बटर चिकन इन लुधियाना: सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच

बटर चिकन इन लुधियाना (Butter Chicken in Ludhiana) भारत के कुछ (१९) शहरों के बारे में यात्रा संस्मरण है। यह यात्रा बस या फिर ट्रेन के द्वारा की गयी है। इसमें लेखक की यात्रा करने का कोई मकसद नहीं बताया गया है पर इसकी भाषा सरल है, अपना प्रवाह है, और यह कहानी है भारत के आधुनिकीकरण और ग्लोबीकरण की। यह किस तरह से इसके छोटे-छोटे शहरों को बदल रही है। वहां के लोग क्या बात कर रहे हैं किस प्रकार से उनकी सोच में परिवर्तन आ रहा है। यह यात्रा संस्मरण इसी परिप्रेक्ष्य में है।

झांसी में युवती, झांसी की रानी बनने की जगह, फैशन के दुनिया की रानी बनने की सोचती है तो बिहार के नक्सलाइट एक क्रान्ति लाने की। नये-नये व्यापारी पैसों को दिखाने के लिये सोने की चेन पहन रहे हैं। कानपुर के दुकानदार कन्याकुमारी में घूमते हुए लंदन जाने की बात सोचते हुऐ इस बात पर चिन्ता कर रहे हैं कि क्या उनकी अंग्रेजी ठीक-ठाक है या नहीं। हापुड़ की शादी में, लोग यह बात कर रहे हैं कि दहेज में १५ लाख मिले या फिर कुछ और ज्यादा।

मुझे, सबसे ज्यादा आश्चर्य बनारस के बारे में पढ़ कर हुआ। मैं, लगभग ४० साल पहले, बनारस अन्तर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता खेलने गया था। उसके बाद जाने का मौका नहीं मिला। विश्वविद्यालय के बाहर की जगह लंका के नाम से जानी जाती है। यह केवल इसलिये क्योंकि बनारस में रामलीला के अलग अलग काण्डों का मंचन अलग अलग जगह होता है। इस जगह लंका काण्ड का मंचन होता है। यहां हम लोग सुबह शाम, मुसम्बी का रस, पिया करते थे। एक दिन शाम को गंगा पर नौका विहार भी किया। मेरे पास बनारस की मधुर यादें हैं पर इस पुस्तक में बनारस के बारे में पढ़कर दुख हुआ।

इस के अनुसार बनारस में विदेशी महिलाओं के साथ जितनी छेड़छाड़ और बद्तमीजी है उतनी कहीं नहीं। एक विदेशी महिला बताती है कि, बनारस में आदमी और महिलाओं के अनुभवों में उतना ही अन्तर है जितना दिन और रात में। कुछ बनारसी इसका यह कह कर विश्लेष्ण करते हैं कि वहां एक तरफ तो धार्मिक रूढ़िवादिता है तो दूसरी तरफ सबसे ज्यादा विदेशी - इन दोनों के मिश्रण से ऎसा हो रहा है।

मुशीरादाबार में पंकज जब सलीम से हिन्दु मुसलमान के रिश्तों के बारे में बात करता है तो सलीम कहता है कि,
'दोनों के रिश्ते बहुत अच्छे हैं। एक बार बंगला देश से मुसलमानों ने आकर उत्पात मचाना शुरू किया, तो मुसलमानों ने ही उन्हें लताड़ा।'
पंकज के पूंछने पर कि बाबरी मस्जिद के टूटने पर मुसलमानों की क्या प्रतिक्रिया रही। सलीम ने कहा,
'कुछ अजीब लगा पर इस बात के बारे में बात करने से क्या फायदा। मुझे कोई असर नहीं पड़ता कि अयोध्या में कितने मन्दिर या मस्जिद रहते है मुशीरादाबाद में कई मस्जिद है और मुझे क्या करना कि कहीं और, जहां मैं कभी न जा पाऊं वहां, कितनी मस्जिद हैं।'

मालदा के एक रेस्ट्रां में हरियाणा के पर्यटक रात में खाना खा रहें हैं। उनमें से एक , मजाक में, पहेली पूछ रहा है,
'खालिस्तान की राष्ट्रीय पक्षी क्या है ?'
जब कोई नहीं बता पाया तो पहेलीबाज ने जोर से बोल कर कहा,
'बटर चिकन।'
यह लोग देर रात तक हंसते रहे। इनमें से एक ने दूसरे को बताया कि वह हिन्दुस्तान के कई रेस्ट्रां में जा चुका है पर लुधियाना के एक रेस्ट्रां में जितना अच्छा बटर चिकन मिलता है उनता कहीं नहीं,
'एक बार खा लो जीवन सफल हो जाय!'
शायद इसी कारण इस पुस्तक का नाम पड़ा 'बटर चिकन इन लुधियाना'।

