खेलो, कूदो और सीखो ... time to think?

रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन के बारे में पोस्ट यहां देखें
पहली पोस्ट: Don’t you have time to think?
दूसरी पोस्ट: पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा
तीसरी पोस्ट: गायब
चौथी पोस्ट: मानद उपाधि
यह पोस्ट: खेलो, कूदो और सीखो

जीवन में हमें वह करना चाहिये जो हमें पसन्द हो - चाहे उसका कोई महत्व हो अथवा नहीं। महत्व अपने आप निकल आता है। मैंने फाइनमेन के बारे में लिखते समय वह किस्सा बताया था जब वे कौरनल विश्विद्यालय के अल्पाहार गृह में बैठे थे। वहां एक विद्यार्थी ने एक प्लेट को फेंका। प्लेट सफेद रंग की थी और उसमें बीच में कौरनल का लाल रंग का चिन्ह था। प्लेट डगमगा भी रही थी और घूम भी रही थी। यह अजीब नज़ारा था। फाइनमेन इसके डगमगाने और घूमने और के बीच में सम्बन्ध ढ़ूढ़ने लगे। इसमे काफी मुश्किल गणित के समीकरण लगते थे। इसमे उनका बहुत समय लगा। उन्होंने पाया कि दोनो मे २:१ का सम्बन्ध है। उनके साथियों ने उनसे कहा कि वह इसमे समय क्यों बेकार कर रहे हैं। उनका जवाब था,
'इसका कोई महत्व नहीं है मैं यह सब मौज मस्ती के लिये कर रहा हूं।'
लेकिन जब वे एलेक्ट्रौन के घूमने के बारे में शोध करने लगे तो उन्हें कौरनल की डगमगाती और घूमती प्लेट में लगी गणित फिर से याद आने लगी। उस काम का महत्व हो गया। उसी ने उस सिद्धान्त को जन्म दिया जिसके कारण उन्हें नोबेल पुरूस्कार मिला।

उन्होने इस बात को न केवल अपने जीवन में उतारा पर यही सलाह औरों को भी दी। एक बार सोलह साल के लड़के ने उन्हें पत्र लिख कर यह सलाह मांगी कि वह क्या करे। उनका जवाब था कि,
'It is wonderful if you can find something you love to do in your youth which is big enough to sustain your interest through all your adult life. Because, whatever it is, if you do it well enough (and you will, if you truly love it) people will pay you to do what you want to do anyway.'
उनके मुताबिक,
  • बहुत ज्यादा पढ़ना; या
  • किताबी कीड़ा बना रहना; या
  • अपने उम्र से ज्यादा पढ़ाई करना,
ठीक नहीं।

वे देखने और सीखने में विश्वास करते थे। एक बार , एक भारतीय बच्चे ने उन्हें एक पत्र परमाणु विज्ञान के बारे में लिखा। उनकी सलाह थी,
'Your discussion of atomic forces shows that you have read entirely too much beyond your understanding. What we are talking about is real and at hand: Nature. Learn by trying to understand simple things in terms of other ideas—always honestly and directly. What keeps the clouds up, why can’t I see stars in the day time, why do colors appear on oily water, what makes the lines on the surface of water being poured from a pitcher, why does a hanging lamp swing back and forth - and all the innumerable little things you see all around you. Then when you have learn to explain simpler things, so you have learn what an explanation really is, you can then go on to more subtle questions.
Do not read so much, look about you and think what you see there.'

बचपन में बड़े, बूढ़ों से सुना करता था,
'खेलो कूदोगे तो होगे बर्बाद,
पढ़ोगे लिखोगे तो होगे नवाब।'
शायद इसे इस तरह से कहना चाहिये,
'खेल, कूद कर सीखोगे,
केवल तब ही बनोगे, नवाब।'

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