मैंने मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया पोस्ट में बताया था कि उर्मिला और ईकबाल मेरे विश्वविद्यालय के सहपाठी हैं तथा मुन्ने की मां उर्मिला की फोटो को लेकर गुस्सा हो गयी थी| और इसके बाद उर्मिला की कहानी- मुकदमे की दास्तान पोस्ट उस पर चले मुकदमे के बारे में जिक्र किया था| उर्मिला की कहानी - अदालत का फैसला पोस्ट पर बताया था कि मुकदमे के बाद उर्मिला तथा उसका परिवार शहर छोड़ कर कहीं चले गये| पर शहर छोड़ने से पहिले उर्मिला ने ईकबाल को उस रात की सच्चाई बतायी थी अब वही सच्चाई|
यह भी अजीब कहानी है उस दिन उर्मिला नन्दोई के घर मे चली गयी थी वहां उसे पता चला कि उसकी ननन्द नहीं थी| वह अपने मायके यानि कि उर्मिला के ससुराल में थी घर में नन्दोई के मित्र थे| उर्मिला वापस अपने मायके आना चाहती थी पर नन्दोई ने उससे सबके लिये चाय बनाने के लिये अनुरोध किया| इसको वह मना नहीं कर पायी क्योंकि घर में चाय बनाने के लिये और कोई नहीं था|
वह जब चाय बनाने गयी तब नन्दोई तथा उनके मित्रों ने दरवाजा बन्द कर दिया| उसके साथ उन सब ने रात भर जबरदस्ती गलत कार्य किया| वे लोग अगले दिन उसे बेहोशी की हालत में पोस्ट औफिस के पास छोड़ आये| मैने जब इकबाल से पूछा कि उसने यह बात क्यों नहीं अपने पति या कोर्ट मे कही| तब ईकबाल ने कहा कि उसने उर्मिला से यह पूछा था पर उर्मिला ने उसे कोई जवाब नहीं दिया|
मैने मुन्ने की मां की प्रतक्रिया जानने के लिये कहा,
लक्षमण की उर्मिला के दर्द को तो तुलसी दास जी भी नही समझ पाये| वह तो केवल सीता जी के त्याग को समझ पाये| उर्मिला के त्याग तथा दर्द को समझने के लिये नव-युग में मैथली शरण गुप्त को जन्म लेना पड़ा|
मैं एक बात अवश्य जानता हूं कि उर्मिला एक साधारण लड़की नहीं थी वह एकदम सुलझी, समझदार, बुधिमान, वा जीवन्त लड़की थी| उसने पुरानी बातों को भुला कर नया जीवन अवश्य शुरू कर दिया होगा| उसका एक भाई विदेश में था क्या उसी के पास चली गयी| कुछ पता चलेगा तो बतांऊगा| आप में से तो बहुत लोग विदेश में रहतें हैं कभी आपको उर्मिला मिले तो कहियेगा कि हम सब उसे याद करते हैं; मिलना चाहेंगे और मुन्ने की मां भी मिलना चाहेगी।
यह भी अजीब कहानी है उस दिन उर्मिला नन्दोई के घर मे चली गयी थी वहां उसे पता चला कि उसकी ननन्द नहीं थी| वह अपने मायके यानि कि उर्मिला के ससुराल में थी घर में नन्दोई के मित्र थे| उर्मिला वापस अपने मायके आना चाहती थी पर नन्दोई ने उससे सबके लिये चाय बनाने के लिये अनुरोध किया| इसको वह मना नहीं कर पायी क्योंकि घर में चाय बनाने के लिये और कोई नहीं था|
वह जब चाय बनाने गयी तब नन्दोई तथा उनके मित्रों ने दरवाजा बन्द कर दिया| उसके साथ उन सब ने रात भर जबरदस्ती गलत कार्य किया| वे लोग अगले दिन उसे बेहोशी की हालत में पोस्ट औफिस के पास छोड़ आये| मैने जब इकबाल से पूछा कि उसने यह बात क्यों नहीं अपने पति या कोर्ट मे कही| तब ईकबाल ने कहा कि उसने उर्मिला से यह पूछा था पर उर्मिला ने उसे कोई जवाब नहीं दिया|
मैने मुन्ने की मां की प्रतक्रिया जानने के लिये कहा,
'उर्मिला ने गलती की| उसे यह बात कोर्ट में कहनी चाहिये थी'उसने कोई जवाब नही दिया मैने उसकी आखों की तरफ देखा| उनसे गुस्सा तो काफूर हो चुका था पर वह किसी गहरे सोच में डूबी लग रही थी; वह मेरी बात से सहमत नहीं लगती थी मुझे तो उसके हाव-भाव से लगा कि वह कहना चाह रही है कि मर्द क्या समझें औरत का जीवन|
लक्षमण की उर्मिला के दर्द को तो तुलसी दास जी भी नही समझ पाये| वह तो केवल सीता जी के त्याग को समझ पाये| उर्मिला के त्याग तथा दर्द को समझने के लिये नव-युग में मैथली शरण गुप्त को जन्म लेना पड़ा|
हा स्वामी! कहना था क्या क्यावह क्या इस पर विशवास करती थी, मालुम नहीं, कह नहीं सकता| पर इस उर्मिला के दर्द को क्या उसका लक्षमण या कोई और समझेगा?
कह न सकी कर्मों का दोष!
पर जिसमें सन्तोष तुम्हे हो
मुझे है सन्तोष!
मैं एक बात अवश्य जानता हूं कि उर्मिला एक साधारण लड़की नहीं थी वह एकदम सुलझी, समझदार, बुधिमान, वा जीवन्त लड़की थी| उसने पुरानी बातों को भुला कर नया जीवन अवश्य शुरू कर दिया होगा| उसका एक भाई विदेश में था क्या उसी के पास चली गयी| कुछ पता चलेगा तो बतांऊगा| आप में से तो बहुत लोग विदेश में रहतें हैं कभी आपको उर्मिला मिले तो कहियेगा कि हम सब उसे याद करते हैं; मिलना चाहेंगे और मुन्ने की मां भी मिलना चाहेगी।
उर्मिला की कहानी
मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया।। मुकदमे की दास्तान।। अदालत का फैसला।। घटना की सच्चाई
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