'मैं और मुजरिम, अरे मैंने क्या जुर्म किया है?'
'आपने हरिवंश राय बच्चन की चार भागो में लिखी जीवनी की समीक्षा करते हुऐ कॉपीराईट का उल्लघंन किया है। इसकी आखरी पोस्ट यहांं है। यह लिखते समय आपने हरिवंश राय बच्चन के कॉपीराईट का उल्लघंन किया है। इसके सबूत में चिट्ठाचर्चा की यह चर्चा पेश है, जिसमें कहा गया है कि,
"उन्मुक्त जी, देख लीजिएगा, शायद बच्चन साहब की आत्मकथा कापीराइट की श्रेणी मे आती है, कंही लेने के देने ना पड़ जाएं।"''मी लौर्ड मैं अपने बचाव में अपने वकील मित्र इकबाल को पेश करना चाहता हूं'
'आपको इजाजत दी जाती है'
माई लॉर्ड, मेरा नाम इकबाल है। मैं उन्मुक्त का सहपाठी और वकील हूं। मेरा मुवक्किल निर्दोष है। बचाव में दलील यह है कि,
'यह सच है कि हिन्दी चिट्ठों वा हिन्दी समूहों में कभी, कभी कानून का उल्लघंन होता है पर यह अनजाने में, कानून न जानने के कारण होता है। लेकिन जहां तक मेरे मुवक्किल उन्मुक्त की बात है इसके चिट्ठे की किसी भी चिट्टी पर कोई भी कानून का उल्लघंन नहीं है।
दुनिया का हर कॉपीराईट का कानून, किसी भी कॉपीराईट का उचित प्रयोग करने कि अनुमति देता है, क्योंकि यह सार्वजनिक हित में है और कॉपीराईट का ठीक तरह विकास करने में सहायक है। यही कारण है कि जब कभी कोई पुस्तक, या फिल्म, या गाने की समीक्षा होती है तो उस संदर्भ में कॉपीराईट कार्य के कुछ अंश को उध्दृत किया जा सकता है और किया जाता है। भारतीय कॉपीराईट अधिनियम की धारा ५२ भी इसी तरह तथा कुछ और सुरक्षा प्रदान करती है। मेरे मुवक्किल की चिट्ठियों में कोई गलती नहीं है। इसे बा-इज्जत बरी किया जाय'
यह सच है कि दुनिया भर के कॉपीराईट कानून इस तरह से कॉपीराईट का उचित प्रयोग करने देते हैं। हर देश में यह कानून हमेशा से था पर अब यह ट्रिप्स के कारण लाज़मी हो गया है। मैंने पेटेंट के बारे में लिखते समय ट्रिप्स का जिक्र किया था। यह विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) (WTO या डब्लू.टी.ओ.) के चार्टर में का एक समझौता हैं। यह बौद्धिक सम्पत्ति के अधिकारों के न्यूनतम मानकों को तय करता है और सदस्य देशों को उसके अनुपालन के लिए बाध्य करता है । हम तथा विश्व के लगभग सभी देश डब्लू. टी. ओ. के सदस्य हैं इसलिए इन सब देशों को बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार के कानून में कम से कम वह सुविधायें देनी होंगी जो इसमें लिखी हैं।
ट्रिप्स का अनुच्छेद ९, ट्रिप्स का बर्न कन्वेंशन से संबन्ध दर्शाता है। यह इस प्रकार है,
Article 9अथार्त सदस्य देशों को बर्न कन्वेंशन १९७१ के अनुच्छेद १ से २१ का और इसके परिशिष्ट का अनुपालन करना होगा।
Relation to the Berne Convention
1. Members shall comply with Articles 1 through 21 of the Berne Convention (1971) and the Appendix thereto. However, Members shall not have rights or obligations under this Agreement in respect of the rights conferred under Article 6 bis of that Convention or of the rights derived therefrom.
