अक्षरग्राम पर संजय जी की एक चिट्ठी से, मुझे कैफे हिन्दी के बारे में पता चला। मैं जब कौतूहल वश वहां गया तो देखा कि मेरे भी कुछ लेख वहां हैं। मुझे तो अच्छा लगा, कोई तो है जो मेरे विचारों की कद्र करता है और इतना सम्मान दिया कि अपने चिट्ठे पर मेरे लेख रखे। कुछ समय बाद, मेरे एक लेख पर मैथली जी की टिप्पणी आयी,
'श्री उन्मुक्त जी;
हम समाचारों से परे, हिन्दी रचनाओं की एक वेबसाईट (www.cafehindi.com) बना रहें हैं. इस वेबसाईट का उद्देश्य कोई भी लाभ कमाना नहीं है.
यह दिखाने के लिये कि इस वेबसाईट का स्वरूप कैसा होगा, हमने प्रायोगिक रूप से आपके कुछ लेख इस वेबसाईट पर डाले हैं. यह वेबसाईट मार्च के दूसरे सप्ताह में विधिवत शुरू हो जायेगी. आपका ई-मेल पता मेरे पास न होने के कारण में कमेंट के माध्यम से ये संदेश आपको भेज रहा हूं.
क्या हम आपके ब्लोग रचनायें लेख के रूप मे. इस वेबसाईट पर उपयोग कर सकते हैं? आपने लिखा है कि आपके हर चिठ्ठे की तरह इस लेख की सारी चिठ्ठियां भी कौपी-लेफ्टेड हैं. लेकिन फ़िर भी हम आपकी विधिवत अनुमति एवं सुझावों के इन्तजार में हैं.
आपका
मैथिली गुप्त'
मेरा जवाब था,
'प्रिय गुप्त जीमैं अक्षरग्राम की चिट्ठी पर टिप्पणी देकर अपने विचार कह चुका हूं पर इसके कुछ और भी पहलू हैं जो मैं आपके सामने रखना चाहता हूं।
मेरी चिट्ठियां कौपीलेफ्टेड हैं आपका स्वागत है। आप इन्हें प्रयोग कर सकते हैं।
उन्मुक्त'।
कानून की नजर में
हालांकि कॉपीराईट का कानून बौद्धिक अधिकारों में सबसे सरल है फिर भी अधिकतर लोग इसे ठीक से नहीं समझते हैं, यहां तक की कानून के जानकार भी। कुछ लोगों ने मेरी बच्चन जी की पोस्ट पर शंका जतायी थी कि कानून का उल्लघंन हो सकता है। मैंने यहां स्पष्ट किया कि यदि किसी कॉपीराइट कार्य का कुछ अंश लेकर उसकी समीक्षा की जाती हैं या उसके बारे में बताया जाता है तो वह कॉपीराईट का उल्लघंन नहीं है। इसी तर्क पर न तो बच्चन जी की पोस्ट पर कानून का उल्लघंन है न ही नारद या हिन्दी चिट्ठे एवं पॉडकास्ट या Hindiblog.com, या चिट्ठा चर्चा की किसी पोस्ट पर। इस तरह का कार्य बिना लेखक की अनुमति से हो सकता है पर यदि आप पूरी पोस्ट ही छाप देते हैं तो बात दूसरी है। इस दशा में, यदि आप स्रोत भी बतायें तब भी वह कॉपीराईट का उल्लघंन है। मैथली जी के द्वारा किया गया कार्य कानूनी तौर पर अनुचित था। पर क्या इसे इसी नजरिया से देखना चाहिये? मेरे विचार से हमें, न केवल उन्हें, पर उन सब लोग को इस तरह की अनुमति देनी चाहिये, यदि वह स्रोत दे कर वे हमारी चिट्ठियां छापते हैं।हम क्या चाहते हैं
मेरे विचार ही, मेरा परिचय हैं। मैं अपने विचारों को लोगो के समाने लाना चाहता हूं। इसलिये मैं इसमें नही पड़ता कि इसका श्रेय मुझे मिले या नहीं। इसलिये मेरी चिट्ठियां कॉपीलेफ्टेड हैं।मैं यह भी चाहता हूं कि मेरे विचार अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे। यह तभी संभव है जब हिन्दी का अधिक से अधिक अंतरजाल पर पर प्रचलन हो; अधिक से अधिक लोग अंतरजाल पर हिन्दी पढ़े। इसलिये मेरा प्रयत्न रहता है कि मैं उन सब वेबसाईट के लिय कुछ न कुछ कर सकूं जो इस कार्य में सक्रिय हैं। इसलिये कुछ दिन पहले जब मेरे एक लेख छापने पर कुछ ने पारिश्रमिक देने की बात की या तरकश पर रजत पदक मिलने पर कुछ पुरुस्कार देने की बात उठी तो मैंने उसका पैसा नारद को देने की बात की।
