कुछ दिन पहले सुनील जी ने 'पुरुष या स्त्री ?' नाम की एक चिट्ठी पोस्ट की। उन्होने एक दूसरी चिट्ठी भी 'मैं शिव हूँ' के नाम से पोस्ट की। उसी पर संजय जी और सृजन शिल्पी जी ने टिप्पणी की। सृजन शिल्पी जी ने बाद मे 'अर्धनारीश्वर और वाणभट्ट की आत्मकथा' नाम की चिट्ठी भी पोस्ट की। मेरा मन भी था कि इन सब पर टिप्पणी करूं, फिर लगा कि एक स्वतंत्र चिट्ठी लिखना ठीक होगा। इसलिये यह चिट्ठी पोस्ट कर रहा हूं।
कुछ लोगो को प्रकृति अलग तरह से बनाती है उन्हे मस्तिष्क तो एक लिङ्ग का देती और शरीर दूसरे लिङ्ग का। इन लोगों के अपने कष्ट होते हैं सर्जरी के बढ़ते आयाम ने इन लोगों को कुछ राहत दी है। ऐसे कुछ लोग सर्जरी करा कर अपना लिङ्ग बदल सकते हैं। सेक्स परिवर्तन कराने के बाद, इन लोगों को trans-gendered कहा जाता है। इन लोगों के भी अधिकार हैं पर हमारा समाज ऐसे लोगों की पीड़ा समझना तो दूर, इनका मजाक बनाने मे भी पीछे नहीं रहता।
कुछ साल पहले की बात है कि एक टीवी बनाने वाली कम्पनी ने अपने टीवी के विज्ञापन मे एक लड़के और लड़की को एक टीवी की दुकान मे दिखाया। लड़की सुन्दर है और लड़का उससे इश्क (flirt) करने की कोशिश कर रहा है। दुकान मे अलग- अलग कम्पनी के टीवी लगे हैं। उन सब मे एक प्रोग्राम आ रहा है जिसमे एक लड़की का साक्षात्कार हो रहा है जो कि लड़के से लड़की बनी थी। लड़की का चेहरा ढ़ंका हुआ है। अलग अलग टीवी मे लड़की का चेहरा ढ़का रहता है पर जब उस कम्पनी के टीवी के सामने पहुंचते हैं तो टीवी पर लड़की का चेहरा साफ दिखायी पड़ता है। यह टीवी वाले यह बताना चाहते थे कि उनके टीवी पर तस्वीर एकदम साफ आती है। यह लड़की वही है जो कि दुकान में है। जब लड़का उसे देखता है तो घृणा से मुंह बनाते हुऐ, उस दुकान से, लड़की को छोड़ कर, चला जाता है।
मेरे विचार से यह विज्ञापन बहुत ओछा था। यदि इस विज्ञापन से जुड़े किसी व्यक्ति के परिवार मे ऐसा कोई सदस्य होता तो वह न तो यह विज्ञापन बनाता, न ही उसे अपनी कम्पनी के लिये मंजूरी देता। परिवार मे ऐसा कोई सदस्य होने की कोई जरूरत नहीं है, इसके लिये तो ऐसे लोगों की मुश्किलों को समझने की जरूरत है जो कि इस विज्ञापन को बनाने वाले या इस टीवी कम्पनी के पास नहीं थी।
संवेदनहीन (insensitive) इन्सान ही ऐसा कार्य करते हैं। मेरे विचार मे कोई भी कार्य करने से पहले उसे अपने ऊपर रख कर सोचने की जरूरत है, कि यदि वे उस जगह होते तो उन्हे कैसा लगता। मैंने इसके बारे मे कुछ लिखा-पढ़ी की और इसके पहले कुछ और कार्यवाही करता कि यह विज्ञापन दिखायी देना बन्द हो गया। कह नहीं सकता कि लिखा-पढ़ी का असर हुआ या उन्हे स्वयं लगा कि यह गलत है।
शून्य, जीरो, और बूरबाकी
कुछ समय पहले एक नयी वेब साईट शून्य नाम से इन्टरनेट पर आयी है। इस पर तकनीक और विज्ञान से जुड़े लेख और खबरें हैं जो कि पढ़ने योग्य हैं। यह न केवल हिन्दी मे है पर इसमे अंग्रेजी, बंगला, तमिल और तेलगू मे भी लेख भेजे जा सकते हैं हांलाकि अभी बंगला और तमिल मे कोई लेख नहीं आये हैं। हिन्दी मे काफी लोग ब्लौगिंग कर रहें हैं पर उन लेखों मे तकनीक और विज्ञान से जुड़े कम लेख रहते हैं, शून्य मे ऐसे लेख ज्यादा रहते हैं। शून्य, हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के चिठ्ठे जगत मे विज्ञान और तकनीक से सम्बन्धित लेखों के लिये न केवल उत्प्रेरक का कार्य करेगी पर उन्हें नयी दिशा देगी नया रास्ता दिखायेगी, ऐसा मेरा मानना, ऐसा मेरा सोचना है ऐसी मेरी कामना है। मेरी शुभकामनाये उनके साथ हैं। इसमे सब अच्छा है केवल एक बात कुछ खटकती है।
शून्य के अनुसार यह वेब साईट है,
मुझे यह वर्णन ठीक नहीं लगता है। इसमे ज्यादातर लेख न केवल सब लोग पढ़ सकते हैं पर उन्हें पढ़ने भी चाहिये। शून्य पर लेखों के लिये शायद यह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा,
शून्य को इस तरह से अपने आप को सीमित नहीं करना चाहिये। लगता है कि इसके इस वर्णन से कई लोग इस पर लिखे लेखों को पढ़ने से घबराते हैं।
मैंने भी इस वेब साईट को किसी लेख पढ़ने के लिये नहीं, पर कौतूहलवश इसके नाम के कारण से खोला था। शून्य नाम से मेरे विद्यार्थी जीवन की बहुत सारी यादे जुड़ी हुई हैं बस उसी के कारण और एक बार इस पर गया फिर इस पर लिखे या इसके द्वारा अनुमोदित लेखों को पढ़ने लगा। दो शब्द मेरी उन यादें के लिये जो शून्य के साथ जुड़ी हैं।
यह सच है कि मुझे कई बार, कई विषयों पर शून्य या सिफ़र, या जीरो नम्बर मिल चुके हैं। इसलिये इसको तो भूलना मुश्किल है। इसके अलावा और बहुत सी यादें हैं
मैं जब विद्यार्थी था या जैसे ही विद्यार्थी जीवन समाप्त किया तब ही एक पिक्चर 'पूरब और पश्चिम' आयी थी। इसमे मनोज कुमार, सायरा बानो, और प्राण थे। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार कि है कि सायरा बानो, प्राण की लड़की का किरदार निभा रहीं हैं और लंदन मे अपने पिता के साथ रहती हैं। मनोज कुमार इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लंदन पढ़ने जाते हैं। वहां एक जगह, शायद इंडिया हाऊस मे, उनकी मुलाकात प्राण से होती है। प्राण उनसे कहते हैं कि हिन्दुस्थान तो जीरो है इस पर वह, जीरो का महत्व के लिये यह कहते हैं यह लय मे एक गाने के छोटे से हिस्से के रूप मे है।
यह गाना कुछ लम्बा है पर मैने इसका जीरो से सम्बन्धित भाग ही लिखा है। इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं और यहां विडियो में देख और सुन सकते हैं।। यदि आपने पहले इसे सुना है तो आपको यह पुरानी यादों मे वापस ले जायेगा। यदि नहीं सुना है तो कम से कम एक बार सुनिये - आपको अच्छा लगेगा।
मैंने पहले इस गाने को ogg फॉरमैट में रखा था पर अब सीधे लिंक दे दिया है। यहां मैं आपको बताना चाहूंगा कि ogg फॉरमैट की ऑडियो फाइलों को आप हर ऑपरेटिंग सिस्टम मे सुन सकते हैं पर आप इसे किस प्रोग्राम मे सुन पायेंगे इसके लिये यहां देखें। इसे विन्डोस़ मे विन्डो मीडिया प्लेयर पर भी सुन सकते हैं। vorbis.com के अनुसार विन्डो मीडिया प्लेयर-१० या उसके उपर का प्रोग्राम प्रयोग करना पड़ेगा पर इसमे भी मुश्किल पड़ती है। विन्डोस़ मे ogg फॉरमैट पर म्यूज़िक सुनने के लिये एक प्रोग्राम विनऐम्प है। यह एकदम फ्री प्रोग्राम है और यहां से डाऊनलोड किया जा सकता है। ऑडेसिटी (Audacity) एक और प्रोग्राम है जिसमे इसे सुना जा सकता है। ऑडेसिटी का फायदा यह है कि यह ओपेन सोर्स है और विन्डोस, लिनेक्स, तथा ऐपेल्ल तीनो पर चलता है। विनऐम्प और ऑडेसिटी बहुत अच्छे प्रोग्राम हैं और इन पर हर फॉरमैट की ऑडियो क्लिप सुनी जा सकती है। इन्हे प्रयोग कीजिये। यहां कुछ शब्द ogg फॉरमैट के बारे मे।
