समुद्र यात्रा के बाद, डार्विन का बाईबिल से विश्वास डगमगाने लगा। यह क्यों हुआ, इसी चर्चा इस चिट्ठी में है।
इसे तथा इसके पहले का भाग आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
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एचएमएस बीगल, पानी के जहाज ने, तीन समुद्री यात्राएं कीं। इसकी पहली यात्रा में, प्रिंगल स्टोकस् (Pringle Stokes) इसके कप्तान थे। शायद अच्छा साथ न होने के कारण, वे अकेलपन और उदासी के शिकार हो गये। उन्होंने खुदकुशी कर ली। तब रॉबर्ट फिट्ज़रॉय (Robert FitzRoy) को उसका कप्तान बनाया गया था।
१८९० में डार्विन का बनाया गया चित्र
बीगल की दूसरी यात्रा में रॉबर्ट ही इसके कप्तान थे। वे जगहों को समझने और सर्वे करने के लिये, किसी पदार्थविज्ञानी (Naturalist) को अपने साथ ले जाना चाहते थे। पहले कप्तान की अकेलेपन और उदासी के कारण मृत्यु ने भी, उन्हें किसी को साथ ले जाने की बात को बल दिया। इसलिये दूसरी यात्रा में डार्विन को, जाने का मौका मिला।
यह समुद्र यात्रा २७ दिसम्बर १८३१ को शुरू हुई। इसे दो साल में समाप्त होना था पर इसे लगभग पांच साल लगे। यह २ अक्टूबर १८३६ में समाप्त हुई।
इस यात्रा के दौरान, डार्विन गैलापगॉस द्वीप समूह (Galápagos Islands) पर भी गये। यह द्वीप समूह प्रशान्त महासागर में इक्वेडर (Ecuador) से लगभग १००० (९७२) किलो-मीटर पश्चिम पर है। यहाँ पर पाये जाने वाले पक्षी और जानवर दक्षिण अमेरिका में पाये जाने वाले पक्षी और जानवरों से कुछ भिन्न थे पर उनमें महत्वपूर्ण समानता भी थी।
डार्विन ने गैलापगॉस द्वीप समूह पर, १३ तरह की चिड़ियों को एकत्र किया था। उनके अध्ययन से पता चला कि वे सब फिंचेस् (Finches) (छोटी गाने वाली चिड़ियां) हैं पर उनकी चोंच अलग-अलग तरह की थी।डार्विन सोचने लगे कि फिंचेस् की चोंच क्यों अलग हो गयी, इसका क्या कारण था? क्या इन फिंचेस् के पूर्वज एक ही थे और समय बीतने के साथ, नये वातावरण में, खाना प्राप्त करने की सुविधानुसार ढ़ालने के कारण, उनकी चोंच ने अलग-अलग रूप ले लिया?
डार्विन को लगा कि यदि, फिंचेस् में बदलाव आ सकता है तो यह सारे जैविक जीवन में, प्राणी जगत में क्यों नहीं हो सकता है। क्या सारी जातियों, उपजातियों का विकास (Species) एक ही पूर्वज (common ancestor) से हुआ है? क्या जातियों, उपजातियों में बदलाव प्रकृति के सांयोगिक उत्परिवर्तन (chance mutation) के कारण हुआ, जिसमें प्राकृतिक वरण (natural selection) का महत्वपूर्ण योगदान रहा, और वही जीवित रहा जो उत्तरजीविता के लिए योग्यतम (survival of fittest) था?
१८३८ में, डार्विन ने, थॉमस मालथुस (Thomas Malthus) की लिखी पुस्तक 'ऎसे ऑन द प्रिन्सिपल आफ पॉप्युलेशन' (Essay on the principle of Population) पढ़ी। इस पुस्तक ने इस सिद्घान्त को पक्का किया। समुद्र यात्रा के दौरान इकट्ठा किये पक्षी और जानवरों के नमूने भी इसी सिद्वान्त की तरफ इंगित करते थे। लेकिन, इस सिद्वान्त के बाइबिल में दिये प्राणियों की उत्पत्ति (Book of Genesis) के विरूद्व होने के कारण, डार्विन इसे प्रतिपादित करने में चुप रहे पर बाइबिल और भगवान के बारे में उनकी सोच बदल गयी। उनका इन पर से विश्वास उठने लगा। उन्होंने, बाद में, चर्च जाना भी बन्द कर दिया।
१८३९ में, डार्विन ने समुद्र यात्रा के संस्मरण 'द वॉयज ऑफ बीगल' (The voyage of Beagle) नाम से लिखी। इस पुस्तक ने उसे प्रसिद्घि दिलवायी। फिर भी, डार्विन प्राणियों की उत्पत्ति के सिद्घान्त को प्रकाशित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये। इसका एक कारण यह भी था कि उसकी पत्नी कट्टर इसाई थीं, वह उसे दुखी नहीं करना चाहते थे। किन्तु एक १८ जून १८५८ में मिले एक पत्र ने, सब कुछ बदल दिया।
किसने लिखा था १८ जून का वह पत्र, किसका था वह पत्र, क्या लिखा था उसमें? इसे जानने से पहले, हम बात करेंगे मज़हबों के बारे में। क्या कहते हैं यह, प्राणियों की उत्पत्ति के बारे में।
साइंटिफिक अमेरिकन विज्ञान की बारे में बेहतरीन पत्रिका है। यह अब भारत से भी प्रकाशित होती है। डार्विन के बारे में इसने एक खास अंक निकाला है। इसमें लिखे लेख आप यहां पढ़ सकते हैं।
डार्विन के पैदा होने के २०० साल पूरे पर, इस साइंटिफिक अमेरिकन में निकले खास लेख आप यहां पढ़ सकते हैं।
इसका इस चिट्ठी में डार्विन का चित्र विकिपीडिया से है तथा फिंचेस् का चित्र इस विडियो से है।
डार्विन के पैदा होने के २०० साल पूरे पर, इस साइंटिफिक अमेरिकन में निकले खास लेख आप यहां पढ़ सकते हैं।
इसका इस चिट्ठी में डार्विन का चित्र विकिपीडिया से है तथा फिंचेस् का चित्र इस विडियो से है।
डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
भूमिका।। डार्विन की समुद्र यात्रा।। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से, क्यों डगमगाया।।सांकेतिक चिन्ह
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