यदि भगवान साहूकार होता: किताबी कोना

इस चिट्ठी में 'यदि भगवान साहूकार होता' (If God was a Banker by Ravi Subramamaniam) नामक पुस्तक की समीक्षा है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,

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रवि सुब्रमनियम (Ravi Subramamaniam) ने १९९३ में आई.आई.एम. बैगंलोर (IIM Bangalore) से एम.बी.ए.डिग्री प्राप्त की। 'यदि भगवान साहूकार होता' (If God was a banker), उनकी पहली पुस्तक है।

रवि सुब्रमनियम स्वयं विदेशी बैंक में सेवारत हैं और यह कहानी भी दो नवयुवकों की है जो कि न्यूयार्क अन्तराष्ट्रीय बैंक में काम करते हैं। यह कहानी उस समय की है जब बहुराष्ट्रीय बैंक भारत में पर्दापण कर रहे थे।

संदीप श्रीवास्तव ने आई.आई.एम. बैगंलोर से और स्वामीनाथन ने आई.आई. एम. अहमदाबाद से १९८६ से डिग्री लेकर, बैंक में काम करना शुरू किया। यह दोनो पढ़ाई में बहुत अच्छे थे पर दोनो का व्यक्ततित्व, पारिवारिक पृष्ठभूमि एकदम फर्क। संदीप जहाँ अक्रामक, अतिविश्वसनीय, और सफलता को हर हाल में पहुंचने के लिए आतुर। वहीं स्वामीनाथन अन्तर्मुखी, सोच विचार कर, सिद्वान्तों के अन्दर काम करने वाला है। दोनो सफलता के शिखर पर पहुंचतें हैं पर अंत में क्या होता है, यह उसी की कहानी है।

संदीप जो हर हालत पर सफल होना चाहता है पर उसे हालात ही पकड़ लेते है । यह एक दिन की कहानी है जब संदीप को, अपने बैंक के सी.ई.ओ. से मिलना है और उसे मालूम है कि आज के बाद वह बैंक में काम नही कर पायेगा। वह उस दिन सुबह से, मीटिंग के तक, अपनी और स्वामीनाथन की जिन्दगी के बारे में सोचता है।

कल्पना, संदीप की सहपाठिन थी। संदीप उससे प्रेम करता था पर वह स्वामीनाथन से शादी कर लेती है। नताशा संदीप की पत्नी है और उससे बेहद प्रेम करती है। संदीप उस दिन इन सारे लम्हों को जीता है, सोचता है उसने ठीक नहीं किया। उसके मन में यह सवाल भी घुमड़ता रहता है कि क्या वह उसका परिवार इस सदमें से उबर सकेगा? यह कहानी उसी के इर्द गिर्द घूमती रहती है।

यह कहानी है बड़ी कम्पानियों में महिला शोषण की; यह कहानी है कि काम को सिद्व करने में सेक्स का किस प्रकार से प्रयोग किया जाता है। इस कहानी का सार है
'यदि लक्ष्य महत्वपूर्ण है तो उसे पाने की सीढ़ी उससे अधिक महत्वपूर्ण।'
यह बात न केवल महात्मा गांधी ने बतायी पर इसे अपने जीवन में अमल भी किया।

इस कहानी में प्रवाह है, तेज चलती है और अंत तक बांधे रहती है। एक बार उसे पढना शुरू करें तो छोडने का मन नही करता। इसमें हिन्दी फिल्मों का मसाला है । मुझे कोई ताज्जुब नही होगा कि यदि आने वाले समय मे यह उत्तम विक्रेता सूची की ऊँचाई पर पहुंच जाये और जल्द ही इस पर कोई फिल्म बने।

आप सोचते होगें कि इसका नाम 'यदि भगवान साहूकार होता (If God was a banker) क्यों रखा गया।

हर जगह कुछ खराब लोग हैं तो कुछ अच्छे। अच्छे लोग ही भगवान है। इस कहानी में कौन है वह बेहतरीन शख़सियत – यह तो आप कहानी पढ़ कर ही जान सकते हैं।


किताबी कोना
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yah post 'If the God was a Banker' naamak pustak kee smeekshaa hai. yah hindee {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is review of the book 'If God was a Banker'. It is in Hindi (Devnaagaree script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

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