मैं कई चिठ्ठेकार बन्धुवों की ऑडियो क्लिप सुनता हूं। यह सब MP-3 फॉरमैट मे होती हैं। MP-3 फॉरमैट मलिकाना है। जब कि ogg फॉरमैट ओपेन सोर्स है और इस पर किसी का कोई मलिकाना अधिकार नहीं है। इसके बारे मे विस्तृत जानकारी यहां देखें। इस बारे मे भी सोचियेगा कि,
१९३० के दशक मे नीकोला बूरबाकी (Nicolas Bourbaki) के नाम से गणित पर बहुत सारी फ्रांसीसी किताबें आयीं। इन किताबों ने गणित को नयी दिशा दी। नीकोला बूरबाकी नाम का कोई भी व्यक्ति नहीं था। कुछ फ्रांसीसी गणितज्ञों ने मिल कर यह कार्य किया। किताबों मे लेखक का नाम देना जरूरी होता है चार्ल्स डेनिस बूरबाकी फ्रांसीसी सेना के एक प्रसिद्ध अधिकारी थे। फ्रांसीसी गणितज्ञों ने, बस उसी के नाम पर एक काल्पनिक नाम नीकोला बूरबाकी चुन लिया और लगे लिखने गणित पर किताबें। किताबें इतनी अच्छी थीं कि उसने गणित को नयी दिशा ही दे दी। न ही उसमे किसी ने अपने नाम के बारे मे सोचा, न ही किसी ने कॉपीराईट के बारे मे - गणित को आगे बढ़ाना ही उनका ध्येय था। बूरबाकी के बारे मे एक अच्छा लेख साईंटिफिक अमेरिकन के मई १९५७ के अंक मे छपा है। इस लेख को पौल हेलमौस ने लिखा है जो कि स्वयं एक जाने माने गणितज्ञ हैं। नीचे के दो स्केच साईंटिफिक अमेरिकन के सौजन्य से हैं और इस पत्रिका के इसी लेख के साथ मई १९५७ के अंक मे छपे थे। स्केच के नीचे जैसा साईंटिफिक अमेरिकन मे अंग्रेजी मे लिखा है वही यहां पर मैने लिख दिया है।
१९६० के दशक मे मैंने स्नातक कि कक्षा मे प्रवेश लिया। स्नातक कक्षा मे गणित भी मेरा एक विषय था। उस समय गणित के कुछ अध्यापकों और विद्यार्थियों ने इसी बूरबाकी से प्रेणना लेकर जीरो नाम का क्लब बनाया और कई कार्यकर्म किये और कुछ किताबें भी लिखीं।
शून्य ने मुझे कुछ इन्ही बातों की याद दिलायी जिसके कारण मैने इस वेब साईट को देखा। यह हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के चिठ्ठों को नयी दिशा देगी - इसी शुभकामना के साथ यह चिठ्ठी समाप्त करता हूं और ज्लदी ही फिर से बात करने उपस्थित होऊंगा।
१ मै नहीं जानता कि यह उच्चारण सही है कि नहीं क्या कोई इसकी पुष्टि करेगा
शून्य के अनुसार यह वेब साईट है,
तकनीकी लोगों के लिये, तकनीकी लोगों के द्वारा (News for Techies in India. By techies in India)
तकनीकी लोगों के द्वारा, सबके लिये और सब के द्वारा, तकनीकी लोगों के लिये
मैंने भी इस वेब साईट को किसी लेख पढ़ने के लिये नहीं, पर कौतूहलवश इसके नाम के कारण से खोला था। शून्य नाम से मेरे विद्यार्थी जीवन की बहुत सारी यादे जुड़ी हुई हैं बस उसी के कारण और एक बार इस पर गया फिर इस पर लिखे या इसके द्वारा अनुमोदित लेखों को पढ़ने लगा। दो शब्द मेरी उन यादें के लिये जो शून्य के साथ जुड़ी हैं।
यह सच है कि मुझे कई बार, कई विषयों पर शून्य या सिफ़र, या जीरो नम्बर मिल चुके हैं। इसलिये इसको तो भूलना मुश्किल है। इसके अलावा और बहुत सी यादें हैं
मैं जब विद्यार्थी था या जैसे ही विद्यार्थी जीवन समाप्त किया तब ही एक पिक्चर 'पूरब और पश्चिम' आयी थी। इसमे मनोज कुमार, सायरा बानो, और प्राण थे। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार कि है कि सायरा बानो, प्राण की लड़की का किरदार निभा रहीं हैं और लंदन मे अपने पिता के साथ रहती हैं। मनोज कुमार इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लंदन पढ़ने जाते हैं। वहां एक जगह, शायद इंडिया हाऊस मे, उनकी मुलाकात प्राण से होती है। प्राण उनसे कहते हैं कि हिन्दुस्थान तो जीरो है इस पर वह, जीरो का महत्व के लिये यह कहते हैं यह लय मे एक गाने के छोटे से हिस्से के रूप मे है।
जब जीरो दिया मेरे भारत ने,
भारत ने, मेरे भारत ने,
दुनिया को तब गिनती आयी।
तारों की भाषा भारत ने,
दुनिया को पहले सिखलायी।
देता न दशमलव भारत तो,
यूं चांद पर जाना मुश्किल था।
धरती और चांद की दूरी का,
अन्दाजा लगाना मुश्किल था।
सभ्यता जहां पहले आयी,
सभ्यता जहां पहले आयी।
पहले जन्मी है, जहां पे कला।
अपना भारत, वह भारत है,
जिसके पीछे संसार चला।
संसार चला, और आगे बढ़ा।
यूं आगे बढ़ा, बढ़ता ही गया।
भगवान करे यह और बढ़े,
बढ़ता ही रहे और फूले फले।
बढ़ता ही रहे और फूले फले।
यह गाना कुछ लम्बा है पर मैने इसका जीरो से सम्बन्धित भाग ही लिखा है। इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं और यहां विडियो में देख और सुन सकते हैं।। यदि आपने पहले इसे सुना है तो आपको यह पुरानी यादों मे वापस ले जायेगा। यदि नहीं सुना है तो कम से कम एक बार सुनिये - आपको अच्छा लगेगा।
मैंने पहले इस गाने को ogg फॉरमैट में रखा था पर अब सीधे लिंक दे दिया है। यहां मैं आपको बताना चाहूंगा कि ogg फॉरमैट की ऑडियो फाइलों को आप हर ऑपरेटिंग सिस्टम मे सुन सकते हैं पर आप इसे किस प्रोग्राम मे सुन पायेंगे इसके लिये यहां देखें। इसे विन्डोस़ मे विन्डो मीडिया प्लेयर पर भी सुन सकते हैं। vorbis.com के अनुसार विन्डो मीडिया प्लेयर-१० या उसके उपर का प्रोग्राम प्रयोग करना पड़ेगा पर इसमे भी मुश्किल पड़ती है। विन्डोस़ मे ogg फॉरमैट पर म्यूज़िक सुनने के लिये एक प्रोग्राम विनऐम्प है। यह एकदम फ्री प्रोग्राम है और यहां से डाऊनलोड किया जा सकता है। ऑडेसिटी (Audacity) एक और प्रोग्राम है जिसमे इसे सुना जा सकता है। ऑडेसिटी का फायदा यह है कि यह ओपेन सोर्स है और विन्डोस, लिनेक्स, तथा ऐपेल्ल तीनो पर चलता है। विनऐम्प और ऑडेसिटी बहुत अच्छे प्रोग्राम हैं और इन पर हर फॉरमैट की ऑडियो क्लिप सुनी जा सकती है। इन्हे प्रयोग कीजिये। यहां कुछ शब्द ogg फॉरमैट के बारे मे।
मैं कई चिठ्ठेकार बन्धुवों की ऑडियो क्लिप सुनता हूं। यह सब MP-3 फॉरमैट मे होती हैं। MP-3 फॉरमैट मलिकाना है। जब कि ogg फॉरमैट ओपेन सोर्स है और इस पर किसी का कोई मलिकाना अधिकार नहीं है। इसके बारे मे विस्तृत जानकारी यहां देखें। इस बारे मे भी सोचियेगा कि,
- मलिकाना फॉरमैट का क्यों प्रयोग किया जाय?
