ब्रह्मा के दो भाग: आधे से पुरूष और आधे से स्त्री

हिन्दू मज़हब में भी सृजनवाद है। इस चिट्ठी में, इसी की चर्चा है।
इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में,
सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें। यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम लिखा है वहां चटका लगायें। इन्हें डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।

हिन्दू मज़हब की एक धारणा, अन्य मज़हबों की तरह, ईश्वर के द्वारा की गयी रचना की बात करती हैं।  कृष्ण गीता के ९वें वा ११वें अध्याय के में अर्जुन को समझाते हुऐ कहते हैं,

'गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत्।
प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम्।।१८।।'
गति- कर्मफल, भर्ता- सबका पोषण करनेवाला, प्रभु-सबका स्वामी, प्राणियों के कर्म और अकर्मका साक्षी, जिसमें प्राणी निवास करते हैं वह वासस्थान, शरण अर्थात् शरण में आये हुए दु:खियों का दु:ख दूर करनेवाला, सुहृत् - प्रत्युपकार न चाहकर उपकार करनेवाला, प्रभव- जगत् की उत्पत्ति का कारण और जिसमें सब लीन हो जाते हैं वह प्रलय भी मैं ही हूँ। तथा जिसमें सब स्थित होते हैं वह स्थान, प्राणियों के कालान्तर में उपभोग करने योग्य कर्मो का भण्डार रूप निधान और अविनाशी बीज भी मैं ही हूँ अर्थात् उत्पत्तिशील वस्तुओं की उत्पत्ति का अविनाशी कारण मैं ही हूँ।


'कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्घो  लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त:।
ऋतेऽपित्वा न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा:।।३२।।'
मैं लोकों का नाश करनेवाला बढ़ा हुआ काल हूँ। मैं जिस लिये बढ़ा हूँ वह सुन, इस समय मैं लोकों का संहार करने के लिये प्रवृत्त हुआ हूँ, इससे तेरे बिना भी (अर्थात् तेरे युद्घ न करने पर भी) ये सब भीष्म, द्रोण और कर्ण प्रभृति शूरवीर- योद्घा लोग जिनसे तुझे आशंका हो रही है एवं जो प्रतिपक्षियों की प्रत्येक सेना में अलग-अलग डटे हुए हैं- नहीं रहेंगे ।
यह उद्धरण गीताप्रेस, गोरखपुर के द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भगवद्गीता शांकरभाष्य हिंदी-अनुवाद से लिया गया है। इसके अनुवादक श्रीहरिकृष्णदास गोयन्दका जी हैं।




मनु स्मृति के प्रथम अध्याय में ३१वां और ३२वां श्लोक में लिखा है।
'लोकानां तु विवृद्धयर्थं मुखबाहूरूपादत:।
ब्राहाणं क्षत्रियं वैश्यं शूद्रं च निरवर्तयत्।।३१।।'

(फिर उस परमात्मा ने) (लोकानां तु) प्रजाओं अर्थात् समाज की (विवृद्धवयर्थम्) विशेष वृद्धि=शान्ति, समृद्धि एवं प्रगति के लिए (मुखबाहु-ऊरू पादत:) मुख्, बाहु, जंघा और पैर के गुणों की तुलना के अनुसार क्रमश: (ब्राहम्णं क्षत्रिय वैश्यं च शूद्रम्) ब्राहम्ण,क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण को ( निरवर्तयत्) निर्मित किया। अर्थात चातुर्वर्ण्य- व्यवस्था का निर्माण किया।।


'द्विधा कृत्वाऽऽत्मनों देहमर्धेन पुरूषोऽभवत्।
अर्धेन नारी तस्यां स विराजमसृजत्प्रभु:।।३२।।'

वह ब्रह्मा (आत्मन:+देहम् ) अपने शरीर के (द्विधा कृत्वा) दो भाग करके (अर्धेन पुरूष्:) आधे से पुरूष और (अर्धेन नारी) आधे से स्त्री (अभवत्) हो गया (तत्याम्) फिर उस स्त्री में ( स.प्रभु:) उस ब्रह्मा ने ( विराजम्) 'विराट्' नामक पुरूष को (असृजत्) उत्पन्न किया।।
यह उद्धरण आर्य साहित्य प्रचार ट्रस्ट के द्वारा प्रकाशित मनु स्मृति से लिया गया है। इसकी समीक्षा प्रो. सुरेन्द्रकुमार ने की है।


हिन्दू मज़हब में भी सृजनवाद है पर इसमें अन्य मज़हबों से एक खास  अन्तर है। जहां यह बात अन्य मज़हबों में दस हजार साल के अन्दर हुई थी वहीं हिन्दू मज़हब में यह खरबों साल पहले हुई थी।


आर्थर सी क्लार्क के अनुसार हिन्दू का मज़हब में दिया गया अनुमान  ही सही है। वे अपनी पुस्तक प्रोफाईल्स आफ द फ्यूचर (Profiles of the Future) के ग्यारहवें भाग 'अबाउट टाइम' (About time) ( पेज १३८ ) में कहते है,
'Time has been a basic element in all religions ... Some faiths (Christianity, for instance) have placed creation and beginning of Time and very recent dates in the past, and have anticipated the end of the Universe in the near future. Other religions, such as Hinduism, have looked back through enormous vistas of Time and forward to even greater ones. It was with reluctance that western astronomers realized that the East was right, and that the age of the Universe is to be measured in billions rather than millions of years – if it can be measured at all.'
मज़हबों में समय की धारणा मूलभूत है … अधिकतर मज़हबों में, खास तौर से ईसाई  मज़हब में रचना और प्रलय की समय सीमा बहुत कम आंकी गयी है। कुछ  मज़हबों जैसे हिन्दू  मज़हब में समय सीमा बहुत ज्यादा आंकी गयी है। पश्चिमी खगोलशास्त्रियों ने मुश्किल से माना कि  पूरब में आंकी गयी समय सीमा सही है और सृष्टि के रचना की समय सीमा यदि आंकी जा सके तो वह करोड़ों में न होकर  खरबों में है।


अगली बार हम बात करेंगे हिन्दू मज़हब में सृष्टि की रचना के सम्बंध में जुड़े, एक अन्य विचार से। 
इस चिट्ठी के पहले दो चित्र श्री कृष्णा टीवी सीरियल से लिये गये हैं। 

डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
 भूमिका।। डार्विन की समुद्र यात्रा।। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से, क्यों डगमगाया।। सेब, गेहूं खाने की सजा।। भगवान, हमारे सपने हैं।। ब्रह्मा के दो भाग: आधे से पुरूष और आधे से स्त्री।।


About this post in Hindi-Roman and English
hindu majahb mein bhee srijanvaad hai. is chitthi mein isee kee charchaa hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

There is creationism in Hindu religion too. This post talks about the same. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.



सांकेतिक चिन्ह
 Arthur C. Clarke, Manusmriti, Geeta,
Creationism, Creation according to Genesis, Hindu views on evolution, History of creationism, Islamic creationism, Jewish views on evolution, religion, धर्म,
bible, Bible, Charles Darwin, चार्लस् डार्विन, culture, Family, fiction, life, Life, On the Origin of Species, Religion, Science, spiritual, जीवन शैली, धर्म, धर्म- अध्यात्म, विज्ञान, समाज, ज्ञान विज्ञान,

Hindi Podcast, हिन्दी पॉडकास्ट,






Reblog this post [with Zemanta]

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...