इस पुस्तक में सलीम के विचार पढ़ मुझे अपने विद्यार्थी जीवन के वकील मित्र इकबाल
कि याद आयी। उसका जिक्र मैंने उर्मिला की कहानी में किया है। वह 'राम-जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद' पर कहता है कि,
'यहां न तो मस्जिद बननी चाहिये न ही मन्दिर यहां तो खेल का मैदान बनना चाहिये जिसमें पहला मैच भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होना चाहिये। भारत के कप्तान कपिल देव और पाकिस्तान के कप्तान इमरान खान।'
वह अक्सर अयोध्या जाता है, कहता है कि
'अयोध्या में लोग चाहे मुसलमान हों या फिर हिन्दू - वे यह नहीं सोचते कि मन्दिर बने या मस्जिद। वे सोचते हैं कि इसी बहाने यहां लोग तो आते हैं। वे कुछ पैसा तो कमा पाते हैं। यदि मन्दिर मस्जिद की जगह जीविका उपार्जन का साधन बन सके तो अच्छा है।'

मुझे हमेशा लगता है कि धर्म - मन्दिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा - से उपर है। धर्म तो लोगों को जोड़ता है, यह तो अक्सर ... इसीलिये
मैंने अनुगूंज १८: मेरे जीवन में धर्म का महत्व में लिखा था,
'नहीं बसता मैं किसी मन्दिर या मस्जिद में,
न ही रहता हूं किसी गिरिजाघर या गुरुद्वारे में,
न ही बसता हूं किसी पूजा घर में।
यह तो है केवल अपना दिल बहलाना,
मैं तो हूं तुम्हारे आशियाना।

मैं नही पाया जाता पुरी, रामेश्वर में,
न ही मक्का, मदीना में,
जेरूसलम या कोई अन्य पवित्र स्थल भी नही है मेरा ठिकाने।
यह सब तो है लोगों के अफसाने,
तरीके दिल बहलाने के,
क्योंकि मैं तो वास करता हूं, तुम्हारे मन मानस में।'
खैर यह चर्चा न तो धर्म की है या फिर राम जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद की। यह तो थी बटर चिकन इन लुधियाना की - यह सब तो बस यूं ही।

सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच
भूमिका।। विज्ञान कहानियों के जनक जुले वर्न।। अस्सी दिन में दुनिया की सैर।। पंकज मिश्रा।। बटर चिकन इन लुधियाना

सांकेतिक शब्द
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एकान्तता और निष्कर्ष: आज की दुर्गा

(इस बार चर्चा का विषय है एकान्तता और इस श्रंखला का निष्कर्ष। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के लिये ► चिन्ह पर और बन्द करने के लिये ।। चिन्ह पर चटका लगायें।)

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हमारे संविधान का कोई भी अनुच्छेद, स्पष्ट रूप से एकान्तता की बात नहीं करता है। अनुच्छेद २१ स्वतंत्रता एवं जीवन के अधिकार की बात करता है पर एकान्तता की नहीं। १९९२ में मुकदमे Neera Mathur Vs. Life Insurance Corporation में उच्चत्तम न्यायालय ने एकान्तता के अधिकार को, अनुच्छेद २१ के अन्दर, स्वतंत्रता एवं जीवन के अधिकार का हिस्सा माना।

नीरा माथुर, जीवन बीमा निगम में प्रशिक्षु थीं। अपने प्रशिक्षण के दौरान उसने अवकाश लिया पर जब वह वापस आयीं तो उनकी सेवायें समाप्त कर दी गयी। उन्होने दिल्ली उच्च न्यायालय में गुहार लगायी। निगम ने न्यायालय को बताया कि, उसे नौकरी से इसलिये हटा दिया गया क्योंकि उसने नौकरी पाने के समय झूठा घोषणा पत्र दिया था।

निगम में सेवा प्राप्त करने से पहले एक घोषणा पत्र देना होता है। महिलाओं को इसमें कुछ खास सूचनायें बतानी पड़ती थीं, जैसे कि,
  • रजोधर्म की आखिरी तिथि क्या है?
  • क्या वे गर्भवती हैं?
  • उनका कभी गर्भपात हुआ है कि नहीं, इत्यादि।
अवकाश के दौरान नीरा को बिटिया हुयी थी और जीवन बीमा निगम के अनुसार उसने घोषणा पत्र में जो रजोधर्म की आखिरी तारीख लिखी थी यदि वह सही है तो उसे यह बिटिया नहीं पैदा हो सकती थी। इसलिये वे इस घोषणा पत्र को झूठा बता रहे थे।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने नीरा माथुर की याचिका खारिज कर दी पर उच्चतम न्यायालय ने उसकी अपील स्वीकार कर, उसे सेवा में वापस कर दिया। उनके मुताबिक यह सूचना किसी महिला की एकान्तता से सम्बन्धित है। न्यायालय ने कहा कि,
'The particulars to be furnished under columns (iii) to (viii) in the declaration are indeed embarrassing if not humiliating.'
इस तरह की सूचना मांगना यदि अपमानजनक नहीं है तो कम से कम शर्मिन्दा करने वाली है।