- क्यों नहीं ऐसी फॉरमैट का प्रयोग किया जाय जो कि ओपेन सोर्स हो?
- क्या थोड़ी सी सुविधा के लिये अपने अधिकारों को सीमित करना ठीक होगा?
१९३० के दशक मे नीकोला बूरबाकी (Nicolas Bourbaki) के नाम से गणित पर बहुत सारी फ्रांसीसी किताबें आयीं। इन किताबों ने गणित को नयी दिशा दी। नीकोला बूरबाकी नाम का कोई भी व्यक्ति नहीं था। कुछ फ्रांसीसी गणितज्ञों ने मिल कर यह कार्य किया। किताबों मे लेखक का नाम देना जरूरी होता है चार्ल्स डेनिस बूरबाकी फ्रांसीसी सेना के एक प्रसिद्ध अधिकारी थे। फ्रांसीसी गणितज्ञों ने, बस उसी के नाम पर एक काल्पनिक नाम नीकोला बूरबाकी चुन लिया और लगे लिखने गणित पर किताबें। किताबें इतनी अच्छी थीं कि उसने गणित को नयी दिशा ही दे दी। न ही उसमे किसी ने अपने नाम के बारे मे सोचा, न ही किसी ने कॉपीराईट के बारे मे - गणित को आगे बढ़ाना ही उनका ध्येय था। बूरबाकी के बारे मे एक अच्छा लेख साईंटिफिक अमेरिकन के मई १९५७ के अंक मे छपा है। इस लेख को पौल हेलमौस ने लिखा है जो कि स्वयं एक जाने माने गणितज्ञ हैं। नीचे के दो स्केच साईंटिफिक अमेरिकन के सौजन्य से हैं और इस पत्रिका के इसी लेख के साथ मई १९५७ के अंक मे छपे थे। स्केच के नीचे जैसा साईंटिफिक अमेरिकन मे अंग्रेजी मे लिखा है वही यहां पर मैने लिख दिया है।
NICOLASA BOURBAKI is fancifully reprresented by this milling throng of French mathematicians. Bourbaki appears to consist of 10 to 20 men at any one time. Any resemblence between these men and the individuals in the drawing is entirely coincidental
GENERAL BOURBAKI, whose name was not Nicolas but Charles Denis Sauter, is depicted in this drawing based on an engraving. He was once offered the crown of Greece.
१९६० के दशक मे मैंने स्नातक कि कक्षा मे प्रवेश लिया। स्नातक कक्षा मे गणित भी मेरा एक विषय था। उस समय गणित के कुछ अध्यापकों और विद्यार्थियों ने इसी बूरबाकी से प्रेणना लेकर जीरो नाम का क्लब बनाया और कई कार्यकर्म किये और कुछ किताबें भी लिखीं।
शून्य ने मुझे कुछ इन्ही बातों की याद दिलायी जिसके कारण मैने इस वेब साईट को देखा। यह हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के चिठ्ठों को नयी दिशा देगी - इसी शुभकामना के साथ यह चिठ्ठी समाप्त करता हूं और ज्लदी ही फिर से बात करने उपस्थित होऊंगा।
१ मै नहीं जानता कि यह उच्चारण सही है कि नहीं क्या कोई इसकी पुष्टि करेगा
रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन-५
मैने इस विषय पर पहली पोस्ट पर चर्चा की थी कि मै कैसे फाइनमेन के संसार से आबरू हुआ| दूसरी पोस्ट पर फाइनमेन के बचपन के बारे मे चर्चा हुई थी| तीसरी पोस्ट पर युवा फाइनमेन के बारे मे जाना| चौथी पोस्ट पर उनके कौरनल और कैल-टेक मे बिताये समय के बारे मे चर्चा हुइ थी इस बार बात करेंगे उनके व्यक्तित्व और चैलेंजर दुर्घटना क्यों हुई के जांच कमीशन मे उनकी भूमिका के बारे मे|
फाइनमेन के लिये अंग्रेजी - बेकार, और दर्शन शास्त्र - तिरस्कृत विषय था| Religion से उनका कोई वास्ता नहीं था|चक्करों पर बात करना उनकी फिज़ा में नहीं था। वह हमेशा सीधी बात करते थे| उनका मतलब वही होता था जो वे कहते थे| वे इस बात से भ्रमित हो जाते थे यदि उनकी सीधी बात दूसरे को परेशान कर देती थी।
फाइनमेन को लोग अलग अलग तरह से याद रखते हैं - कुछ लोग
28 जनवरी 1986 में चैलेंजर स्पेसशिप का विस्फोट आकाश में हो गया था इसकी जांच करने के लिये एक कमीशन बैठा । फाइनमेन उसमें वैज्ञानिक की हैसियत से थे । यह विस्फोट, स्पेसशिप में कुछ घटिया किस्म का सामान लगाने के कारण हुआ था| नासा का प्रशासन (जिस पर सेना का जोर है) इसे दबाना चाहता था पर वैज्ञानिक इसे उजागर करना चाहते थे । कमीशन ने अपने निष्कर्ष को टीवी के सामने सीधे प्रसारण मे बताना शुरू किया (इसमें घटिया किस्म के सामान लगाने की बात स्पष्ट नहीं थी )| उस समय टीवी पर ही, सबके सामने फाइनमेन ने एकदम ठन्डे पानी के अन्दर घटिया सामान को डाल कर दिखाया कि वास्तव में विस्फोट क्यों हुआ था| यह सीधा प्रसारण था इसलिये फाइनमेन का प्रदर्शन रोका नहीं जा सका और यह दो मिनट की क्लिप कुछ घन्टो के अन्दर दुनिया की टीवी पर सबसे ज्यादा दिखायी जाने वाली न्यूस क्लिप बन गयी|
एक और किस्सा यह है|
फाइनमेन पैसाडीना में अक्सर वहीं के एक रेस्तराँ मे जाते थे, जहां पर टौपलेस परिवेषिकायें ( Waitress) रहती थीं| उस रेस्तराँ में वे उसके मालिक को भौतिक शास्त्र बताते थे और वह उन्हे चित्रकारी| एक बार पुलिस वालों को लगा कि उस रेस्तराँ में कुछ गड़बड़- सड़बड़ होता है और रेस्तराँ के मालिक पर अश्लीलता का मुकदमा चलाया। वास्तव में वहां पर इस तरह का कोई कार्य नहीं होता था। उस रेस्तराँ में कई प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे रेस्तराँ के मालिक ने उन सबसे गवाही देने की प्रार्थना की| सबने चुप्पे से कन्नी काट ली, पर फाइनमेन ने नहीं| उन्होंने रेस्तराँ मालिक के पक्ष में गवाही दी और अगले दिन अखबारों के पहले पन्ने पर सबसे मुख्य खबर के रूप में छपी ।
फाइनमेन की जीवन की घटनाओं के बारे में यदि कोई लिखने बैठे तो एक किताब भी पूरी न पड़े| शायद इसलिये फाइनमेन पर कई किताबें१ लिखी गयीं हैं|
Richard Feynman-A life in Science’ by John Gribbin & Mary Gribbin
1यह किताबें भी वैसे ही खरीदी जा सकती हैं जैसे कि मैने मार्टिन गार्डनर की पुस्तकें की पोस्ट पर बताया है|
फाइनमेन के लिये अंग्रेजी - बेकार, और दर्शन शास्त्र - तिरस्कृत विषय था| Religion से उनका कोई वास्ता नहीं था|चक्करों पर बात करना उनकी फिज़ा में नहीं था। वह हमेशा सीधी बात करते थे| उनका मतलब वही होता था जो वे कहते थे| वे इस बात से भ्रमित हो जाते थे यदि उनकी सीधी बात दूसरे को परेशान कर देती थी।
फाइनमेन को लोग अलग अलग तरह से याद रखते हैं - कुछ लोग
- उस लडके की तरह जो केवल सोच कर रेडियो ठीक करता था;
- उस वैज्ञानिक की तरह से जो भौतिक शास्त्र की गणना टौपलेस रेस्तराँ में करना पसन्द करता था;
- उस चंचल युवा के रूप में याद रखते हैं जो लौस एलमौस की लेबोरेटरी के तिजोरियों को खोल कर अलग अलग तरह के नोट लिखे कागज को रख कर, सेना के अधिकारियों को तंग करता था;
- कुछ उन्हें बोंगों बजाने वाले की तरह याद करते हैं;
