हर साल १४ फरवरी को वेलेंटाईन के दिन पर हमारे देश में तरह तरह के विरोध होते हैं। दुकानो तथा होटलों में तोड़ फोड़ होती है। यदी कोई लड़का या लड़की साथ दिखायी पड़ जाय तो उनकी शामत ही समझिये। मुझे यह सब बेईमानी लगता है।
हमने ग्लोबलीकरण स्वीकार किया है, केबल टीवी आता ही है, पिक्चरों में यही सभ्यता दिखायी जाती है: जब उसे हम मना नहीं कर पा रहे तो उस स्भयता को मना कर पाना मुशकिल है। यह शायद सम्भव नहीं कि हम ग्लोबीकरण तथा केबल टीवी को तो स्वीकार कर लें पर उसमें दिखायी जाने वाली सभ्यता को नहीं। इन दोनो में बीच का रास्ता नहीं है: कम से कम आसान या व्यवहारिक तो नहीं लगता। एक को स्वीकार करना तथा दूसरे पर तोड़-फोड़, अभद्रता: है। यह मेरी समझ से बाहर है।
इसका एक पहलू और भी है यदि लड़की तथा लड़के या उनके माता पिता को कोई आपत्ति न हो तो तीसरे को बोलने का क्या अधिकार।
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