परशुराम की शानती

परशुराम की शानती? उनकी तो शादी नहीं हुई थी फिर यह शानती कहां से आ गयी - अरे बाबा, मेरा मतलब शान्ति, वह शान्ति जिसकी हम सब को तलाश है।

कहते है परशुराम क्षत्रियों से क्रोधित हो गये। वे क्यों क्रोधित हो गये, इसकी कथा तो अवधिया जी ने यहां बतायी है। संक्षेप में यह क्रोध कामधेनु गौमाता के पीछे हुआ था। क्रोधित परशुराम को,
भगवान ने शान्ति पाने के लिये तपस्या का मार्ग सुझाया और कहा कि जहां तीर गिरे, वहीं तपस्या करो। तीर तो अरब की खाड़ी में गिरा। समुद्र देव ने वहां से पानी हटा कर जमीन उन्हें सौंप दी। परशुराम, गौमाता के साथ वहां तपस्या करने पहुंचे इसलिये उसका जगह का नाम गोवा पड़ा।

समुद्र देव ने स्वयं जमीन परशुराम को जमीन दी थी इसलिये वहां उनकी हमेशा कृपा रहती है। आज तक कभी समुद्र के कारण कोई विपदा नहीं आयी। सुनामी का भी कोई असर नहीं पड़ा था।

परशुराम जी ने शिव की तपस्या की और शान्ति प्राप्त की। इसलिये कहा जाता है कि जो भी गोवा जाता है उसे वहां शान्ति मिलती है। हांलाकि इसमें पुर्तगालियों का भी बहुत बड़ा हाथ है।

पणजी में एक प्रसिद्ध मंगेश मन्दिर है। परशुराम ने भगवान शिव की तपस्या की थी शायद इसलिये यह भगवान शिव का मन्दिर है। गोवा के पास परुशराम का भी मंदिर है।

शिव मन्दिर पहले पुराने गोवा में था। सोलवीं शताब्दी में जब पुर्तगालियों ने हिन्दुवों पर अत्याचार करना शुरू किया तो वे है पणजी की तरफ भागे और अपने देवी देवता भी ले आये। इस मन्दिर को तब ही पणजी में स्थापित किया गया। यह भव्य है।

शिव जी के मन्दिर जाते समय रास्ते में मेरी मुलाकात रवी से हुई। वे लोगों के बदन पर जगह जगह ठप्पा
लगाते हैं। उसके अनुसार यह लगभग एक माह तक रहता है। सबसे छोटे का २० रुपया और सबसे बड़े का ५० रुपया। मैंने पूछा कि दिन में कितने पैसे मिल जाते हैं। उसने बताया कि लगभग ३००-४०० रुपये मिल जाते हैं।

विदेशी महिलायें तो अजीब अजीब जगह ठप्पा लगवा रहीं थी। मैने तो हांथ में सबसे छोटा ठप्पा लगवाया पर ७० रुपये खर्च हो गये।
'उन्मुक्त, क्या कहा ७० रुपये। लगता है कि गणित में तो हमेशा फेल होते होगे।'
नहीं भाई मैने तो उसे २० ही रुपये दिये पर मेरे सहयोगी लोग कहने लगे यह ठप्पा तो शर्ट की बांह के अन्दर है, लोग कैसे देखेंगे। इसके लिये तो बिना बांह की शर्ट होनी चाहिये।

मेरे पास तो बिना बांह की कोई शर्ट नहीं है। वहां छोटी छोटी बहुत सी दुकाने थीं, जिन पर हर तरह की शर्ट मिल रहीं थी। मैंने दुकान वाली महिला से शर्ट दिखाने को कहा तो इसने ३५ रुपये की बांह वाली शर्ट दिखायी। मैंने कहा मुझे तो बिना बांह की चाहिये, क्योंकि सबको ठप्पा दिखाना है। वह समझ गयी कि आज तो एक मुर्गा फंसा है। उसने झट से दिखायी और ५० रुपये दाम बताया। मैंने कहा कि यह तो बिना बांह की है, सस्ती होनी चाहिये। पर वह ठस से मस नहीं हुई। हार कर ५० रुपये की ली। हो गया ना ७० रुपये का चूना।

मैंने पिछली चिट्ठी पर होटेल की दो खास बातों के बारे में जिक्र किया था। वे बातें यह हैं:
  • महिलाओं की तो नेकरे छोटी होती जा रहीं हैं और पुरषों की बड़ी;
  • गोरे चिट्टे (विदेशी) महिला बदन पर जितने कम कपड़े (बस चले तो सब उतार दें पर यह कानूनी तौर पर मना है), और गेहुवें तथा श्याम (मुन्ने की मां जैसी देसी) महिला बदन पर उतने ही ज्यादा।
इस बात पर अनूप जी ने टिप्पणी कर के कहा कि,
'सही है। आगे की फोटुयें दिखाइये ना अपनी दो बातों के समर्थन में !:)'
आजकल तो बहुत ज्लदी ही लोगों पारा गर्म हो जाता है। नारद से बहिष्कार करने की बात करने लगते हैं। कुछ चिट्ठों को नारद से हटा भी दिया गया है।
कुछ लोग रूठ कर चिट्ठेकारी न करने की बात करने लगते हैं। इन सब बातों का ध्यान में रख कर, मैंने टिप्पणी पर फुरसत से गम्भीरता पूर्वक विचार किया।

मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि वहां क्या हुआ, क्या सच है, यह जग जाहिर करना जरूरी है। पर फिर भी मैं पहले से ऐलान कर देता हूं कि अगली चिट्ठी के बाद मेरे चिट्टा के हाल का कारण न तो नारद को समझा जाय, न ही उन लोगों को जो मेरे चिट्ठे के बारे में मालुम नहीं क्या, क्या कहेंगे पर इसका समपूर्ण दायित्व केवल फुरसतिया जी का है किसी और को इसका जिम्मेवार न समझा जाय।

जब आप
फोटुयें देखेंगे तो नशे में तो डूबेंगे ही। तो चलिये अगली बार डूबते हैं 'रात नशीले है' में। जी हां मेरी हिन्दी कमजोर नहीं है, मैंने सही शब्द का प्रयोग किया है - नशीले।

अगली पोस्ट तक, दिल थाम कर बैठिये।

बहना आप भी जाईयेगा नहीं। देखियेगा और पढ़ियेगा नारी सशक्तिकरण का यह रूप भी।

गोवा
प्यार किया तो डरना क्या।। परशुराम की शानती।। रात नशीले है।। सुहाना सफर और यह मौसम हसीं।। डैनियल और मैक कंप्यूटर।। चर्च में राधा कृष्ण।। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।। न मांगू सोना, चांदी।। यह तो बताना भूल ही गया।। अंकल तो बच्चे हैं

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