जहां हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे की बात हुई हो, वहां मीटिंग नहीं करेंगे

इस चिट्ठी में पिंजौर से शिमला की यात्रा और शिमला में इंस्टिटयूट आफ एडवांस्ड् स्टडीज़ की चर्चा है।

हम लोग पिंजौर से शिमला के लिए सुबह ९ बजे चले। रास्ते में पड़वानू नामक जगह थी। जहाँ पर टाइगर रेन नाम का एक होटल है। इस होटल की दूसरी पहाड़ी में एक रेस्तराँ है। आप वहां पर तारगाड़ी की सहायता से जा सकते हैं। मैंने सोचा कि इसमें भी जा कर देखा जाए। 

सुबह का समय था और उस पर  आने जाने वाला कोई नहीं था। मैंने उस टिकट बेचने वाले से पूछा कि कितना समय लगेगा। उसने कहा कि करीब आठ मिनट। मैंने उससे ये भी पूछा कि दूसरी पहाड़ी पर क्या है? उसने कहा, 
'वहां पर एक रेस्तराँ है जहां पर नाश्ता व  खा पी सकते हैं और प्रकृति का नज़ारा देख सकते हैं।' 
लेकिन उसने इसके बारे में कोई जोश नहीं दिखाया। मुझे लगा वहां पर भीड़ नहीं है इसलिए वह तारगाड़ी को नहीं चलाना चाहता है। उसका घाटा  होगा। यह भी हो सकता है कि उसके कहने का तरीका इतना कुछ उदासीन था कि हमने तारगाड़ी पर जाना ठीक नहीं समझा और हम लोग  शिमला  चल दिये। 

हम लोग शिमला १२ बजे पहुंचे। यहां पहुंचकर सबसे पहले इंस्टिटयूट आफ एडवांस्ड् स्टडीज़ (Institute of Advanced  Studies) देखने के लिए गये। 

यह एक  पहाड़ी पर बनी  हुई बहुत सुन्दर इमारत है। यह पहले वाइसरॉय का घर हुआ करता था। गर्मी के समय में, यह अंग्रेजों की राजधानी रहती थी। यहीं से, पूरे हिन्दुस्तान पर शासन किया जाता था। हम लोग जब पहुंचे तो उस वक्त एक बज चुका था और वहां पर लंच हो गया था। इसलिए वहाँ पर हम लोग कुछ देर तक घूमते रहे।  वहां पर एक कैफेटेरिया है। जहां पर हम लोगों ने कुछ सैंडविच और काफ़ी पी।

यह चित्र इमारत बनने के तुरन्त बाद का है और इंस्टिट्यूट की वेब साइट के सौजन्य से है।

दो बजे टिकट लेकर, गाइड के साथ अन्दर गये। इस इमारत का निर्माण १८८४ में शुरू हुआ और यह १८८७ में तैयार हुई। शिमला में सबसे पहले बिजली यहीं आयी। १८८८ में  भाप के जनरेटर से बिजली पैदा की  गयी थी। लॉर्ड डफरिन जब भारत में  वायसरॉय होकर आये, तब लेडी डफरिन ने जीवन में सबसे पहली बार बिजली  स्विच को ऑन और ऑफ इसी बिल्डिंग में किया।

इसके अन्दर की बर्मा टीक का काम हुआ है। इस इमारत में बहुत कुछ काम लकड़ी का है। इसलिए आग भी लगने का भय रहता है। इसकी छत में पानी के पाइप गये हैं जिसमें छेद हैं। वे मोम के द्वारा सील किये गये है। यदि इसमें कभी आग  लगे तो उसमें लगी मोम पिघल जायेगी और  छेद से पानी गिरने लगेगा और आग बुझ जायेगी।

इस इमारत में नीचे की ओर एक पानी का टैंक बना हुआ है। इसमें बरसात के दौरान सारे जगह का पानी इकट्ठा कर वॉटर हार्वेस्टिंग की जाती है । इसे तभी बनाया गया जब यह इमारत बनायी गयी यानि कि उस समय भी अंग्रेजों के दिमाग में वॉटर हार्वेस्टिंग की बात थी। 

यहां पर  बहुत सारी महत्त्वपूर्ण बैठकें भी हुई हैं।  जब भारत स्वतंत्र होने लगा तो १९४५ में शिमला कॉन्फ्रेन्स भी हुई थी लेकिन वह सफल न हो सकी। बंटवारा शुरू होने की पहली बैठक यहीं हुयी थी। इसका मसौदा, पढ़ने के लिए  भारतीय नेताओं को यहीं पर दिया गया था। मैंने गाइड से पूछा,
'क्या १९७२ की इन्दिरा गांधी और भुट्टो के बीच में समझौता यहीं इसी इमारत में हुआ था।'
उसने बताया, 
'इस तरह की बात चीत तो हुयी थी। लेकिन इन्दिरा गांधी ने मना कर दिया। उनका कहना था कि जहां पर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच में बंटवारे की बात शुरू हो वहां पर इस मीटिंग को नहीं करेंगे। वह मीटिंग गर्वनर हाउस में हुई थी।'


आजाद हो जाने के पश्चात यह राष्ट्रपति की इमारत हो गयी। राष्ट्रपति जब भी शिमला आते थे तो यहीं ठहरते थे। इसलिए इसका नाम राष्ट्रपति भवन भी है।  राधाकृष्णन जब राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस भवन में इंस्टियूट आफ एडवान्स स्टडीस् (Institute of Advanced Studies) बनवाया। यह सोशल सांइस  और गणित विषय के लिए, लोगों को शोध की सुविधा प्रदान करता है। यहां  जो भी विद्वान आते हैं उनके रहने के लिए सुविधा अलग  है।

यहां पर एक छोटा सा संग्रहालय भी है। वहां एक घड़ी भी रखी हुयी है जो कि शायद २०० साल से ज्यादा पुरानी है और हफ्ते में एक बार इसमें चाबी भरी जाती है। यह इस समय भी चल रही है। इसके ऊपर की तरफ एक चित्र सा बना हुआ था जो यह बताता था कि चन्द्रमा की इस समय क्या स्थिति है और उसका कितना भाग  चमकेगा। हालांकि, यह बिलकुल सही स्थिति नहीं बताता पर यह अब भी काम करता है।


अगली बार शिमला की माल रोड के मैदान पर लड़कियों से मिलेंगे, कुछ प्यारी सी और कुछ ...

देव भूमि, हिमाचल की यात्रा


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