समय की चाल - व्यवस्था से, अव्यवस्था की ओर

इस चिट्ठी में उष्मागति के दूसरे नियम की चर्चा जैव विज्ञान और विकासवाद के संदर्भ में की गयी है।



मेरी श्रंखला 'डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े' की चिट्ठी 'विकासवाद उष्मागति के दूसरे नियम का उल्लंघन करता है' पर कुछ टिप्पणियां सवाल पूछते हुए आयी हैं। इस चिट्ठी की सुविधानुसार, मैं उनका सम्पादन कर नीचे पेश कर रहा हूं। मूल रूप पर की गयी टिप्पणी को आप उसी चिट्ठी में पढ़ सकते हैं।


एंट्रॉपी के जनक - रुडोल्फ क्लॉसिअस (Rudolf Clausius) २.१.१८२२-२४.८.१८८8 - चित्र विकिपीडिया से

अनुनाद जी कहते हैं,
"सृजनवादियों का कहना है कि विकासवाद में प्राणि जगत जीवन के निचले भाग में ऊँचे भाग की तरफ (from lower life form to higher life form) जा रहा है। अर्थात एंट्रॉपी घट रही है।"
'क्या प्राणिजगत का निचले स्तर से ऊंचे स्तर पर जाने का अर्थ यह है कि एण्ट्रापी बढ़ रही है?

यदि ऐसा है तो सब जगह एन्ट्रापी बढ़ रही है - मानव जब बच्चा होता है तो हर दृष्टि से सरल होता है; पहले के औजार सरल थे, अब जटिल औजार बनाये गये हैं; पहले की इन्टीग्रेटेड सर्किटों (आई सी) में कम ट्रान्जिस्टर हुआ करते थे; अब कई मिलियन ट्रान्जिस्टर होते हैं।'

अरविन्द जी का कहना है,
'मुझे लगता है जैवीय मामलों में entropy का सिद्धांत लागू नहीं होता - बीज की संरचनात्मक जटिलता अधिक होती है मगर वह ज्यो ज्यों वृक्ष बनता जाता है सरलीकरण होता है। मगर मैं कुछ निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकता।'
निशान्त जी कहते हैं,
'इसे समझना सरल नहीं है। Entropy के बारे में मैंने हॉकिंग की किताब में पढ़ा है। यह परिकल्पना दुरूह है। इसे कुछ सरल रूप में प्रस्तुत करें।'
जीवन के निचले भाग में ऊँचे भाग की तरफ (from lower life form to higher life form) जाने से एंट्रॉपी घट रही है। अनुनाद जी, ने जो उदाहरण दिये हैं उनमें भी एंट्रॉपी घट रही है। लेकिन यह वातावरण या सूर्य से ऊर्जा के कारण हो रहा है। जिसके कारण वहां एंट्रॉपी बढ़ रही है और दोनो को जोड़ बढ़ रहा है।

अरविन्द जी, मेरे विचार से जैवीय मामलों में भी एंट्रॉपी का सिद्धांत लगता है।

निशान्त जी, यह सच है कि एंट्रॉपी एक मुश्किल विषय है। मैंने इस विषय को ४० साल से भी पहले पढ़ा था। उस समय भी यह विषय मुश्किल लगता था। फिर भी, मैं इसे बताने बताने का प्रयत्न करता हूं।

मैंने उसी समय जॉर्ज गैमव (George Gamov) की 'वन, टू, थ्री ... इन्फिनिटी' (One, Two, Three ...Infinity) और आइज़ेक एसीमोव (Isaac Asimov) की 'एसिमोव ऑन फिज़िक्स' (Asimov on Physics) पढ़ी थी। उसके बाद यह विषय कुछ समझ में आया था। यह दोनो बेहतरीन पुस्तकें हैं यदि आप विज्ञान में रुचि रखते हैं और आपने नहीं पढ़ी हैं तो अवश्य पढ़े। यदि आपके मुन्ने, मुन्नी विज्ञान में रुचि रखते हैं तो उन्हें उपहार में दें।

