रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन, भौतिक शास्त्र में नोबल पुरुस्कार विजेता हैं। मैंने इनके बारे में पांच कड़ियों पर लेख उन्मुक्त के चिट्ठे पर लिखा। जिसकी आखरी कड़ी यहां है। यहां से आप सारी कड़ियों पर जा सकते हैं। इन सब कड़ियों को संजो कर, मैंने एक पोस्ट, अपने लेख चिट्ठे पर यहां की है। यह सब लिखने के बाद ‘Don’t you have time to think’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। यह पुस्तक फाइनमेन की गोद ली हुई पुत्री, मिशेल (Michelle) ने प्रकाशित की हैं। इसमें उन्होंने फाइनमेन को लिखे गये कुछ पत्र तथा उनके द्वारा लिखे गये लगभग सारे पत्रों को संकलन कर के छापा है। कुछ बातें इस किताब के बारे में - यह इस चर्चा की पहली कड़ी है।
इस किताब की प्रस्तावना में मिशेल अपने बचपन वा अपने पिता के बारे में बताती हैं। वे अपने पिता और अपने बड़े भाई कार्ल को एक दूसरे से विज्ञान के बारे में बात करते हुऐ सोचती हैं कि उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में क्यों नहीं कार्य किया। उन्हें लगता है कि कार्ल अपने पिता के साथ ज्यादा पास थे।
उन्हें अपना घर और घरों से अलग लगता था। रविवार के दिन फाइनमेन सुबह अखबार नहीं पढ़ते थे पर वह सब लोगों के साथ, संगीत सुनाते थे; ड्रम बजाते थे; और कहानी किस्से सुनाते थे। जब कभी प्रारम्भिक शिक्षा के स्कूल में बच्चों को ले जाने की फाइनमेन की बारी होती थी तो वह अक्सर गाड़ी चलाते हुये या तो केलटेक की तरफ चले जाते थे या नाटक करते थे कि वे रास्ता भूल गये। इस पर सब बच्चे चिल्लाने लगते थे कि यह गलत रास्ता है। फिर फाइनमेन का जवाब होता था कि,
'अच्छा, यह रास्ता नहीं है'यह कहकर वह पुन: दूसरा गलत रास्ता पकड़ लेते थे। बच्चे फिर चीखते थे,
‘नहीं..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ।’बच्चों को लगता था कि वे स्कूल समय से नहीं पहुंच पायेंगे और उन्हें सजा मिलेगी पर फाइनमेन हमेशा बच्चों को स्कूल समय से पहुंचा देते थे।
मिशेल कहती हैं कि,
'मेरे पिता कई हुनर में माहिर थे पर उनका वह हुनर सबसे खास था जिसमें वह अपने को एक बेवकूफ सा दिखने का नाटक करते थे और मुझे सोचने देते थे कि वे मेरी बातों से बेवकूफ बन गये हैं। इस बात ने मेरे बचपन को सबसे ज्यादा निखारा है।'
मिशेल यह भी बताती हैं कि, वे बहुत सालों तक नहीं जानती थी कि सब लोग उनके पिता फाइनमेन का सम्मान एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति की तरह से करते थे। उनके मुताबिक,
'मेरे पिता फाइनमेन हमेशा लोगों को अपने बारे में अश्रद्धा रखने को प्रेरित करते थे। वे अक्सर ऐसी कहानियां सुनाया करते थे जिसमें उनकी बेवकूफी झलकती थी। रात के खाने पर वे बताया करते थे कि, किस तरह वह अपना स्वेटर भूल गये; या कुछ महत्वपूर्ण सूचना भूल गये; या लोगों से बात होने के बाद उन्हें उनका नाम याद नहीं रहा। उनकी कान्फ्रेन्स नये-नये होटलों में होती थी। वे अक्सर उससे बोर होकर अपना सामान लेकर जंगल चले जाया करते थे और वहीं कैम्पिंग कर रात बिताते थे। लौट कर, चटकारे लेकर इसका अनुभव हमें सुनने को मिलता था। मेरी मां इस पर हमेशा टिप्पणी करती थीं “ओह रिचर्ड” वह हमेशा अपने ऊपर हंसते थे और हम उनके ऊपर।‘