मुझे यदि कभी कोई और पुरुस्कार मिला या मैं कभी अपने चिट्ठों से कोई पैसा कमा पांऊगा तो मैं हमेशा चाहूंगा कि वह सब इसी तरह की वेबसाईट को दिया जाय। क्योंकि यदि इस कार्य में पैसा न भी लगे तब भी समय लगता है - नारद के बीमार पड़ते समय, Hindi Podcasts and blogs वेबसाईट को बनाने में जितना समय लगा, वह मैं ही जानता हूं। (ऐसे इस समय यह वेबसाईट बेकार है और इसे मैं मिटाने की बात सोच रहा हूं। मैंने इसे अब मिटा भी दिया है।)
आप अपने हिन्दी के चिट्ठे से क्या चाहते हैं। क्या आप इससे पैसा कमाना चाहते हैं? इस पर पैसा कमाना, इस समय सम्भव नहीं है। अंतरजाल पर न तो हिन्दी का इतना प्रचलन है न ही इतने हिन्दी के चिट्ठें हैं। कुछ दिन पहले नारद जी से सुना था कि ४०० चिट्ठे हो गये हैं पर इसमें कई सुप्त हैं तथा कई लोग एक से ज्यादा चिट्ठा लिखते हैं। मैं स्वयं तीन चिट्ठे लिखता हूंः यह उन्मुक्त चिट्ठा , छुटपुट, और लेख। कुल मिला के लगभग २०० लोग ही, हिन्दी में सक्रिय चिट्ठा लिखने वाले होंगे।
मैं केवल राजीव टंडन जी को जानता हूं जो कि हिन्दी के चिट्ठे पढ़ते तो हैं पर स्वयं चिट्ठा नहीं लिखते हैं। मैं नहीं कह सकता कि इनके अलावा भी कोई ऐसा व्यक्ति है जो हिन्दी में चिट्ठा पढ़ता हो पर लिखता न हो। यह नम्बर थोड़ा बहुत गलत हो सकता है पर ज्यादा नहीं।
हिन्दी चिट्ठे जगत से इतने कम लोग जुड़े है कि हिन्दी चिट्ठों पर विज्ञापन द्वारा पैसा कमा पाना मुश्किल है। यह तभी संभव है जब अंतरजाल पर हिन्दी बढ़े और अधिक लोग हिन्दी में चिट्ठें पढ़ें एवं लिखें। मेरे विचार से इस समय हमारा उद्देश्य होना चाहिये कि किस तरह से अंतरजाल पर हिन्दी बढ़े, हिन्दी के पाठक बढ़ें।
चिट्ठों की लोकप्रियता
मैथली जी चाहें अपने चिट्ठे को बाद में व्यवसायिक बनाये या न बनायें पर यह सत्य कि उन्होंने हिन्दी में एक प्रयत्न तो किया, आगे तो आये। उनके भी अपने मित्र होंगे, परिवार के सदस्य होंगे। मैथली जी उन्हें बतायेंगे, कुछ और लोग उनके कारण इन लेखों को पढ़ेंगे और पाठकों की संख्या बढ़ेगी। हो सकता है कि इसी बहाने कुछ और लोग हिन्दी चिट्ठे जगत से जुड़ें। इसके अतिरिक्त, मैं इतना अवश्य जानता हूं कि मैथली जी के मित्र, उनके परिवार के लोग कम से कम मुझे या उन लोगो को अवश्य जान गये होंगे जिनके चिट्ठे हिन्दी कैफे में हैं। हम सब की लोकप्रियता, कम से कम, कुछ तो बढ़ी।इस विषय पर एक और पहलू अनूप जी ने चिट्ठाचर्चा यहां इस तरह से रखा,
