सैमुएल लाइबोविट्ज़, २०वीं शताब्दी के दूसरे चतुर्थांश में अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध वकील थे। 'बुलबुल मारने पर दोष लगता है' श्रृंखला की इस चिट्ठी में, उनके जीवन पर लिखी पुस्तक 'कोर्टरूम' के बारे में चर्चा है।
'डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े' श्रृंखला की कड़ी 'यदि विकासवाद जीतता है तो ईसाइयत बाहर हो जायेगी' में, मैंने वकील क्लेरेन्स डैरो (Clarence Darrow) की चर्चा की थी। उनका जन्म १८ अप्रैल, १८५७ को हुआ था। उन्न्नीसवी शताब्दी के अंत होते होते वे अमेरिका के सबसे जाने माने वकील के रूप में स्थापित हो गये थे। उनका सितारा उदय हो चुका था। उसी समय एक अन्य वकील, सैमुएल लेबो (Samuel Lebeau) का जन्म १४ अगस्त १८९३ में रोमानिया में हुआ।
१८९७ में सैमुएल के पिता अमेरिका आ गये। वहां लोगों की सलाह पर सैमुएल के पिता ने अपने नाम का अमेरिकीकरण कर लिया—लेबो की जगह वे लाइबोविट्ज़ (Leibowitz) हो गये।
सैमुएल को विद्यार्थी जीवन में, वक्तृत्व (elocution) और वाद विवाद प्रतियोगिताएं (debate) बेहद पसन्द थे। इसमें, वे हमेशा आगे रहते थे। पिता के सुझाव पर सैमुएल ने वकील बनने की ठानी और कानून की शिक्षा कॉर्नेल विश्वविद्यालय से पूरी की।
बीसवीं शताब्दी के पहले चतुर्थांश के अन्त होते होते सैमुएल ने अपना नाम अमेरिका के जाने माने फौजदारी के वकील के रूप में स्थापित कर लिया। दूसरे चतुर्थांश में वे अमेरिका में फौजदारी के सबसे प्रसिद्व वकील हो गये। १९४१ में उन्होंने न्यायाधीश बनना स्वीकार कर लिया। न्यायधीश के रूप में वे जल्दी गुस्सा हो जाते थे। इसलिये वे बाद में कुछ विवादास्पद हो गये थे। उनकी मृत्यु ११ फरवरी, १९७८ में हो गयी।
सैमुएल लाइबोविट्ज़ एवं उनकी पत्नी अपने पौत्र के साथ खेलते हुऐ - चित्र लाइफ पत्रिका के इस सौजन्य से।
१९५० में, क्वेंटिन रिनॉल्डस् (Quentin Reynolds) ने सैमुएल की जीवनी, कोर्टरूम (Courtroom) नामक पुस्तक में लिखी है। यह वकीलों के द्वारा लिखी गयी आत्मकथा या उनकी बारे में लिखी जीवनियों में सबसे अच्छी लिखी पुस्तक है। यह पुस्तक न केवल हर वकील को, पर प्रत्येक व्यक्ति के पढ़ने योग्य है। बहुत से लोग, वकीलों के बारे में अच्छे विचार नहीं रखते हैं। यह पुस्तक उनके नजरिये को बदलेगी।
अगली बार बात करेंगे सैमुएल को पहला मुकदमा कैसे मिला और उसमें क्या हुआ।
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बुलबुल मारने पर दोष लगता है
भूमिका।। वकीलों की सबसे बेहतरीन जीवनी - कोर्टरूम।।
केरल यात्रा के दौरान, हमने आयुवेर्दिक मालिश का भी अनुभव लिया। इस चिट्ठी में उसी की चर्चा है।
केरल में, तरह-तरह की आयुवेर्दिक मालिश होती है। मैं इसके पहले तीन बार केरल जा चुका हूं। लेकिन कभी भी मालिश नहीं करवायी थी। मुझे लगा कि इसका भी अनुभव लेना अच्छा रहेगा।
कन्या कुमारी से लौटते समय हमारा टैक्सी चालक प्रवीन हमें ऐसी जगह ले गया इसका नाम प्रकृति था। वहां पर पहुंचने पर हमारी मुलाकात एक विदेशी जोड़े से हुई। वे इसराइल से आये थे। मैंने उनसे जब मालिश के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हे इसमें बहुत आनन्द आया और हमें भी करवाना चाहिये।
मैंने टाइम पत्रिका मे पढ़ा था कि इस्रायल में सापों से मालिश होती है। मैंने उनसे पूछा,
'क्या आपने कभी सापों से मालिश करवायी है?'
उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने सापों की मालिश के बारे में कहां पढ़ा है। मैंने उनसे टाइम पत्रिका के लेख के बारे में जिक्र किया। इस पर उसने मुस्करा कर कहा,
'मुझे नहीं मालुम कि इस्रायल में कहीं पर सापों से मालिश होती है। आप मेरी बात मानिये, टाइम पत्रिका पढ़ना छोड़ दीजिए।'
क्या आप भी सापों से चम्पी कराना चाहेंगे हिम्मत हो तो पहले यह विडियो देख लीजिये।
तेल मालिश करवाने में एक घण्टे का समय लगा और इसका उन्होंने छ: सौ रुपया लिया। मेरी मालिश करने वाले लड़के का नाम जैकब था। उसने बताया,
'मैंने मालिश करने की ट्रेनिंग केरल सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कॉलेज से ली है। इसमें बारहवीं पास करने के बाद, डेढ़ साल का कोर्स करना पड़ता है। उसी के बाद आप मालिश कर सकते हैं।'
उसने बताया कि उसने जयपुर और जालंधर मे भी काम किया है। मैंने पूछा कि क्या वहाँ भी केरल की तरह आयुर्वेदिक मालिश होती है। उसने कहा वहां, केरल के लोग ही आयुर्वेदिक मालिश करते हैं। वह वहां, कई महीनों रहा पर वह केरल का है इसलिये त्रिवेन्द्रम वापस आ गया है। यह जगह उसकी नहीं थी पर वह उस व्यक्ति के यहां वेतन पर काम करता था, जिसने सारी सुविधाऐं दे रखी थी।
वहां महिलाओं के लिये भी मालिश करवाने की सुविधा थी। महिलाओं को मालिश करने के लिए कोई महिला ही रहती है। मुन्ने की मां ने भी मालिश करवायी। लेकिन उसे मालिश करवाने के बाद, कुछ प्रतिक्रिया हो गयी। उसका बदन लाल हो गया और छाले पड़ गये। इससे मुझे लगा, कि शायद वहाँ पर हर व्यक्ति को मालिश करवाना ठीक नहीं है।
दूसरी बात यह भी लगी कि शायद और सफाई होती तो ठीक रहता। मालिश एक बेंच पर हो रही थी। इस पर एक चादर बिछा था। वह साफ नहीं था। मैंने जैकब से इसके बारे में कहा, तो उसने बताया कि उसने अभी चादर बदली है। लेकिन यह काम मेरे सामने नहीं हुआ था और यह शायद सच नहीं था।
एक अन्य तरह की मालिश - गर्म पत्थरों से
मालिश शुरू करने से पहले जैकब ने मुझे अपने कपड़े उतारने के लिए कहा और एक छोटा सा कपड़ा नीचे व्यक्तिगत भाग पर बांधने के लिए दिया। जिसने मुझे बपचन में फैंटम की पढ़ी हुई कॉमिक्स में हबशियों की कपड़ों की याद आ गयी।
इस मालिश में उन्होनें काफी तेल डाला। जब मैं अपने कस्बे में कभी मालिश करवाता हूं तो उसमें इतना तेल नही पड़ता। हाँ यह बात जरूर है कि उनके मालिश करने का तरीका कुछ भिन्न था और उन्होंने पूरे बदन में तेल लगाया और बदन के हर भाग में मालिश की थी।
मुझे इस मालिश के लिये छ: सौ रूपया ज्यादा लगा यदि कोई मुझसे कहता कि तुम फिर वहाँ जाकर मालिश करा लो तो मैं उतना पैसा खर्च करना ठीक न समझता। हांलॉकि अगली बार केरल जाऊँ और मेरे पास समय हो और पैसे की चिन्ता न हो तो मै शायद इसे पुन: कराने की सोचूं।
लगता है कि बैटमैन और रॉबिन भी मालिश प्रेमी हैं।
मैं बैटमैन और रॉबिन कॉमिक्स का प्रेमी हूं पर मालिश का नहीं।
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हार्पर ली (Harper Lee) का लिखा उपन्यास, 'टु किल अ मॉकिंगबर्ड' (To Kill A Mockingbird), २०वीं शताब्दी के उत्कृष्ट अमेरिकन साहित्य में गिना जाना जाता है। 'बुलबुल मारने पर दोष लगता है' मेरी नयी श्रंखला है। यह, इस उपन्यास और उससे जुड़ी घटनाओं और कहानियों के बारे में है। यह चिट्ठी इस श्रंखला की भूमिका है। इस चिट्ठी को आप यहां चटका लगा कर सुन सकते हैं। यह पॉडकास्ट ogg फॉरमैट में है। यदि सुनने में मुश्किल हो तो दाहिने तरफ का विज़िट,
