में सबसे ज्यादा समस्यायें बौद्घिक संपदा अधिकार से जुड़ी होंगी।
  • मुक्त मानकों या प्रारूपों (Open Standards and Formats) में न केवल सूचना का संचार सबसे अच्छा है पर बौद्घिक संपदा अधिकारों के विवाद नहीं है। कोई भी मानक तब तक मुक्त मानक या प्रारूप नहीं हो सकता जब तक कि उसमें सारे बौद्घिक संपदा अधिकार छोड़ न दिये जांय।
  • मुक्त साफ्टवेयर (Open Source Software) में बौद्घिक संपदा अधिकार की समस्यायें तो हैं पर वे सबसे कम हैं।
इसलिये मुक्त प्रारूप, मुक्त मानक, मुक्त सॉफ्टवेर अच्छे साधन हैं। यदि हम इनका प्रयोग करेंगे तो ही अंत उचित होगा।

mp3 मानक, मालिकाना है और ogg मानक मुक्त है। ogg फॉरमेट के बारे मे विस्तृत जानकारी यहां देख सकती हो। यही कारण है कि मैं अब मुक्त मानक, मुक्त प्रारूप में ही पॉडकास्ट करने की सोचता हूं। आज नहीं तो कल लोग इसको समझेंगे। मैं मुक्त साफ्टवेयर की भी वकालत इसलिये करता हूं।

यह सच है कि इस समय कुछ लोगों को ogg मानक की फाइलों को सुनने में मुश्किल होती है पर यह सारे ऑपरेटिंग सिस्टम में सुनी जा सकती हैं। यह,
  • लिनेक्स (Linux) पर सभी प्रोग्रामो में;
  • मैक (Mac-OX) पर कम से कम Audacity, MPlayer, एवं VLC media player में; और
  • विंडोज़ (Windows) में इसे कम से कम Audacity MPlayer, VLC media player एवं Winamp में,
सुनी जा सकती हैं। Audacity में mp3 की ऑडियो फाइलें सुनने के लिये इसका प्लगइन plug-in डालना पड़ेगा।

इसके बाद भी, कुछ लोगों को ogg मानक की फाइलों को विंडोज़ में सुनने में मुश्किल होती है। इसके लिये यदि ऑडियो फाइल पर चटका लगाने के बाद सुनायी न पड़े तो उसे डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुनना चाहिये या फिर ऊपर लिखे प्रोग्रामों में से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लेना चाहिये।

जीवन में सफल होना, प्रसिद्घि पा लेना, पैसा कमा लेना - सबको अच्छा लगता है। मुझे भी अच्छा लगेगा यदि तुम और मुन्ना उस उंचाई पर पहुंचों जहां मैं और तुम्हारी मां नहीं पहुंच पाये पर उसे प्राप्त करने के साधनों पर भी ध्यान देना। यदि साधन अच्छे नहीं है तो न तुम्हें ही शान्ति मिलेगी न हमें ही खुशी होगी। यह बात, तुम्हें अपने बच्चों को, हमारी आने वाली पीढ़ी को, भी बताने की जरूरत है।

सब कहते हैं कि मैं हमेशा बकबक करता रहता हूं, कभी चुप नहीं रहता :-) बस इसलिये इसका नाम बकबक रख दिया। शायद, अब इसका नाम बदलने के लिये देर हो चुकी है।

दीवाली की तैयारी हो रही है। एक दिया क्यों, सारे ही दिये तुम सब के नाम हैं।
पापा

(मैं अक्सर ई-मेल द्वारा अपने मित्रों के बच्चों और विद्यार्थियों से बात करता हूं। बिटिया रानी के साथ पिछले ई-मेल के बाद मुझे लगा कि मैं कुछ और भी ई-मेल प्रकाशित करूं। यह इसी संदर्भ में है। आने वाले समय में, मैं कुछ और ईमेल भी प्रकाशित करूगां। यह सारी ई-मेल अंग्रजी में है। मैं अनुवाद करके प्रकाशित करूंगा।)

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कॉन-टिकी

मैंने इस श्रंखला की पिछली कड़ी में बताया था कि थूर हायरडॉह्ल (Thor Heyerdahl) यह सिद्ध करना चाहता था कि पॉलीनीसियन (Polynesia) द्वीपों में दो तरह के लोग आये हैं: एक दक्षिण पूर्वी से और दूसरे दक्षिण अमेरिका से। इस बात का कोई सबूत नहीं था कि दक्षिण अमेरिका से कोई इन द्वीप समूह में आया था, यह इस तरह से उस समय कोई यात्रा की जा सकती थी। थॉर ने यह सिद्ध करने के लिये उसी तरह से यात्रा करने की ठानी जैसे कि २०० साल पहले की गयी होगी।