28 जनवरी 1986 में चैलेंजर स्पेसशिप का विस्फोट आकाश में हो गया था इसकी जांच करने के लिये एक कमीशन बैठा । फाइनमेन उसमें वैज्ञानिक की हैसियत से थे । यह विस्फोट, स्पेसशिप में कुछ घटिया किस्म का सामान लगाने के कारण हुआ था| नासा का प्रशासन (जिस पर सेना का जोर है) इसे दबाना चाहता था पर वैज्ञानिक इसे उजागर करना चाहते थे । कमीशन ने अपने निष्कर्ष को टीवी के सामने सीधे प्रसारण मे बताना शुरू किया (इसमें घटिया किस्म के सामान लगाने की बात स्पष्ट नहीं थी )| उस समय टीवी पर ही, सबके सामने फाइनमेन ने एकदम ठन्डे पानी के अन्दर घटिया सामान को डाल कर दिखाया कि वास्तव में विस्फोट क्यों हुआ था| यह सीधा प्रसारण था इसलिये फाइनमेन का प्रदर्शन रोका नहीं जा सका और यह दो मिनट की क्लिप कुछ घन्टो के अन्दर दुनिया की टीवी पर सबसे ज्यादा दिखायी जाने वाली न्यूस क्लिप बन गयी|
एक और किस्सा यह है|
फाइनमेन पैसाडीना में अक्सर वहीं के एक रेस्तराँ मे जाते थे, जहां पर टौपलेस परिवेषिकायें ( Waitress) रहती थीं| उस रेस्तराँ में वे उसके मालिक को भौतिक शास्त्र बताते थे और वह उन्हे चित्रकारी| एक बार पुलिस वालों को लगा कि उस रेस्तराँ में कुछ गड़बड़- सड़बड़ होता है और रेस्तराँ के मालिक पर अश्लीलता का मुकदमा चलाया। वास्तव में वहां पर इस तरह का कोई कार्य नहीं होता था। उस रेस्तराँ में कई प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे रेस्तराँ के मालिक ने उन सबसे गवाही देने की प्रार्थना की| सबने चुप्पे से कन्नी काट ली, पर फाइनमेन ने नहीं| उन्होंने रेस्तराँ मालिक के पक्ष में गवाही दी और अगले दिन अखबारों के पहले पन्ने पर सबसे मुख्य खबर के रूप में छपी ।
Caltech's Feyhman tells lewd case jury, he watched the girls while doing his equations
फाइनमेन की जीवन की घटनाओं के बारे में यदि कोई लिखने बैठे तो एक किताब भी पूरी न पड़े| शायद इसलिये फाइनमेन पर कई किताबें१ लिखी गयीं हैं|
- Surely You’re Joking, Mr. Feynman! by Richard Feynman & Ralph Leighton
- What Do You Care What Other People Think? by Richard Feynman & Ralph Leighton
- Richard Feynman-A life in Science’ by John Gribbin & Mary Gribbin;
- Tuva or Bust! by Ralph Leighton
- No Ordinary Genius: The Illustrated Richard Feynman; edited by Christopher Sykes
- Most of the Good stuff; edited by Laurie Brown & John Rigden
- Genius: Richard Feynman and Modern Physics by James Gleik
- The Beat of The Different Drum; by Jagdish Mehra
Richard Feynman-A life in Science’ by John Gribbin & Mary Gribbin
1यह किताबें भी वैसे ही खरीदी जा सकती हैं जैसे कि मैने मार्टिन गार्डनर की पुस्तकें की पोस्ट पर बताया है|
२ की पावर और कंप्यूटर विज्ञान और श्रृंखला का निष्कर्ष: नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू
इस विषय की पहली पोस्ट पर हम लोगों ने इस पर चर्चा करने का क्रम तय किया था और दूसरी पोस्ट पर मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के अलावा पहेलियों कि अन्य अच्छी पुस्तकों के बारे मे बात की। तीसरी पोस्ट पर शतरंज के जादू के बारे मे बात चीत की। चौथी पोस्ट पर सृष्टि के अन्त की चर्चा की। पांचवीं पोस्ट पर इस पहेली के अन्य रूपों की। इस बार इन दोनो के सम्बन्धों के बारे मे तथा इनके हल का कमप्यूटर विज्ञान से सम्बन्ध।
क्या आपने नारद जी की छड़ी की पहेली के जवाब पर गौर किया। नारद जी की छड़ जितने दिन रुकना चाहेंगे उतनी लम्बी छड़ होगी पर टुकड़े हमेशा १, २, ४, ८, १६ ..... के होंगे। यदि इसे लड्डू के रूपमे देखें तो डिब्बों मे लड्डू हमेशा १, २, ४, ८, १६, .... के नम्बर से रखने होंगे। यह सब नम्बर दो को दो से एक बार या दो से कई बार गुणा करके मिले हैं या यह कह लीजये कि ये दो की पावर (power) हैं। शतरंज के खानो मे गेहूँ के दाने भी इसी नम्बर मे रखे जाने हैं। सृष्टि का अन्त मे छड़ों के बदलाव की संख्या का भी सम्बन्ध २ की पावर से है।
नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू एक दूसरे के अलग अलग रूप हैं नारद जी की छड़ी जोड़ से शुरू होकर उसके टुकड़ों तक जाती है तो शतरंज का जादू टुकड़ों से शुरू होकर उसके जोड़ तक जाता है। यानि कि नारद जी की छड़ी कि पहेली का अन्त शतरंज के जादू की शुरुवात है और शतरंज का जादू का अन्त नारद जी की छड़ी की शुरुवात है: यह पहेलियां एक दूसरे विलोम रूप है।
अब कुछ शब्द इसके हमारे साथ के सम्बन्ध से, हालांकि इसकी वृस्तित चर्चा कभी और - शायद 'गणित, चिप और कमप्यूटर विज्ञान सिरीस' मे - यहां केवल भूमिका।
इस विषय पर चर्चा शुरू करने से पहले मैने कहा था कि इस पहेली का सम्बन्ध उससे भी है जिससे हम सब जुड़े हैं। जी हां, इन नम्बरों का बहुत गहरा सम्बन्ध कमप्युटरों से है आप देखें तो पायेंगे कि इन नम्बरों मे दो खास बातें हैं। यह वह नम्बर हैं,
- जिसकी दूरी पर नारद जी की छड़ को काटने पर सबसे कम बार काटा जायेगा; या
- यह वह नम्बर है जिसमे लड्डुवों को डिब्बों मे रखने पर सबसे कम डिब्बों की जरूरत होगी;
- और
- जिनकी सहायता से हम हर दिन को अलग अलग छड़ से मिला कर निश्चित रूप से चिन्हित कर सकते हैं। या
- जिनकी सहायता से जो भक्त जितने लड्डू चाहे उसे अलग अलग डिब्बों मे रख कर दे सकते हैं।
- किसी कार्य को कितने कम से कम steps मे किया जा सकता है; और
- हम analog से digital पर कैसे पहुंचे। यह तभी हो सकता है जब हम किसी भी चीज को नम्बरों के द्वारा निश्चित रूप चिन्हित कर सकते हैं। यह यदि आप नारद जी की छड़ी के हल पर गौर करें तो उससे हो सकता है।
हमारा जीवन, हमारी गणित, डेसीमल सिस्टम पर आधारित है, यानि कि १० नम्बरों से (०, १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, और ९) बाकी सारे नम्बर लिखे जा सकते हैं। बाइनरी सिस्टम दो नम्बर पर आधारित होता है इसमे दो नम्बर ० और १ हैं इसी से बाकी नम्बर लिखे जाते हैं कम्प्यूटर विज्ञान बाइनरी सिस्टम पर आधारित है तथा १, २, ४, ८, १६ .... नम्बर इन दोनो सिस्टम को आपस मे जोड़ते हैं। यह नम्बर (१, २, ४, ८, १६ ....) हमारी दुनिया को डिजिटल-दुनिया से, कम्प्यूटर की दुनिया से, जोड़ते हैं।
