मैं कागज, पेन्सिल से ठीक ठाक काम कर लेता था पर हाथ से काम करने में हमेशा फिसड्डी - हमेशा सैद्धान्तिक विज्ञान ही पसन्द आया और विज्ञान की प्रयोग-कक्षा (practical class प्रैक्टिकल क्लास) में नानी याद आती थी। रसायन शास्त्र के अनुमापन (titration टाइट्रेशन) के प्रैक्टिकल तो जैसे तैसे समाप्त किये - कब रंग गुलाबी हुआ, कब रोका जाय, हो ही नहीं पाता था। विद्यार्थी जीवन में पहला मौका मिलते ही रसायन शास्त्र छोड़ कर सांख्यिकी विषय ले लिया - यह कोई १९६० दशक के बीच की बात होगी।
हमारे सांख्यिकी अध्यापक हमेशा सूट में आते थे - ऐंठ रहती थी। लड़कियों पर प्रभाव डालने के प्रयत्न में रहते थे। अंग्रेजी बहुत स्टाईल से बोलते थे। हालांकि उनका उच्चारण एकदम सही नहीं था। विषय पर पकड़ भी अच्छी नहीं थी। अच्छा ही हुआ कि वे बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चले गये।
सांख्यिकी अथार्त आंकड़ों को एकत्र करना और उनका विश्लेषण कर - परिणाम निकालना, सवालों के उत्तर ढ़ूढना, और कल्पना को रूप देना और है। यह आसान विषय नहीं है, स्पष्ट नहीं होता था। इसलिये, हर किसी के लिये, इसके द्वारा निकाले गये परिणामों में गलती पकड़ पाना कठिन है। शायद, इसी लिये यह कहावत शुरू हूई कि,
'There are lies, damned lies and Statistics'मैंने सांख्यिकी के बारे में कोर्स से हट कर पुस्तकें ढूढ़नी शुरू की। सबसे पहले Facts from Figures by M.J.Moroney की पुस्तक मिली। इसे पढ़ने बाद ही यह विषय ठीक से समझ में आया। यह अच्छी पुस्तक है। यह इस विषय पर सम्पूर्ण तो नहीं है पर यह पाठकों को सांख्यिकी की मुख्य बातों को अच्छी तरह से बताती है और इसके सिद्घान्तों को अच्छी तरह से समझाती है।
आंकड़े गलत बताते हैं।
इसके साथ मैंने दो और पुस्तकें पढ़ी। यह दोनों पुस्तकें Darrell Huff ने लिखी हैं। एक है How to lie with Statistics और दूसरी है How to take a chance. यह भी सांख्यिकी और Probability (संभावनाओं) के सिद्घान्तों को अच्छी तरह से समझाती है। मुझे दोनो पुस्तकें भी पसन्द आयी।
यदि आपका सांख्यिकी में कुछ भी सम्बन्ध है, या आपके मुन्ने या मुन्नी इस विषय पर रूचि रखते हैं, या इस विषय को पढ़ रहे हों तो इसे पढ़ने को दें। यह तीनों पुस्तकें इस समय Pelican में उपलब्ध हैं।
मेरे विद्यार्थी जीवन में गणित और सांख्यिकी दोनों विषयों में Probability का पेपर हुआ करता था। हम लोगों को इसका फायदा मिला - एक पेपर कम पढ़ना पड़ा।
हम संभावनाओं की गणित को कुछ इस प्रकार समझा सकते है कि यदि आप किसी सिक्के को उछालें तो या हैड आयेगा या टेल। यानी कि दो संभावनायें हैं। यदि 'शकुनि सिक्का' न हो तो दोनों में से कोई एक आ सकता है। इसलिये कहा जाता है कि हैड या टेल के आने की संभावना १/२ यानी कि आधी है।
संभावनाओं की गणित का विषय मुश्किल है। हम लोग कहा करते थे कि यदि सवाल का जवाब मालुम हो वह तर्क निकाल सकते हैं जिसके द्वारा वह जवाब मिल सके। How to take a chance इस विषय को अच्छी तरह से समझाती है। इसको पढ़ने के बाद ही इस विषय पर पकड़ आयी।
इसी बात पर एक सवाल।
लड़का होगा या लड़की, इसकी संभावना भी हैड या टेल की तरह आधी होती है। सवाल यह है कि यदि किसी दम्पत्ति के दो बच्चे हों और उनमें से एक लड़की हो तो इस बात की क्या सम्भावना है कि दूसरा बच्चा भी लड़की होगा।
यदि आप संभावनाओं के सिद्घान्तों को अच्छी तरह से समझतें है तो यह सवाल एकदम आसान, यदि नहीं तो फिर मुश्किल है। कोशिश कर के देखिये।
इस सवाल का जवाब यहां में देखें।
सांकेतिक शब्द
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