'मेरे पॉडकास्ट बकबक पर नयी प्रविष्टियां, इसकी फीड, और इसे कैसे सुने'
देखें।
कुछ समय पहले, मेरी तबियत खराब हो जाने के बाद, मेरी बिटिया रानी और बेटे राजा ने कुछ पुस्तकें भिजवायीं थी। इनमें एक पुस्तक 'हू द हेल इज़ ओ ॑-हारा' (Who the Hell is O'Hara) है। इस पुस्तक में, दुनिया के ५० बेहतरीन लिखे उपन्यासों के बारे में लिखा है कि वे किस प्रकार से लिखे गये हैं। इसमें अधिकतर उपन्यास मेरे पढ़े हुऐ हैं या मैंने उनके बारे में सुना है। मुझे यह पुस्तक ही सबसे अच्छी लगी इसलिये इसे ही सबसे पहले पढ़ना शुरू किया। यह मुझे बेहद पसन्द आयी।
हार्पर ली (Harper Lee) का लिखा उपन्यास 'टु किल अ मॉकिंगबर्ड' (To Kill A Mockingbird) २०वीं शताब्दी के उत्कृष्ट अमेरिकन साहित्य में गिना जाता है।
इस पुस्तक में लिखे उपन्यासों की कहानियों में से एक लेख, उपन्यास 'टु किल अ मॉकिंगबर्ड' (To Kill A Mockingbird) के बारे में है। इसे हार्पर ली (Harper Lee) ने लिखा है। यह उपन्यास २०वीं शताब्दी के उत्कृष्ट अमेरिकन साहित्य में गिना जाता है। मेरी बिटिया रानी के मुताबिक यह ऐसा उपन्यास है जिसे अमेरिका के कॉलेज जाने वाले प्रत्येक विद्यार्थी ने कम से कम एक बार पढ़ा है।
इस उपन्यास की कहानी १९३० दशक की है जो एक बहन, उसके भाई, और उनके मित्र की, अपने वकील पिता के यहां बड़े होने की कहानी है। यह एक बेहतरीन उपन्यास है जिसे पुलिट्ज़र पुरूस्कार (Pulitzer Prize) भी मिल चुका है। यह ४० भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। इसकी अभी तक ३ करोड़ प्रतिलिपियां बिक चुकी हैं।
इस उपन्यास पर एक फिल्म भी इसी नाम से बनी है, जिसे तीन ऑस्कर पुरस्कार मिले। ग्रेगरी पेक का जिक्र मैंने अपनी श्रंखला हमने जानी जमाने में रमती खुशबू की इस कड़ी में किया है। उन्हें इस फिल्म में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिये ऑस्कर पुरस्कार मिला है।
यह उपन्यास १९६० में लिखा गया था। १९५० दशक में रीडर्स् डाइजेस्ट की संघनित पुस्तकें (Reader's Digest Condensed Books) आनी शुरू हुईं। मेरे पास शायद यह सारी हैं। हम भाई बहन ने अपना बचपन यही पढ़ते गुजारा। मैंने यह उपन्यास इसी में, १९६० दशक के अन्तिम सालों, में पढ़ा था और उसी समय इस फिल्म को भी देखा था। यह श्रंखला पुनः रीडर्स् डाइजेस्ट के चयनित संस्करण (Reader's Digest Select Editions) नाम से आना शुरू की गयी हैं।।
वास्तविक जीवन में भी ली का बड़ा भाई और मित्र था। उसके पिता भी वकील थे। शादी के पहले उनकी माँ का नाम फिंच था, जो कि उपन्यास में इनका सर-नाम है। लोगों का कहना है कि यह इनकी जीवनी है। लेकिन पर ली इस बात को तो नकारती है पर यह भी स्वीकारती हैं कि उन्होंने जो जीवन में देखा उसी को इस कहानी में उतारा गया है। ली इस उपन्यास के बारे में कहती हैं,
'I never expected any sort of success with Mockingbird. I was hoping for a quick and merciful death at the hands of the reviewers but, at the same time, I sort of hoped someone would like it enough to give me encouragement. Public encouragement. I hoped for a little, as I said, but I got rather a whole lot, and in some ways this was just about as frightening as the quick merciful death I'd expected.'
