मदर टेरेसा एगनेस गॉनजा बॉजाज़ु (Agnes Gonxha Bojaxhiu) का जन्म २६ अगस्त १९१० को, मैकेडोनिया गणराज्य (Republic of Macedonia) की राजधानी स्कोप्ज (Skopje) में हुआ था। ८ साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। उसके पश्चात, उनकी मां ने उन्हें रोमन कैथोलिक की तरह बड़ा किया। एगनेस १८ साल की उम्र में ही मिस्टरस आफ लॉरेटो मिशन के साथ जुड़ गयी।
एगनेस ने पहले अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया, फिर १९२१ में दार्जिलिंग भारत आयीं। नन के रूप में २४-५-१९३१ को शपथ लेने के बाद, अपने को नाम टेरेसा कहलाना पसन्द किया और कलकत्ता में आकर लॉरेटो कान्वेन्ट में पढ़ाने लगीं।
पढ़ाते समय उन्हें लगने लगा कि ईश्वर ने उन्हें गरीबों के बीच काम करने का बनाया है। ७ अक्टूबर १९५० को वेटिकन की अनुमति से, गरीबों, कोढ़ पीड़ितों, अन्धों, विकलांग (Crippled) के लिए मिशनरिस आफ चैरिटीस (Missionaries of Charities) की स्थापना की। उनकी मृत्यु ५ सितम्बर १९९७ को हो गयी।
मदर टेरेसा को १९७९ का नोबल शान्ति पुरूस्कार मिला। उसे स्वीकार करते समय ११ दिसम्बर को उन्होंने कहा,
'यह कहना पर्याप्त नहीं है कि हम ईश्वर से प्रेम करते हैं पर अपने पड़ोसी से नहीं।... ईश्वर ने क्रास पर मृत्यु के द्वारा यह बताया है कि वह गरीबों में है, वह उनमें है जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं हैं हमें उसे ढूढ़ना है।... आने वाले बड़े दिन का अवसर खुशहाली से परिपूर्ण है क्योंकि ईसा हमारे दिल में है; ईसा उस मुस्कराहट में है जो हमें मिलती है उस मुस्कराहट में है जो हम देते हैं।'
मदर टेरेसा गरीबों को, बेघर-बार लोगों, कोढ़ पीड़ितों को तो ढूढ़ सकीं; वे लोगों को मुस्कराहट दे सकीं; वे लोगों के दिल के पास पहुंच सकीं पर क्या ईश्वर को ढूढ़ सकीं? यह बहुत सारे सवाल, उनके लिखे पत्रों को प्रकाशित करने वाली पुस्तक, 'Mother Teresa Come, Be My Light.' खड़ा करती है।
नोबल पुरस्कार मिलने के कुछ महीने पहले, उन्होंने पादरी माईकल वैन पीट (Rev. Michael van der Peter) को कुछ और ही लिखा था,
'ईसा, तुम्हें अलग तरह से प्यार करते हैं......... पर मेरे लिये तो सन्नाटा और अकेलापन इतना ज्यादा है कि मैं नजर तो डालती हूं पर कुछ दिखायी नहीं देता---- कान तो लगाती हूं पर कुछ सुनायी नहीं देता-- मेरी जीभ [प्रार्थना में] चलती है पर आवाज नहीं निकलती। मैं चाहती हूं कि तुम मेरे लिये प्रार्थना करो'
इन पत्रों को पढ़कर उनके व्यक्तिगत जीवन का दूसरा स्वरूप मिलता है। शायद उन्होंने अपने ५० साल बिना ईश्वर के विद्यमानता के जिये; उसकी कमी महसूस की। भगवान की यह कमी उन्होने, लगभग १९५९ में जब कलकत्ता में गरीबों के साथ काम करना शुरू किया, तभी से महसूस किया। मदर टेरेसा, इन पत्रों में जीवन के रूखेपन, अंधेरे, अकेलेपन और दर्द के बारे में बात करती हैं। वे एक जगह यहां तक कहती हैं कि,
'मेरी मुस्कराहट छलावा है जिससे मैंने ओढ़ रखा है।'पादरी ब्राएन कोलोडाईचुक (Rev. Brian kolodiejchuk) जिन्होने इन पत्रों को एकत्र कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है, उनके शब्दों में मदर टेरेसा ने ईश्वर कि उपस्थिति को,
'न तो अपने हृदय में और न ही पवित्र ईसाई प्रसाद में पाया (neither in her heart not in the eucharist).'यह पुस्तक, लोगों को, उनके जीवन को नयी तरह से देखने पर मजबूर करेगी।
मदर टेरेसा हमेशा चाहती थीं कि उनके पत्र नष्ट कर दिये जाय पर चर्च ने उन्हें नहीं नष्ट होने दिया। इन्हें नष्ट करने का कारण भी था। उन्हें लगता था कि इन पत्रों को पढ़ कर लोग ईसा के बारे में कम पर उनके बारे में ज्यादा बात करेंगे और वे यह नहीं चाहती थीं। शायद यह दर्शाता है कि इन सब शक के बाद भी वे भगवान के अस्तित्व पर विश्वास करती थीं या फिर उसी विचारधारा की थी जैसा कि मैं हूं। इसमें जो भी सच हो, उन्होने जो भी किया यदि मैं उसका १% कर सका तो अपना जीवन सफल मानूगा।
मैं किसी को आहत भी नहीं करना चाहता यदि किसी कारणवश मैं किसी की भावना आहत होती है तो माफ करेंगे।
इस चिट्ठी उपर का चित्र विकिपीडीया से है और ग्नू मुक्त प्रलेखन अनुमति पत्र की शर्तों के अन्दर प्रकाशित है। बाकी चित्रों में, पुस्तक के कवर को छोड़ कर, बाकी दोनो चित्र टाईम पत्रिका के फोटो गैलरी से हैं और उन्ही के सौजन्य से हैं। वहां मदर टेरेसा से संबन्धित बहुत सारे चित्र हैं , जा कर देखें।
इस चिट्ठी उपर का चित्र विकिपीडीया से है और ग्नू मुक्त प्रलेखन अनुमति पत्र की शर्तों के अन्दर प्रकाशित है। बाकी चित्रों में, पुस्तक के कवर को छोड़ कर, बाकी दोनो चित्र टाईम पत्रिका के फोटो गैलरी से हैं और उन्ही के सौजन्य से हैं। वहां मदर टेरेसा से संबन्धित बहुत सारे चित्र हैं , जा कर देखें।
मदर टेरेसा की जीवनी के बारे में कुछ विवाद हैं। यह आप विकिपीडीया के इस लेख पर पढ़ सकते हैं। मदर टेरेसा के पत्रों के बारे में प्रतीक जी ने भी इस बारे में मदर टेरेसा : टीस से भरी एक ज़िन्दगी नाम की चिट्ठी लिखी है। टाईम पत्रिका ने एक लेख विस्तार से Mother Teresa's Crisis of Faith नाम से लिखा है।
सांकेतित शब्द
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