बच्चे व्यवहार से सीखते हैं, न कि उपदेश से

यह चिट्ठी ई-पाती श्रंखला की कड़ी है। यह श्रंखला, नयी पीढ़ी की जीवन शैली समझने, उनके साथ दूरी कम करने, और उन्हें जीवन मूल्यों को समझाने का प्रयत्न है। हमें घर में वह व्यवहार करना चाहिये जो हम अपने बच्चों में देखना चाहते हैं।

२०वीं शताब्दी की शुरूवात में, पिता -दिवस मां-दिवस के पूरक रूप शुरू किया गया। यह देशों में अलग अलग दिन मनाया जाता है पर अधिकतर देशों में जून के तीसरे इतवार, को मनाया जाता है। इसका मुख्य ध्येय, पारिवारिक सम्बन्धित गतिविधि करना है ताकि परिवार में लोगो के बीच सम्बन्ध प्रगाढ़ रहें।


कहा जाता है कि सोनारा लूई स्मार्ट (जन्म १८-२-१८९ मृत्यु २२-३-१९७८) ने जब मां-दिवस के बारे में सुना तब उसने यह वाशिंगटन में १९ जून १९०९ को मनाया। कुछ का कहना है कि यह सबसे पहले ५ जुलाई १९०८ को फेयरमॉन्ट, वेस्ट वर्जीनिया में मनाया गया।


मां-दिवस को लोगों ने उत्साह से लिया पर पिता दिवस को शुरू में मज़ाक के रूप में लिया गया। इस लिये इसे मान्यता प्राप्त होने में समय लगा।


२००७ में, मैंने रिश्तों के बारे में, 'हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू' नामक श्रंखला लिखी थी। इसकी एक कड़ी उस साल के पिता दिवस पर 'करो वही, जिस पर विश्वास हो' अपने पिता के बारे में लिखी थी। इस श्रंखला कि कुछ अन्य कड़ियों, 'अम्मां - बचपन की यादों में', 'जो करना है वह अपने बल बूते पर करो', में अपने पिता के बारे में चर्चा की है।


यदि २०वीं शताब्दी के पहले भाग में सबसे चर्चित वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाईन थे तो दूसरे भाग में यह श्रेय रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन को है। १९६६ में उन्हें, भौतिक शास्त्र में नोबल पुरुस्कार मिला। मिशेल उनकी गोद ली पुत्री हैं। उन्होने फाइनमेन को लिखे गये कुछ पत्र तथा उनके द्वारा लिखे गये पत्रों का संकलन कर के ‘Don’t you have time to think’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किया है। मैंने एक अन्य श्रंखला इस पुस्तक की समीक्षा करते हुऐ 'क्या आपके पास सोचने का समय नहीं है?' नाम से लिखी है। इसकी एक कड़ी 'पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा' में पिता पुत्र के सम्बन्धों के बारे में बात की है।


आज पिता दिवस के दिन मेरे बेटे की ई-मेल और मेरा जवाब कुछ इस प्रकार था।


पापा
मैंने तुम्हारे चिट्ठे में हिन्दू मज़हब में सृष्टि की रचना की पहली कड़ी पढ़ी। मुझे बहुत अच्छी लगी।

कार्ल सेगन को सुनना तो हमेशा ज्ञानवर्धक रहता है। इस प्यारी सी चिट्ठी प्रकाशित करने का शुक्रिया। ऐसी ही चिट्ठियां लिखा करो
मुन्ना

बेटे राजा
यह चिट्ठी लिखते समय, यह मुझे पुराने समय में ले गयी। इसने, मुझे तुम्हारी बहुत याद दिलायी।

टीवी में हर तरह के सीरियल आते थे। हम चाहते कि तुम फिल्म या चित्रहार न देख कर ज्ञानवर्धक सीरियल देखो। इसलिये हमने कभी भी चित्रहार या फिल्में नहीं देखीं। हमने वही सीरियल देखे जो तुम्हें देखने चाहिये थे। हम तुम्हें बातों से नहीं पर अपने व्यवहार से यह बताना चाहते थे कि कौन से सीरियल देखने लायक हैं और कौन से नहीं। इसलिये इस कॉसमॉस सीरियल की हर कड़ी हमने तुम्हारे साथ देखी।