विज्ञान के हर क्षेत्र के विषेशज्ञों का योगदान, कमप्यूटर विज्ञान मे है पर सबसे बड़ा योगदान गणितज्ञों का है। कम्प्यूटर विज्ञान अपने पठार पर पहुंच रहा है और इसका ज्यादा विस्तार applications मे हो रहा है। पर क्या कम्प्यूटर विज्ञान का विस्तार यहीं समाप्त हो जायगा और केवल applications मे सीमित हो जायेगा। या फिर इसमे भी कोई क्रान्ति (quantm jump) आयेगी। यदि आयेगी तो किस तरफ से आने की सम्भावना सबसे अधिक है? जाहिर है यह गणित के की तरफ से आयेगी। गणितज्ञों का योगदान कमप्यूटर विज्ञान मे किस तरह से और कैसे है और गणित के किस क्षेत्र से कमप्यूटर विज्ञान मे क्रान्ति (quantum jump) आने की सम्भावना सबसे अधिक है। इसकी चर्चा हम 'गणित, चिप, और कम्प्यूटर विज्ञान' नामक सिरीस मे करेंगे। मेरे विचारसे यह क्रान्ति गणित के निम्न दो क्षेत्रों से आयेगी
- Artificial Intelligence
- Knot theory/ topology
कम्प्यूटर विज्ञान मे क्रान्ति गणित के किसी भी क्षेत्र से आये, पहेलियां उसका हमेशा से उसका हिस्सा रहेंगी। इसलिये बहुत सारी कमप्यूटर फर्म नौकरी देने से पहले पहेलियों कि भी परीक्षा लेती हैं। गूगल ने तो कुछ समय पहले अमेरिका की सड़कों पर, सार्वजनिक रूप से पहेली बूझ कर, नौकरी दी। उसका किस्सा तो आपको मालुम ही होगा। क्या, नहीं मालुम! चलिये कभी उसके बारे मे भी बात करेंगे।
क्या हम मे से कोई चिठ्ठेकार बन्धु है जिसने,
- गूगल मे नौकरी पाने के लिये इस पहेली का हल निकाला हो; या
- हल निकालने की कोशिश की हो; या
- गूगल के द्वारा इस पहेली के बूझने मे कोई काम किया हो; या
- इस पहेली को स्वयं देखा हो।
लेकिन इसी बीच अपने पहेली बाज को मत भूलिये - पहेलियां, मुन्ने और मुन्नी के साथ सुलझाते जाईये। क्या मालुम उन्ही से मे कोई एक दिन कम्प्यूटर विज्ञान मे क्रान्ति ले आये
नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू
भूमिका।। बचपन की यादों में गुणाकर मुले।। शतरंज का जादू।। सृष्टि का अन्त।। २ की पावर और कंप्यूटर विज्ञान और श्रृंखला का निष्कर्ष।।
अनुगूँज 20: नेतागिरी, राजनीति और नेता
अनुगूंज पर इस बार का विषय है - नेतागिरी, राजनीति और नेता| इस बारे मे मेरे कोई विचार नहीं हैं न ही मै कुछ कह सकता हूं| मेरे जैसे कई और लोग हैं| शायद उन्ही का बहुमत है, इसीलिये पिछ्ले साल, टाईम्स औफ इंडिया मे, अलग-अलग दिन उत्तर प्रदेश के विधान सभा के एक सदस्य के बारे मे यह खबरें पढ़ने को मिली|
- दिन्नांक: ०५.४.२००५ - Will a criminal continue as an MLA?
- दिन्नांक: ०७.४.२००५ - Udai of an intriguing question
- दिन्नांक: ०५.५.२००५ - It's end of the road for convited MLA
- दिन्नांक: २९.५.२००५ – Decision on Udai Bhan expected on Monday
यह विधान सभा के सदस्य, एक पार्टी से चुनाव जीत कर आये थे और फिर दल बदल कर सत्तारूढ़ पार्टी मे जा मिले| इन्हे दो खून करने के कारण सेशन कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनायी| उसके बाद इनकी अपील उच्च न्यायालय से खारिज हो गयी| उसके पश्चात महामहिम ने इन्हे पेरोल पर छोड़ दिया| जिसके परिवार मे खून हुआ था, उसने उच्च न्यायालय मे अपनी गुहार लगायी| इस पर उच्च न्यायालय ने विधान सभा के सदस्य की पेरोल खारिज कर दी और एलेक्शन कमीशन से इनकी सदस्यता समाप्त करने को कहा, जिस पर यह सारा हंगामा हुआ| उच्च न्यायालय का आदेश, अंतरिम आदेश लगता है1 और WP 11529 of 2005 Sarvesh Narain Shukla Vs. State Of U.P. Thru' Principal Secy. & Others कि याचिका मे दिया गया है| यह आज्ञा यहां पर है|
नेतागिरी, राजनीति और नेता ऐसे लोगों तक सीमित नहीं रहनी चाहिये| यदि हमारा बहुमत इस तरह के विषय मे रुचि रखे तो इस तरह के लोग न ही चुनाव जीत पायेंगे और न ही 'नेतागिरी, राजनीति और नेता' ऐसे लोगों तक सीमित रहेगी|
मै तरुन जी का आभार प्रगट करता हूं कि उन्होने हम लोगों का ध्यान इस तरफ खींचा| मै आगे से ऐसे विषय पर हमेशा रुचि रखूंगा और वोट देने अवश्य जाऊंगा|
1मै जब इस आदेश को ढ़ूढने इलाहाबाद उच्च न्यायालय कि वेब साईट पर गया तो पाया कि,
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय न्यायिक एवं प्रशाशनिक निर्णय RSS feed पर उपलब्ध हैं;
- यह न केवल न्यायालय मे लगे हुऐ मुकदमो कि सूची इन्टरनेट पर उपलब्ध कराती है पर webdiary के द्वारा उस दिन न्यायालय मे क्या हुआ इसका ब्यौरा भी उपलब्ध कराती है
रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन-४
मैने इस विषय पर पहली पोस्ट पर चर्चा की थी कि मै कैसे फाइनमेन के संसार से आबरू हुआ| दूसरी पोस्ट पर फाइनमेन के बचपन के बारे मे चर्चा हुई थी| तीसरी पोस्ट पर युवा फाइनमेन के बारे मे जाना| इस बार उनके कौरनल और कैल-टेक मे बिताये समय के बारे मे बात करेंगे|
मैंने पहले ही बताया था कि फाइनमेन को नोबेल पुरूस्कार 1966 में मिला| पर यह भी रोचक है कि इस पर काम करने का आइडिया उन्हें कैसे आया|
दूसरे महायुद्ध के दौरान लौस एलमौस लेबोरेटरी में फाइनमेन की मित्रता बेथ से हुई जिनसे उनकी काफी पटती थी| बेथ कौरनल में थे, इसलिये फाइनमेन भी कौरनल चले गये| एक दिन वे कौरनल के अल्पाहार गृह में बैठे थे| वहां एक विद्यार्थी ने एक प्लेट को फेंका| प्लेट सफेद रंग की थी और उसमें बीच में कौरनल का लाल रंग का चिन्ह था| प्लेट डगमगा भी रही थी और घूम भी रही थी| यह अजीब नज़ारा था| फाइनमेन इसके डगमगाने और घूमने और के बीच में सम्बन्ध ढ़ूढ़ने लगे| इसमे काफी मुश्किल गणित के समीकरण लगते थे| इसमे उनका बहुत समय लगा। उन्होंने पाया कि दोनो मे 2:1 का सम्बन्ध है। उनके साथियों ने उनसे कहा कि वह इसमे समय क्यों बेकार कर रहे हैं| उनका जवाब था, 'इसका कोई महत्व नहीं है यह सब वे मौज मस्ती के लिये कररहे हैं| पर वह इसके महत्व के बारे मे ठीक नहीं थे| वे जब एलेक्ट्रौन के घूमने के बारे में शोध करने लगे तो उन्हें कौरनल की डगमगाति और घूमती प्लेट में लगी गणित फिर से याद आने लगी और इसने उस सिद्धान्त को जन्म दिया जिसके कारण उन्हें नोबेल पुरूस्कार मिला| सच है जीवन में बहुत कुछ वह भी आवश्यक है जो केवल मौज मस्ती के लिये हो, चाहे उसका कोई और महत्व हो या न हो - मौज मस्ती ही अपने आप मे एक महत्व की बात है| यदि आप मौज मस्ती में ही अपनी जीविका ढ़ूढ सके तो क्या बात है, यदि यह नहीं हो सकता तो शायद जीविका में ही मौज मस्ती ढ़ूढ पाना दूसरी अच्छी बात है ।
फाइनमेन, न ही एक महान वैज्ञानिक थे पर एक महान अध्यापक भी थे| उन्हे मालुम था कि अपनी बात दूसरे तक कैसे पहुंचायी जाय| व्याख्यानशाला उनके लिये रंगशाला थी जिसमें नाटक भी था और आतिशबाजी भी|