मैं इस उपन्यास में कोई आशा नहीं रखती थी। लेकिन यह भी सोचती थी इसे शायद कोई पसन्द करेगा और मुझे प्रोत्साहित करेगा। मैं थोड़ा बहुत चाहती थी पर यह तो बहुत अधिक था और यह उतना ही डरावना जितना इसका न लोकप्रिय होना।
When you're at the top, there's only one way to go.
ली ने इस उपन्यास के बाद, कोई अन्य पुस्तक या लेख नहीं लिखा। वे लोगों के बीच से गायब हो गयी। क्या कारण था इसका? उन्होंने, अपने चचेरे भाई को, इसका कारण इस तरह से बताया,
'When you're at the top, there's only one way to go.' जब आप सबसे ऊपर होते हैं तो जाने का केवल एक ही तरीका है।
यह श्रंखला इसी उपन्यास के बारे में है। इसकी कहानी की चर्चा करने से पहले हम अगली बार बात करेंगे २०वीं शताब्दी के दूसरे चतुर्थांश में अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध वकील और उसकी जीवनी पर लिखी पुस्तक पर। मेरे विचार से वकीलों की लिखी आत्मकथा या उनकी जीवनी पर लिखी पुस्तकों में सबसे बेहतरीन पुस्तक है। उसके बाद अमेरिका के एक प्रसिद्ध मुकदमे की।
'उन्मुक्त जी, इन वकील साहब, या प्रसिद्ध मुकदमे का इस उपन्यास से क्या संबन्ध है। लगता है कि आप तो बस लोगों को चक्कर में डाल रहें हैं।'
इनका संबन्ध तो है। यह आपको इस श्रंखला के दौरान ही बता चलेगा। इंतज़ार कीजिए।
'लगता है उन्मुक्त जी की एक और श्रंखला झेलनी पड़ेगी।'
बुलबुल मारने पर दोष लगता है
इस श्रंखला की सारी कड़ियां नीचे चटका लगा कर पढ़ सकते हैं। यदि सुनना चाहें तो ► पर चटका लगा कर सुन सकते हैं। ख्याल रहे ऑडियो क्लिप ऑग मानक में है। इसे कैसे सुनते हैं यह तो मालुम हैं न। नहीं तो दाहिने तरफ का विज़िट ‘बकबक पर पॉडकास्ट कैसे सुने‘ देखें।
इस चिट्ठी में कन्याकुमारी में घूमने की जगहों का वर्णन है।
कहा जाता है जिस चट्टान पर एक टांग से खड़े होकर कुमारी कन्या ने अपनी पूजा की, वहां पर उसका एक निशान बना हुआ है। स्वामी विवेकानंद उस निशान को देखने के लिए वहां गये जिससे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी चट्टान पर विवेकानंद रॉक मेमोरियल बना हुआ है। यह जगह देखने लायक है।
विवेकानन्द रॉक मेमोरियल के बगल की चटटान पर एक बहुत ऊंची सी मूर्ती सन्त थिरूवलुवर की भी है इसे तमिलनाडू सरकार द्वारा बनवायी गयी है। विवेकानंद रॉक मेमोरियल देखने जाने के लिए स्टीमर से जाना पड़ता है। यह स्टीमर पहले आपको विवेकानन्द रॉक मेमोरियल पर छोड़ता है। इसके बाद यह सन्त थिरूवलुवल की चट्टान पर छोड़ता है फिर वापस लाता है। यह चक्कर लगाता रहता है कोई चाहे तो वहां रूक कर उसके अगले चक्कर में चढ़े या बैठा रहे।
विवेकानन्द रॉक मेमोरियल पहुंचते समय तक काफी धूप हो गयी थी। वहां हमे जूते उतारने पड़े। इस कारण वहां चलने में मुश्किल हुयी, पैर में छाले से पड़ने लगे। विवेकानन्द रॉक मेमोरियल के बाद जब वह हमें सन्त थिरूवलुवर मूर्ति की चट्टान पर ले जाने लगा तो हम लोग वहां नहीं उतरे। क्योंकि यहां पर भी जूते उतारने थे। हमें लगा कि अब नंगे पैर न चल पायेंगे। हमने इस मूर्ति को दूर से ही देखा।
