मुझे दो बातें हमेशा से पसन्द हैंं: आईसक्रीम और पुस्तकें।
किसी भी शहर में मेरे लिए समय व्यतीत करने का सबसे प्रिय तरीका: वहां के अच्छे रेस्तराँ में जाकर आईसक्रीम खाना और पुस्तकों की दूकानों पर समय बिताना। उम्र के चढ़ते चढ़ते, गले के नाजुक होने के कारण आईस क्रीम खाना बन्द हो गया। मेरे डाक्टर मित्र कहते हैं कि ठंडी चीज खाने से और गले की खराबी का कोई संबन्ध नहीं है फिर भी मैंने कोई ठन्डी चीज खायी नहीं कि गला हुआ खराब। मालुम नहीं मेरे डाक्टर मित्र सही हैं या मेरा अनुभव, पर मैंने ठन्डी चीज खाना या पीना बन्द कर दिया है हालांकि पुस्तकों से प्रेम अब भी जारी है।
मुझे अक्सर काम के सिलसिले में दूसरे शहरों में जाना पड़ता है, इसमें हैदराबाद भी है। एक बार हैदराबाद जाने का मौका मिला तो वहां की पुस्तकों की दुकान जाने का कार्यक्रम बनाया। पूंछने पर पता चला कि वहां की सबसे अच्छी पुस्तक की दुकान वाल्डन, बेगम पेठ के इलाके में है। बस वहां पहुंच गया।
वाल्डन दुकान काफी बड़ी है किताबों का चयन अच्छा है पर किताबों की रैक बहुत पास-पास है थोड़ी घुटन सी लगी। यदि कुछ दूर दूर होती तो ज्यादा अच्छा रहता। दुकान में एक अंग्रेजी गाना 'सलोरी ...सलोरी' कहते हुये बज रहा था। कोने में एक संगीत और वीडियो कैसेट का भाग था। वहां हिन्दी का गाना ‘कभी अलविदा न कहना’ बज रहा था। दोनों का मिश्रण कुछ अजीब तरह का माहौल पैदा कर रहा था। संगीत इतनी जोरों से था जैसा कि डिस्को में अक्सर होता है। यह अक्सर किताबों की दुकानों के साथ होता है। किसी भी पुस्तक की दुकान पर जोर जोर से संगीत बजना, मुझे सबसे ज्यादा झुंझलाता है।
किताबों की दुकानें, पुस्तक प्रेमियों के द्वारा या उस व्यापारी वर्ग के द्वारा जो कि पुस्तक प्रेमियों की मनोवृत्ति को अच्छी तरह समझते थे, के द्वारा शुरू की गयीं थी पर अब उनकी जगह उनके नयी पीढियों ने जगह ले ली है। नयी पीढ़ी तो डिस्को सभ्यता में विश्वास करती है और पुस्तक की दुकान को भी उसी रंग में रंगना चाहते हैं। मैं हमेशा इस बात को उनके मैनेजर से कहता हूं, इस बात को उनकी शिकायत पुस्तिका में दर्ज करता हूं - मालुम नहीं असर होता है कि नहीं पर मैं शिकायत दर्ज करता चलता हूं।
मैंने वाल्डन में कुछ किताबें खरीदी और पैसे देते समय अपनी शिकायत दर्ज की। मेरे साथ एक बुजुर्ग भी कुछ खरीद रहे थे, वे मुस्कराये और सहमति जतायी। मालुम नहीं दुकान वाले की समझ में आया कि नहीं पर मुझे इतना लगा कि मेरी मनोवृति उस बुजुर्ग की तरह है।
खैर अगली बार वाल्डन जाऊंगा तो देखूंगा कि कुछ असर हुआ कि नहीं।
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