निष्कर्ष
हम लोग इस समय २१वीं सदी में पहुंच रहे हैं। लैंगिक न्याय की दिशा में बहुत कुछ किया जा चुका है पर बहुत कुछ करना बाकी भी है। क्या भविष्य में महिलाओ को लैंगिक न्याय मिल सकेगा। इसका जवाब तो भविष्य ही दे सकेगा पर लगभग ३० साल पहले रॉबर्ट केनेडी ने कहा था,
'Some men see the things as they are and say why, I dream things that never were and say why not?'

केवल कानून के बारे में बात कर लेने से महिला सशक्तिकरण नहीं हो सकता है। इसके लिये समाजिक सोच में परिवर्तन होना पड़ेगा। फिर भी, यदि हम लैंगिक न्याय के बारे में सोचते हैं, इसके बारे में सपने देखते हैं - तब, आज नहीं तो कल, हम उसे अवश्य प्राप्त कर सकेंगे।

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।। Alimony और Patrimony।। अपने देश में Patrimony - घरेलू हिंसा अधिनियम।। विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय में।। यौन अपराध।। बलात्कार परीक्षण - साक्ष्य, प्रक्रिया।। दहेज संबन्धित कानून।। काम करने की जगह पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़।। समानता - समान काम, समान वेतन।। स्वतंत्रता।। एकान्तता

पंकज मिश्रा: सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच

बटर चिकन इन लुधियाना (Butter Chicken in Ludhiana), पिछले कुछ सालों में लिखा गया सबसे चर्चित और सबसे लोकप्रिय यात्रा संस्मरण है। इसे पंकज मिश्रा ने १९९५ में लिखा था।

पंकज मिश्रा का यह चित्र कोलंबिया विशवविद्यालय की इस वेबसाइट से लिया गया है और उन्हीं के सौजन्य से है। वहां पर उनकी जीवनी अंग्रेजी में है, जिसे आप पढ़ सकते हैं।

पंकज मिश्रा का जन्म १९६९ में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कामर्स की स्नातक डिग्री लेकर दिल्ली जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय चले गये। वहां से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. (M.A.) और एम. फिल. (M. Phil) किया। कुछ दिनों तक हापर कॉलिनस में कार्य किया अब मुक्त लेखन करते हैं। इस समय अधिकतर समय, हिमालय की गोद में बसे एक गांव मशोबरा नामक गांव में, व्यतीत करते हैं।

यह पुस्तक कितनी अच्छी लिखी इसका अन्दाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जब १९९५ में पंकज ने दूसरी पुस्तक २००० में Romantics नाम से लिखी । तब 'बटर चिकन इन लुधियाना' की प्रसिद्घि के कारण रोमांटिक्स लिखने के लिये उन्हें ३ लाख डालर मिले। यह उस समय किसी भी एशिया के लेखक की उस समय तक मिलने वाले सबसे ज्यादा पैसे थे।

इसकी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह न तो भारतवर्ष की पर्यटन जगहों के बारे में है न अनूठी तरह से किया गया यात्रा विवरण है। यह भारत के कुछ (१९) शहरों के बारे में है और यात्रा भी बस या फिर ट्रेन के द्वारा की गयी है। इसमें लेखक की यात्रा करने का कोई मकसद नहीं बताया गया है।
'अरे उन्मुक्त जी, इसमें तो कुछ भी नहीं है फिर यह इतनी प्रसिद्ध क्यों है? क्या है इसमें, जो इसे यादगार यात्रा संसमरण बनाता है?'
इंतजार करिये, इतनी भी क्या ज्लदी है - यह अगली बार।


सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच
भूमिका।। विज्ञान कहानियों के जनक जुले वर्न।। अस्सी दिन में दुनिया की सैर।। पंकज मिश्रा।। बटर चिकन इन लुधियाना

क्या मदर टेरेसा अच्छी अभिनेत्री थीं

मैं ईश्वर पर विश्वास नहीं करता। मैं आस्तिक (theist) नहीं हूं। इसका यह अर्थ नहीं कि मैं नास्तिक (atheist) हूं। मैं सोचता हूं कि ईश्वर के होने का कोई सबूत नहीं है यदि कभी मिलेगा तो मैं उसे मान लूंगा, पर अभी नहीं। कुछ अज्ञेयवादी (agnostic) की तरह सोचता हूं। यह चिट्ठी इसी परिपेक्ष में देखी जाय।


