मानद उपाधि: ... time to think?

रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन के बारे में पोस्ट यहां देखें
पहली पोस्ट: Don’t you have time to think?
दूसरी पोस्ट: पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा
तीसरी पोस्ट: गायब
यह पोस्ट: मानद उपाधि

आजकल मानद उपाधि का जमाना है। जिस विश्व विद्यालय को देखो वही दे रहा है और सब इसे स्वीकार कर रहें हैं। फाइनमेन को दुनिया के हर देश के विश्वविद्यालय मानद उपाधि से विभूषित करना चाहते थे। १९६७ में, सबसे पहले शिकागो विश्व विद्यालय ने उन्हें मानद उपाधि से विभूषित करने की बात की। उन्होने इसे अपने लिये सम्मान की बात बतायी, पर स्वीकारा नहीं। उनका कहना था कि,
'I remember the work I did to get a real degree at Princeton and the guys on the same platform receiving honorary degrees without work — and felt an “honorary degree” was a debasement of the idea of a “degree which confirms certain work has been accomplished.” It is like giving an “honorary electrician license”. I swore then that if by chance I was ever offered one I would not accept it.'
जब कभी कोई उन्हे मानद उपाधी देने की बात करता, तो हमेशा उनका यही जवाब रहता था।

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