'लेकिन हो सके तो लिंक दे दो काहे से जिस दिन किसी कारणवश चोरी न कर पाये उस दिन चोरी का माल पढ़ने वाले हमारे यहां आकर ही कुछ पढ़ लेंगे।'अनूप जी की यह बात सच है। हिन्दी वीकिपीडिया में मेरे लेखों का संदर्भ है। मेरे चिट्ठे पर में बहुत से लोग वहीं से आते हैं। वे एक बार आते हैं तो वे एक चिट्ठी ही नहीं पढ़ते हैं पर बहुत सारी चिट्ठियों को पढ़ते हैं। हिन्दी वीकिपीडिया में लेख डालने के कारण, मेरे चिट्ठे की लोकप्रियता बढ़ी ही है, कम नहीं हुई। मेरे कुछ मित्रों के लेखों का संदर्भ अंग्रेजी वीकिपीडिया पर है वह भी इस बात को कहते हैं। इसके अतिरिक्त जिस चिट्ठे पर जितनी ज्यादा लिंक होती है सर्च इंजिन में (कम से कम गूगल में तो) उसका उतना ही महत्व बढ़ता है।
इसका एक दूसरा पहलू रवी जी ने बहुत अच्छी तरह से अक्षरग्राम की चिट्ठी पर अपनी टिप्पणी में कहा है। यह उन्हीं के शब्दों में,
'अंततः मुझे लगता है कि चिट्ठाकार साथियों को कुछ चीजें साफ हो गईं. चोरी करना और साभार सहित, रचनाकार के नाम सहित, कड़ी सहित रचना छापने में कुछ तो अंतर है.नारद जी कुछ दिन पहले बीमार हो गये थे, अब भी बीच-बीच में उनकी तबियत खराब हो जाती है। उनकी दवा के लिये पैसे की भी जरूरत है। क्या मालुम जब हिन्दी के चिट्ठे लाख में पहुंचेगे तो क्या होगा। इसलिये जितने विकल्प हों उतना ही अच्छा।
मैंने पहले भी कहा था और अब भी कहूंगा कि कैफ़े हिन्दी जैसा आयोजन "मानव-द्वारा संपादित नारद का एक बढ़िया और असरकारी पूरक रूप" हो सकता है (विकल्प की बात नहीं की जा रही) जिसमें कुछ चुनिंदा चिट्ठों को पूरा का पूरा पुनः प्रकाशित किया जाए (पूर्वानुमति से ही सही). अभी तो 400 चिट्ठे हैं. जब 4000 या चार लाख होंगे तो आप हिन्दी के एक पाठक से उम्मीद नहीं कर सकते कि वह सबको और सभी को खोज खोज कर पढ़ेगा. ऐसे में चर्चित, चुनिंदा चिट्ठों को कैफ़े हिन्दी द्वारा पढ़ा जा सकेगा. चिट्ठा चर्चा का स्वरूप दूसरा है, वह न तो नारद का न कैफ़े हिन्दी जैसे किसी आयोजन का विकल्प हो सकता है.'
समीर जी का पहलू तो अपने में अनोखा है, कुछ व्यंग है, तो कुछ कटाक्ष है, पर है धुर सत्य। उनकी बात पर आप बिना मुस्कराये नहीं रह सकते हैं। मैं क्या कहूं, आप स्वयं ही पढ़ लीजये।
इस विषय पर चिट्ठेकार बन्धुवों के विचार पढ़ते समय कुछ लोग के विचार इस तरह के थे,
'हिन्दी के अन्य चिट्ठाकार जो भी निर्णय लेंगे उस अनुसार मुझे भी चलना होगा।'
किसी भी विषय पर बहस आवश्यक है। यह जरूरी है कि अलग अलग विचार समझे जाय पर यह विषय ऐसा नहीं है जिस पर सामूहिक निर्णय की जरूरत है। आप सबके विचार पढ़ें। मेरे विचार तो इस चिट्ठी में हैं। जीतू जी के यहां, अफ्लातून जी के यहां, जगदीश जी के यहां, श्रीश जी के यहां, नारायन जी के यहां, और अनूप जी के चिट्ठाचर्चा के अतिरिक्त यहां भी हैं। संजय जी के विचार तो उनकी अक्षरग्राम की चिट्ठी पर ही हैं। बहुत से अन्य लोगों के भी विचार वहीं पर टिप्पणियों द्वारा के द्वारा हैं। आप सबको पढ़ें। इसके बाद अपने विवेक, अपने तर्क से निर्णय लीजये कि क्या होना चाहिये। यह न सोचे कि और लोग क्या निर्णय ले रहे हैं। यह मैं नहीं फाइनमेन साहब कहते हैं।
मैथली जी आपको पुनः धन्यवाद, आपने सम्मान दिया और मेरी कई चिट्ठियों को पुनः चिट्ठेजगत के सामने पेश किया।
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