मदर टेरेसा एगनेस गॉनजा बॉजाज़ु
(Agnes Gonxha Bojaxhiu) का जन्म २६ अगस्त १९१० को, मैकेडोनिया गणराज्य (Republic of Macedonia) की राजधानी स्कोप्ज (Skopje) में हुआ था। ८ साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। उसके पश्चात, उनकी मां ने उन्हें रोमन कैथोलिक की तरह बड़ा किया। एगनेस १८ साल की उम्र में ही मिस्टरस आफ लॉरेटो मिशन के साथ जुड़ गयी।

एगनेस ने पहले अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया, फिर १९२१ में दार्जिलिंग भारत आयीं। नन के रूप में २४-५-१९३१ को शपथ लेने के बाद, अपने को नाम टेरेसा कहलाना पसन्द किया और कलकत्ता में आकर लॉरेटो कान्वेन्ट में पढ़ाने लगीं।

पढ़ाते समय उन्हें लगने लगा कि ईश्वर ने उन्हें गरीबों के बीच काम करने का बनाया है। ७ अक्टूबर १९५० को वेटिकन की अनुमति से, गरीबों, कोढ़ पीड़ितों, अन्धों, विकलांग (Crippled) के लिए मिशनरिस आफ चैरिटीस (Missionaries of Charities) की स्थापना की। उनकी मृत्यु ५ सितम्बर १९९७ को हो गयी।

मदर टेरेसा को १९७९ का नोबल शान्ति पुरूस्कार मिला। उसे स्वीकार करते समय ११ दिसम्बर को उन्होंने कहा,
'यह कहना पर्याप्त नहीं है कि हम ईश्वर से प्रेम करते हैं पर अपने पड़ोसी से नहीं।... ईश्वर ने क्रास पर मृत्यु के द्वारा यह बताया है कि वह गरीबों में है, वह उनमें है जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं हैं हमें उसे ढूढ़ना है।... आने वाले बड़े दिन का अवसर खुशहाली से परिपूर्ण है क्योंकि ईसा हमारे दिल में है; ईसा उस मुस्कराहट में है जो हमें मिलती है उस मुस्कराहट में है जो हम देते हैं।'

मदर टेरेसा गरीबों को, बेघर-बार लोगों, कोढ़ पीड़ितों को तो ढूढ़ सकीं; वे लोगों को मुस्कराहट दे सकीं; वे लोगों के दिल के पास पहुंच सकीं पर क्या ईश्वर को ढूढ़ सकीं? यह बहुत सारे सवाल, उनके लिखे पत्रों को प्रकाशित करने वाली पुस्तक, 'Mother Teresa Come, Be My Light.' खड़ा करती है।

नोबल पुरस्कार मिलने के कुछ महीने पहले, उन्होंने पादरी माईकल वैन पीट (Rev. Michael van der Peter) को कुछ और ही लिखा था,
'ईसा, तुम्हें अलग तरह से प्यार करते हैं......... पर मेरे लिये तो सन्नाटा और अकेलापन इतना ज्यादा है कि मैं नजर तो डालती हूं पर कुछ दिखायी नहीं देता---- कान तो लगाती हूं पर कुछ सुनायी नहीं देता-- मेरी जीभ [प्रार्थना में] चलती है पर आवाज नहीं निकलती। मैं चाहती हूं कि तुम मेरे लिये प्रार्थना करो'

इन पत्रों को पढ़कर उनके व्यक्तिगत जीवन का दूसरा स्वरूप मिलता है। शायद उन्होंने अपने ५० साल बिना ईश्वर के विद्यमानता के जिये; उसकी कमी महसूस की। भगवान की यह कमी उन्होने, लगभग १९५९ में जब कलकत्ता में गरीबों के साथ काम करना शुरू किया, तभी से महसूस किया। मदर टेरेसा, इन पत्रों में जीवन के रूखेपन, अंधेरे, अकेलेपन और दर्द के बारे में बात करती हैं। वे एक जगह यहां तक कहती हैं कि,
'मेरी मुस्कराहट छलावा है जिससे मैंने ओढ़ रखा है।'
पादरी ब्राएन कोलोडाईचुक (Rev. Brian kolodiejchuk) जिन्होने इन पत्रों को एकत्र कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है, उनके शब्दों में मदर टेरेसा ने ईश्वर कि उपस्थिति को,
'न तो अपने हृदय में और न ही पवित्र ईसाई प्रसाद में पाया (neither in her heart not in the eucharist).'
यह पुस्तक, लोगों को, उनके जीवन को नयी तरह से देखने पर मजबूर करेगी।