गांधी जी की अस्थियां विसर्जित होने के लिए कन्या कुमारी इसलिये लाई गयीं थी क्योंकि वहां पर तीन समुद्रों, अरेबियन सागर, हिन्द महासागर, और बंगाल की खाड़ी-का संगम है। वहां जिस जगह पर उनका अस्थि कलश रखा गया था वहां पर गांधी मेमोरियल मंडपम बना है।
यह मंडपम जमीन से ८९ फिट ऊंचा है। यह इसलिए है क्योंकि महात्मा गांधी भी ८९ साल तक जीवित रहे।
इस मंडपम की खास बात यह है कि इसका दरवाजा मंदिर जैसा है। अंदर की ओर, यह एक मस्जिद की तरह बना हुआ है तथा ऊपर की तरफ, यह चर्च की स्टाइल में है। महात्मा गांधी सब धर्मो का समावेश चाहते थे। इसलिये इसे इस तरह का बनाया गया है कि उनके दर्शन को ठीक प्रकार से दिखा सके।
जहां पर मंडपम में, उनका अस्थि कलश रखा गया था वहां पर स्तंभ सा बना हुआ है। इसके ऊपर एक छेद है वह छेद इस तरह से बनाया गया कि दो अक्टूबर के दिन, १२ बजे सूरज की रोशनी उसी स्तम्भ पर गिरती है लेकिन किसी अन्य दिन सूरज की रोशनी अंदर नहीं आती है। बरसात का पानी भी, इस छेद से अंदर नहीं आ पाता है।
गांधी मेमोरियल मंडपम देखते देखते दोपहर हो गयी, भोजन का समय हो रहा था। गर्मी भी बहुत बढ़ गयी थी और हम लोग थक गये थे। मैने प्रवीन से किसी साफ सुथरी शाकाहारी भोजन मिलने की जगह ले चलने को कहा। प्रवीन हमें एक गुजराती भोजनालय में ले गया।
भोजनालय में हमें लोग गुजराती समझ बैठे और गुजराती में बात करने लगे। मैंने उनसे माफी मांगी और कहा कि मुझे गुजराती नहीं आती है। उन्होंने आश्चर्य से पूछा,
'क्या आप गुजराती नहीं हैं?'
मैंने कहा नहीं, यह तो आपका प्रेम है कि आपने मुझे अपना मान लिया। इसके बाद हमने हिन्दी में बात की। मुझे इसी तरह का अनुभव, कश्मीर यात्रा के दौरान गुलमर्ग मे भी हुआ।
भोजनालय बहुत साफ था। वहां पर गुजराती तरह का भोजन मिल रहा था। ६० रू० में एक थाली और आप जितना चाहें उतना खा सकते थे। खाना भी बहुत स्वादिष्ट था।
उस दिन एक खास तरह की स्वीटडिश, पूरणपोली बनी थी जिसे लेने के लिए २० रू० और देने पड़ते थे। मैंने ये नाम कभी नहीं सुना था इसलिए सोचा कि इसे भी चख कर देखना चाहिए। संजय जी ने मुझे बताया,
'यह एक प्रकार का "स्टफ्ड" पराठा है। भीगी चने की दाल को पीस कर सेका जाता है, कुछ कुछ हलवे जैसी प्रक्रिया होती है। फिर इस मीठे "पेस्ट" जिसे पूरण कहा जाता है, गेहूँ के गुंदे आटे की लोईयों में भर कर बेला जाता है फिर पराठे की तरह सेका जाता है। जो तैयार मीठा भरवाँ पराठा तैयार हुआ वह पुरणपोली कहलाता है। यह मुझे यह खास पसन्द नहीं है।'
मुझे तो यह खाने में मीठी लगी इसलिये इसे न खा सका।
कन्याकुमारी में देवी कुमारी का मंदिर, कामराज मेमोरियल कुमारी हाल आफ हिस्ट्री, लेडी ऑफ रैनसम (Lady of Ransom) भी देखने की जगहें हैं। खाना खाने के बाद, इसमें से कुछ जगह तो हमने देखी और कुछ जगह नहीं जा पाये और वापस त्रिवेन्द्रम आ गये।
हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
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