इस चिट्ठी में कन्याकुमारी में घूमने की जगहों का वर्णन है।
कहा जाता है जिस चट्टान पर एक टांग से खड़े होकर कुमारी कन्या ने अपनी पूजा की, वहां पर उसका एक निशान बना हुआ है। स्वामी विवेकानंद उस निशान को देखने के लिए वहां गये जिससे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी चट्टान पर विवेकानंद रॉक मेमोरियल बना हुआ है। यह जगह देखने लायक है।
विवेकानन्द रॉक मेमोरियल के बगल की चटटान पर एक बहुत ऊंची सी मूर्ती सन्त थिरूवलुवर की भी है इसे तमिलनाडू सरकार द्वारा बनवायी गयी है। विवेकानंद रॉक मेमोरियल देखने जाने के लिए स्टीमर से जाना पड़ता है। यह स्टीमर पहले आपको विवेकानन्द रॉक मेमोरियल पर छोड़ता है। इसके बाद यह सन्त थिरूवलुवल की चट्टान पर छोड़ता है फिर वापस लाता है। यह चक्कर लगाता रहता है कोई चाहे तो वहां रूक कर उसके अगले चक्कर में चढ़े या बैठा रहे।
विवेकानन्द रॉक मेमोरियल पहुंचते समय तक काफी धूप हो गयी थी। वहां हमे जूते उतारने पड़े। इस कारण वहां चलने में मुश्किल हुयी, पैर में छाले से पड़ने लगे। विवेकानन्द रॉक मेमोरियल के बाद जब वह हमें सन्त थिरूवलुवर मूर्ति की चट्टान पर ले जाने लगा तो हम लोग वहां नहीं उतरे। क्योंकि यहां पर भी जूते उतारने थे। हमें लगा कि अब नंगे पैर न चल पायेंगे। हमने इस मूर्ति को दूर से ही देखा।
गांधी जी की अस्थियां विसर्जित होने के लिए कन्या कुमारी इसलिये लाई गयीं थी क्योंकि वहां पर तीन समुद्रों, अरेबियन सागर, हिन्द महासागर, और बंगाल की खाड़ी-का संगम है। वहां जिस जगह पर उनका अस्थि कलश रखा गया था वहां पर गांधी मेमोरियल मंडपम बना है।
यह मंडपम जमीन से ८९ फिट ऊंचा है। यह इसलिए है क्योंकि महात्मा गांधी भी ८९ साल तक जीवित रहे।
इस मंडपम की खास बात यह है कि इसका दरवाजा मंदिर जैसा है। अंदर की ओर, यह एक मस्जिद की तरह बना हुआ है तथा ऊपर की तरफ, यह चर्च की स्टाइल में है। महात्मा गांधी सब धर्मो का समावेश चाहते थे। इसलिये इसे इस तरह का बनाया गया है कि उनके दर्शन को ठीक प्रकार से दिखा सके।
जहां पर मंडपम में, उनका अस्थि कलश रखा गया था वहां पर स्तंभ सा बना हुआ है। इसके ऊपर एक छेद है वह छेद इस तरह से बनाया गया कि दो अक्टूबर के दिन, १२ बजे सूरज की रोशनी उसी स्तम्भ पर गिरती है लेकिन किसी अन्य दिन सूरज की रोशनी अंदर नहीं आती है। बरसात का पानी भी, इस छेद से अंदर नहीं आ पाता है।
गांधी मेमोरियल मंडपम देखते देखते दोपहर हो गयी, भोजन का समय हो रहा था। गर्मी भी बहुत बढ़ गयी थी और हम लोग थक गये थे। मैने प्रवीन से किसी साफ सुथरी शाकाहारी भोजन मिलने की जगह ले चलने को कहा। प्रवीन हमें एक गुजराती भोजनालय में ले गया।
भोजनालय में हमें लोग गुजराती समझ बैठे और गुजराती में बात करने लगे। मैंने उनसे माफी मांगी और कहा कि मुझे गुजराती नहीं आती है। उन्होंने आश्चर्य से पूछा,
'क्या आप गुजराती नहीं हैं?'मैंने कहा नहीं, यह तो आपका प्रेम है कि आपने मुझे अपना मान लिया। इसके बाद हमने हिन्दी में बात की। मुझे इसी तरह का अनुभव, कश्मीर यात्रा के दौरान गुलमर्ग मे भी हुआ।
भोजनालय बहुत साफ था। वहां पर गुजराती तरह का भोजन मिल रहा था। ६० रू० में एक थाली और आप जितना चाहें उतना खा सकते थे। खाना भी बहुत स्वादिष्ट था।
उस दिन एक खास तरह की स्वीटडिश, पूरणपोली बनी थी जिसे लेने के लिए २० रू० और देने पड़ते थे। मैंने ये नाम कभी नहीं सुना था इसलिए सोचा कि इसे भी चख कर देखना चाहिए। संजय जी ने मुझे बताया,
'यह एक प्रकार का "स्टफ्ड" पराठा है। भीगी चने की दाल को पीस कर सेका जाता है, कुछ कुछ हलवे जैसी प्रक्रिया होती है। फिर इस मीठे "पेस्ट" जिसे पूरण कहा जाता है, गेहूँ के गुंदे आटे की लोईयों में भर कर बेला जाता है फिर पराठे की तरह सेका जाता है। जो तैयार मीठा भरवाँ पराठा तैयार हुआ वह पुरणपोली कहलाता है। यह मुझे यह खास पसन्द नहीं है।'मुझे तो यह खाने में मीठी लगी इसलिये इसे न खा सका।
कन्याकुमारी में देवी कुमारी का मंदिर, कामराज मेमोरियल कुमारी हाल आफ हिस्ट्री, लेडी ऑफ रैनसम (Lady of Ransom) भी देखने की जगहें हैं। खाना खाने के बाद, इसमें से कुछ जगह तो हमने देखी और कुछ जगह नहीं जा पाये और वापस त्रिवेन्द्रम आ गये।
कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा
क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।। हिन्दी चिट्ठकारों का तो खास ख्याल रखना होता है।। आप जितनी सुन्दर हैं उतनी ही सुन्दर आपके पैरों में लगी मेंहदी।। साइकलें, ठहरने वाले मेहमानो के लिये हैं।। पुरुष बच्चों को देखे - महिलाएं मौज मस्ती करें।। भारतीय महिलाएं, साड़ी पहनकर छोटे-छोटे कदम लेती हैं।। पति, बिल्लियों की देख-भाल कर रहे हैं।। कुमाराकॉम पक्षीशाला में।। क्या खांयेगे - बीफ बिरयानी, बीफ आमलेट या बीफ कटलेट।। आखिरकार, हमें प्राइवेट और सरकारी होटल में अन्तर समझ में आया।। भारत में समुद्र तट सार्वजनिक होते हैं न की निजी।। रात के खाने पर, सिलविया गुस्से में थी।। मुझे, केवल कुमारी कन्या ही मार सके।। आपका प्रेम है कि आपने मुझे अपना मान लिया।। हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
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- बुलबुल मारने पर दोष लगता है - भूमिका: ►
- यू हैव किल्ड गॉड, सर: ►
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