इस किताब में बहुत सारे फाइनमेन के लिखे हुये पत्र हैं, जिससे उनके चरित्र के बारे में पता चलता है और यह किताब बेशक पढ़ने योग्य है। आपको याद होगा कि फाईनमेन अरलीन से प्यार करते थे और नौकरी मिलने के बाद उसके साथ शादी रचाने की बात थी पर अरलीन को तपेदिक की बीमारी हो गयी। फाइनमेन उसे चूम भी नहीं सकते थे फिर भी उन्होंने उससे शादी की। मैं हमेशा सोचता था कि इस तरह की बात तो केवल किताबों और पिक्चरों में होती है, वास्तविक जीवन मैं नहीं।
फाइनमेन के परिवार वाले इस शादी के खिलाफ थे। इस बारे में फाइनमेन ने अपनी मां को एक लम्बा पत्र लिखा, जिसमें लिखा कि,
‘I want to marry Arline because I love her - which means I want to take care of her. That is all there is to it. I want to take care of her.’प्यार का यह भी एक अर्थ – एकदम सत्य।
इस किताब में एक पत्र श्री वी.के. सिंह, अध्यापक भौतिक शास्त्र, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर, का भी है। ये फाइनमेन की पुस्तक Lectures on Physics की तुलना रामायण से करते है और कहते हैं कि इसका अध्ययन भी, उतनी ही बारीकी से करना चाहिए जैसे कि रामायण का किया जाता है।
इसमें इलाहाबाद के श्री मदन मोहन पंत के पत्र का जिक्र है जिसमें पंत ने फाइनमेन को अपना पेन टीचर के कहा है।
इन पत्रों ने मुझे कई बातों की याद दिलायी:
- मेरे बचपन की; या
- कई ऐसे व्यक्तियों की जिन्होने मेरे बचपन में, मुझ पर सबसे ज्यादा असर डाला; या
- कुल्लू मनाली में एक बिस्किट के पीछे, पूरी नदी पैदल पार करने की; या
- उन क्षणों की भी, जो मैंने मुन्ने एवं मुन्नी के साथ पहेली बूझते हुऐ बिताये; या
- मुन्ने एवं मुन्नी के साथ बितायी, नदी के किनारे तारों, लियोनिडस्, और पुच्छल तारे को देखते हुऐ रातों की; या
- मुन्ने एवं मुन्नी के साथ बिताये, दुधुवा, जिम कौर्बेट, कान्हा, बान्धवगढ़, मदुमलाई, और बंदीपुर के जंगलों की; या
- उन पिकनिकों की, जिसमें हमने सारा समय केकड़े और मछलियां पकड़ने में बिता दिया; या
- मेले में उन रातों की, जो हमने हांथ की रेखायें पढ़ने, और नौटंकी , जादू देखने में गुजार दिये; या
- पंचमढ़ी के जंगलों की, जब हम पानी के झरने के लिये छोटे रास्ते पर चलते जंगल में खो गये थे; या
- पंचमढ़ी में पीछा करती मधुमक्खियों की, जिससे पानी के झरने में कूद कर जान बचायी; या
- बम्बई में गोरे गांव में मिल्क डेरी की, जहां पर रेलिंग ही मुन्ने के उपर गिर गयी और बस हमें वहीं छोड़ के चली गयी, तब कई किलोमीटर की दूरी मुन्ने को गोदी में ले जाने की; या
- चुनाव में उस उपद्रव की, जब चुनाव की निष्पक्षता कराने के पीछे मेरा सर पर अध्धा मार दिया गया, पांच टीके लगे, और मैं अब भी नहीं समझ पाता कि में उस दिन कैसे बच गया; या फिर
- उस मीटिंग की जब अयोध्या में राम मन्दिर बनाने के खिलाफ बोलने पर लोग चप्पल से मारने मंच पर आ गये।
इस चिट्ठे पर चल रही कई सीरीसों के साथ, एक सीरीस यह भी - आने वाली कुछ पोस्टों पर फाइनमेन के द्वारा लिखे कुछ पत्रों का जिक्र होगा।
अन्य चिट्ठों पर क्या नया है इसे आप दाहिने तरफ साईड बार में, या नीचे देख सकते हैं।
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