मदर टेरेसा हमेशा चाहती थीं कि उनके पत्र नष्ट कर दिये जाय पर चर्च ने उन्हें नहीं नष्ट होने दिया। इन्हें नष्ट करने का कारण भी था। उन्हें लगता था कि इन पत्रों को पढ़ कर लोग ईसा के बारे में कम पर उनके बारे में ज्यादा बात करेंगे और वे यह नहीं चाहती थीं। शायद यह दर्शाता है कि इन सब शक के बाद भी वे भगवान के अस्तित्व पर विश्वास करती थीं या फिर उसी विचारधारा की थी जैसा कि मैं हूं। इसमें जो भी सच हो, उन्होने जो भी किया यदि मैं उसका १% कर सका तो अपना जीवन सफल मानूगा।



मैं किसी को आहत भी नहीं करना चाहता यदि किसी कारणवश मैं किसी की भावना आहत होती है तो माफ करेंगे।

इस चिट्ठी उपर का चित्र विकिपीडीया से है और ग्नू मुक्त प्रलेखन अनुमति पत्र की शर्तों के अन्दर प्रकाशित है। बाकी चित्रों में, पुस्तक के कवर को छोड़ कर, बाकी दोनो चित्र टाईम पत्रिका के फोटो गैलरी से हैं और उन्ही के सौजन्य से हैं। वहां मदर टेरेसा से संबन्धित बहुत सारे चित्र हैं , जा कर देखें।

मदर टेरेसा की जीवनी के बारे में कुछ विवाद हैं। यह आप विकिपीडीया के इस लेख पर पढ़ सकते हैं। मदर टेरेसा के पत्रों के बारे में प्रतीक जी ने भी इस बारे में मदर टेरेसा : टीस से भरी एक ज़िन्दगी नाम की चिट्ठी लिखी है। टाईम पत्रिका ने एक लेख विस्तार से Mother Teresa's Crisis of Faith नाम से लिखा है।

सांकेतित शब्द
autobiography, biography, जीवनी
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'आंकड़े गलत बताते हैं' की चिट्ठी पर पूछी गये सवाल का जवाब

मैंने अपनी चिट्ठी 'आंकड़े गलत बताते हैं' में बताया था कि लड़का या लड़की होने की संभावना भी, हैड या टेल की तरह आधी होती है। इसके बाद एक सवाल पूछा था। उसका जवाब ढूढने से पहले एक और स्थिति को समझें।

पहला बच्चा हो जाने के बाद, दूसरे बच्चे के लड़का या लड़की होने की क्या संभावना है। तो यहां पहला और दूसरा बच्चा एक दूसरे से स्वतंत्र हैं और इसका जवाब १/२ (आधा) है। अब चलते हैं मेरे द्वारा पूछे गये सवाल पर।

मेरा सवाल था यदि किसी दम्पत्ति के दो बच्चे हों और उनमें से एक
बच्चा लड़की हो तो इस बात की क्या सम्भावना है कि दूसरा बच्चा भी लड़की होगा। इसका जवाब १/३(एक तिहाई) है।

यह समझने के लिये इस सवाल का दूसरा रूप भी देखें।

यदि किसी दम्पत्ति के दो बच्चे हों और उनमें से बड़ा बच्चा लड़की हो तो इस बात की क्या सम्भावना है कि छोटा बच्चा भी लड़की होगा। इसका जवाब १/२ (आधा) है।

इन दोनो जवाबों में अन्तर का कारण इन सवालों का अन्तर है जिसे मैंने बोल्ड कर के दिखाया है। इसको इस प्रकार भी देखें।

यहां दो बच्चे हैं। इसलिये इसकी निम्न चार संभावनायें हैं।
  1. लड़की लड़की
  2. लड़की लड़का
  3. लड़का लड़की
  4. लड़का लड़का
इनमें से यदि दोनो बच्चे लड़की होने हैं तो इसका अर्थ है कि हम पहली वाले केस की संभावना निकाल रहें हैं।

दूसरे सवाल में बड़ा बच्चा लड़की है। इसलिये तीसरी और चौथी संभावना नहीं हो सकती है। केवल पहली और दूसरी - दो बाते हो सकती हैं। इसलिये जवाब होगा १/२ (आधा)।

मैंने जो सवाल पूछा था उसमें एक बच्चा लड़की है पर यह नहीं कहा था कि वह बड़ा वाला है कि छोटा वाला। इसलिये तीसरा केस भी हो सकता है। यानि कि पहली तीन बातें हो सकती हैं। इसलिये जवाब है १/३(एक तिहाई)।

यौन शिक्षा और सांख्यिकी।। आंकड़े गलत बताते हैं।। 'आंकड़े गलत बताते हैं' की चिट्ठी पर पूछी गये सवाल का जवाब

स्वतंत्रता: आज की दुर्गा

(इस बार चर्चा का विषय है स्वतंत्रता। इसे आप सुन भी सकते हैं। यह ऑडियो फाइले ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,

  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में,
सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।)