2. Copyright protection shall extend to expressions and not to ideas, procedures, methods of operation or mathematical concepts as such.
बर्न कन्वेंशन १९७१ का अनुच्छेद १० इस प्रकार है।
Article 10अथार्त किसी भी सार्वजनिक कार्य से उध्दरण देना संभव रहेगा यदि वह उसका उचित प्रयोग है लेकिन इस दशा में जहां से उध्दरण लिया गया है और लेखक का नाम देना आवश्यक होगा।
(1) It shall be permissible to make quotations from a work which has already been lawfully made available to the public, provided that their making is compatible with fair practice, and their extent does not exceed that justified by the purpose, including quotations from newspaper articles and periodicals in the form of press summaries.
(2) It shall be a matter for legislation in the countries of the Union, and for special agreements existing or to be concluded between them, to permit the utilization, to the extent justified by the purpose, of literary or artistic works by way of illustration in publications, broadcasts or sound or visual recordings for teaching, provided such utilization is compatible with fair practice.
(3) Where use is made of works in accordance with the preceding paragraphs of this Article, mention shall be made of the source, and of the name of the author if it appears thereon.
संक्षेप में, हर देश जो कि डब्लू.टी.ओ. का सदस्य है उसे कॉपीराईट का उचित प्रयोग करने की अनुमति देनी होगी अन्यथा उस देश का कानून गलत होगा एवं इन सब देशों के कानून की जब व्याख्या की जायेगी तब उसे ट्रिप्स के परिपेक्ष में देखा जायगा।
भारत, डब्लू.टी.ओ. का सदस्य है, इसके कॉपीराईट अधिनियम की धारा भी इसी परिपेक्ष में पढ़ी जायगी। मैंने बच्चन जी की जीवनी जो कि चार बड़ी, बड़ी पुस्तकों के रूप में है कि समीक्षा की है और इसी संदर्भ में पुस्तक के कुछ अंश उध्दृत किये हैं मैंने बर्न कन्वेंशन के अनुच्छेद १०(३) के मुताबिक किताब का नाम तथा लेखक का नाम भी लिखा है।
मैं इसका निर्णय हिन्दी चिट्ठे जगत पर छोड़ता हूं।
मेरे द्वारा बच्चन जी की जीवनी पर लिखी गयी चिट्ठियों पर कानून के अलावा कुछ और भी पहलू हैं:
- मेरे किसी भी चिट्ठे पर कोई भी विज्ञापन नहीं है। न ही मैं इससे कोई पैसा कमा रहा हूं। मेरा इससे कोई फायदा नहीं हुआ। हां इस चर्चा से, कुछ लोगों को इन पुस्तकों के बारे में अवश्य जानकारी हो गयी होगी। इससे कुछ इन पुस्तकों का विज्ञापन ही हुआ होगा। हांलाकि बच्चन जी के कुछ प्रेमी मुझसे रुष्ट हो गये होंगे क्योंकि जो बात मुझे पसन्द नहीं आयी, उसके बारे में मैंने स्पष्ट रूप से कहा। यह भी सच है कि मुझे उनकी कई बातें पसन्द नहीं आयी और मुझे लगा कि बड़े व्यक्ति में कुछ और गुण होते हैं - शायद फाइनमेन में हैं जिनके बारे में मैंने यहां लिखा है। इनके पत्रों की पुस्तक 'Do you have time to think?' की समीक्षा कई कड़ियों में इसी चिट्ठे पर की है। इन कड़ियों की आखरी पोस्ट यहां है। इसके पश्चात इन्हें संकलित कर अपने लेख चिट्ठे पर यहां रखा है;
