इस चिट्ठी में, नग्गर में स्थित, रोरिक संग्रहालय की चर्चा है।
रोरिक परिवार सहित नग्गर में - चित्र विकिपीडिया से |
प्रोफेसर निकोलस रोरिख (जन्म ९ अक्टूबर १८७४ - मृत्यु १३ दिसंबर १९४७) रूसी दार्शिनक, लेखक, एवं पेंटर थे। वे रोरिख समझौते के जनक हैं। यह समझौता सभ्यताओं की रक्षा को कानूनी जामा पहनाता है और मुख्य रूप से बताता है कि संस्कृति की सुरक्षा सैन्य आवश्यकता से अधिक महत्वपूर्ण है।
रौरिख ने अपने जीवन के अंतिम, लगभग २१ साल भारत में हिमाचल के कस्बे, नग्गर में बिताये। यहीं रोरिक मेमोरियल ट्रस्ट बनाया गया है और इनके घर को संग्रहालय में बदल दिया गया है। इसी तरह का एक अन्य संग्रहालय दार्जिलिंग और बैंगलोर में भी है। हम लोग, कुल्लू से, इसे देखने गये।
इस संग्रहालय के ऊपर उर्सवती हिमालय रिसर्च इंस्टीट्यूट बना है। इसमें भी संग्रहालय है। रोरिख के बड़े पुत्र ने हर्बल औषधि के क्षेत्र में काम करते थे। उस संग्रहालय में चिड़िया है और हर्बल औषधि बनाने के औजार है। इस समय यहां संगीत एवं पेंटिंग की भी शिक्षा दी जाती है। इसका डिप्लोमा चंडीगढ़ से दिया जाता है।
रोरिक संग्रहालय |
संग्रहालय से खरीदा गया देविका रानी का चित्र |
रोरिख के दो पुत्र थे। उनके छोटे पुत्र की शादी एक प्रसिद्घ फिल्मकारा देवका रानी से हुई थी।
संग्राहालय में यादगार वस्तुये भी ख़रीद सकते हैं और यह बहुत अच्छी बात है। यह अक्सर हिंदुस्तान के संग्रहालय में नही होता है। लेकिन यहां पर सब मिल रहा था । वहां से मैने एक पेपर वेट और देवकी रानी का बना हुआ चित्र भी खरीदा।
अगली बार, हम लोग मनाली से चायल चलेंगे। जहां हिमाचल सरकार के पर्यटन विभाग के प्रीमियम हैरीटेज़ होटल में मेरी मुलाकात, एक सुन्दर केशों की मलिका, साहिबा से हुई थी।
रोरिख के बारे में कुछ और जानकारी और उनकी पेंटिंग आप यहां देख सकते हैं।
देव भूमि, हिमाचल की यात्रा
वह सफेद चमकीला कुर्ता और चूड़ीदार पहने थी।। यह तो धोखा देने की बात हुई।। पाडंवों ने अज्ञातवास पिंजौर में बिताया।। अखबारों में लेख निकले, उसके बाद सरकार जागी।। जहां हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे की बात हुई हो, वहां मीटिंग नहीं करेंगे।। बात करनी होगी और चित्र खिंचवाना होगा - अजीब शर्त है।। हनुमान जी ने दी मजाक बनाने की सजा।। छोटे बांध बनाना, बड़े बांध बनाने से ज्यादा अच्छा है।। लगता है कि विंडोज़ पर काम करना सीख ही लूं।। गाड़ी से आंटा लेते आना, रोटी बनानी है।। बच्चों का दिमाग, कितनी ऊर्जा, कितनी सोचने की शक्ति।। यह माईक की सबसे बडी भूल थी।। भारत में आधारभूत संरचना है ही नहीं।। सुनते तो हो नहीं, जो करना हो सो करो।। रानी मुकर्जी हों साथ, जगह तो सुन्दर ही लगेगी।। उसकी यह अदा भा गयी।। यह बौद्व मंदिर है न कि हिन्दू मंदिर।। रास्ता तो एक ही है, भाग कर जायेंगे कैसे।। वह कुछ असमंजस में पड़ गयी।। हमने भगवान शिव को याद किया और आप मिल गये।। अपनी टूर दी फ्रांस - हिमाचल की साइकिल रेस।। और वह शर्मा गयी।। पता नहीं हलुवा घी में, या घी हलुवे में तैर रहा था।। अभी तक इसका पैसा नहीं निकल पाया है।। नग्गर में, रोरिख संग्रहालय।। आप, क्यों नहीं, इसके बाल खींच कर देखते।।
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