पाडंवों ने अज्ञातवास पिंजौर में बिताया

हिमाचल यात्रा के दौरान, हम लोग सबसे पहले पिंजौर रुके। इस चिट्ठी में, कुछ सूचना पिंजौर के बारे में।

पिंजौर, चंडीगढ़ से लगभग २० किलोमीटर शिमला के रास्ते पर है। यह हरयाणा राज्य में है। हम लोग,  दोपहर को, पिंजौर पहुंचे।



पिंजौर की सबसे प्रसिद्ध जगह वहां का उद्यान - सूर्यास्त के समय

पिंजौर का सम्बन्ध महाभारत से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि पाडंवों ने अपने अज्ञातवास का अंतिम एक वर्ष यहीं व्यतीत किया था और उसी आधार पर इसका नाम पंचपुर पड़ा। इस समय  पंचपुर का अपभ्रंश होकर यह इस समय पिंजौर हो गया।

हरियाणा पुरात्तव एवं संग्रहालय विभाग द्वारा छपी प्रचार पुस्तक में बताया गया है कि पृथ्वी राज के शिलालेख (११६७ ईसवी - विक्रमी संवत १२२४) में भी इस स्थल का उल्लेख 'पंचपुर' के नाम से हुआ है।
तस्मात्पंचपुरा धिपाय विभुना दत्ता.......(८)
दग्ध पंचपुरं हता:प्रतिमढ़ा .................(११)

इस क्षेत्र में एक लाख वर्ष पूर्व प्रयोग किये गये पत्थरों के औजार भी मिले हैं। जो इस क्षेत्र की प्राचीनतम ऐतिहासिक सम्पदा के प्रमाण हैं।

पिंजौर क्षेत्र में बहुतायत में फैले हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों एवं मंदिर अवशेष मिले हैं। इससे लगता है कि प्राचीन समय (१३वीं शताब्दी तक) में ही पिंजौर एक अन्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थल के रूप में विकसित हो चुका था। यह इतिहासकार अलबरूनी (१०३० ई०) के विवरण से भी पता चलता है।

पिंजौर से प्राप्त अवशेषों का समृद्व संग्रह पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग, हरियाणा के अतिरिक्त, म्यूज़ियम एण्ड आर्ट गैलरी, चण्डीगढ़, एवं प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरात्तव विभाग, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र में भी है।
 
हिमाचल यात्रा के दौरान एक चित्र


१३वीं शताब्दी के मध्य में मूर्तिभंजक विदेशी आक्रमणकारियों के कोपभाजन के परिणामस्वरूप इन मन्दिरों की तोड़फोड़ का दौर प्रारम्भ हुआ। 

मिन्हज-पस- सराज नामक तत्कालीन इतिहासकार ने "तदकाते नासिरी" नामक ग्रंथ में उल्लेख किया है कि इल्तुतमिश के पुत्र नसीरूद्दीन महमूद ने १२५४ ईस्वी में इस स्थान को सिरमौर के राजा से छीनकर अनेक मंदिर एवं बावड़ियों को तोड़ा। इसके बाद पिंजौर ने १३९९ ई० मे तैमूर एवं १५०७ ई० में चंगेज खां के आक्रमणों को झेला।

औरंगजेब के शासनकाल के दौरान उसका चचेरा भाई  फदई खां यहां का गवर्नर हुआ। १६६१ ई० में, उसने यहां मुगल उद्यान बनाने के लिए अनेक मन्दिरों एवं बावड़ियों को तोड़ा। इनके मन्दिरों के अवशेष, आज भी इस उद्यान  की दिवालों पर मिलते  हैं।  

यह उद्यान,  यहां की सबसे प्रसिद्घ जगह है। महाराजा यादुवेन्द्र सिंह पटियाला के सबसे आखरी राजा थे। यह उद्यान, अब उन्हीं के नाम से जाना जाता है। इस उद्यान के बगल में हरियाणा पर्यटन का विभाग बजरीगर मोटेल है। हम लोग इसी  में ठहरे थे।

यहां पर घूमने के लिये, इस उद्यान के अतिरिक्त भीमा देवी का मंदिर एवं संग्रहालय है।  

अगली बार, इस उद्यान, और 'हू मूव्ड माई चीज़' (Who moved my cheese) नामक पुस्तक एवं समय के साथ बदलने के बारे में।

देव भूमि, हिमाचल की यात्रा

वह सफेद चमकीला कुर्ता और चूड़ीदार पहने थी।। यह तो धोखा देने की बात हुई।। पाडंवों ने अज्ञातवास पिंजौर में बिताया।।

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