फाइनमेन के द्वारा भौतिक शास्त्र पर कैल-टेक के लेक्चरों का जिक्र मैने इस विषय कि पहली पोस्ट पर किया था| इन लेक्चरों को उन्होने सितम्बर 1961-मई 1963 मे दिया था| यह लेक्चर खास थे इसलिये इन्हें हमेशा के लिये सुरक्षित रखा गया और बाद मे ये तीन लाल किताबों के रूप में छापे गये| फाइनमेन सप्ताह में केवल दो लेक्चर देते थे बाकी समय वह इन लेक्चरों को तैयार करने में लगाते थे| लेक्चचर की हर लाइन, हर मजाक को (जो वह लेक्चरों के दौरान करते थे) पहले से सोच विचार कर रखते थे| कभी भी उनके साथ लेक्चर के नोटस नहीं होते थे| बस केवल एक छोटा सा कागज रहता था जिसमें कुछ खास शब्द केवल यह संकेत देने के लिये कि आगे क्या बताना है| यह तीन साल संसार के लेक्चर किसी भी विश्वविद्यालय के किसी भी विषय पर के लेक्चरों मे अद्वितीय हैं| न कभी ऐसे हुये न शायद फिर कभी होंगे| क्योंकि मालुम नहीं कि फिर कभी ऐसा व्यक्ति आयेगा कि नहीं|
अगली बार हम लोग उनके व्यक्तित्व और उनके जीवन की कुछ और घटनाओं का जिक्र करेंगे|
मैंने पहले ही बताया था कि फाइनमेन को नोबेल पुरूस्कार 1966 में मिला| पर यह भी रोचक है कि इस पर काम करने का आइडिया उन्हें कैसे आया|
दूसरे महायुद्ध के दौरान लौस एलमौस लेबोरेटरी में फाइनमेन की मित्रता बेथ से हुई जिनसे उनकी काफी पटती थी| बेथ कौरनल में थे, इसलिये फाइनमेन भी कौरनल चले गये| एक दिन वे कौरनल के अल्पाहार गृह में बैठे थे| वहां एक विद्यार्थी ने एक प्लेट को फेंका| प्लेट सफेद रंग की थी और उसमें बीच में कौरनल का लाल रंग का चिन्ह था| प्लेट डगमगा भी रही थी और घूम भी रही थी| यह अजीब नज़ारा था| फाइनमेन इसके डगमगाने और घूमने और के बीच में सम्बन्ध ढ़ूढ़ने लगे| इसमे काफी मुश्किल गणित के समीकरण लगते थे| इसमे उनका बहुत समय लगा। उन्होंने पाया कि दोनो मे 2:1 का सम्बन्ध है। उनके साथियों ने उनसे कहा कि वह इसमे समय क्यों बेकार कर रहे हैं| उनका जवाब था, 'इसका कोई महत्व नहीं है यह सब वे मौज मस्ती के लिये कररहे हैं| पर वह इसके महत्व के बारे मे ठीक नहीं थे| वे जब एलेक्ट्रौन के घूमने के बारे में शोध करने लगे तो उन्हें कौरनल की डगमगाति और घूमती प्लेट में लगी गणित फिर से याद आने लगी और इसने उस सिद्धान्त को जन्म दिया जिसके कारण उन्हें नोबेल पुरूस्कार मिला| सच है जीवन में बहुत कुछ वह भी आवश्यक है जो केवल मौज मस्ती के लिये हो, चाहे उसका कोई और महत्व हो या न हो - मौज मस्ती ही अपने आप मे एक महत्व की बात है| यदि आप मौज मस्ती में ही अपनी जीविका ढ़ूढ सके तो क्या बात है, यदि यह नहीं हो सकता तो शायद जीविका में ही मौज मस्ती ढ़ूढ पाना दूसरी अच्छी बात है ।
फाइनमेन, न ही एक महान वैज्ञानिक थे पर एक महान अध्यापक भी थे| उन्हे मालुम था कि अपनी बात दूसरे तक कैसे पहुंचायी जाय| व्याख्यानशाला उनके लिये रंगशाला थी जिसमें नाटक भी था और आतिशबाजी भी|
फाइनमेन के द्वारा भौतिक शास्त्र पर कैल-टेक के लेक्चरों का जिक्र मैने इस विषय कि पहली पोस्ट पर किया था| इन लेक्चरों को उन्होने सितम्बर 1961-मई 1963 मे दिया था| यह लेक्चर खास थे इसलिये इन्हें हमेशा के लिये सुरक्षित रखा गया और बाद मे ये तीन लाल किताबों के रूप में छापे गये| फाइनमेन सप्ताह में केवल दो लेक्चर देते थे बाकी समय वह इन लेक्चरों को तैयार करने में लगाते थे| लेक्चचर की हर लाइन, हर मजाक को (जो वह लेक्चरों के दौरान करते थे) पहले से सोच विचार कर रखते थे| कभी भी उनके साथ लेक्चर के नोटस नहीं होते थे| बस केवल एक छोटा सा कागज रहता था जिसमें कुछ खास शब्द केवल यह संकेत देने के लिये कि आगे क्या बताना है| यह तीन साल संसार के लेक्चर किसी भी विश्वविद्यालय के किसी भी विषय पर के लेक्चरों मे अद्वितीय हैं| न कभी ऐसे हुये न शायद फिर कभी होंगे| क्योंकि मालुम नहीं कि फिर कभी ऐसा व्यक्ति आयेगा कि नहीं|
अगली बार हम लोग उनके व्यक्तित्व और उनके जीवन की कुछ और घटनाओं का जिक्र करेंगे|
नारद जी भक्तों को लड्डू कैसे बांटें: नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू
इस विषय की पहली पोस्ट पर हम लोगों ने इस पर चर्चा करने का क्रम तय किया था और दूसरी पोस्ट पर मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के अलावा पहेलियों कि अन्य अच्छी पुस्तकों के बारे मे बात की। तीसरी पोस्ट पर शतरंज के जादू के बारे मे बात चीत की। चौथी पोस्ट पर सृष्टि के अन्त की चर्चा की। इस बार नारद जी की छड़ी पहेली के अन्य रूप।
नारद जी की छड़ी पहेली के कई स्तर हैं और कई रूप। पहेली बाज जी ने इसको अपने चिठ्ठे पर छड़ी के रूप मे निम्न तरह से पूछा,
इसका सही जवाब है १, २ और ४ इन्च के टुकड़े करने होंगे और सही जवाब दिया था मिश्र जी ने। लेकिन इससे वह हर दिन का किराया कैसे चुका सकेंगे? यह जानने के लिये आप यहां देख सकते हैं।
इस पहेली के कुछ कठिन रूप है के बारे मे बात करने से पहले इसका एक दूसरा रूप देखें।
नारद जी को अपने भक्तों को लड्डू बांटने हैं नारद जी थोड़े से नये युग के हो गये हैं वे लड्डू डिब्बे मे रख कर देना चाहते हैं। समय न बर्बाद हो इसलिये पहले से पैक करके रखना है वे अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते जिसने जितने मांगे उतने दे दिये उनके पास ७ लड्डू हैं। डिब्बों की कमी है इसलिये कम से कम डिब्बों का प्रयोग करना है। हर एक डिब्बे मे कितने लड्डू पैक किये जांये कि यदि उनसे कोई १ से ७ तक जितने भी लड्डू मांगे, वे दे सकें।
इसका जवाब है कि उन्हे ३ डिब्बे चाहिये और पहले मे १, दूसरे २, और तीसरे मे ४ लड्डू रखने होंगे।
चलिये अब इसके दूसरे स्तर पर चले - लड्डूवों कि संख्या बढ़ा देते हैं। मान लिया जाय कि १०२३ लड्डू हों तो हर डिब्बे मे कितने लड्डू रखे जायेंगे। इसका जवाब है १० डिब्बे और उनमे लड्डू निम्न क्रम मे रखें जायेंगे,
१, २, ४, ८, १६, ३२, ६४, १२८, २५६, ५१२
यदि १००० लड्डू होते तो पहले ९ डिब्बे मे तो उतने ही पर आखरी डिब्बे मे ५१२-२३=४८९ लड्डू रखने होंगे। यदि नारद जी के पास ५१२ से १०२३ तक लड्डू हों तो उन्हे हमेशा १० डिब्बों की जरूरत होगी। पहले ९ डिब्बों मे उतने ही जिनका योग है ५११ और दसवें मे बाकी सारे।
चलिये थोड़ा और ऊपर चले। यदि उनके पास अनगिनत लड्डू हों तो वह डिब्बों मे किस तरह से रखें। जवाब सरल है उनको निम्न क्रम मे रखें:
१, २, ४, ८, १६, ३२, ६४, १२८, २५६, ५१२, १०२४, २०४८, .....
