अभी तक इसका पैसा नहीं निकल पाया है

कुल्लू में राफटिंग होती है। इस चिट्ठी में उसी की चर्चा है।
मैंने काशमीर यात्रा के दौरान पहलगांव में राफ्टिंग की थी। इसी लिये कुल्लू में भी राफ्टिंग की बात सोची। इसी लिये हम लोग, मणिर्कण से वापस आते समय, कुल्लू होते हुए आये।
कुल्लू में हमें, कोई भी व्यक्ति राफटिंग करते हुए नहीं दिखायी पड़ा। ऎसा लगा कि शायद उस दिन राफटिंग नहीं हो रही है। यह सच नहीं था। राफटिंग तो हो रही थी लेकिन बहुत कम लोग राफटिंग कर रहे थे। इसलिए नहीं दिखायी पड़ रहे थे।
 
रास्ते में, हमें  डेमन ऎडवंचर का लगा बोर्ड दिखा। इसके मालिक का नाम विनीत था। उन्होंने बताया कि राफटिंग सब लोग नहीं करवा सकते है। इसके लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता है। उनके पास ३  या ७ किलो-मीटर राफ्टिंग करवाने का लाइसेंस था। इससे ज्यादा दूरी की भी राफटिंग होती है पर उसके लिए उनके पास लाइसेंस नहीं था। 

विनीत के साथ चार नेपाली लोग थे। वे  वेतन पर काम कर रहे थे। यह लोग हिमांचल प्रदेश के पर्यटन विभाग  के द्वारा प्रमाणित थे। विनीत ने इसी साल अपना व्यापार शुरू किया है। उसने बताया,
'मैंने दो रैफ्ट, ऋषीकेश से सवा तीन लाख रूपये में खरीदे हैं। लेकिन अभी तक इसका पैसा नहीं निकल पाया है।'
राफटिंग बरसात में नही होती है और ठंढक के दिनों मे भी नही होती है। क्योंकि, उन दिनों में बर्फ जम जाती है और नदी में पानी कम रहता है। यह लगभग अप्रैल के महीने से, सितम्बर के अन्त तक चलता है। बीच में, एक महीने बरसात में यह बंद हो जाता है।


मैने जब राफ्टिंग की तब मेरे साथ टैक्सी चालक पवन भी थे। हमने तीन किलो-मीटर राफटिंग की। उसके  बाद यह लोग गाड़ी से हमें पुन: वापस वहीं  पर ले आये जहां से हमने रैफ्टिंग शुरू की थी। रैफ्ट को भी गाड़ी में रखकर लाया गया। 


हम लोग पूरी तरह से भीग गये थे। लेकिन इसके लिए हम तैयार थे। हम अपने साथ अतिरिक्त कपड़ा ले गये थे। वहां पर कपड़े बदलने के लिए कमरा था। वहां पर हमने कपड़े बदले। हम लोग को ठंड लग रही थी। इसलिए बगल में गर्म चाय भी पी। 


हिमाचल का प्रसिद्घ व्यंजन सीटू है। कहते है कि पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी को भी यह व्यंजन बहुत पसंद है। वे जब भी हिमाचल प्रदेश जाते हैं तो इसे अवश्य खाते हैं। यह चावल से बनाया जाता है और इसे चटनी और घी के साथ खाया जाता है । मैंने भी इसे खाया पर मुझे  स्वाद नहीं लगा क्योंकि मैंने इसे बिना चटनी के खाया था।

प्रोफेसर निकोलस रोरिक  दार्शिनक, लेखक, तथा पेंटर थे।
वे जीवन के अन्तिम समय हिमाचल में रहे। अगली बार, रोरिक मेमोरियल ट्रस्ट घूमने चलेंगे।  

देव भूमि, हिमाचल की यात्रा
वह सफेद चमकीला कुर्ता और चूड़ीदार पहने थी।। यह तो धोखा देने की बात हुई।। पाडंवों ने अज्ञातवास पिंजौर में बिताया।। अखबारों में लेख निकले, उसके बाद सरकार जागी।। जहां हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे की बात हुई हो, वहां मीटिंग नहीं करेंगे।। बात करनी होगी और चित्र खिंचवाना होगा - अजीब शर्त है।। हनुमान जी ने दी मजाक बनाने की सजा।। छोटे बांध बनाना, बड़े बांध बनाने से ज्यादा अच्छा है।। लगता है कि विंडोज़ पर काम करना सीख ही लूं।। गाड़ी से आंटा लेते आना, रोटी बनानी है।। बच्चों का दिमाग, कितनी ऊर्जा, कितनी सोचने की शक्ति।। यह माईक की सबसे बडी भूल थी।। भारत में आधारभूत संरचना है ही नहीं।। सुनते तो हो नहीं, जो करना हो सो करो।। रानी मुकर्जी हों साथ, जगह तो सुन्दर ही लगेगी।। उसकी यह अदा भा गयी।। यह बौद्व मंदिर है न कि हिन्दू मंदिर।। रास्ता तो एक ही है, भाग कर जायेंगे कैसे।। वह कुछ असमंजस में पड़ गयी।। हमने भगवान शिव को याद किया और आप मिल गये।। अपनी टूर दी फ्रांस - हिमाचल की साइकिल रेस।। और वह शर्मा गयी।। पता नहीं हलुवा घी में,  या घी हलुवे में तैर रहा था।। अभी तक इसका पैसा नहीं निकल पाया है।। आप, क्यों नहीं, इसके बाल खींच कर देखते।।
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सांकेतिक शब्द
Himachal Pradesh, Kullu, rafting, 
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