हिन्दी में चिठ्ठी लिखते लिखते लगता है कि मेरी मति मारी गयी| मालुम नहीं क्या सोच कर, मैने मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया पोस्ट पर रमन जी की टिप्पणी उसे दिख दी फिर उसने बिना बताये अपना जवाब लिख दिया उस पर संजय जी ने उसे शाबासी दे दी| फिर क्या था उसने अपना चिठ्ठा 'मुन्ने के बापू' के नाम से शुरू कर दिया| मेरी तो शामत आयी ही आयी, पर यदि मै उसे इन २८ सालों में जान पाया तो पुरुष जगत की खैर नहीं| जी हां हमारी शादी को २८ साल हो गये हैं झेला तो मैंने ही है| जब तक मुन्नी थी तो वह मेरी तरफदारी करती थी पर जब से वह विदेश पढ़ने (शोध कार्य) करने चली गयी तब से मुन्ने की मां और मुन्ना एक तरफ हो गये|
लगता है 'पुरुषों को बचाओ' संगठन बनाना पड़ेगा या इस नाम का चिठ्ठा बिना उसे बताये अज्ञात की तरफ से शुरू करना पड़ेगा| और उसमें २८ साल के सारे अनुभव तभी आपको असली सच्चाई पता चलेगी| हिन्दी में चिठ्ठी लिखते लिखते लगता है कि मेरी मति मारी गयी| मालुम नहीं क्या सोच कर, मैने मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया पोस्ट पर रमन जी की टिप्पणी उसे दिख दी फिर उसने बिना बताये अपना जवाब लिख दिया उस पर संजय जी ने उसे शाबासी दे दी| फिर क्या था उसने अपना चिठ्ठा 'मुन्ने के बापू' के नाम से शुरू कर दिया| मेरी तो शामत आयी ही आयी, पर यदि मै उसे इन २८ सालों में जान पाया तो पुरुष जगत की खैर नहीं| जी हां हमारी शादी को २८ साल हो गये हैं झेला तो मैंने ही है| जब तक मुन्नी थी तो वह मेरी तरफदारी करती थी पर जब से वह विदेश पढ़ने (शोध कार्य) करने चली गयी तब से मुन्ने की मां और मुन्ना एक तरफ हो गये|
लगता है 'पुरुषों को बचाओ' संगठन बनाना पड़ेगा या इस नाम का चिठ्ठा बिना उसे बताये अज्ञात की तरफ से शुरू करना पड़ेगा| और उसमें २८ साल के सारे अनुभव तभी आपको असली सच्चाई पता चलेगी|
लगता है 'पुरुषों को बचाओ' संगठन बनाना पड़ेगा या इस नाम का चिठ्ठा बिना उसे बताये अज्ञात की तरफ से शुरू करना पड़ेगा| और उसमें २८ साल के सारे अनुभव तभी आपको असली सच्चाई पता चलेगी| हिन्दी में चिठ्ठी लिखते लिखते लगता है कि मेरी मति मारी गयी| मालुम नहीं क्या सोच कर, मैने मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया पोस्ट पर रमन जी की टिप्पणी उसे दिख दी फिर उसने बिना बताये अपना जवाब लिख दिया उस पर संजय जी ने उसे शाबासी दे दी| फिर क्या था उसने अपना चिठ्ठा 'मुन्ने के बापू' के नाम से शुरू कर दिया| मेरी तो शामत आयी ही आयी, पर यदि मै उसे इन २८ सालों में जान पाया तो पुरुष जगत की खैर नहीं| जी हां हमारी शादी को २८ साल हो गये हैं झेला तो मैंने ही है| जब तक मुन्नी थी तो वह मेरी तरफदारी करती थी पर जब से वह विदेश पढ़ने (शोध कार्य) करने चली गयी तब से मुन्ने की मां और मुन्ना एक तरफ हो गये|
लगता है 'पुरुषों को बचाओ' संगठन बनाना पड़ेगा या इस नाम का चिठ्ठा बिना उसे बताये अज्ञात की तरफ से शुरू करना पड़ेगा| और उसमें २८ साल के सारे अनुभव तभी आपको असली सच्चाई पता चलेगी|
No comments:
Post a Comment