Liberty women empowerment
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मौलिक अधिकार, संविधान के भाग तीन में हैं। यह सारे, कुछ न कुछ, स्वतंत्रता के अलग अलग पहलूवों से संबन्ध रखते हैं पर इस बारे में संविधान के अनुच्छेद १९ तथा २१ महत्वपूर्ण हैं। अनुच्छेद १९ के द्वारा कुछ स्पष्ट अधिकार दिये गये हैं और जो अनुच्छेद १९ या किसी और मौलिक अधिकार में नहीं हैं वे सब अनुच्छेद २१ में समाहित हैं। आइये इस सम्बन्ध में C.B.Muthamma IFS Vs. Union of India (मुथन्ना केस) को समझें।

विदेश सेवा के नियमों के अन्दर ,
  • विवाहित महिलाओं का विदेश सेवा में चयन नहीं किया जा सकता था;
  • विदेश सेवा में काम करने वाली अविवाहित महिला को, शादी करने से पहले सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी; और
  • यदि सरकार इस बारे में संतुष्ट है कि उसका परिवार उसके रास्ते में आयेगा तो वह उसकी सेवायें समाप्त कर सकती थी।

यह नियम केवल महिलाओं के लिए था पुरूषों के लिए नहीं। यह नियम, १९७९ में, मुथन्ना केस में अवैध घोषित कर दिया गया। न्यायालय ने कहा कि,
'Discrimination against women, in traumatic transparency, is found in this rule......if the family and domestic commitments of a woman member of the service are likely to come in the way of efficient discharge of duties, a similar situation may well arise in the case of a male member. In these days...one fails to understand the naked bias against the gentler of the species.......
And if the executive....makes [ such] rules....[then] the inference of die..hard allergy to gender parity is inevitable.'
इन नियमों में महिलाओं के खिलाफ भेद-भाव स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ता है। यदि पारिवारिक एवं घरेलू जिम्मेदारियां महिला कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकती हैं तो यह बात पुरूषों पर भी लागू होती है। महिलाओं के प्रति इस समय भी इस तरह का पूर्वाग्रह हमारी समझ के बाहर है।
यदि कार्यपालिका इस तरह के नियम बनाती है उससे महिलाओं के प्रति भेदभाव स्पष्ट रूप से झलकता है।

अगली बार चर्चा करेंगे एकान्तता की। वह इस श्रंखला की आखरी कड़ी है। तभी चर्चा करेंगे, इस श्रंखला के निष्कर्ष की।

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।। Alimony और Patrimony।। अपने देश में Patrimony - घरेलू हिंसा अधिनियम।। विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय में।। यौन अपराध।। बलात्कार परीक्षण - साक्ष्य, प्रक्रिया।। दहेज संबन्धित कानून।। काम करने की जगह पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़।। समानता - समान काम, समान वेतन।। स्वतंत्रता

आंकड़े गलत बताते हैं

मैंने, 'यौन शिक्षा और सांख्यिकी' की चिट्ठी पर, सांख्यिकी से जुड़े ४० वर्ष पहले विद्यार्थी जीवन के अनुभव, और उस समय सांख्यिकी पर पढ़ी कुछ बेहतरीन पुस्तकों (जो आज भी सांख्यिकी की लाजवाब पुस्तकें मानी जाती हैं) के बारे में बात करने को कहा था। चलिये चलते हैं इस सफर पर भी।

मैं कागज, पेन्सिल से ठीक ठाक काम कर लेता था पर हाथ से काम करने में हमेशा फिसड्डी - हमेशा सैद्धान्तिक विज्ञान ही पसन्द आया और विज्ञान की प्रयोग-कक्षा (practical class प्रैक्टिकल क्लास) में नानी याद आती थी। रसायन शास्त्र के अनुमापन (titration टाइट्रेशन) के प्रैक्टिकल तो जैसे तैसे समाप्त किये - कब रंग गुलाबी हुआ, कब रोका जाय, हो ही नहीं पाता था। विद्यार्थी जीवन में पहला मौका मिलते ही रसायन शास्त्र छोड़ कर सांख्यिकी विषय ले लिया - यह कोई १९६० दशक के बीच की बात होगी।

हमारे सांख्यिकी अध्यापक हमेशा सूट में आते थे - ऐंठ रहती थी। लड़कियों पर प्रभाव डालने के प्रयत्न में रहते थे। अंग्रेजी बहुत स्टाईल से बोलते थे। हालांकि उनका उच्चारण एकदम सही नहीं था। विषय पर पकड़ भी अच्छी नहीं थी। अच्छा ही हुआ कि वे बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चले गये।

