मां तुझे सलाम - विवाद और कानूनी मुद्दे

पिछली पोस्ट पर वन्दे मातरम् के इतिहास के बारे में चर्चा की थी, इस बार इस पर उठे विवाद और जुड़े कानूनी मुद्दे।

विवाद
आनन्द मठ उपन्यास पर कुछ विवाद है कुछ लोग इसे मुसलमान विरोधी मानते हैं। उनका कहना है कि इसमें मुसलमानो को विदेशी और देशद्रोही बताया गया है। वन्दे मातरम् गाने पर भी विवाद किया जा रहा है। इस गीत के पहले दो पैराग्राफ, जो कि प्रसांगिग हैं, में कोई भी मुसलमान विरोधी बात नहीं है और न ही किसी देवी या दुर्गा की अराधना है। पर इन लोगों का कहना है कि,
  • मुस्लिम धर्म किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने को मना करता है और इस गीत में वस्तु की वन्दना की गयी है;
  • यह ऐसे उपन्यास से लिया गया है जो कि मुस्लिम विरोधी है;
  • दो पैराग्राफ के बाद का गीत – जिसे कोई महत्व नहीं दिया गया, जो कि प्रसांगिग भी नहीं है - में दुर्गा की अराधना है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत के सभी मुसलमानों को इस पर आपत्ति है या सब हिन्दू इसे गाने पर जोर देते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले संगीतकार ए.आर. रहमान ने, जो ख़ुद एक मुसलमान हैं, 'वंदेमातरम्' को लेकर एक एलबम तैयार किया था जो बहुत लोकप्रिय हुआ है। बीबीसी ने इस गाने को दूसरा लोकप्रिय (यहां देखें) गाना माना है। ज्यादतर लोगों का मानना है कि यह विवाद राजनीतिक विवाद है। यहां पर गौर तलब है कि ईसाई लोग भी मूर्त पूजन नहीं करते हैं पर इस समुदाय से इस बारे में कोई विवाद नहीं है, शायद इनकी संख्या कम है।

कानून
जहां तक कानून की बात है, उच्चतम न्यायालय ने Bijoe Emmanuel Vs. State of Kerala AIR 1987 SC 748 में राष्ट्रगान 'जन गण मन' के बारे में फैसला दिया है। यह फैसला तीन विद्यार्थियों के बारे में है। ये विद्यार्थी Jehovah's Witness नामक ईसाइयों का एक पंथ के सदस्य थे। ये विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्रगान 'जन गण मन' के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे; इसका हमेशा सम्मान करते थे, पर गाते नहीं थे। यह इसलिये कि यह इनके धर्म के खिलाफ था। उनका न गाना आपत्तिजनक और देशप्रेम की कमी मानी गयी और उनहें इसलिये स्कूल से निकाल दिया गया। केरल उच्च न्यायालय ने इनकी याचिका खारिज कर दी पर उच्चत्तम न्यायालय ने स्वीकार कर इन्हे स्कूल को वापस लेने को कहा। इस फैसले का आधार यही है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान करता है पर उसे गाता नहीं है तो न गाने के लिये दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। यदि कोई राष्ट्रगान नहीं गाता है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। वंदेमातरम् को जबरदस्ती गाने के लिये कहना शायद कानूनन ठीक नहीं था।

इस बारे में कुछ दिन पहले कि उस घटना को भी नजर में रखें जिसमें एक मिनिस्टर के खिलाफ यह कहा गया कि वे राष्ट्रगान 'जन गण मन' के बजने के समय खड़े नहीं हुऐ। इस बारे में एक मुकदमा चलाया गया जो कि इन्दौर की आदालत ने यह कह कर खारिज कर दिया है कि यह जुर्म नहीं है। हांलाकि इस फैसले के खिलाफ निगरानी दाखिल (यहां देखें) की गयी है।


७ सितम्बर को मुसलमानो ने क्या किया यह आप यहां, यहां, और यहां पढ़ सकते हैं। अधिकतर अखबारों में भी इसकी पुष्टि की गयी है। मुसलमानो ने इसे उतने ही उत्साह से गाया जितना कि हिन्दुवों या इसाइयों ने। यह विवाद बेकार मे शुरू हुआ। विवाद का कारण तो हमेशा कुछ और होता है - वह नहीं जो कि नहीं दिखायी देता है। हमारे देश में अवसरवादियों कि कमी नहीं जो हर मौके का फायदा उठाना चाहते हैं चाहे वह कितना गलत क्यों न हो।

चलिये इस विवाद को छोड़ें और इस गाने का आनन्द लें। यह सुनने में मधुर है, कर्ण प्रिय है।
यदि आप इस गाने को लता मंगेशकर या ऐ.आर. रहमान या कभी खुशी कभी गम के विडियो पर देखना और सुनना चाहें तो यहां, यहां, और यहां सुन सकते हैं। ऐसा हो सकता है कि यह विडियो पर पहली बार देखने पर यह रुक रुक कर दिखायी पड़े पर एक बार चल जाने के बाद आप इसे फिर से देखें तब तक यह आपके कंप्यूटर में कैश में आ जायगा और अच्छी तरह से दिखायी पड़ेगा।


अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।

इस फैसले के बारे में लोगों की आम राय है कि इसकी अन्तिम आज्ञा तो सही है पर इसमें बहुत कुछ ऐसा कह दिया गया जिसकी कोई जरूरत नहीं थी और जो शायद सही नहीं है। वे लोग यह, इस फैसले के तथ्य के आधार पर कहते हैं। इसके तथ्य यह थे कि,
  • ये विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्रीय गीत 'जन गण मन' के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे
  • राष्ट्रीय गीत का हमेशा सम्मान करते थे;
  • इस तरह का न तो उस समय कोई कानून था न इस केस में न्यायालय को दिखाया गया कि यदि राष्ट्रीय गीत नहीं गाया जायगा तो जुर्म होगा या स्कूल से निकाल दिया जायागा;
  • केरल सरकार द्वारा इस बारे में जो भी सरकारी पत्र दिखाये गये उनका कोई भी विधिक आधार नहीं था।
इसी लिये यह लोग कहते हैं कि अन्तिम आज्ञा तो सही है पर उनका कहना है कि,
  • इसमें अमेरिकी कानून का सहारा लिया गया है जो कि अनुचित है;
  • अमेरिका का संविधान हमारे देश के संविधान से अलग है ;
  • अमेरिका में मौलिक अधिकार निर्बाध रूप से हैं और हमारे संविधान में इन अधिकारों पर युक्तिपूर्ण प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं
इस अन्तर का ख्याल इस फैसले में नहीं रखा गया है। यह सब तो हम कानूनी विशेष्ज्ञों के लिये छोड़े, हमारे लिये तो उच्चतम न्यायालय का फैसला अन्तिम है यह अन्तर तो न्यायालय ही समझे।

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