यानि कि उन्हे २ की पावर मे रखें।
इस पहेली का एक इससे भी कठिन स्तर है पर उसकी यहां जरूरत नहीं है इस लिये छोड़ देता हूं। यदि वह आप चाहेंगे तो वह फिर कभी। अगली बार इस पहेली के हल का शतरंज के जादू से रिश्ता और इनके हल का कमप्यूटर विज्ञान से सम्बन्ध।
नारद जी की छड़ी पहेली के कई स्तर हैं और कई रूप। पहेली बाज जी ने इसको अपने चिठ्ठे पर छड़ी के रूप मे निम्न तरह से पूछा,
'तो हुआ ऐसा कि अपने नारद जी एक बार अपनी ७ इन्च लम्बी सोने की छड़ी लेकर धरती पर भ्रमण को आए। अब उन्हें सारे चिट्ठों की जानकारी वाले सजाल बनाने में सप्ताह भर का समय लगना था। तो वे एक होटल में एक कक्ष लेने का विचार बना कर वहाँ पहुँच गए। अब इनके पास कोई धनराशि तो थी नहीं , पर सात दिन के किराए के रूप में होटल के मैनेजर ने नारद जी से ७ (सात) इन्च लम्बी सोने की छड़ी लेना स्वीकार कर लिया। पर मैनेजर ने हर रोज का किराया उसी दिन लेना चाहा। तो इस बार की पहेली यह है कि नारद जी को कम से कम छड़ी के कितने टुकड़े करने होंगे, ताकि वो होटल का किराया चुका सकें? और उन टुकड़ों की लम्बाई क्या होगी?'
इसका सही जवाब है १, २ और ४ इन्च के टुकड़े करने होंगे और सही जवाब दिया था मिश्र जी ने। लेकिन इससे वह हर दिन का किराया कैसे चुका सकेंगे? यह जानने के लिये आप यहां देख सकते हैं।
इस पहेली के कुछ कठिन रूप है के बारे मे बात करने से पहले इसका एक दूसरा रूप देखें।
नारद जी को अपने भक्तों को लड्डू बांटने हैं नारद जी थोड़े से नये युग के हो गये हैं वे लड्डू डिब्बे मे रख कर देना चाहते हैं। समय न बर्बाद हो इसलिये पहले से पैक करके रखना है वे अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते जिसने जितने मांगे उतने दे दिये उनके पास ७ लड्डू हैं। डिब्बों की कमी है इसलिये कम से कम डिब्बों का प्रयोग करना है। हर एक डिब्बे मे कितने लड्डू पैक किये जांये कि यदि उनसे कोई १ से ७ तक जितने भी लड्डू मांगे, वे दे सकें।
इसका जवाब है कि उन्हे ३ डिब्बे चाहिये और पहले मे १, दूसरे २, और तीसरे मे ४ लड्डू रखने होंगे।
चलिये अब इसके दूसरे स्तर पर चले - लड्डूवों कि संख्या बढ़ा देते हैं। मान लिया जाय कि १०२३ लड्डू हों तो हर डिब्बे मे कितने लड्डू रखे जायेंगे। इसका जवाब है १० डिब्बे और उनमे लड्डू निम्न क्रम मे रखें जायेंगे,
१, २, ४, ८, १६, ३२, ६४, १२८, २५६, ५१२
यदि १००० लड्डू होते तो पहले ९ डिब्बे मे तो उतने ही पर आखरी डिब्बे मे ५१२-२३=४८९ लड्डू रखने होंगे। यदि नारद जी के पास ५१२ से १०२३ तक लड्डू हों तो उन्हे हमेशा १० डिब्बों की जरूरत होगी। पहले ९ डिब्बों मे उतने ही जिनका योग है ५११ और दसवें मे बाकी सारे।
चलिये थोड़ा और ऊपर चले। यदि उनके पास अनगिनत लड्डू हों तो वह डिब्बों मे किस तरह से रखें। जवाब सरल है उनको निम्न क्रम मे रखें:
१, २, ४, ८, १६, ३२, ६४, १२८, २५६, ५१२, १०२४, २०४८, .....
यानि कि उन्हे २ की पावर मे रखें।
इस पहेली का एक इससे भी कठिन स्तर है पर उसकी यहां जरूरत नहीं है इस लिये छोड़ देता हूं। यदि वह आप चाहेंगे तो वह फिर कभी। अगली बार इस पहेली के हल का शतरंज के जादू से रिश्ता और इनके हल का कमप्यूटर विज्ञान से सम्बन्ध।
नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू
रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन-३
मैने इस विषय पर पहली पोस्ट पर चर्चा की थी कि मै कैसे फाइनमेन के संसार से आबरू हुआ| दूसरी पोस्ट पर फाइनमेन के बचपन के बारे मे चर्चा हुई थी इस बार कुछ युवा फाइनमेन के बारे मे|
फाइनमेन ने स्नातक की शिक्षा मैसाचुसेट इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलोजी से पूरी की| वह वहीं पर शोध कार्य करना चाहते थे पर फिर प्रिंक्सटन मे शोध कार्य करने के लिये चले गये। बाद में वे कहा करते थे,
यहां पर युवा फाइनमेन को व्हीलर के साथ शोध करने का मौका मिला| उस समय तक व्हीलर को नोबेल पुरूस्कार तो नहीं मिला था पर वे वह काम कर चुके थे जिस पर उन्हे बाद मे नोबेल पुरूस्कार मिला| वे कुछ आडम्बर प्रिय थे कुछ अपनी अहमियत भी जताते थे । उन्होंने फाइनमेन को सप्ताह में एक दिन का कुछ निश्चित समय मिलने का दिया । पहले दिन मुलाकात के समय वह सूट पहने थे उन्होंने अपनी जेब से अपनी सोने की विराम घडी निकाल कर मेज पर रख दी ताकि फाइनमेन को पता चल सके कि कब उसका समय समाप्त हो गया है| फाइनमेन उस समय विद्यार्थी थे| उन्होंने एक बाजार से एक सस्ती विराम घड़ी खरीदी क्योंकि मंहगी घड़ी खरीदने के लिये उनके पास पैसे नहीं थे| अगली मीटिंग पर उन्होंने अपनी सस्ती घड़ी उस सोने की घड़ी के पास रख दी| व्हीलर को भी पता चलना चाहिये कि उनका समय भी महत्वपूर्ण है। व्हीलर को मजाक समझ में आया और दोनो दिल खोल कर हंसे| दोनों ने घड़ियां हटा ली| उनका रिश्ता औपचारिक नहीं रहा, वे मित्र बन गये, उनकी बातें हंसी मजाक में बदल गयीं, और हंसी-मजाक नये मौलिक विचारों मे|
इसी बीच दूसरा महायुद्ध शुरू हो गया| जर्मनी मे परमाणु बम बनाने का काम हो रहा था, यदि पहले वहां बन जाता तो हिटलर अजेय था| अमेरिका की लौस एलमौस लेबौरेटरी मे दुनिया के वैज्ञानिक इक्कठा होकर परमाणु बम बनाने के लिये एकजुट हो गये| फाइनमेन को भी वहां बुलाया गया और उन्होने वहां काम किया|
लौस एलमौस मे सुरक्षा का जिम्मा सेना का था जिनके अपने नियम अपने कानून थे| यह नियम फाइनमेन को अक्सर समझ मे नहीं आते थे| फाइनमेन ताले खोलने मे माहिर थे| वे सेना के अधिकारियों को तंग करने के लिये की लेबोरेटरी की तिजोरियों खोल कर उसमे कागज पर guess who लिख कर छोड़ देते थे पर तिजोरियों से कुछ निकालते नहीं थे यह वह केवल, सेना के अधिकारियों को बताने के लिये करते थे कि उनकी सुरक्षा प्राणाली कितनी गलत है|
