किसी व्यक्ति के लिये दूसरी जगह, दूसरी संस्कृति में,
- जीवन यापन के लिये जाना; या
- उन लोगों से उन बातों की महारत हासिल करने के लिये जाना जिसमे वे दक्ष हों; या
- बेहतर जीवन के लिये जाना; या
- अपनी संस्कृति का दूसरी जगह प्रचार करने के लिये जाना;
पर किसी भी व्यक्ति का दो अलग अलग संस्कृतियों को अपने आप मे आत्मसात कर लेना आसान नहीं है| यह कुछ बिरले ही कर पाते हैं| ऐसे लोगों के, क्या गुण होते हैं; क्या खासियत है - शायद वही बता सके जिसने दो अलग अलग संस्कृतियों में जीवन जिया है मेरे जैसा नहीं जो एक ही जगह एक ही संस्कृति में रहा हो| फिर भी कल्पना के घोड़े दौड़ाने में तो कोई मनाही नहीं है| मेरे विचार से ऐसे व्यक्ति को,
- दूसरे कि बात सुनने तथा समझने की क्षमता होनी चाहिये|
- इस बात को स्वीकारने का बड़प्पन होना चाहिये कि हो सकता है कि उसकी संस्कृति में कुछ कमी है जो दूसरी संस्कृति में नहीं है|
- यदि दूसरी संस्कृति में कुछ अच्छाई है तो उसे अपनाने की शक्ति होनी चाहिये|
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