यह चित्र कॉन-टिकी संग्रहालय से लिया गया है और उनहीं के सौजन्य से है।

थूर हायरडॉह्ल ने अपनी बात सिद्घ करने के लिए आदियुगीन बालसा लकड़ी का बेड़ा (raft) बनाया। इसका नाम, दक्षिण अमेरिका में पुराने समय में प्रचलित सूर्य देवता के नाम पर कॉन-टिकी रखा गया। थौर अपने पांच अन्य साथियों के साथ, उसी के ऊपर, २८ अप्रैल १९४७ को पेरू से पॉलीनीसियन
द्वीपों के लिए चल दिये। इसी नाव पर, उन्होने समुद्र में ३७७० नॉटिकल मील (६९८० किलोमीटर) लम्बी यात्रा की।

'कॉन-टिकी' (Kon-Tiki) पुस्तक में इस यात्रा का विवरण है।

बालसा लकड़ियों से बेड़े को बनाने में कोई नयी तकनीक नहीं प्रयोग की गयी थी। इसमें नये युग के समान में केवल एक रेडियो सेट था जिससे वे दुनिया से सम्पर्क कर सकते थे। इसके अतिरिक्त आधुनिक युग का कोई सामान नहीं था । उन्होंने यह यात्रा उसी तरह से की जैसे पुराने समय में शायद की गयी होगी। रास्ते के लिये उनके पास २५० लीटर पानी, बांस की ट्यूब में था। खाने के लिये लौकी, कद्दू, नारियल, शकरकन्द और अन्य फल थे। रास्ते में उन्होंने मछलियां भी पकड़ीं। उन्होंने प्रतिदिन ५०-६० मील की दूरी तय की।

पॉलीनिसयन द्वीप में, सबसे पहले उन्हें पुलक Puka-Puka (पुका-पुका) नामक प्रवालद्वीप दिखायी पड़ा। ४ अगस्त को Angatan द्वीप के लोगों से संबंध स्थापित हुआ पर वे उस पर उतर नहीं पाये। Tumotus द्वीप समूह, पालीनोसिया का हिस्सा है। Raroia द्वीप, इसी समूह का द्वीप है। ७ अगस्त को Raroia के पास चट्टान से टकरा गये और वहीं उतर गये।

क्या इस यात्रा ने यह सिद्घ कर दिया कि पालीनेसियन द्वीपों पर सभ्यता दक्षिण अमेरिका से भी आयी ?

इस अभियान में यह तो सिद्घ हो गया कि दक्षिण अमेरिका से पॉलीनोसियन द्वीपों तक समुद्र यात्रा हो सकती थी पर इससे यह नहीं सिद्घ हो पाया कि पॉलीनोसिया में लोग दक्षिण अमेरिका से आये। पॉलीनोसिया पर रहने वालों
के डी.एन.ए. टेस्ट से यही पता चलता है कि यहां पर लोग दक्षिणी पूर्वी एशिया से आये और वैज्ञानिक इसी को सही मानते हैं।

इस पुस्तक का ५० भाषाओं में अनुवाद हुआ है और इस अभियान पर एक वृत्तचित्र बना है। जिसे १९५१ में आकदमी पुरुस्कार भी मिला है। नॉरवे में इसी पर कॉन-टिकी संग्रहालय भी बनाया गया है जिसमें अभियान से
सम्बन्धी सारी जानकारी है।

इस यात्रा ने लोगों के बीच मानव-शास्त्र के प्रति जागरूकता उठायी लोगों को इस तरह की और यात्रा करने के लिये प्रेरित किया। यह विवरण जोखिम, उत्साह और अपने आत्म विश्वास की अपनी मिसाल है। यह सब पुस्तक में बहुत अच्छी तरह से बताया गया है।


सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच
भूमिका।। विज्ञान कहानियों के जनक जुले वर्न।। अस्सी दिन में दुनिया की सैर।। पंकज मिश्रा।। बटर चिकन इन लुधियाना।। कॉन-टिकी अभियान के नायक - थूर हायरडॉह्ल।। कॉन-टिकी अभियान।। द फैंटास्टिक वॉयेज।।

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