पिछली चिट्ठी लिखने के पहले मैंने इन्हें पुनः पढ़ा था। आइज़ेक एसीमोव की पुस्तक में एक अध्याय 'ऑर्डर ऑर्डर!' (Order Order!) नाम से है। इसमें वे लिखते हैं (इसे अनुनाद जी के प्रश्न के परिपेक्ष में देखें),

'It is, of course, easy to cite cases of entropy decrease as long as we consider only parts of a system and not all of it. For instance, we see manking extract metals from ores and device engines of flendish complexity out of metal ingots. We see elevators moving upwards and automobiles driving uphill, and soldiers getting into marching formation and cards placed in order. All these and a very large number of other operations involve decrease in entropy brought about by the action of life. Consequently, the feeling arises that life can "reverse entropy".
...
In fact, in considering entropy changes on earth, it is unfair to consider the earth alone, since our planet is gaining energy constantly from the sun. This influx of energy from the sun powers all those processes on earth that represent local decreases in entropy: the formation of coal and oil from plant life, the circulation of atmosphere and ocean, the raising of water in the form of vapor, and so on. It is for that reason we can continue to extract energy by burning oil and coal, by making use of power from wind, river currents, waterfalls, and so forth. It is all at the expense, indirectly, of the sun.


The entropy increase represented by the sun's large-scale conversion of mass to energy simply swamps the comparatively tiny entropy decreases on earth. The net entropy change of the solar system as a whole is that of a continuing huge increase with time.'


जॉर्ज गैमव की पुस्तक में अध्याय 'द लॉ ऑफ डिस्ऑर्डर' (The Law of Disorder) है। इसमें वे लिखते हैं (इसे आप अरविन्द जी की टिप्पणी के परिपेक्ष में देखें),
'One seeming contradiction to the law of increasing entropy is presented by living organisms. In fact, a growing plant takes in simple molecules of carbon dioxide (from the air) and water (form the ground) and builds them up into the complex organic molecules of which the plant is composed. Transformation from simple to complex molecules implies the decrease of entropy; in fact, the normal process in which entropy does increase is the burning of wood and decomposition of its molecules into carbon dioxide and water vapor. Do plants really contradict the law of increasing entropy, being aided in their growth by some mysterious vis vitalis (life force) advocated by old-time philosophers?

The analysis of this question indicates that no contradiction exists, since along with carbon dioxide, water, and certain salts, plants need for their growth abundant sunlight. Apart from energy, which is stored in the material of growing plants and may be liberated again when the plant burns, the rays of the sun carry with them the so-called "negative entropy", (low-level entropy), which disappears when the light is absorbed by the green leaves. Thus the photosynthesis taking place in the leaves of plants involves two related processes:
  • Transformation of the light energy of the sun's rays into chemical energy of complex organic molecules;
  • The use of low-level entropy of the sun's rays for lowering the entropy associated with the building up of simple molecules into complex ones.
In term of "order versus disorder." one may say that, when absorbed by green leaves, the sun's radiation is robbed of the internal order with which it arrives on the earth, and this order is communicated to the molecules, permitting them to be built up into more complex, more orderly, configurations. Whereas plants build their bodies from inorganic compounds, getting their negative entropy (order) from the sun's rays, animals have to eat plants (or each other) for the supply of that negative entropy, being, so to speak, second-hand users of it.'
समय की रफ्तार - व्यवस्था से
अव्यवस्था की तरफ
यह चित्र मेरा नहीं है। मैंने इसे यहां से लिये है।
वहां पर कुछ प्यारी सी लड़कियों ने एंट्रॉपी को सरल भाषा में समझाया है।