उनके जीवन का एक और दृष्टान्त - बिल्कुल असम्भव सा लगता है, मै तो हमेशा सोचता था कि यह सब कहानियों या पिक्चरों में होता है इस वास्तविक दुनियां में नहीं|
स्कूल के दिनों में फाइनमेन का अपनी सहपाठिनी अरलीन से प्रेम हो गया। उन्होने शादी तब करने की सोची जब फाइनमेन को कोई नौकरी मिल जाय। जब फाइनमेन शोध कार्य कर रहे थे तब अरलीन को टी.बी. हो गयी उसके पास केवल चन्द सालों का समय था| उन दिनों टी.बी. का कोई इलाज नहीं था| अरलीन को टी.बी. हो जाने के कारण, फाइनमेन उसे चूम भी नहीं सकते थे| उन्हे मालुम था कि अरलीन के साथ उसके सम्बन्ध केवल Platonic ही रहेगें| इन सब के बावजूद, फाइनमेन अरलीन से शादी करना चाहते थे पर उनके परिवार वाले और मित्र इस शादी के खिलाफ थे| इस बारे मे उनकी अपने पिता से अनबन भी हो गयी| फिर भी फाइनमेन ने अरलीन के साथ शादी कर ली|
फाइनमेन, जब लौस एलमौस में काम कर रहे थे तो वहां के निदेशक रौबर्ट ओपेन्हाईमर1 ने अरलीन को पास ही के सैनीटेरियम में भरती करवा दिया ताकि फाइनमेन उससे मिल सके| फाइनमेन के लौस एलमौस रहने के दौरान ही अरलीन की मृत्यु हो गयी । इस घटना चक्र पर एक पिक्चर भी बनी है जिसका नाम इंफिनिटी (Infinity) है इसे मैथयू बौरडविक (Malthew Bordevick) ने इसे निर्देशित किया है।
फाइनमेन जीवन्त थे और अक्सर मौज मस्ती के लिये काम करते थे| मौज मस्ती मे ही उन्होने उस विषय पर काम किया जिस पर उन्हे नोबेल पुरुस्कार मिला| वह क्या था, यह जानेगे, अगली बार|
1मै, आगे कभी, रौबर्ट ओपेनहाईमर के बारे मे भी बात करना चाहूंगा|
फाइनमेन ने स्नातक की शिक्षा मैसाचुसेट इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलोजी से पूरी की| वह वहीं पर शोध कार्य करना चाहते थे पर फिर प्रिंक्सटन मे शोध कार्य करने के लिये चले गये। बाद में वे कहा करते थे,
'यह ठीक ही था| मैने वहां जाना कि दुनिया बहुत बड़ी है और काम करने के लिये बहुत सी अच्छी जगहें हैं|'
यहां पर युवा फाइनमेन को व्हीलर के साथ शोध करने का मौका मिला| उस समय तक व्हीलर को नोबेल पुरूस्कार तो नहीं मिला था पर वे वह काम कर चुके थे जिस पर उन्हे बाद मे नोबेल पुरूस्कार मिला| वे कुछ आडम्बर प्रिय थे कुछ अपनी अहमियत भी जताते थे । उन्होंने फाइनमेन को सप्ताह में एक दिन का कुछ निश्चित समय मिलने का दिया । पहले दिन मुलाकात के समय वह सूट पहने थे उन्होंने अपनी जेब से अपनी सोने की विराम घडी निकाल कर मेज पर रख दी ताकि फाइनमेन को पता चल सके कि कब उसका समय समाप्त हो गया है| फाइनमेन उस समय विद्यार्थी थे| उन्होंने एक बाजार से एक सस्ती विराम घड़ी खरीदी क्योंकि मंहगी घड़ी खरीदने के लिये उनके पास पैसे नहीं थे| अगली मीटिंग पर उन्होंने अपनी सस्ती घड़ी उस सोने की घड़ी के पास रख दी| व्हीलर को भी पता चलना चाहिये कि उनका समय भी महत्वपूर्ण है। व्हीलर को मजाक समझ में आया और दोनो दिल खोल कर हंसे| दोनों ने घड़ियां हटा ली| उनका रिश्ता औपचारिक नहीं रहा, वे मित्र बन गये, उनकी बातें हंसी मजाक में बदल गयीं, और हंसी-मजाक नये मौलिक विचारों मे|
इसी बीच दूसरा महायुद्ध शुरू हो गया| जर्मनी मे परमाणु बम बनाने का काम हो रहा था, यदि पहले वहां बन जाता तो हिटलर अजेय था| अमेरिका की लौस एलमौस लेबौरेटरी मे दुनिया के वैज्ञानिक इक्कठा होकर परमाणु बम बनाने के लिये एकजुट हो गये| फाइनमेन को भी वहां बुलाया गया और उन्होने वहां काम किया|
लौस एलमौस मे सुरक्षा का जिम्मा सेना का था जिनके अपने नियम अपने कानून थे| यह नियम फाइनमेन को अक्सर समझ मे नहीं आते थे| फाइनमेन ताले खोलने मे माहिर थे| वे सेना के अधिकारियों को तंग करने के लिये की लेबोरेटरी की तिजोरियों खोल कर उसमे कागज पर guess who लिख कर छोड़ देते थे पर तिजोरियों से कुछ निकालते नहीं थे यह वह केवल, सेना के अधिकारियों को बताने के लिये करते थे कि उनकी सुरक्षा प्राणाली कितनी गलत है|
उनके जीवन का एक और दृष्टान्त - बिल्कुल असम्भव सा लगता है, मै तो हमेशा सोचता था कि यह सब कहानियों या पिक्चरों में होता है इस वास्तविक दुनियां में नहीं|
स्कूल के दिनों में फाइनमेन का अपनी सहपाठिनी अरलीन से प्रेम हो गया। उन्होने शादी तब करने की सोची जब फाइनमेन को कोई नौकरी मिल जाय। जब फाइनमेन शोध कार्य कर रहे थे तब अरलीन को टी.बी. हो गयी उसके पास केवल चन्द सालों का समय था| उन दिनों टी.बी. का कोई इलाज नहीं था| अरलीन को टी.बी. हो जाने के कारण, फाइनमेन उसे चूम भी नहीं सकते थे| उन्हे मालुम था कि अरलीन के साथ उसके सम्बन्ध केवल Platonic ही रहेगें| इन सब के बावजूद, फाइनमेन अरलीन से शादी करना चाहते थे पर उनके परिवार वाले और मित्र इस शादी के खिलाफ थे| इस बारे मे उनकी अपने पिता से अनबन भी हो गयी| फिर भी फाइनमेन ने अरलीन के साथ शादी कर ली|
फाइनमेन, जब लौस एलमौस में काम कर रहे थे तो वहां के निदेशक रौबर्ट ओपेन्हाईमर1 ने अरलीन को पास ही के सैनीटेरियम में भरती करवा दिया ताकि फाइनमेन उससे मिल सके| फाइनमेन के लौस एलमौस रहने के दौरान ही अरलीन की मृत्यु हो गयी । इस घटना चक्र पर एक पिक्चर भी बनी है जिसका नाम इंफिनिटी (Infinity) है इसे मैथयू बौरडविक (Malthew Bordevick) ने इसे निर्देशित किया है।
फाइनमेन जीवन्त थे और अक्सर मौज मस्ती के लिये काम करते थे| मौज मस्ती मे ही उन्होने उस विषय पर काम किया जिस पर उन्हे नोबेल पुरुस्कार मिला| वह क्या था, यह जानेगे, अगली बार|
1मै, आगे कभी, रौबर्ट ओपेनहाईमर के बारे मे भी बात करना चाहूंगा|
Subscribe to:
Posts (Atom)