सांख्यिकी अथार्त आंकड़ों को एकत्र करना और उनका विश्लेषण कर - परिणाम निकालना, सवालों के उत्तर ढ़ूढना, और कल्पना को रूप देना और है। यह आसान विषय नहीं है, स्पष्ट नहीं होता था। इसलिये, हर किसी के लिये, इसके द्वारा निकाले गये परिणामों में गलती पकड़ पाना कठिन है। शायद, इसी लिये यह कहावत शुरू हूई कि,
'There are lies, damned lies and Statistics'
आंकड़े गलत बताते हैं।
मैंने सांख्यिकी के बारे में कोर्स से हट कर पुस्तकें ढूढ़नी शुरू की। सबसे पहले Facts from Figures by M.J.Moroney की पुस्तक मिली। इसे पढ़ने बाद ही यह विषय ठीक से समझ में आया। यह अच्छी पुस्तक है। यह इस विषय पर सम्पूर्ण तो नहीं है पर यह पाठकों को सांख्यिकी की मुख्य बातों को अच्छी तरह से बताती है और इसके सिद्घान्तों को अच्छी तरह से समझाती है।

इसके साथ मैंने दो और पुस्तकें पढ़ी। यह दोनों पुस्तकें Darrell Huff ने लिखी हैं। एक है How to lie with Statistics और दूसरी है How to take a chance. यह भी सांख्यिकी और Probability (संभावनाओं) के सिद्घान्तों को अच्छी तरह से समझाती है। मुझे दोनो पुस्तकें भी पसन्द आयी।

यदि आपका सांख्यिकी में कुछ भी सम्बन्ध है, या आपके मुन्ने या मुन्नी इस विषय पर रूचि रखते हैं, या इस विषय को पढ़ रहे हों तो इसे पढ़ने को दें। यह तीनों पुस्तकें इस समय Pelican में उपलब्ध हैं।

मेरे विद्यार्थी जीवन में गणित और सांख्यिकी दोनों विषयों में Probability का पेपर हुआ करता था। हम लोगों को इसका फायदा मिला - एक पेपर कम पढ़ना पड़ा।

हम संभावनाओं की गणित को कुछ इस प्रकार समझा सकते है कि यदि आप किसी सिक्के को उछालें तो या हैड आयेगा या टेल। यानी कि दो संभावनायें हैं। यदि 'शकुनि सिक्का' न हो तो दोनों में से कोई एक आ सकता है। इसलिये कहा जाता है कि हैड या टेल के आने की संभावना १/२ यानी कि आधी है।

संभावनाओं की गणित का विषय मुश्किल है। हम लोग कहा करते थे कि यदि सवाल का जवाब मालुम हो वह तर्क निकाल सकते हैं जिसके द्वारा वह जवाब मिल सके। How to take a chance इस विषय को अच्छी तरह से समझाती है। इसको पढ़ने के बाद ही इस विषय पर पकड़ आयी।

इसी बात पर एक सवाल।

लड़का होगा या लड़की, इसकी संभावना भी हैड या टेल की तरह आधी होती है। सवाल यह है कि यदि किसी दम्पत्ति के दो बच्चे हों और उनमें से एक लड़की हो तो इस बात की क्या सम्भावना है कि दूसरा बच्चा भी लड़की होगा।

यदि आप संभावनाओं के सिद्घान्तों को अच्छी तरह से समझतें है तो यह सवाल एकदम आसान, यदि नहीं तो फिर मुश्किल है। कोशिश कर के देखिये।

इस सवाल का जवाब यहां में देखें।

सांकेतिक शब्द
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अलविदा कश्मीर

मैं, १९७५ की जून में एक महीने श्रीनगर रहा था। जिस घर में ठहरा था उसके बगल में पहाड़ी है उसके ऊपर शिवजी का मंदिर है। यह शंकराचार्य जी का मंदिर कहलाता है क्योंकि उन्होंने ही शिवलिंग की स्थापना की थी मैं तब कई बार पैदल उस मंदिर तक गया था। उस समय मंदिर में केवल हमी लोग होते थे। अब पक्की रोड बन गयी है और अन्त में २४० सीढ़ियां है। पहाड़ी रास्ते से जाने की इजाजत नहीं है। सब तरफ पुलिस का पहरा है। आप मंदिर तक कैमरा भी नहीं ले जा सकते हैं। इस मंदिर में 'आपकी कसम' फिल्म के गाने 'जय-जय शिवशंकर' के आधे भाग की शूटिंग हुयी है। इस बार जब हम लोग मंदिर पहुंचे तब वहां सैकड़ों लोग थे। बहुत भीड़ थी।

कश्मीर के हरियाली और फूल श्रीनगर में जगह-जगह बाग हैं मुगल राज्य के समय के दो बाग निषाद और शालीमार अब भी पुराने समय की दास्तान बिखेर रहे हैं।

निषाद बाग से हजरतबल मस्जिद दिखायी पड़ती है जिसमें कुछ साल पहले उग्रवादी घुस गये थे और मुश्किल से निकाले जा सके।