मैंने हॉकिंग (Stephen W. Hawking) की पुस्तक 'अ ब्रीफ हिस्टरी ऑफ टाइम' (A Brief History of Time: From Big Bang to Black Holes) बहुत पहले पढ़ी थी। मुझे यह पुस्तक दर्शन से संबन्धित ज्यादा लगती है और विज्ञान से कम। मेरे विचार से यह पुस्तक ज्यादा चर्चित है फिर भी निशांत जी की टिप्पणी के बाद मैंने इसे पढ़ा। इसमें एक अध्याय 'द ऐरॉ ऑफ टाइम' (The Arrow of Time) नाम से है। इसमें वे कहते हैं,
'The progress of the human race in understanding the universe has established a small corner of order in an increasingly disordered universe. If you remember every word in this book, your memory will have recorded about two million pieces of information:the order in your brain will have increased by about two million units. However, while you have been reading the book, you will have converted at least a thousand calories of ordered energy, in the form of food, into disordered energy, in the form of heat that you lose to the air around by convection and sweat. This will increase the disorder of the universe by about twenty million million million million units - or about ten million million million times the increase in order in your brain - and that's if you remember everything in this book.'


मेरे विचार से उष्मागति का दूसरा नियम विज्ञान का नियम है। यह प्रकृति में हर जगह, हर समय लगना चाहिये अन्यथा यह नियम सही नहीं होगा। लेकिन हॉकिंग अपनी पुस्तक के अध्याय 'ब्लैक होलस् आंट सो ब्लैक' (Black Holes Ain't So Black) में लिखते हैं,
'The second law of thermodynamics has a rather different status than that of other laws of science, such as Newton's law of gravity, for example, because it does not hold always, just in the vast majority of cases.'
लेकिन वे अपनी पुस्तक में, यह बताते हुए कि यह कब नहीं लगेगा, लिखते हैं,

  • इस समय ब्रह्माण्ड फैल रहा है। जब वह सिकुड़ना शुरू करेगा (यदि ऐसा हुआ तो) तब यह नियम सत्य नहीं होगा। लेकिन उस समय प्रकृति के सारे नियम उलट जायेंगे।
  • हो सकता है कि ब्लैक होल के अन्दर यह नियम सच न हो।
लेकिन यह दोनो बातें संभावनायें ही हैं। क्या मालुम ठीक हों या न हों।


पिछली चिट्ठी के अन्त में कुछ लेखों का लिंक 'Related articles by Zemanta' करके बॉर्डर के अन्दर बताये थे। वे भी इसी विषय के बारे में हैं। वे लिंक हैं,

मैंने पिछली चिट्ठी लिखते समय इन सब को देखा था और इन पुस्तकों एवं उपर दिये लिंक का निचोड़ ही अपने शब्दों में पिछली चिट्ठी में लिखा था। शायद मेरे लिये, उससे सरल भाषा में लिखना संभव नहीं है।



अगली बार हम लोग मिलेंगे तब बात करेंगे सृजनवादियों की दूसरी और उनकी मुख्य आपत्ति पर - यानि कि पूर्वजों के बारे में क्या सबूत हैं? कहां है मिसिंग लिंक (missing link)?

डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
भूमिका।। डार्विन की समुद्र यात्रा।। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से, क्यों डगमगाया।। सेब, गेहूं खाने की सजा।। भगवान, हमारे सपने हैं।। ब्रह्मा के दो भाग: आधे से पुरूष और आधे से स्त्री।। सृष्टि के कर्ता-धर्ता को भी नहीं मालुम इसकी शुरुवात का रहस्य।। मुझे फिर कभी ग़ुलाम देश में न जाना पड़े।। ऐसे व्यक्ति की जगह, बन्दरों से रिश्ता बेहतर है।। विकासवाद उष्मागति के दूसरे नियम का उल्लंघन करता है।। समय की चाल - व्यवस्था से, अव्यवस्था की ओर।।

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In this post second law of Thermodynamics entropy is explained in context of evolution. This post explains it. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.



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