मुझे वह समय भी याद आये जब हम इन सीरियल से जुड़ी सूचनाओं के बारे में बात करते थे। मुझे वे रातें भी याद आयीं जो हमने नदी के किनारे तारे देखने में बितायीं।

हम, तुम्हें कितना भी अच्छे सीरयल देखने का उपदेश देते पर यह तुम्हारी समझ में उतना नहीं आता जितना कि तब, जब हमने स्वयं तुम्हारे साथ अच्छे सीरियल देखे। यही बात अच्छी पुस्तकें पढ़ने से और घर में रखने से होता है। हमें अच्छे सीरयल देखते, अच्छी पुस्तकें पढ़ते, तुम्हें भी अच्छे सीरियल देखने और पुस्तकें पढ़ने की इच्छा रहती है। इस बात का हमेशा ध्यान रखना, अच्छी बातें उपदेश सुन कर नहीं पर व्यवहार देख कर समझी जाती हैं। अपने आने वाली पीढ़ी के साथ भी इसी तरह का व्यवहार करना।

आज खास दिन है। मैं सुबह से तुम्हारे फोन या ई-मेल की बाट देख रहा था। मुझे लगा कि तुम लोग मां के खास दिन को तो याद रखते हो पर मेरे खास दिन को नहीं पर तुम्हार ई-मेल पा कर मलाल दूर हो गया। आज के दिन तुम्हारी प्यारी सी ई-मेल, मेरे लिये, इस दिन को और खास बनाती है।

आजकल, मैं तुम लोगों के द्वारा भेजी गयी पुस्तकें पढ़ रहा हूं। मुझे वे पसन्द आ रही हैं। मैं जल्द ही इनके बारे में लिखूंगा।
पापा

जैसा आप करेंगे वैसे आपके आने वाली अगली पीढ़ी भी।

यह कार्टून मेरा बनाया नहीं है। मैंने इसे यहां से लिया है।
Cartoon by Nicholson from "The Australian" newspaper: www.nicholsoncartoons.com.au


कुछ समय पहले शास्त्री जी ने एक चिट्ठी 'बेटा किताबें नहीं पढता!' नाम से लिखी थी। मैंने, उस समय, यह टिप्पणी की थी,
'मेरे विचार से किताबें पढ़ना एक शौक है। आप किसी से जबरदस्ती नहीं कर सकते। मेरा बेटे को यह शौक बचपन में नहीं था न ही हमने उसे किताबें पढ़ने के लिये कहा।


मेरे बेटे को जानवरों, जंगलों में रुचि थी। हम हमेशा छुट्टियों में किसी न किसी जंगल में जाते थे। उसने सब तरह के जानवर भी पाले। जिसमें हमारा सहयोग रहता था।

मैं उसे अक्सर जंगलों या जिम कॉर्बेट के बारे में बताया करता था और कम से कम महीने में दो बार किताबों की दुकान पर ले जाता था। उसे कोई पुस्तक खरीदने की छूट थी।

मेरे बेटे ने पहले अपने आप जानवरों के चित्रों वाली पुस्तकें खरीदने की इच्छा जाहिर की। फिर जेरॉल्ड डरल (Gerald Durrell) और जिम कॉर्बेट (Jim Corbett) की पुस्तकें खरीदने की। हमने वे सब पुस्तकें खरीदी। उसने उन्हें पढ़ा भी धीरे धीरे अपने आप ही उसे पुस्तकें पढ़ने का शौक हो गया आज हम अक्सर अच्छी पुस्तकों के बारे ई-मेल से बात करते हैं। वह जब भारत आता है तो अपने साथ अमेरिका पुस्तकें ले जाता है कहता है कि यहां सस्ती मिलती हैं।'
यह टिप्पणी भी, इस चिट्ठी पर लिखी बातों को, अन्य तरीके से बताती है।





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