- मेरे चिट्ठे पर लिखे लेख बच्चन जी के लेख की कोटि के तो नहीं हैं पर जो भी है वह सब कॉपीलेफ्टेड हैं। मैं विचारों की स्वतंत्रता का पक्षधार हूं और उन्हें लोगो के साथ बाटने एवं उनके विचार जानने की बात करता हूं। इसीलिये मैं सब को, अपनी चिट्ठियों को इसी प्रकार से या संशोधन कर बांटने की स्वतंत्रता भी देता हूं - चाहे वे इसका श्रेय मुझे दें या नहीं। विचारों को सीमित कर रखना मुझे पसन्द नहीं। बच्चन जी ने अपने तथा पन्त जी के विवाद पर चर्चा करते समय लिखा है कि,
'अगर आपके पास मेरे पत्र पड़े हों और आप उन्हें कभी छपाना चाहें तो मैं कभी आप से नहीं कहूँगा कि पहले मुझे उन्हें सेंसर करने दीजिए।'
बच्चन जी इस तर्क पर मुझे भी, कम से कम, उनके लेखों के कुछ अंश का उनके नाम के साथ प्रयोग करने में इन जीवनी के कॉपीराईट स्वामी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये; - बच्चन जी के लेखों के कॉपीराईट स्वामी को कभी कोई आपत्ति हुई तो मुझे बच्चन जी की जीवनी से उध्दृत अंशो को मिटाने में या पूरी चिट्ठी मिटाने में देर नही लगेगी;
- किताबें तो नश्वर हैं आज हैं कल समाप्त। यह चिट्ठे तो अमर हैं। इन चिट्ठों के साथ, कम से कम इन पुस्तकों की चर्चा जब तक रहेगी जब तक रहेगा यह अन्तरजाल।
जब तक रहेंगे सूरज तारे,
जब तक रहेगी पृथ्वी हमारी,
तब तक रहेगा यह अन्तरजाल।
तभी तक रहेंगे यह चिट्ठे सारे,
तब तक रहेगी इन चिट्ठों के संग,
इन पुस्तकों की चर्चा।
अमर हो गये हम सब,
अपने चिट्ठों के संग।
साथ, अमर हो गयीं चिट्ठियां हमारी।
इसी पोस्ट के साथ, वर्ष २००६ को, मुजरिम उन्मुक्त का अलविदा - फिर मिलेंगे नये साल में, नयी बातें, नये विचारों के साथ। नये साल में, हिन्दी चिट्ठे जगत को वह सम्मान मिले - जिसे हम सब चाहते हैं, जिसकी हम सब आशा करते हैं।जब तक रहेगी पृथ्वी हमारी,
तब तक रहेगा यह अन्तरजाल।
तभी तक रहेंगे यह चिट्ठे सारे,
तब तक रहेगी इन चिट्ठों के संग,
इन पुस्तकों की चर्चा।
अमर हो गये हम सब,
अपने चिट्ठों के संग।
साथ, अमर हो गयीं चिट्ठियां हमारी।
हरिवंश राय बच्चन
भाग-१: क्या भूलूं क्या याद करूं
पहली पोस्ट: विवादभाग-१: क्या भूलूं क्या याद करूं
दूसरी पोस्ट: क्या भूलूं क्या याद करूं
भाग-२: नीड़ का निर्माण फिर
तीसरी पोस्ट: तेजी जी से मिलनचौथी पोस्ट: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अध्यापक
पांचवीं पोस्ट: आइरिस, और अंग्रेजी
छटी पोस्ट: इन्दिरा जी से मित्रता,
सातवीं पोस्ट: मांस, मदिरा से परहेज
आठवीं पोस्ट: पन्त जी और निराला जी
नवीं पोस्ट: नियम
भाग-३: बसेरे से दूर
दसवीं पोस्ट: इलाहाबाद से दूरभाग -४ दशद्वार से सोपान तक
ग्यारवीं पोस्ट: अमिताभ बच्चनबारवीं पोस्ट: रूस यात्रा
तेरवीं पोस्ट: नारी मन
चौदवीं पोस्ट: ईमरजेंसी और रुडिआड किपलिंग की कविता का जिक्र
यह पोस्ट: मुजरिम उन्मुक्त, हाजिर हों
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