श्रीनगर में चश्मेशाही है। यहां पानी निकलता है। कहा जाता है कि इसमें औषधीय तत्व हैंः पीने से पीलिया तथा पेट की बीमारी दूर हो जाती है। मेरा पेट कुछ खराब चल रहता है। मैंने पानी पिया। यह मनोवैज्ञानिक कारण था या वास्तविक पर मेरे दस्त ठीक हो गये। कहा जाता है कि जवाहरलाल नेहरू के पीने के लिये पानी यहां से जाता था।

श्रीनगर में परी महल भी है इसे शाहजहां के लड़के दाराशिकोह ने सूफी संतों के रहने और अध्ययन के लिये बनवाया था। कहा जाता है कि इसका नाम पीर महल था सरकार ने इसका नाम परी महल कर दिया है। सरकार के मुताबिक परियां पवित्र जगह जाती हैं, यहां पवित्र आत्मायें रहती थीं - इसलिये इसका नाम परी महल रख दिया गया।

मालुम नहीं, क्या सच है - इस समय तो इसमें न सूफी सन्त रहते हैं न ही परियां - इसमें पैरा मिलिट्री वालों ने कब्जा जमा लिया है।

श्रीनगर में एक नया १८ होल का अन्तरराष्ट्रीय गोल्फ कोर्स बना है परी महल से पूरा दिखायी पड़ता है। यह बहुत सुन्दर है।



कश्मीर में सबसे अच्छी बात यह लगी कि बहुत कम महिलायें बुरका पहने दिखायी पड़ीं। मैं केरल और हैदराबाद भी जाता रहता हूं। वहां पर ज्यादा महिलायें बुरका पहने दिखायी पड़ीं बनिस्बत कश्मीर के। महिलायें व लड़कियां सर पर स्कार्फ लगाये, स्मार्ट और सुन्दर लगती हैं; देखने में भी अच्छा लगता है। काला बुरका जैसे सुन्दरता पर जैसे कालिख पोत दी हो।

जितनी अस्तव्यस्तता, श्रीनगर हवाई अड्डे पर है उतनी शायद कहीं नहीं। वहां पर कोई भी स्क्रीन नहीं है जो यह बताये कि आपकी उड़ान सही समय से है या लेट है या उसकी बोर्डिंग शुरू हो गयी है। इसमें टी.वी. है उसमें अलग चैनल आवाज के साथ चल रहा है। शोर इतना कि कोई भी प्रसारण में क्या कहा जा रहा है पता नहीं चलता। सुरक्षा जांच जगह-जगह पर है। मैं यही समझता था कि यहां सारा काम बहुत तरीके से होगा, पर यहां तो सब उलटा ही है।

मुझे कश्मीर में शान्ति लगी। यह उतनी ही है जितना भारत के किसी अन्य जगह। जनता आम नेताओं, मीडिया, और पैरा मिलिट्री फोर्स से दुखी लगी। उनके मुताबिक, जितनी अशान्ति उग्रवादी फैलाते हैं उतनी ही नेता और पैरा मिलिट्री फोर्स के लोग। उनके अनुसार इसमें मीडिया की भी भागीदारी है।

वहां के लोगों के अनुसार, एक नेता दूसरे नेता को नीचा दिखाने के लिये उग्रवादी गतिविधियां करा देता है; पैरा मिलिट्री फोर्स को वहां सर्च करने में ज्यादा पैसा मिलता है इसलिये वहां से कब्जा छोड़ना नहीं चाहती; मीडिया भी वहां छोटी-छोटी घटनाओं को ज्यादा विस्तार से दिखा रहा है जिसके कारण लोगों को कश्मीर के बारे में गलतफहमी हो जाती है।

मैं नहीं कह सकता कि आम लोगों का यह सोचना ठीक है या फिर पैरा मिलिट्री फोर्स के लोगों का, या फिर मीडिया का, पर मैं पुनः कश्मीर जाना चाहूंगा, यह बेहद सुन्दर जगह है और लोग भी अच्छे हैं। तब तक के लिये - अलविदा कश्मीर।

देखते हैं कि मैंं अगली बार आपको कहां ले चलता हूं।

कश्मीर यात्रा
जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।। बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम – दोनो का कोई ठिकाना नहीं है।। मिथुन चक्रवर्ती ने अपने चौकीदार को क्यों निकाल दिया।। आप स्विटज़रलैण्ड में हैं।। हम तुम एक कमरे में बन्द हों।। Everything you desire – Five Point Someone।। गुलमर्ग में तारगाड़ी।। हेलगा कैटरीना और लीनुक्स।। डल झील पर जीवन।। न्यायपालिका और पर्यावरण।। अलविदा कश्मीर।।
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